पापा की अस्थियां गंगा में बहाकर किस पर भड़के Sunny Deol? Dharmendra Asthi Visarjan in Haridwar

.

हरिद्वार में धर्मेंद्र की अंतिम विदाई

3 दिसंबर 2025 को हरिद्वार के पवित्र घाट पर धर्मेंद्र की अस्थियां विसर्जित करने के लिए देओल परिवार पहुंचे। यह एक बेहद निजी और पवित्र पल था, जिसे सनी, बॉबी और उनके परिवार ने पूरी श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाने का निर्णय लिया था। लेकिन जैसा कि अक्सर होता है, हरिद्वार के वीआईपी घाट पर मीडिया की घुसपैठ ने इस परिवार की शांति भंग कर दी।

सनी देओल और बॉबी देओल अपने पिता की अस्थियों को गंगा में प्रवाहित कर रहे थे, और उनके चेहरे पर गहरी उदासी और पीड़ा साफ झलक रही थी। लेकिन ठीक उसी समय, मीडिया के कुछ सदस्य छिपकर इस बेहद निजी पल का वीडियो बना रहे थे। यह सनी के लिए असहनीय था। उनका धैर्य टूट गया, और वह गुस्से में उस व्यक्ति की तरफ लपके, जिसने इस परिवार की निजीता का उल्लंघन किया था।

पापा की अस्थियां गंगा में बहाकर किस पर भड़के Sunny Deol? Dharmendra Asthi  Visarjan in Haridwar - YouTube

सनी देओल ने उस शख्स से चिल्लाकर पूछा, “पैसे चाहिए? कितने पैसे चाहिए तेरे को?” उनका गुस्सा सिर्फ एक फोटोग्राफर पर नहीं था, बल्कि यह उस पूरी पैपराजी संस्कृति पर था, जिसने उनके पिता की मौत के बाद उनके परिवार के दुख का मजाक उड़ाया।


सनी देओल का गुस्सा और मीडिया की घुसपैठ

सनी देओल का गुस्सा अचानक नहीं था। उनका यह गुस्सा कई हफ्तों से लगातार मीडिया की घुसपैठ और उनकी निजता का उल्लंघन करने की वजह से था। जब धर्मेंद्र की तबीयत बिगड़ी और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, तब भी मीडिया ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। उन्होंने गलत अफवाहें फैलाईं, और यह सब बिना पुष्टि किए किया गया।

यह मानसिक उत्पीड़न इतना बढ़ चुका था कि हेमा मालिनी और उनकी बेटियों को सोशल मीडिया पर यह गुहार लगानी पड़ी कि कृपया अफवाहें न फैलाएं। इस दौरान एक वीडियो भी लीक हो गया, जिसमें धर्मेंद्र अस्पताल में अपनी अंतिम सांसों के लिए संघर्ष कर रहे थे। यह वीडियो एक सीन की तरह सबको दिखाया गया, जो एक असंवेदनशील कृत्य था। सनी देओल ने उस वक्त भी मीडिया को चेतावनी दी थी, लेकिन उन्होंने इसे अनदेखा कर दिया।


मीडिया और पैपराजी कल्चर पर सवाल

सनी देओल के गुस्से के बाद यह सवाल उठता है कि आखिर मीडिया और पैपराजी का यह रवैया क्यों होता है? क्या वे इस बात का ख्याल नहीं रखते कि एक परिवार के लिए इस समय में कितना बड़ा मानसिक तनाव हो सकता है? सनी देओल के शब्द, “पैसे चाहिए?” इस बात का प्रतीक बन गए कि आज के समय में मीडिया का उद्देश्य सिर्फ पैसे और टीआरपी है, और यह संवेदनाओं के ऊपर है।

आजकल का पैपराजी कल्चर सिर्फ तस्वीरें खींचने तक सीमित नहीं रहा। यह एक बड़ा व्यापार बन चुका है, जिसमें एक सेलिब्रिटी की तस्वीर से लेकर उनके हर दुख-सुख का व्यावसायिक इस्तेमाल किया जाता है। एक फिल्मी प्रमोशन या एयरपोर्ट लुक के लिए पैपराजी को क्लाइंट्स से पैसे दिए जाते हैं, लेकिन दुख के पल में उन्हें खुद चलकर आना होता है, चाहे वह किसी की मौत हो या परिवार का कोई व्यक्तिगत क्षण।

सनी का गुस्सा इस पर था कि कैसे एक निजी और पवित्र वक्त को एक तमाशा बना दिया गया। यह एक गंभीर मुद्दा है, क्योंकि यह सिर्फ एक अभिनेता का दुख नहीं था, बल्कि यह उस समाज का दर्पण था जो केवल शोहरत और टीआरपी के लिए संवेदनाओं को पैरों तले रौंदता है।


बॉलीवुड में जया बच्चन का बयान और पैपराजी के साथ जंग

धर्मेंद्र की अस्थियां विसर्जित करने के दौरान सनी देओल के गुस्से के साथ ही मुंबई में जया बच्चन का पैपराजी के खिलाफ एक और विवाद शुरू हो गया था। जया बच्चन ने एक इवेंट में पैपराजी के कपड़ों और उनके आचरण पर सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा था कि पैपराजी गंदे कपड़े पहनकर खड़े होते हैं और उनके बैकग्राउंड के बारे में कभी कोई बात नहीं करते।

यह बयान मीडिया और पैपराजी के लिए एक बड़ा झटका था। बड़े फोटोग्राफर्स जैसे वृंद चावला और मानव मंगलानी ने इसका विरोध किया और जया बच्चन को बॉयकॉट करने की धमकी दी। इस घटना के साथ एक और ट्विस्ट जुड़ा जब जया बच्चन के पोते अगस्त नंदा की फिल्म “21” रिलीज हो रही थी, जो धर्मेंद्र की आखिरी फिल्म थी। पैपराजी ने धमकी दी थी कि वे इस फिल्म को कवर नहीं करेंगे। यह एक अजीब स्थिति थी, क्योंकि इसने जया बच्चन और पैपराजी के बीच चल रहे विवाद का सीधा असर धर्मेंद्र की अंतिम फिल्म पर डाला।


बॉलीवुड और मीडिया के रिश्ते: एक घातक गठबंधन?

सनी देओल का गुस्सा और जया बच्चन का बयान दोनों ही बॉलीवुड और मीडिया के रिश्तों पर सवाल खड़ा करते हैं। क्या सेलिब्रिटी का निजी जीवन सार्वजनिक संपत्ति बन चुका है? क्या मीडिया का अधिकार यह है कि वह किसी के दुख, मौत, या व्यक्तिगत संघर्ष को एक व्यवसाय के रूप में इस्तेमाल करे? यह सवाल बेहद गंभीर हैं, क्योंकि यदि इन सवालों का सही जवाब नहीं दिया जाता, तो यह सिनेमा और समाज के बीच एक गहरी खाई बना देगा।

इस घटना ने बॉलीवुड की चमक-धमक के पीछे छिपे हुए उस अंधेरे पक्ष को उजागर किया है, जिसे अब और नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। एक अभिनेता की जिंदगी केवल दर्शकों के मनोरंजन का साधन नहीं हो सकती। सनी देओल का गुस्सा सिर्फ एक फोटोग्राफर या मीडिया के एक छोटे हिस्से पर नहीं था, बल्कि यह उस पूरी व्यवस्था के खिलाफ था, जो एक इंसान की अंतिम विदाई को भी तमाशा बना देती है।


निष्कर्ष

सनी देओल का गुस्सा समझने के लिए हमें यह समझना होगा कि वह सिर्फ एक अभिनेता नहीं, बल्कि एक बेटा भी हैं। वह उस दर्द और संवेदनाओं से गुजर रहे थे, जिसे केवल एक परिवार ही महसूस कर सकता है। धर्मेंद्र का निधन और उनका अस्थि विसर्जन एक ऐसा पल था, जिसे मीडिया को सम्मान और समझदारी से पेश करना चाहिए था, न कि उसे टीआरपी का एक जरिया बनाने के रूप में। सनी देओल का गुस्सा न केवल एक बेटे की भावना का प्रतीक था, बल्कि यह मीडिया और पैपराजी के लिए भी एक चेतावनी थी कि उन्हें अपनी जिम्मेदारियों को समझना होगा।

यह घटना बॉलीवुड और मीडिया के रिश्तों की एक नई दिशा दिखाती है, जहां पब्लिकिटी की भूख और निजी जीवन की इज्जत के बीच संतुलन बनाना बेहद जरूरी है। क्या बॉलीवुड और मीडिया अपने कामकाजी माहौल में बदलाव करेंगे? यह सवाल आने वाले समय में और भी महत्वपूर्ण हो सकता है।