नौकरानी ने अपनी मालकिन द्वारा फेंकी गई पुरानी मूर्ति को साफ किया, तभी मूर्ति के अंदर से एक राज़ बाहर आ गया 🤫
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मूर्ति के राज़: एक फेंकी हुई चीज़ ने बदल दी किस्मत
क्या आपने कभी सोचा है कि जिन चीजों को हम बेकार समझकर कबाड़ में फेंक देते हैं, उनमें किसी की पूरी जिंदगी के राज दफन हो सकते हैं? क्या एक मामूली सी पुरानी मूर्ति किसी के टूटे हुए रिश्तों को फिर से जोड़ सकती है? यह कहानी है शांति की, एक काम वाली बाई की, जिसने अपनी मालकिन की फेंकी हुई मूर्ति को उठाकर साफ तो किया, पर जब उस मूर्ति ने अपने अंदर छिपा दशकों पुराना सच उजागर किया, तो उस सच ने एक अमीर और ताकतवर मालकिन के घमंड और उसकी पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया।
भाग 1: दो अलग-अलग दुनियाएँ
दिल्ली के सबसे पौश इलाकों में से एक, वसंत विहार की चौड़ी, साफ-सुथरी सड़कों पर सुबह की पहली किरणें पड़ती थीं, तो वे आलीशान कोठियों के शीशों से टकराकर और भी ज्यादा चमक उठती थीं। इन्हीं कोठियों में से एक थी—कोठी नंबर सात, खन्ना विला। बाहर से यह कोठी किसी राजमहल से कम नहीं लगती थी। हरे-भरे लॉन, विदेशी फूलों की क्यारियाँ, ऊँचे गेट पर तैनात सिक्योरिटी गार्ड—इस कोठी की मालकिन थी श्रीमती अंजलि खन्ना।
चालीस साल की अंजलि खन्ना, शहर के सबसे बड़े बिल्डरों में से एक, स्वर्गीय श्री राजेश्वर खन्ना की इकलौती वारिस और विधवा थी। उनके पति की तीन साल पहले एक कार हादसे में मौत हो चुकी थी। अंजलि के पास दौलत, शोहरत, ताकत सब कुछ था, पर उनकी आँखों में एक अजीब सी वीरानगी और चेहरे पर एक सख्ती हमेशा बनी रहती थी। वह कम बोलती थीं और उनके चेहरे पर मुस्कान शायद ही कभी किसी ने देखी हो।
इसी कोठी की चारदीवारी के बाहर, शहर के दूसरे छोर पर बसी थी एक घनी, तंग गलियों वाली बस्ती, जहाँ जिंदगी हर रोज अपनी पहचान के लिए संघर्ष करती थी। इसी बस्ती के एक सीलन भरे दो कमरों के मकान में शांति अपनी पूरी दुनिया के साथ रहती थी। उसकी दुनिया था उसका बारह साल का बेटा राहुल। शांति के पति, जो एक फैक्ट्री में मजदूरी करते थे, कुछ साल पहले एक बीमारी के चलते चल बसे थे। तब से शांति ने ही माँ और बाप दोनों की भूमिका निभाई थी। वह दिनभर वसंत विहार की कोठियों में झाड़ू, पोछा और बर्तन मांजने का काम करती ताकि राहुल की पढ़ाई और घर का खर्च चल सके। राहुल उसकी आँखों का तारा ही नहीं, जीने की वजह भी था। वह पढ़ने में बहुत तेज था और उसकी आँखों में बड़े-बड़े सपने थे।
भाग 2: एक माँ की चिंता
पिछले कुछ महीनों से राहुल को स्कूल के ब्लैकबोर्ड पर लिखा हुआ धुंधला नजर आने लगा था। डॉक्टर ने जांच के बाद बताया कि राहुल की आँखों की रोशनी तेजी से कमजोर हो रही है और अगर जल्द ही एक छोटा सा ऑपरेशन नहीं किया गया, तो यह कमजोरी बढ़ सकती है। ऑपरेशन का खर्चा था तीस हजार रुपये। यह रकम शांति के लिए किसी पहाड़ जैसी थी। वह दिन-रात खटती, कभी-कभी तो भूखे पेट भी सो जाती, पर इतने पैसे जोड़ पाना उसके लिए नामुमकिन सा लग रहा था। वह हर रोज भगवान से अपने बेटे की आँखों की सलामती की दुआ मांगती।
शांति पिछले पाँच सालों से खन्ना विला में काम कर रही थी। वह अंजलि मैडम के स्वभाव से अच्छी तरह वाकिफ थी—सख्त, अनुशासनप्रिय और किसी से ज्यादा बात न करने वाली। पर शांति को उनसे कभी कोई शिकायत नहीं रही, क्योंकि वह वक्त पर तनख्वाह दे देती थीं और काम में बेवजह दखल नहीं देती थीं।
भाग 3: दिवाली की सफाई और मूर्ति का मिलना
उस दिन दिवाली की सफाई चल रही थी। अंजलि मैडम ने घर का पुराना और बेकार सामान निकालने के लिए स्टोर रूम खुलवाया था। स्टोर रूम धूल और जाले से भरा पड़ा था। पुराने टूटे फर्नीचर, बंद पड़े इलेक्ट्रॉनिक सामान और गत्तों में भरा न जाने क्या-क्या कबाड़। शांति और दो और नौकरानियाँ मिलकर सामान बाहर निकाल रही थीं। तभी अंजलि मैडम खुद स्टोर रूम में आईं। उनकी नजर एक कोने में धूल में लिपटी, कपड़े में बंधी एक चीज पर पड़ी। उन्होंने एक नौकरानी से उसे बाहर निकालने को कहा।
कपड़ा हटाने पर अंदर से एक पुरानी मिट्टी की मूर्ति निकली। मूर्ति कोई खास सुंदर नहीं थी, बल्कि थोड़ी साधारण सी थी और एक जगह से उसका छोटा सा कोना टूट भी गया था। मूर्ति को देखते ही अंजलि मैडम का चेहरा तमतमा गया। उनकी आँखों में एक अजीब सी नफरत और दर्द का मिला-जुला भाव तैर गया। “यह मनहूस मूर्ति आज तक यहाँ पड़ी है?” उनकी आवाज में जहर घुला हुआ था। “इसे अभी इसी वक्त मेरे घर से बाहर फेंको। मैं इसकी शक्ल भी नहीं देखना चाहती।”
शांति जो पास में ही खड़ी थी, यह देखकर हैरान रह गई। मूर्ति को कोई ऐसे कैसे फेंकने के लिए कह सकता है? उसने डरते-डरते कहा, “मैडम जी, यह तो गणपति बप्पा की मूर्ति है। इसे फेंकना पाप लगेगा। कहें, तो मैं इसे कहीं मंदिर में रख आती हूँ।” अंजलि ने उसे घूर कर देखा। “मैंने जो कहा है, वह करो। मुझे सिखाने की कोशिश मत करो। इसे बाकी कबाड़ के साथ बाहर फेंक दो।”
शांति चुप हो गई। उसने धीरे से उस मूर्ति को उठाया। मूर्ति उठाते वक्त उसे महसूस हुआ कि वह जितनी दिख रही है, उससे कहीं ज्यादा भारी है। उसने बाकी कबाड़ के साथ उसे भी कोठी के बाहर रख दिया, जहाँ से नगर निगम की गाड़ी कबाड़ उठाती थी। पर उसका मन मान नहीं रहा था। एक गहरी आस्था और सम्मान का भाव उसे कचोट रहा था।
भाग 4: मूर्ति का रहस्य
जब शाम को काम खत्म करके वह घर जाने लगी, तो उसकी नजर फिर उस मूर्ति पर पड़ी जो अब भी वहीं कबाड़ के ढेर में पड़ी थी। उसने इधर-उधर देखा और चुपके से उस मूर्ति को अपने थैले में रख लिया। उसने सोचा, मैडम ने तो फेंक ही दिया है। मैं इसे अपने घर के मंदिर में रख लूंगी। कम से कम मूर्ति का अपमान तो नहीं होगा।
घर पहुँचकर उसने राहुल को खाना खिलाया। राहुल आज भी अपनी आँखों में दर्द की शिकायत कर रहा था। शांति का दिल डूब गया। वह अपने छोटे से पूजा के कोने में गई। उसने थैले से वह मूर्ति निकाली और उसे साफ करने लगी। मूर्ति पर धूल की मोटी परत जमी हुई थी। उसने एक गीला कपड़ा लिया और धीरे-धीरे उसे पोंछने लगी। जैसे-जैसे धूल हट रही थी, मूर्ति का असली स्वरूप निखर रहा था। वह भले ही बहुत कीमती न लग रही हो, पर उसके बनाने वाले ने उसे बड़े प्यार से गढ़ा था।
मूर्ति को साफ करते-करते शांति का हाथ मूर्ति के निचले हिस्से यानी उसके आसन पर गया। उसे महसूस हुआ कि आसन का एक हिस्सा थोड़ा ढीला है, जैसे वह अलग से जोड़ा गया हो। उसने उत्सुकता से उसे हिलाकर देखा। वह हिस्सा सच में हिल रहा था। उसने थोड़ा जोर लगाया और एक छोटे से खटके के साथ आसन का वह हिस्सा खुल गया। अंदर एक खोखली जगह थी। शांति का दिल धड़क उठा। उस खोखली जगह के अंदर मखमली कपड़े में लिपटी कोई चीज रखी हुई थी। उसके हाथ काँप रहे थे। उसने धीरे से उस मखमली पोटली को बाहर निकाला। उसे खोलते ही अंदर से दो चीजें निकलीं—एक पुराना पीला पड़ चुका मुड़ा हुआ कागज और उसी कागज में लिपटी हुई एक छोटी सी सोने की अंगूठी। अंगूठी मर्दों वाली थी, जिस पर अंग्रेजी का “R” अक्षर बना हुआ था।
शांति ने धड़कते दिल से उस कागज को खोला। वह एक चिट्ठी थी। लिखावट बहुत पुरानी और धुंधली पड़ चुकी थी। शांति को पढ़ना लिखना नहीं आता था, वह बस अक्षर पहचान सकती थी, पर वाक्य नहीं पढ़ सकती थी। उसने राहुल को आवाज दी, “बेटा, जरा यहां आना। देखना तो इस कागज पर क्या लिखा है।”
राहुल अपनी किताब छोड़कर आया। उसने वह पुरानी चिट्ठी अपने हाथ में ली। उसकी नजरें भी माँ की तरह हैरान थीं। उसने धीरे-धीरे अटक-अटक कर उस चिट्ठी को पढ़ना शुरू किया।
भाग 5: चिट्ठी का सच
चिट्ठी अंजलि मैडम की माँ, स्वर्गीय श्रीमती शारदा खन्ना ने लिखी थी और यह किसी और के लिए नहीं, बल्कि अपने सबसे भरोसेमंद पारिवारिक मित्र के नाम थी। चिट्ठी की तारीख आज से बीस साल पुरानी थी। राहुल ने पढ़ना जारी रखा—
“मेरे प्यारे वीरेंद्र भाई, जब तक यह चिट्ठी आपको मिलेगी, शायद मैं इस दुनिया में रहूं या ना रहूं। राजेश्वर जी के जुल्म और उनकी बनाई इस सोने की जेल में मेरा दम घुट रहा है। मैं आज आपसे अपनी जिंदगी का वह सच बांट रही हूं जिसे मैंने अपने सीने में दफन कर रखा है। जिस बेटे को राजेश्वर जी ने और पूरी दुनिया ने मरा हुआ मान लिया है, मेरा वह बेटा, मेरा रोहन, जिंदा है।”
यह पढ़ते ही राहुल और शांति दोनों की साँसें अटक गईं। अंजलि मैडम का तो कोई भाई नहीं था। वे तो अपने माँ-बाप की इकलौती औलाद थीं।
चिट्ठी में आगे लिखा था, “आपको याद होगा बीस साल पहले जो कार हादसा हुआ था, जिसमें सब ने यही जाना कि मैं और मेरा बेटा रोहन दोनों मारे गए, पर असल में उस हादसे में सिर्फ मुझे चोटें आई थीं। राजेश्वर जी ने ही यह झूठी खबर फैलाई थी। सच तो यह है कि वे रोहन से नफरत करते थे। वह नहीं चाहते थे कि रोहन उनकी करोड़ों की जायदाद का वारिस बने। रोहन दिल का बहुत भोला था और उसने हमारे ही ड्राइवर की बेटी से प्यार करने की हिम्मत कर ली थी। राजेश्वर जी इस रिश्ते के सख्त खिलाफ थे। उन्होंने रोहन को बहुत धमकाया, पर जब वह नहीं माना, तो उन्होंने उसे हमेशा के लिए अपनी जिंदगी और अपनी जायदाद से दूर करने का यह घिनौना खेल रचा। उन्होंने रोहन को जान से मारने की धमकी देकर शहर छोड़ने पर मजबूर कर दिया और सबसे कह दिया कि वह हादसे में मर गया।”
“मैं उस वक्त कुछ नहीं कर सकी। मुझे अंजलि की जान की फिक्र थी। मैं यह चिट्ठी और रोहन की यह आखिरी निशानी—उसकी अंगूठी—इस मूर्ति में छिपा रही हूँ। यह मूर्ति रोहन ने अपने हाथों से मेरे लिए बनाई थी। वह कहता था, ‘माँ, यह बप्पा हमेशा हमारी रक्षा करेंगे।’ मुझे यकीन है, एक दिन सच सामने आएगा। मेरे मरने के बाद जब भी आपको मौका मिले, यह मूर्ति खोलकर यह सच अंजलि तक जरूर पहुंचाइएगा। उसे बताइएगा कि उसका भाई जिंदा है और उसे अपने पिता के किए पापों का पता चलना चाहिए। आपकी अभागी बहन, शारदा।”
भाग 6: सच का सामना
चिट्ठी खत्म होते ही कमरे में एक गहरा सन्नाटा छा गया। शांति और राहुल जड़वत बैठे थे। उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि उन्होंने क्या पढ़ लिया है। अंजलि मैडम, जो बाहर से इतनी पत्थरदिल और सख्त दिखती थीं, उनके अंदर इतना बड़ा तूफान और इतना गहरा धोखा छिपा हुआ था। उनके अपने पिता ने ही उनसे उनका भाई छीन लिया था।
शांति का दिल करुणा से भर गया। उसे अंजलि मैडम के लिए बहुत दुख हुआ। पर अब सवाल यह था कि वे क्या करें? यह चिट्ठी और यह अंगूठी एक बहुत बड़ी अमानत थी। एक ऐसा सच था, जो किसी की जिंदगी को पूरी तरह बदल कर रख सकता था।
राहुल ने अपनी माँ की ओर देखा। “माँ, हमें यह चिट्ठी मैडम को देनी होगी। उन्हें सच जानने का पूरा हक है।” शांति ने सिर हिलाया। “हाँ बेटा, कल सुबह सबसे पहला काम हम यही करेंगे।”
उस रात शांति को नींद नहीं आई। उसके मन में बार-बार अंजलि मैडम का अकेला और उदास चेहरा घूम रहा था। उसे लग रहा था जैसे मूर्ति ने ही इस सच को बाहर लाने के लिए उसे जरिया बनाया है।
भाग 7: सच का उजागर होना
अगली सुबह शांति रोज से थोड़ा जल्दी खन्ना विला पहुँची। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह इतनी बड़ी और इतनी तकलीफदेह बात मैडम से कैसे कहेगी। उसने हिम्मत जुटाई और सीधे अंजलि मैडम के कमरे में गई।
अंजलि मैडम अपने ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठी थीं। उन्होंने शांति को देखा। “क्या बात है? आज इतनी सुबह-सुबह?”
शांति ने काँपते हाथों से अपने थैले में से वह मूर्ति, वह चिट्ठी और वह अंगूठी निकाली और ड्रेसिंग टेबल पर रख दी। “मैडम जी, यह आपकी अमानत है। यह कल कबाड़ में मिली थी।”
अंजलि ने उस मूर्ति को देखा और उनका चेहरा फिर से गुस्से से लाल हो गया। “मैंने तुमसे कहा था ना कि इसे मेरे घर से फेंक देना। तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इसे वापस मेरे सामने लाने की?”
शांति ने हाथ जोड़ लिए। “नहीं मैडम जी, गुस्सा मत होइए। एक बार, बस एक बार इस चिट्ठी को पढ़ लीजिए। यह मूर्ति फेंकने लायक नहीं है। इसमें आपकी माँ का संदेश है।”
अंजलि ने हैरान होकर उस पीले पड़ चुके कागज को उठाया। अपनी माँ की लिखावट देखते ही उनके हाथ काँपने लगे। उन्होंने चिट्ठी पढ़ना शुरू किया। जैसे-जैसे वह पढ़ती गईं, उनके चेहरे का रंग बदलता गया। सख्ती की जगह हैरानी, हैरानी की जगह अविश्वास, और फिर अविश्वास की जगह एक गहरे सदमे और दर्द ने ले ली। चिट्ठी खत्म होते ही उनकी आँखों से आँसुओं का सैलाब बह निकला। वह वहीं जमीन पर बैठ गईं। उनके मुँह से बस एक ही शब्द निकल रहा था—”रोहन, मेरा भाई जिंदा है!”
उनके पैरों तले जैसे जमीन खिसक गई थी। जिस पिता को वह अपना आदर्श मानती थीं, उनकी इतनी घिनौनी सच्चाई जानकर वह टूट चुकी थीं। जिस भाई को वह बीस सालों से मरा हुआ समझकर उसकी याद में आँसू बहाती थीं, वह दुनिया में कहीं जी रहा था।
शांति ने उन्हें सहारा देकर उठाया। “मैडम जी, संभालिए अपने आप को।” अंजलि रोते हुए उससे लिपट गईं। “शांति, तुमने आज मुझे मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा सच दिया है। मैं तुम्हारी यह नेकी जिंदगी भर नहीं भूलूँगी।”
उन्होंने उस सोने की अंगूठी को उठाया और उसे अपनी आँखों से लगा लिया।
भाग 8: बदलती दुनिया
उस दिन के बाद अंजलि खन्ना पूरी तरह बदल गईं। उनके चेहरे की सख्ती पिघलकर एक अजीब सी नरमी में बदल गई थी। उन्होंने देश के सबसे बड़े प्राइवेट जासूसों को अपने भाई रोहन को ढूँढने के काम पर लगा दिया। वह अब हर वक्त किसी खोई हुई चीज की तलाश में रहती थीं। इस दौरान उन्होंने शांति का बहुत ख्याल रखना शुरू कर दिया।
एक दिन उन्होंने शांति को अपने पास बुलाया और कहा, “शांति, मैं तुम्हारे लिए कुछ करना चाहती हूँ। तुमने मुझे मेरा भाई लौटाने की उम्मीद दी है। मैं तुम्हें तुम्हारे बेटे की आँखों की रोशनी दूँगी।” उन्होंने राहुल की आँखों के ऑपरेशन का सारा खर्चा उठाया और दिल्ली के सबसे बड़े आई हॉस्पिटल में उसका इलाज करवाया। ऑपरेशन सफल रहा और राहुल की दुनिया में फिर से सारे रंग लौट आए। शांति ने रोते हुए अंजलि के पैर छू लिए।
भाग 9: बिछड़े भाई-बहन का मिलन
महीनों की तलाश के बाद आखिरकार वह दिन आ ही गया। जासूसों ने रोहन खन्ना का पता लगा लिया था। वह दिल्ली से बहुत दूर, उत्तराखंड के एक छोटे से गाँव में अपनी पहचान बदलकर जी रहा था। उसने उसी ड्राइवर की बेटी से शादी कर ली थी और अब एक छोटी सी लकड़ी के सामान की दुकान चलाकर अपना गुजारा कर रहा था।
अंजलि खुद अपनी गाड़ी से उस गाँव पहुँची। जब बीस साल बाद भाई-बहन आमने-सामने आए, तो वह मंजर देखने वालों की आँखें भी नम हो गईं। दोनों एक-दूसरे से लिपटकर घंटों रोते रहे। रोहन अपनी बहन को वापस पाकर और अपने पिता की सच्चाई जानकर हैरान और दुखी था। अंजलि अपने भाई और भाभी को वापस दिल्ली ले आईं। उन्होंने अपनी जायदाद का आधा हिस्सा अपने भाई के नाम कर दिया।
खन्ना विला में बरसों बाद हँसी और खुशियों की आवाजें गूंज रही थीं। एक दिन अंजलि ने एक बहुत बड़ी पूजा रखवाई। उन्होंने शांति और राहुल को भी बुलाया। पूजा के बाद उन्होंने सबके सामने घोषणा की—”आज मेरा परिवार अगर पूरा हुआ है, तो उसकी वजह सिर्फ एक इंसान है—शांति। इनकी ईमानदारी और नेकी ने मेरे डूबे हुए घर को फिर से बसा दिया है। आज से शांति इस घर की नौकरानी नहीं, बल्कि इस घर की सदस्य होगी। यह मेरी भाभी समान है।”
उन्होंने शांति के नाम पर एक फिक्स्ड डिपॉजिट करवाया, ताकि उसे और राहुल को जिंदगी में कभी किसी चीज की कमी न हो। उन्होंने राहुल की पढ़ाई की पूरी जिम्मेदारी ले ली और उसे शहर के सबसे बड़े स्कूल में दाखिला दिलवाया।
भाग 10: मूर्ति की नई जगह
और वह मूर्ति, जिसे कभी नफरत से फेंक दिया गया था, आज उसे खन्ना विला के मंदिर में सबसे ऊँची और सबसे सम्माननीय जगह पर स्थापित किया गया था। वह मूर्ति इस बात का प्रतीक थी कि कैसे एक छोटी सी बेजान चीज भी किसी के टूटे हुए रिश्तों को जोड़ने और किसी की जिंदगी को हमेशा के लिए बदलने की ताकत रखती है।
शांति ने एक फेंकी हुई चीज को उठाया था, पर बदले में किस्मत ने उसे वह सम्मान और वह खुशियाँ दीं, जिनके बारे में उसने कभी सपनों में भी नहीं सोचा था।
उपसंहार
दोस्तों, शांति की यह कहानी हमें सिखाती है कि ईमानदारी और नेकी का रास्ता शायद मुश्किलों भरा हो, पर उसका फल हमेशा मीठा होता है। एक छोटा सा अच्छा कर्म भी किसी की जिंदगी में उजाला ला सकता है। अगर इस कहानी ने आपके दिल को छुआ है, तो इसे अपने दोस्तों और परिवार के साथ जरूर साझा करें, ताकि इंसानियत का यह संदेश हर दिल तक पहुँच सके।
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