पत्नी ने गरीब पति को सबके सामने अपमानित किया.. अगले दिन जो हुआ.. इंसानियत रुला दी
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जिंदगी में कुछ लम्हे ऐसे आते हैं जब अपनों के दिए जख्म सबसे गहरे लगते हैं। जब प्यार करने वाला ही भीड़ के सामने आपको नीचा दिखा दे, तो दिल नहीं, पूरी आत्मा टूटती है। लेकिन कुछ लोग गिरकर बिखरते नहीं, बल्कि वही गिरना उनकी उड़ान की शुरुआत बन जाता है। आज की कहानी एक ऐसे शख्स की है जिसने अपमान को अपनी ताकत बनाया और एक दिन वहीं खड़ा हुआ, जहां कभी उसे नीचा दिखाया गया था। सुनिए बदले की नहीं, बदलाव की कहानी।
दोपहर का वक्त था। मुंबई के लोअर परेल की एक बड़ी कंपनी ग्लोबल टेक प्राइवेट लिमिटेड के कॉन्फ्रेंस रूम में मीटिंग चल रही थी। शीशे की दीवारों, चमचमाते टेबलों और कर्मचारियों की भीड़ में एक कोना ऐसा था जहां सबकी निगाहें बार-बार ठहर रही थीं। वहां बैठा था अरविंद मिश्रा। उम्र लगभग 34। साधारण कपड़े, पुराना बैग और चेहरे पर झलकती थकान। वह कंपनी में एक जूनियर सेल्स असिस्टेंट था। पद छोटा, इज्जत उससे भी छोटी। उसी कंपनी की सबसे आत्मविश्वासी और चर्चित शख्सियत थी समीरा मिश्रा, उसकी पत्नी। स्मार्ट, प्रोफेशनल और मैनेजर के पद पर, ऑफिस में उसने कभी अरविंद से पत्नी की तरह बर्ताव नहीं किया। उसके लिए ऑफिस में रिश्तों से ऊपर पोजीशन थी।
मीटिंग खत्म होते ही समीरा की तेज आवाज गूंजी। “अरविंद, जरा यहीं रुको।” सबकी नजरें उनकी तरफ घूम गईं। वह फाइल उठाकर जोर से टेबल पर पटकती है। “यह रिपोर्ट बनाई है तुमने। इसे देखकर कोई भी कह देगा कि किसी नौसिखिए ने काम किया है।” अरविंद शांत खड़ा रहा। चेहरा स्थिर, लेकिन आंखों में कुछ टूटता हुआ। समीरा ने आगे कहा, “घर पर तुम्हारी साधारण जिंदगी सह लेती हूं, लेकिन ऑफिस में नहीं। यहां मेरी टीम की इज्जत दांव पर है।”

लोग एक दूसरे को देखने लगे। कुछ के चेहरे पर व्यंग्य, कुछ पर सहानुभूति। अरविंद ने धीरे से कहा, “यह बातें बाद में भी की जा सकती थीं। सबके सामने क्यों?” समीरा की आवाज और ऊंची हो गई। “यह ऑफिस है, घर नहीं। यहां काम चलता है, रिश्ते नहीं।” अरविंद ने बिना कुछ कहे अपनी फाइलें समेटी और बाहर निकल गया। सीढ़ियों पर उसके कदम भारी थे। हर कदम जैसे आत्मसम्मान को कुचल रहा हो। पास के पार्क में जाकर वह एक बेंच पर बैठ गया। फाइल हाथ में थी, पर आंसुओं की वजह से पन्ने धुंधले हो चुके थे।
वह खुद से बुदबुदाया, “मैंने कभी उसके सपनों को नहीं रोका और आज वही मुझे सबके सामने छोटा साबित कर रही है।” पास बैठे एक बुजुर्ग ने पूछा, “बेटा, परेशान लगते हो।” अरविंद मुस्कुराया। “जिंदगी की गणित समझ नहीं आती बाबा। जब हम किसी को ऊपर उठाते हैं, वो हमें नीचे क्यों दिखाने लगता है?” बुजुर्ग ने जवाब दिया, “क्योंकि लोग ऊंचाई पर पहुंचकर भूल जाते हैं कि इमारत नींव पर ही टिकी होती है। नींव हटे तो सबसे ऊंची इमारत भी गिरती है।” यह शब्द उसके दिल में उतर गए।
वो कुछ देर चुप बैठा रहा। फिर जेब से एक पुराना नोटबुक निकाला जिसमें कभी उसके बिजनेस आइडिया और सपने लिखे थे। वो पन्नों को देखता रहा, जैसे कोई बुझी हुई लौ फिर से जल उठी हो। शाम को घर पहुंचा तो समीरा सोफे पर बैठी टीवी देख रही थी। वह बोली, “देखो, जो कुछ मैंने ऑफिस में कहा वह जरूरी था। वहां मैं तुम्हारी पत्नी नहीं, मैनेजर हूं।” अरविंद ने शांत स्वर में कहा, “मैंने कभी तुम्हारे लहजे का हिसाब नहीं मांगा। लेकिन आज तुमने मेरे आत्मसम्मान का कर्ज बढ़ा दिया है।” समीरा व्यंग से हंसी। “आत्मसम्मान पहले कुछ बनो। फिर ऐसे शब्द बोलना।”
अरविंद ने दृढ़ आवाज में कहा, “ठीक है। मैं कुछ बनकर ही लौटूंगा। तब देखेंगे, बड़ा कौन, ओहदा या इंसान।” वह घर से निकल गया। उस रात उसके अंदर एक नई चिंगारी जल चुकी थी। वह सारी रात अपनी नोटबुक के पन्ने पलटता रहा। वही पुराने सपने, वही अधूरी योजनाएं। सुबह सूरज निकलने से पहले ही वह तैयार होकर निकल गया। अब उसके कदमों में थकान नहीं थी। इरादा था।
उस रात अरविंद सो नहीं सका। ऑफिस में हुआ अपमान उसके भीतर किसी जलते अंगारे की तरह सुलगता रहा। वह बार-बार अपनी पुरानी नोटबुक को पलटता, वही पन्ने जिन पर कभी उसने सपनों की इमारत खड़ी की थी। “इनोकॉम सॉलशंस” यही नाम उसने उस समय अपनी डिजिटल कंपनी के लिए चुना था। कभी यही उसका जुनून था। लेकिन जिम्मेदारियों के बोझ और स्टेबिलिटी की सोच ने उस सपने को बंद कर दिया। अब वही सपना एक बार फिर जाग चुका था।
सुबह होते ही उसने तय कर लिया। अब वह सिर्फ तनख्वाह के लिए नहीं जिएगा। अपने इरादों के लिए जिएगा। वो सीधा पहुंचा भारत बैंक की ब्रांच में, जहां उसका पुराना कॉलेज का दोस्त निखिल अग्रवाल स्मॉल बिजनेस सेक्शन का मैनेजर था। निखिल ने उसे देखा और मुस्कुराया। “अरे अरविंद, इतने सालों बाद!” दोनों कुछ पल पुरानी बातें करते रहे। फिर अरविंद ने अपना फोल्डर आगे बढ़ाया। “निखिल, यह मेरा आईडिया है। छोटे व्यापारियों को एक डिजिटल प्लेटफार्म पर लाना चाहता हूं ताकि वे बड़ी कंपनियों से टक्कर ले सकें।”
निखिल ने फाइल ध्यान से पढ़ी। “भाई, यह तो जबरदस्त है। पर बैंक से लोन में टाइम लगेगा।” थोड़ी देर चुप रहकर वह बोला, “लेकिन मैं अपनी सेविंग से तेरी मदद करूंगा। तू ईमानदार है। मुझे तुझ पर भरोसा है।” अरविंद की आंखें चमक उठीं। अब उसके पास सपना भी था और किसी का विश्वास भी। कुछ ही हफ्तों में इनोकॉम सॉलशंस की रजिस्ट्रेशन हो गई।
ऑफिस था। उसका छोटा कमरा, एक पुरानी टेबल, सेकंड हैंड लैपटॉप और दो कॉलेज के स्टूडेंट्स जो उसके जुनून से प्रभावित होकर वॉलंटियर बन गए। दिन रात मेहनत, सुबह बाजारों में जाकर दुकानदारों से मिलना, रात में वेबसाइट पर काम करना, कभी चाय से पेट भरना, कभी इंटरनेट पैक के लिए पैसे जोड़ना। लेकिन अरविंद थकता नहीं था। हर सुबह वाइट बोर्ड पर वह नए टारगेट लिखता और उन्हें पूरा करके ही रुकता।
वह दुकानदारों को समझाता, “अगर आप अपना बिजनेस ऑनलाइन लाएंगे तो बड़ी कंपनियों से टक्कर दे सकते हैं।” लोग पहले हंसते, “हमारे बस का नहीं भाई, यह इंटरनेट वाला काम।” लेकिन अरविंद उन्हें उनकी भाषा में सच्चाई से समझाता। धीरे-धीरे कुछ लोगों ने हां कहा। एक दुकानदार बोला, “तेरी आंखों में सच्चाई दिखती है भाई। कर लेते हैं कोशिश।” और बस वहीं से असली शुरुआत हुई।
इधर समीरा की जिंदगी में सब कुछ चमकदार दिखता था। ग्लोबल टेक में वह अब असिस्टेंट डायरेक्टर बनने की दिशा में थी। मीटिंग्स, प्रेजेंटेशन, पार्टियां, हर जगह उसका नाम गूंजता। लेकिन अंदर कहीं एक खालीपन था। उसे मालूम था कि अरविंद ने नौकरी छोड़ दी है। एक दिन लंच टेबल पर उसने सहकर्मियों से कहा, “पता नहीं अरविंद अब क्या कर रहा होगा।” शालिनी हंसते हुए बोली, “कौन रखेगा उसे? ऑफिस में तो तुमने ही सब हंस पड़ी।” समीरा ने भी साथ में हंसी, लेकिन उसके अंदर एक अजीब सी बेचैनी उठी।
वहीं अरविंद का छोटा स्टार्टअप अब तेजी से बढ़ने लगा। उसके प्लेटफार्म पर कई नए व्यापारी जुड़ चुके थे। उसकी ईमानदारी और लगन देखकर कुछ स्थानीय निवेशकों ने भी रुचि दिखानी शुरू की। एक शाम वह अपने छोटे कमरे में बैठा था। कंप्यूटर स्क्रीन पर उसकी वेबसाइट पर सैकड़ों दुकानों के नाम दिख रहे थे। उसके चेहरे पर वही चमक लौट आई थी जो कभी कॉलेज में होती थी। वो खुद से बोला, “यही तो सपना था। अब इसे कोई नहीं रोक सकता।”
बेशक रास्ता आसान नहीं था। कभी पैसे की कमी उसे तोड़ती, कभी लोग उसके काम पर शक करते। लेकिन हर बार उसे वो मीटिंग रूम याद आता जहां समीरा ने सबके सामने उसका आत्मसम्मान रौंदा था। वही लम्हा उसके लिए सबसे बड़ा ईंधन बन गया था। हर सुबह वह खुद से कहता, “मैं किसी को नीचा दिखाने नहीं, खुद को ऊंचा उठाने निकला हूं।”
दिन हफ्तों में, हफ्ते महीनों में बदल गए। इनोकॉम सॉलशंस अब एक छोटा नाम नहीं रहा। व्यापारी एक दूसरे को उसकी सिफारिश करने लगे। निवेशक उससे मिलने लगे। अरविंद को लगने लगा कि उसकी जिंदगी अब सिर्फ चल नहीं रही, उड़ान भर रही है। समय बीतने के साथ अरविंद की कंपनी इनोकॉम सॉलशंस अब एक नाम बन चुकी थी। जो काम उसने एक पुराने लैपटॉप और छोटे कमरे से शुरू किया था, आज वह एक संगठित दिशा में बढ़ने लगा था।
ऑफिस की दीवारों पर चार्ट्स, वाइट बोर्ड पर गोल्स और दो से बढ़कर चार लोग अब उसकी टीम में थे। हर सुबह अरविंद ऑफिस पहुंचते ही बोर्ड पर लिखता, “आज 10 नए व्यापारी जोड़ने हैं। नया फीचर टेस्ट, इन्वेस्टर मीट की तैयारी” और जब तक यह पूरे ना हो जाए, चैन से नहीं बैठता। धीरे-धीरे उसका प्लेटफार्म व्यापारी समुदाय में फैलने लगा। जो लोग पहले हंसते थे, अब वही लोग खुद उससे जुड़ने लगे। “भाई, हमारे लिए भी अकाउंट बना दे। सुना है तेरी साइट से धंधा बढ़ता है।”
अरविंद अब किसी को मनाने नहीं जाता था। लोग खुद आने लगे थे। एक दिन उसे स्थानीय इन्वेस्टर्स की एक मीटिंग में अपना आईडिया प्रेजेंट करने का मौका मिला। कमरे में बैठे अनुभवी निवेशक और सामने अरविंद, पुराना बैग लेकर आया एक साधारण शख्स। लेकिन जब उसने बोलना शुरू किया, सब शांत हो गए। उसने कोई भारी अंग्रेजी नहीं बोली, बस सीधी बात की। “मैं जानता हूं छोटे दुकानदारों की मुश्किलें क्या हैं। इनोकॉम उन्हें जोड़ने आया है सच्चाई के साथ।”
मीटिंग खत्म होते ही तीन निवेशकों ने उसे अपने कार्ड थमाए। “तुम्हें जुनून दिखता है। तुम झूठ नहीं बोलते। इसी में ताकत है।” उस दिन अरविंद ऑफिस लौटा तो उसकी आंखों में चमक थी। “अब उड़ान की बारी है।” उधर समीरा की जिंदगी भी तेजी से बदल रही थी। ग्लोबल टेक में वह असिस्टेंट डायरेक्टर बन चुकी थी। केबिन शानदार, पद बड़ा और ऑफिस में उसका रुतबा भी। मीटिंग्स, प्रेजेंटेशन, बिजनेस डिनर, बाहर से सब कुछ परफेक्ट लगता। लेकिन अंदर कुछ बेचैन करने वाला था।
कभी-कभी देर रात ऑफिस में बैठकर वो खुद से पूछती, “अरविंद अब कहां होगा?” एक दिन ऑफिस कैंटीन में लंच पर शालिनी बोली, “सुना है तुम्हारे हस्बैंड ने कोई स्टार्टअप शुरू किया है?” समीरा हल्का हंसते हुए बोली, “अरविंद और स्टार्टअप, सब हंस पड़े।” समीरा ने भी हंसी में सिर हिलाया लेकिन अंदर एक हल्की सी चुभन हुई जो उसने किसी को दिखने नहीं दी।
वहीं दूसरी तरफ अरविंद को अब तक का सबसे बड़ा मौका मिला। एक बड़ी मेट्रो सप्लाई चेन कंपनी ने इनोकॉम से संपर्क किया। वे अपने नेटवर्क को उसके डिजिटल प्लेटफार्म से जोड़ना चाहते थे। अगर यह डील होती तो इनोकॉम सॉलशंस सिर्फ लोकल नहीं, नेशनल लेवल पर पहुंच जाती। अरविंद ने इस मीटिंग के लिए तीन दिन रात मेहनत की। हर स्लाइड, हर डाटा पॉइंट उसने खुद तैयार किया। मीटिंग के दिन वह नीली शर्ट और ग्रे ब्लेज़र में पहुंचा। वही सादगी अब आत्मविश्वास के साथ।

प्रेजेंटेशन खत्म होते ही डायरेक्टर ने हाथ बढ़ाया। “मिस्टर अरविंद, हमें आपके साथ काम करके खुशी होगी।” वह पल उसके लिए सिर्फ एक डील नहीं, एक सपना पूरा होने जैसा था। अब मीडिया ने भी नोटिस करना शुरू किया। लोकल अखबारों और न्यूज साइट्स में हेडलाइन छपने लगी। “मुंबई के अरविंद मिश्रा ने बनाया व्यापारियों का डिजिटल हीरो। इनोकॉम सॉलशंस की बड़ी डील। हजारों दुकानदार जुड़े।”
समीरा अपने ऑफिस में बैठी थी। लंच के बाद उसने अखबार उठाया और पन्ना पलटा। हेडलाइन पर नजर गई और वो ठिठक गई। “इनोकॉम सॉलशंस के संस्थापक अरविंद मिश्रा की बड़ी सफलता।” उसने खबर दो बार पढ़ी। नाम वही था। चेहरा वही। उसका चेहरा जैसे सख्त हो गया। वह यकीन नहीं कर पा रही थी कि जिस आदमी को उसने कभी एक छोटा कर्मचारी समझा था, वही अब अखबार की हेडलाइन बन चुका है।
वो कुर्सी पर पीछे झुकी और गहरी सांस ली। दिल में हैरानी, पछतावा और थोड़ा सा डर। यह वह लम्हा था जहां उसकी सोच पहली बार हिल गई थी। यह था वह मोड़ जब अरविंद की मेहनत ने उड़ान भरी। ना सिर्फ मार्केट में, बल्कि उन लोगों के दिमाग में भी जिन्होंने कभी उसे कम आंका था। लेकिन असली तूफान अभी बाकी था।
सुबह का समय था। मुंबई की सड़कों पर वही भीड़, वही शोर। लेकिन उस दिन अरविंद के चेहरे पर एक गहरी शांति थी। उसकी कंपनी इनोकॉम सॉलशंस अब सिर्फ एक स्टार्टअप नहीं रही। यह एक ताकत बन चुकी थी। निवेशक उसके पीछे लाइन में थे। बड़े ब्रांड उससे जुड़ना चाहते थे और उसका नाम मार्केट में गूंजने लगा था। तभी किस्मत ने ऐसा खेल दिखाया जिसने समीरा की दुनिया हिला दी।
एक सुबह ग्लोबल टेक प्राइवेट लिमिटेड के ऑफिस में हलचल मच गई। हर कोई अखबार में छपी एक खबर को लेकर बातें कर रहा था। बोर्ड रूम में सब इकट्ठा थे। अखबार हाथों में था। हेडलाइन थी, “इनोकॉम सॉलशंस ने ग्लोबल टेक प्राइवेट लिमिटेड के मेजर शेयर खरीदे। कंपनी का अधिग्रहण पूरा।” समीरा की आंखें उस लाइन पर टिक गईं। उसने दोबारा पढ़ा। फिर तीसरी बार नाम वही, अरविंद मिश्रा।
उसने घबराकर बॉस को कॉल किया। “सर, यह क्या खबर है? यह इनोकॉम कौन है?” बॉस ने शांति से कहा, “अब ग्लोबल टेक स्वतंत्र नहीं रही। इनोकॉम सॉलशंस हमारी पैरेंट कंपनी बन चुकी है। कल उनकी टीम यहां आएगी।” मोबाइल उसके हाथ से छूटते-छूटते बचा। उसके दिमाग में वही पुराना दृश्य घूम गया। वह मीटिंग रूम, वह पल जब उसने सबके सामने अरविंद को नीचा दिखाया था और आज वही आदमी अब उसकी कंपनी का मालिक बन गया था।
अगले दिन ऑफिस का माहौल अलग ही था। कॉन्फ्रेंस हॉल सजा हुआ था। हर कोई नई ओनर टीम को देखने को उत्सुक। कर्मचारी फुसफुसा रहे थे, “कौन होगा? सुना है देसी कंपनी है। कहीं कोई एनआरआई ना निकल आए।” समीरा की धड़कनें तेज थीं। वह अपनी कुर्सी पर बैठी थी लेकिन चेहरा सफेद पड़ गया था। तभी दरवाजा खुला। अंदर आया एक जाना पहचाना चेहरा। नीली शर्ट, ग्रे ब्लेज़र, आत्मविश्वास से भरी आंखें। अरविंद मिश्रा।
कमरा कुछ पल के लिए सन्न रह गया। लोगों ने एक दूसरे की ओर देखा। “यह तो वही है जो यहीं काम करता था, अब यह मालिक है।” समीरा कुर्सी से झटके से खड़ी हो गई। उसकी आंखों में हैरानी और डर था। अरविंद मंच की ओर बढ़ा। अब उसकी चाल में झिझक नहीं, गरिमा थी। उसके साथ विदेशी निवेशक और उसकी टीम थी। वह माइक्रोफोन के सामने खड़ा हुआ। “सुप्रभात सबको। अब से ग्लोबल टेक और इनोकॉम सॉलशंस साथ मिलकर एक नई दिशा में काम करेंगे।”
तालियां गूंज उठीं लेकिन समीरा की आंखों में आंसू थे। वो नजरें झुकाए खड़ी थी। अरविंद ने चारों ओर नजर दौड़ाई। “कुछ साल पहले मैं इसी कंपनी में काम करता था। तब मेरे पास ना ओहदा था, ना पैसा। लेकिन ईमानदारी और मेहनत थी। कभी-कभी लोग आपको नीचे दिखाते हैं ताकि वह खुद ऊंचे दिखें। पर असली ऊंचाई वो है जहां आप किसी को नीचे नहीं, साथ लेकर ऊपर जाते हैं।” उसकी आवाज हॉल में गूंज उठी। हर चेहरा उसकी ओर टिका था।
समीरा की आंखों से आंसू बह निकले। अरविंद आगे बोला, “मैं यहां किसी को गलत साबित करने नहीं आया। मैं बस यह दिखाने आया हूं कि जब कर्म का वक्त आता है, वह शोर नहीं करता, असर छोड़ जाता है।” इसके बाद उसने प्रोजेक्टर ऑन किया। स्लाइड्स में इनोकॉम की यात्रा थी। कैसे उसने छोटे दुकानदारों को डिजिटल बनाया, कैसे रोजगार पैदा किया और कैसे जमीन से आसमान तक पहुंचा। तालियां गूंज उठीं। कर्मचारी खड़े होकर उसकी सराहना करने लगे।
तभी समीरा धीरे-धीरे मंच के पास आई। सबकी नजरें उसकी ओर थीं। वह कांपती हुई आवाज में बोली, “अरविंद, मुझे माफ कर दो। मैंने तुम्हें कभी समझा ही नहीं। हमेशा सोचा सफलता पैसे और पद से मिलती है। पर आज समझ आया असली सफलता इरादों और विनम्रता से बनती है।” पूरा हॉल सन्न था। वह महिला जिसने कभी अपने पति को सबके सामने अपमानित किया था, आज उसी के सामने झुकी खड़ी थी।
अरविंद ने कुछ पल उसे देखा। उसकी आंखों में कोई गुस्सा नहीं। बस एक गहरी शांति। “समीरा, मैं बदला लेने नहीं आया। मैं बस यह बताने आया हूं कि इंसान की कीमत उसके पद से नहीं, उसके इरादों से होती है और जो गिरकर भी खुद उठे, वही असली विजेता होता है।” हॉल तालियों से गूंज उठा। लोग खड़े होकर उसका सम्मान कर रहे थे। समीरा की आंखों में पछतावे और गर्व के आंसू थे।
थोड़ी देर बाद जब सब लोग जा चुके थे, निखिल अंदर आया। वही दोस्त जिसने शुरुआत में अपनी सेविंग से मदद की थी। वह हंसते हुए बोला, “भाई, आज तूने इतिहास लिख दिया।” अरविंद मुस्कुराया। “निखिल, मैंने इतिहास नहीं लिखा। मैंने बस अपनी कहानी पूरी की है।” उसकी आंखों में संतोष था। उसने किसी को हराया नहीं, हालात को बदल दिया था।
सच्चा रिश्ता वह नहीं होता जो सिर्फ चमक और पद देखकर साथ दे। असली रिश्ता वह होता है जो मुश्किल वक्त में भी आपके इज्जत और सपनों का साथ दे। प्यार का मतलब सिर्फ साथ जीना नहीं, बल्कि एक दूसरे को उठाकर ऊंचाइयों तक ले जाना होता है। याद रखिए, अपमान टूट आता है। लेकिन इरादे अगर सच्चे हों, तो वही अपमान एक दिन सबसे बड़ी ताकत बन जाता है। रिश्तों में अहम नहीं, भरोसा और सम्मान ही सबसे बड़ी पूंजी होती है।
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