पिता को सड़क पर जिस पुलिस इंस्पेक्टर ने रुलाया –IPS बेटी ने ऐसा सबक सिखाया जिससे पूरा थाना हिल गया
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सुबह की ठंडी हवा में अयोध्या का बाजार धीरे-धीरे अपनी रौनक से जग रहा था। बाजार की संकरी गलियों में दुकानदार अपने-अपने सामान सजा रहे थे, और लोग अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में व्यस्त थे। इसी भीड़ में एक वृद्ध व्यक्ति, किशन लाल, अपनी टोकरी के साथ फल बेच रहे थे। उनके चेहरे पर उम्र की लकीरें साफ़ दिखाई देती थीं, लेकिन उनकी आंखों में एक अटूट उम्मीद और जज़्बा था। किशन लाल की दुनिया उनकी छोटी सी दुकान और उनकी दो बेटियों—अंजलि और प्रीति के इर्द-गिर्द घूमती थी। दोनों बेटियां शहर में पुलिस सेवा में उपनिरीक्षक के पद पर तैनात थीं। यह पद उनके लिए सिर्फ नौकरी नहीं, बल्कि परिवार की उम्मीदों और सपनों का प्रतीक था।
किशन लाल ने अपनी पूरी ज़िंदगी मेहनत से कमाई थी ताकि उनकी बेटियां एक सम्मानित और सुरक्षित जीवन जी सकें। वे अपने दोनों बेटियों से बेहद प्यार करते थे और उनकी सफलता पर गर्व महसूस करते थे। दोनों बेटियां अक्सर फोन करतीं, पिता का हाल-चाल पूछतीं, पर किशन लाल कभी अपनी तकलीफें उन्हें नहीं बताते थे। उन्हें डर था कि कहीं बेटियों का ध्यान उनके दुखों से भटक न जाए। वे अक्सर कह देते, “तुम लोग बड़े काम के लिए बनी हो, मैं यहां ठीक हूं, बस अपना ध्यान रखना।”
उस दिन भी किशन लाल अपनी टोकरी के साथ फल बेच रहे थे। उनकी आवाज में ग्राहकों से बातचीत का मधुर स्वर था और चेहरे पर हल्की मुस्कान थी। तभी अचानक सरकारी जीप की तेज आवाज ने पूरे बाजार का ध्यान अपनी ओर खींचा। जीप उनके पास रुकी और उसमें से इंस्पेक्टर अशोक कुमार उतरे। उनका चेहरा अहंकार से भरा हुआ था, और उनकी नजरों में सत्ता का नशा साफ झलक रहा था। मानो पूरा बाजार उनका ही हो।
इंस्पेक्टर ने किशन लाल से रूखे स्वर में कहा, “अरे बूढ़े, तेरी हिम्मत कैसे हुई यहां दुकान लगाने की? तेरी वजह से सारा ट्रैफिक रुक रहा है। जल्दी हटो यहां से।” किशन लाल ने विनम्रता से जवाब दिया, “साहब, मैं बस थोड़ी देर के लिए ही हूं, मैं अभी हट जाता हूं।” लेकिन इंस्पेक्टर का अहंकार बढ़ता गया। उसने किशन लाल की टोकरी को जोर से लात मारी, फल सड़क पर बिखर गए। लोग तमाशा देखने लगे, मानो वे कोई फिल्म देख रहे हों।
इंस्पेक्टर ने गुस्से में कहा, “क्या यह तेरे बाप की सड़क है? तुझे लगता है तू जहां चाहे बैठ जाएगा और कोई कुछ नहीं बोलेगा?” किशन लाल का दिल दर्द से भर गया। वे अपने अपमान से ज्यादा अपनी बेटियों के सपनों का अपमान महसूस कर रहे थे। उन्होंने चारों ओर देखा, लेकिन कोई उनकी मदद के लिए आगे नहीं आया। सभी सन्नाटे में डूबे थे। किशन लाल ने आंसू पोंछे और चुपचाप गिरे हुए फल उठाने लगे। उनके बूढ़े शरीर में दर्द था, पर अपमान का दर्द उससे कहीं ज्यादा था।

इसी भीड़ में राजन नाम का एक युवा पत्रकार मौजूद था, जो गरीब परिवार से था और सोशल मीडिया पर उसकी अच्छी खासी फॉलोइंग थी। उसने यह अन्याय देखा और अपनी जिम्मेदारी समझी। उसने मोबाइल निकाला और पूरी घटना रिकॉर्ड कर ली। हर शब्द, हर लात, हर अपमान कैमरे में कैद हो गया। इंस्पेक्टर ने उसे देखा और धमकाया, “ओ, वीडियो क्यों बना रहा है? अगर इसे अपलोड किया तो तुझे ऐसा सबक सिखाऊंगा कि जिंदगी भर याद रहेगा।” लेकिन राजन ने डरते हुए भी वीडियो सुरक्षित रख लिया।
किशन लाल भारी मन से घर लौटे। उन्हें डर था कि कहीं बेटियों को यह सब पता न चले। वे जानते थे कि उनकी बेटियां न्याय और संवेदनशीलता की प्रतीक थीं। राजन ने घर जाकर वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया, कैप्शन में लिखा, “आज अयोध्या के बाजार में एक बूढ़े इंसान के साथ अन्याय हुआ। इस ईमानदार बूढ़े ने किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा था, फिर भी इंस्पेक्टर ने उसके फल फेंक दिए और सरेआम उसका अपमान किया। क्या ऐसे पुलिस वाले हमारी रक्षा करेंगे?”
वीडियो तेजी से फैल गया। लाखों लोग इसे शेयर करने लगे और पुलिस की आलोचना करने लगे। यह खबर प्रीति तक भी पहुंची, जो किशन लाल की छोटी बेटी थी। वीडियो देखकर उसका खून खौल उठा और आंखों में आंसू आ गए। उसने तुरंत अपनी बड़ी बहन अंजलि को वीडियो भेजा। अंजलि उस समय थाने में एक केस की जांच कर रही थी। वीडियो देखने के बाद उसके हाथ कांपने लगे। यह उसका अपना पिता था, जिसके साथ ऐसा बर्ताव हो रहा था।
गुस्से में उसने कहा, “हमने इतनी मेहनत की, इतना संघर्ष किया, सिर्फ इसलिए कि बाबूजी को सुख दे सकें। लेकिन लगता है कि इस भ्रष्ट व्यवस्था के आगे हम कुछ नहीं कर सकते।” वह तुरंत प्रीति को फोन कर बोली, “तुम वहीं रहो, मैं अभी आ रही हूं। उस इंस्पेक्टर को सबक सिखाऊंगी।” प्रीति ने भी कहा, “मैं भी चलूंगी, मैं यह अन्याय सह नहीं सकती।” लेकिन अंजलि ने उसे समझाया कि वह वहीं रहे ताकि वे पिता के पास रह सकें। बहस के बाद प्रीति मान गई।
अंजलि ने अपनी वर्दी उतार कर साधारण सलवार सूट पहन लिया और गांव के लिए निकल पड़ी। रास्ते भर उसका दिमाग काम कर रहा था। वह जानती थी कि सिस्टम का हिस्सा होने के नाते उसे कैसे निपटना है। गांव पहुंचकर उसने घर का दरवाजा खटखटाया। अंदर किशन लाल सब्जी काट रहे थे। बेटी की आवाज सुनकर वे भावुक हो गए। डर था कि कहीं अंजलि को सब पता न चल गया हो। दरवाजा खोलते ही पिता और बेटी ने एक-दूसरे को कसकर गले लगाया। अंजलि रोने लगी, दिल दर्द से फट रहा था।
उसने पूछा, “बाबूजी, आपने मुझे यह सब क्यों नहीं बताया? यह बहुत बड़ा अन्याय हुआ है।” किशन लाल डरते हुए बोले, “बेटा, जाने दे, वह पुलिस वाला है। हमें उससे पंगा नहीं लेना चाहिए।” पर अंजलि ने दृढ़ स्वर में कहा, “नहीं बाबूजी, मैं जानती हूं मुझे क्या करना है। वह सजा पाएगा। मैं इस अन्याय को सहन नहीं कर सकती।” यह कहकर वह वर्दी पहन कर महिला उपनिरीक्षक के रूप में थाने पहुंची।
थाने में इंस्पेक्टर अशोक कुमार नहीं था, केवल दो सिपाही और एक सब इंस्पेक्टर, एएसआई राजवीर मौजूद थे। अंजलि ने कहा, “मैं इंस्पेक्टर अशोक कुमार के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराना चाहती हूं। उसने मेरे पिता के साथ बदतमीजी की और अपमान किया। कृपया सख्त कार्रवाई करें।” राजवीर ने अहंकार से कहा, “क्या? इंस्पेक्टर के खिलाफ रिपोर्ट? तुम कौन होती हो? वह बूढ़ा तुम्हारे बाप है। अगर इंस्पेक्टर ने थोड़ा बहुत डांट दिया तो क्या हुआ? गलती तो तुम्हारे बाप की थी जो सड़क पर दुकान लगा रखी थी।”
अंजलि का गुस्सा और बढ़ गया। उसने आवाज में ताकत भरकर कहा, “मुझे कानून मत सिखाओ। मैं जानती हूं कि कानून क्या है और मैं इंसाफ लेकर रहूंगी। अगर आपने रिपोर्ट नहीं लिखी, तो मैं आपके खिलाफ भी कार्रवाई करूंगी।” राजवीर हैरान रह गया। उसे यकीन नहीं हुआ कि एक साधारण लड़की इतनी हिम्मत से बात कर सकती है। उसने कहा, “तुम कौन हो जो इतनी धमकी दे रही हो? हम तुम्हें अभी जेल भेज सकते हैं।”
अंजलि ने कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि अपना सरकारी पहचान पत्र मेज पर रख दिया। आईडी देखकर राजवीर की आंखें फटी रह गईं। वह घबरा कर बोला, “माफ करें मैडम, आप एएसआई हैं। बताइए क्या करना है?” तभी इंस्पेक्टर अशोक कुमार थाने में आया और हंसते हुए बोला, “क्यों आई हो? क्या करना है?” अंजलि का दिल चाहता था कि वह उसे थप्पड़ मार दे, लेकिन उसने संयम रखा और बोली, “याद रखना, मैं तुम्हें सस्पेंड करवाऊंगी।” यह कहकर वह बाहर निकल गई।
अंदर इंस्पेक्टर और एसआई सोच में पड़ गए कि यह लड़की सच में कार्रवाई करेगी। अंजलि घर जाकर सोचने लगी और फिर एक योजना बनाई। अगले दिन वह सीधे डीएम सुलेमान के ऑफिस पहुंची। उसने वायरल वीडियो दिखाया और कहा, “मैं इंस्पेक्टर के खिलाफ सख्त कार्रवाई चाहती हूं।” डीएम ने कहा, “सबूत और गवाह चाहिए।” अंजलि ने राजन को ढूंढा, जिसने असली वीडियो दिया और वह गवाह बनने के लिए तैयार हो गया।
फिर दोनों डीएम के पास पहुंचे और सबूत पेश किए। डीएम ने वीडियो देखकर कहा, “इस इंस्पेक्टर ने अपने पद का दुरुपयोग कर गंभीर अपराध किया है।” अगले दिन बड़ी प्रेस मीटिंग बुलाई गई, जिसमें मीडियाकर्मी इकट्ठा हुए। डीएम ने कहा, “सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में एक इंस्पेक्टर ने एक बूढ़े के साथ गलत किया है। हमारे पास गवाह और सबूत हैं।” तभी अंजलि मंच पर आई और बोली, “मैं उपनिरीक्षक अंजलि शर्मा हूं और पीड़ित बूढ़ा मेरा पिता है।”
सभी स्तब्ध रह गए। अंजलि ने कहा, “इंस्पेक्टर ही नहीं, एसआई राजवीर भी दोषी है जिसने शिकायत लेने से मना किया।” डीएम ने तुरंत दोनों को निलंबित करने का आदेश दिया। गांव में यह खबर फैल गई और लोग कहने लगे कि किशन लाल की बेटी ने न्याय दिलाया। शाम को टीवी पर खबर चली, “इंस्पेक्टर और एसआई सस्पेंड, उपनिरीक्षक बेटी ने पिता को इंसाफ दिलाया।” विभागीय जांच में दोनों दोषी पाए गए। इंस्पेक्टर पर पद का दुरुपयोग और जनता से अभद्रता का आरोप साबित हुआ, जबकि एएसआई पर कर्तव्य में लापरवाही का आरोप लगा। दोनों को बर्खास्त कर दिया गया और उनके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज हुआ।
जब किशन लाल को यह खबर मिली, तो उन्होंने रोते-हंसते अपनी बेटी को गले लगाया और कहा, “तुमने सिर्फ मेरा नहीं, पूरे गांव का सिर ऊंचा कर दिया।” यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्चाई और न्याय की राह में कभी हार नहीं माननी चाहिए। चाहे कितनी भी बाधाएं आएं, अगर हिम्मत और जज़्बा हो तो हर अन्याय का सामना किया जा सकता है। अंजलि शर्मा ने न केवल अपने पिता के लिए बल्कि समाज के लिए भी एक मिसाल कायम की। उनकी बहादुरी और दृढ़ता ने यह साबित कर दिया कि न्याय की जीत अवश्य होती है।
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