पागल समझकर अस्पताल में भर्ती किया गया बुज़ुर्ग निकला ISRO का पूर्व वैज्ञानिक —फिर अस्पताल में जो हुआ
एक अनजाने नायक की कहानी
बेंगलुरु की गलियाँ
बेंगलुरु, भारत का सिलिकॉन वैली, ऊँची-ऊँची इमारतों और आईटी कंपनियों की चकाचौंध के बीच, इस शहर की सड़कों पर एक और दुनिया भी बसती है। इसी दुनिया में पिछले कुछ महीनों से एक बूढ़ा आदमी अक्सर लोगों को दिखता था। उसकी उम्र 70 के पार थी, उलझे हुए सफेद बाल, फटे पुराने कपड़े और आँखों में एक अजीब सा खालीपन। वह अक्सर सड़कों के किनारे, दीवारों पर कोयले या चौक के टुकड़ों से अजीबोगरीब निशान और समीकरण बनाता रहता।
लोग उसे देखकर हंसते, कुछ बच्चे उसे छेड़ते और ज्यादातर लोग उसे एक पागल और सिरफिरा इंसान समझकर नजरअंदाज कर देते। वह किसी से ज्यादा बात नहीं करता था। जब भी कोई उससे कुछ पूछता, तो वह आसमान की ओर इशारा करके रॉकेट, मंगलयान या ऑर्बिट जैसे कुछ शब्द बड़बड़ाने लगता। लोगों ने मान लिया था कि उसका दिमाग खराब हो गया है।
एक घटना का मोड़
एक दिन वह बूढ़ा आदमी शहर के सबसे व्यस्त बाजार कमर्शियल स्ट्रीट में पहुंच गया। भीड़ और शोर को देखकर वह घबरा गया। वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा, “लॉन्च सीक्वेंस गलत है। एबॉट मिशन, एबॉट मिशन।” उसकी इस हरकत से बाजार में अफरातफरी मच गई। लोगों को लगा कि यह कोई खतरनाक पागल है। किसी ने पुलिस को फोन कर दिया।
पुलिस आई और उस बूढ़े आदमी को पकड़कर शहर के सरकारी मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सालय यानी पागलखाने में भर्ती करा दिया। उस सरकारी अस्पताल की दुनिया बाहर की दुनिया से बिल्कुल अलग थी। टूटी-फूटी इमारत, सीलन भरी दीवारें और हर तरफ एक अजीब सी निराशा और खामोशी। वहां के डॉक्टर और नर्स कम संसाधनों और मरीजों की भारी संख्या के कारण अब थक चुके थे। असंवेदनशील हो चुके थे। उनके लिए हर मरीज सिर्फ एक केस नंबर था।
डॉ. अनन्या का आगमन
उसी अस्पताल में एक युवा और आदर्शवादी डॉक्टर डॉ. अनन्या शर्मा ने हाल ही में बतौर जूनियर रेजिडेंट ज्वाइन किया था। अनन्या के दिल में अभी भी अपने पेशे के लिए एक जुनून था। वह हर मरीज को एक इंसान के रूप में देखती थी। उस बूढ़े आदमी का केस, जिसे सब ‘रॉकेट वाले बाबा’ कहने लगे थे, अनन्या को ही सौंपा गया। सीनियर डॉक्टरों ने उसे बता दिया था कि यह एक सामान्य सिज़ोफ्रेनिया का केस है। इसमें ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं। बस सामान्य दवाइयां देते रहो।
पर अनन्या को उस बूढ़े आदमी में कुछ अलग लगा। वह हिंसक नहीं था। वह बस अपनी ही दुनिया में खोया रहता। अनन्या ने देखा कि वह वार्ड के फर्श पर या कभी-कभी अपनी थाली की बची हुई राख से दीवार पर वही जटिल समीकरण और चित्र बनाता रहता है। अनन्या ने जब यह बात अपने सीनियर डॉक्टर को बताई तो वह हंस पड़े। “डॉक्टर शर्मा, आप अभी नहीं हैं। यह पागल लोग ऐसे ही कुछ भी बनाते रहते हैं। यह सब उनके दिमाग का फितूर है। इन चीजों पर ध्यान देकर अपना समय बर्बाद मत कीजिए।”
अनन्या की जिज्ञासा
पर अनन्या को उनकी बात पर यकीन नहीं हुआ। उसे वे समीकरण और चित्र किसी सोची समझी योजना का हिस्सा लगते थे। उसने चुपके से अपने फोन से उन सभी चित्रों और समीकरणों की तस्वीरें खींचनी शुरू कर दी। वह अक्सर उस बूढ़े बाबा के पास जाकर बैठने लगी। उनसे बातें करने की कोशिश करती। ज्यादातर समय वह बस शून्य में घूरते रहते। पर कभी-कभी कुछ पलों के लिए उनकी आँखों में एक पुरानी चमक लौट आती।
ऐसे ही एक पल में उन्होंने अनन्या से पूछा, “क्या तुमने कभी तारों को बात करते हुए सुना है, बेटी? वे कहानियां सुनाते हैं। ब्रह्मांड के रहस्य बताते हैं।” अनन्या को यह बात बहुत अजीब पर बहुत काव्यात्मक लगी।
प्रोफेसर से संपर्क
एक दिन अनन्या ने वे सारी तस्वीरें अपने एक पुराने कॉलेज के प्रोफेसर को भेजी, जो फिजिक्स के एक बड़े विद्वान थे। उसने सोचा कि शायद प्रोफेसर साहब इन समीकरणों को समझ सकें। अगले दिन प्रोफेसर साहब का फोन आया। उनकी आवाज में एक हैरानी और घबराहट थी। “अनन्या, यह तस्वीरें तुमने कहां से ली? यह जिस किसी ने भी लिखा है, वह कोई पागल नहीं बल्कि एक असाधारण जीनियस है। यह तो ऑर्बिटल मैकेनिक्स और क्रायोजेनिक प्रोपल्शन के बहुत ही जटिल और एडवांस्ड समीकरण हैं। ऐसा ज्ञान तो देश के कुछ गिने-चुने वैज्ञानिकों के पास ही है।”
यह सुनकर अनन्या के रोंगटे खड़े हो गए। उसे यकीन हो गया कि यह कोई मामूली इंसान नहीं है। अब उसने एक नई दिशा में सोचना शुरू किया। उसने प्रोफेसर की मदद से पिछले कुछ सालों में देश के किसी बड़े वैज्ञानिक के लापता होने की खबरों को खंगालना शुरू किया और फिर उसे एक पुरानी खबर मिली।
डॉक्टर अरुण रामास्वामी
दो साल पहले, इसरो के एक महान और गुमनाम वैज्ञानिक, डॉक्टर अरुण रामास्वामी, अपने घर से अचानक लापता हो गए थे। डॉक्टर रामास्वामी भारत के पहले सफल सेटेलाइट लॉन्च मिशन आर्यभट्ट की कोर टीम का हिस्सा थे। वह एक लेजेंड थे। पर अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद वह अकेले पड़ गए थे और धीरे-धीरे उनकी याददाश्त कमजोर होने लगी थी। वह अल्जाइमर और डिमेंशिया के शुरुआती चरण में थे। उनके बच्चे विदेश में रहते थे। एक दिन वह घर से निकले और फिर कभी वापस नहीं लौटे।
अनन्या ने डॉ. रामास्वामी की तस्वीर को इंटरनेट पर देखा। वह तस्वीर उस बूढ़े बाबा के चेहरे से मिलती-जुलती थी। अब अनन्या के पास शक की कोई गुंजाइश नहीं थी। उसने प्रोफेसर की मदद से हिम्मत करके सीधे इसरो के मुख्यालय में संपर्क किया। उसने उन्हें वे समीकरण और डॉक्टर रामास्वामी की तस्वीर भेजी।
इसरो की प्रतिक्रिया
इसरो के ऑफिस में हड़कंप मच गया। कुछ ही घंटों में यह बात पक्की हो गई। वह बूढ़ा आदमी जिसे दुनिया पागल समझ रही थी, वह कोई और नहीं बल्कि पद्म भूषण से सम्मानित महान वैज्ञानिक डॉ. अरुण रामास्वामी ही थे। यह खबर आग की तरह फैली। अस्पताल के प्रशासन में, शहर के कलेक्टर ऑफिस में और फिर राज्य के मुख्यमंत्री और देश के प्रधानमंत्री कार्यालय तक हर जगह सनसनी फैल गई।
जो देश अपने एक महान वैज्ञानिक को खोया हुआ मान चुका था, वह आज एक पागलखाने के एक अंधेरे कोने में मिला था। यह पूरे सिस्टम के मुंह पर एक करारा तमाचा था। अगले दिन उस सरकारी मानसिक अस्पताल का नजारा देखने लायक था। अस्पताल के बाहर मीडिया की गाड़ियों का जमघट लगा था। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री, इसरो के चेयरमैन और बड़े-बड़े अधिकारी सब भागे-भागे अस्पताल पहुंच रहे थे।
डॉक्टर रामास्वामी का पुनर्मिलन
अस्पताल का वह स्टाफ और सीनियर डॉक्टर जो डॉक्टर रामास्वामी को पागल कहते थे, डर के मारे कांप रहे थे। उन्हें अपनी नौकरी और अपनी इज्जत दोनों खतरे में नजर आ रही थी। स्वास्थ्य मंत्री और इसरो के चेयरमैन, जो खुद डॉक्टर रामास्वामी के जूनियर रह चुके थे, सीधा उस वार्ड की ओर भागे। उन्होंने देखा भारत का एक राष्ट्रीय हीरो, एक महान वैज्ञानिक, एक टूटी हुई चारपाई पर फटे हुए कपड़ों में बैठा। अब भी जमीन पर कुछ लिखने की कोशिश कर रहा था।
इसरो के चेयरमैन श्री प्रकाश राव की आँखों से आंसू बहने लगे। वह दौड़कर उनके पैरों पर गिर पड़े। “सर रामास्वामी, सर, आप इस हालत में हमें माफ कर दीजिए सर। हम आपको ढूंढ नहीं पाए।” डॉक्टर रामास्वामी ने अपनी धुंधली नजरों से उन्हें देखा। एक पल के लिए उनकी आँखों में पहचान की एक पुरानी चमक लौड़ी। उन्होंने धीरे से कहा, “प्रकाश, रॉकेट रॉकेट लॉन्च के लिए तैयार है।” यह सुनकर वहां खड़ा हर इंसान रो पड़ा।
इतिहास रचना
उस दिन उस अस्पताल में स्वास्थ्य मंत्री ने मीडिया के सामने कुछ ऐसे ऐलान किए, जिसने इतिहास रच दिया। उन्होंने कहा, “यह सिर्फ हमारे सिस्टम की नहीं, बल्कि हमारे पूरे समाज की असफलता है कि हमने अपने एक ऐसे महान वैज्ञानिक को यह दिन देखने पर मजबूर किया। पर आज हम अपनी इस गलती को सुधारेंगे।” उन्होंने घोषणा की कि डॉक्टर रामास्वामी को फौरन देश के सबसे अच्छे अस्पताल में शिफ्ट किया जाएगा और उनका इलाज पूरी सरकारी सम्मान के साथ होगा।
दूसरी घोषणा थी कि इस सरकारी मानसिक अस्पताल को पूरी तरह से तोड़ा जाएगा और इसकी जगह पर एक विश्व स्तरीय आधुनिक राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान का निर्माण किया जाएगा। और तीसरी और सबसे बड़ी घोषणा उन्होंने यह की कि इस नए संस्थान का नाम डॉक्टर अरुण रामास्वामी इंस्टिट्यूट रखा जाएगा।
डॉक्टर अनन्या की सफलता
अंत में उन्होंने डॉक्टर अनन्या शर्मा को मंच पर बुलाया। उन्होंने कहा, “इस पूरी व्यवस्था में अगर कोई अपनी इंसानियत और अपने कर्तव्य में सफल हुआ है तो वह है यह युवा डॉक्टर जिन्होंने एक मरीज में एक इंसान को देखा और एक पागल में एक जीनियस को पहचाना। आज मैं डॉक्टर अनन्या शर्मा को इस नए संस्थान के लिए बनाई गई विशेष टास्क फोर्स का प्रमुख नियुक्त करता हूं।”
यह सुनकर डॉक्टर अनन्या को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। उस दिन के बाद सब कुछ बदल गया। डॉक्टर रामास्वामी अपनी जिंदगी के आखिरी कुछ साल पूरे सम्मान और देखभाल के साथ जीते रहे। उनकी याददाश्त पूरी तरह कभी वापस नहीं आई। पर अब उनकी आँखों में वह खालीपन नहीं था।
समाज का परिवर्तन
और वह अस्पताल जिसे लोग पागलखाना कहते थे, अब देश का सबसे बड़ा और सबसे आधुनिक मानसिक स्वास्थ्य का केंद्र बन चुका था जो हर साल हजारों लोगों को एक नई जिंदगी दे रहा था। एक इंसान की गुमनामी ने पूरे देश की चेतना को झकझोड़ कर रख दिया था।
तो दोस्तों, यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें कभी किसी इंसान को उसके कपड़ों या उसकी बाहरी हालत से नहीं आंकना चाहिए। हर इंसान अपने अंदर एक कहानी, एक पहचान छिपाए होता है। हमें बस डॉक्टर अनन्या जैसी एक पारखी और संवेदनशील नजर की जरूरत है।
निष्कर्ष
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