“फौजी की बहन से बदतमीज़ी की कीमत दरोगा को पड़ी बड़ी महंगी, फौजी ने पूरा सिस्टम हिला दिया”

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इज्जत की लड़ाई

भाग 1: माधवपुर का एक साधारण दिन

माधवपुर कस्बे की गलियां उस दिन तपती धूप से जल रही थीं। बाजार हमेशा की तरह भीड़भाड़ से भरा था। सब्जियों के ठेले, किराने की दुकानों पर मोलभाव करती महिलाएं और बीच-बीच में बजते ऑटों के हॉर्न। हर तरफ शोर ही शोर था। इन्हीं गलियों से होकर गुजर रही थी एक साधारण सी दिखने वाली लड़की, आरती। उसका चेहरा सादगी से भरा हुआ था, और हाथ में सब्जियों का थैला था। मन में बस यही सोच थी कि जल्दी से जल्दी सामान लेकर घर पहुंचे।

लेकिन किस्मत का खेल कुछ और था। थाने के दरोगा राजेश यादव उसी समय अपनी जीप से बाजार पहुंचा। धूप के चश्मे में ऐंठता हुआ, छाती चौड़ी करके जैसे पूरा इलाका उसी का हो। लोग उसे देखते ही एक तरफ हट जाते क्योंकि सब जानते थे, इस दरोगा से टकराना मतलब खुद मुसीबत बुलाना। राजेश यादव ने नजर घुमाई और उसकी नजर अचानक आरती पर जा टिकी। साधारण कपड़ों में खड़ी इस लड़की को देखकर उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान फैल गई।

वह जीप से उतरा और सीधा आरती के सामने जा खड़ा हुआ। “ओ लड़की, जरा इधर आओ,” उसने कहा। आरती चौकी। “जी, कहां जा रही हो इतनी जल्दी-जल्दी? क्या छुपा रखा है इन थैलों में? कहीं चोरी का माल तो नहीं?” उसने हंसी उड़ाते हुए कहा। आरती ने घबरा कर कहा, “नहीं साहब, यह तो बस घर का सामान है। सब्जी, आटा, तेल बस यही।”

राजेश यादव ने उसके हाथ से थैला खींचकर जमीन पर गिरा दिया। आलू, प्याज और टमाटर सड़क पर लुढ़क गए। राहगीरों ने देखना शुरू किया, पर किसी की हिम्मत नहीं हुई कुछ कहने की। “ओ तो बड़े घर की बहू लगती हो। जुबान बहुत चल रही है। दरोगा से ऐसे बात करती हो,” वह गरजा। आरती के चेहरे पर अपमान की लाली फैल गई। उसने कांपती आवाज में कहा, “साहब, मेरी कोई गलती नहीं। आप ऐसे क्यों बोल रहे हैं?”

राजेश हंसा। “गलती तेरी गलती यह है कि तूने मुझे रोका नहीं। इस इलाके का राजा मैं हूं। और सुन, यहां की हर लड़की को पता होना चाहिए कि दरोगा राजेश से कैसे बात की जाती है। सीधे-सीधे खड़ी हो जा वरना हवालात में डाल दूंगा। तेरे भाई बाप को भी छुड़ाने नहीं दूंगा।” लोग तमाशा देख रहे थे। कोई बूढ़ा सब्जी वाला बुदबुदाया, “बेचारी, इसको नहीं पता होगा यह किससे टकरा गई।”

राजेश ने एक कदम और आगे बढ़ते हुए कहा, “वैसे नाम क्या है तेरा और घर कहां है बता दे वरना थाने ले जाकर खुद ही निकलवाना पड़ेगा।” आरती का चेहरा सख्त हो गया। उसने संयम बटोरते हुए कहा, “मेरा नाम आरती है। और घर का पता पूछकर क्या करेंगे आप? मैं कोई अपराधी नहीं हूं।” दरोगा ने जोर से हंसी मारी। “वाह री जुबान देखो। अपराधी तो तू नहीं पर अभी अपराध बना दूंगा। ऐसे कई केस हैं मेरे पास। एक कागज पर नाम लिख दूंगा तो तेरे घर वाले जिंदगी भर अदालत के चक्कर लगाएंगे। समझी? तो जुबान बंद कर।”

आरती की आंखों में आंसू भर आए। भीड़ खड़ी थी पर कोई आगे नहीं आया। सब जानते थे, दरोगा के खिलाफ खड़ा होना अपने लिए आफत बुलाना है। राजेश यादव ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए धीरे से कहा, “और सुन, अगली बार जब भी बाजार आना पहले मुझे सलाम करना वरना तेरी यह इज्जत जो आज तक संभाल कर रखी है, मेरी एक इशारे पर धूल में मिल जाएगी।” आरती कांप उठी। उसने थैला उठाया और बिना कुछ बोले तेजी से आगे बढ़ गई। पीछे से दरोगा की हंसी गूंज रही थी।

भाग 2: अर्जुन का संकल्प

उस दिन आरती घर लौटी तो उसका चेहरा उतरा हुआ था। उसकी आंखें लाली से भरी थीं। दरवाजा खोला तो सामने उसका भाई खड़ा था। फौजी अर्जुन सिंह, लंबा कद, चेहरे पर कठोरता और आंखों में वही तेज जो सरहद पर दुश्मन को देखकर जलता है। अर्जुन ने बहन का चेहरा देखते ही पूछा, “क्या हुआ आरती? तू इतनी घबराई हुई क्यों लग रही है? बता किसने कुछ कहा?”

आरती चुप रही। उसने चाहा कि भाई को कुछ ना बताएं। कहीं उसका गुस्सा भड़क ना जाए। पर अर्जुन सैनिक था। झूठी मुस्कान और दबे आंसू पहचानने में देर नहीं लगी। उसने बहन के कंधे पर हाथ रखकर कहा, “सच बता आरती, मैं तेरा भाई हूं। मेरी बहन की आंखों में आंसू आए और मैं चुप रहूं, यह मुमकिन नहीं।”

आखिरकार आरती टूट गई। उसने रोते-रोते पूरा किस्सा सुनाया। कैसे बाजार में दरोगा राजेश यादव ने उसके साथ सबके सामने बदतमीजी की, थैला गिरा दिया, गंदी बातें कही और धमकाया। अर्जुन सुनता रहा। उसकी मुट्ठियां भी गईं। आंखों की नसें तन गईं। उस वक्त वह सिर्फ भाई नहीं रहा बल्कि एक ऐसा फौजी बन गया जिसे अपनी बहन की इज्जत पर हाथ डालने वाले से हिसाब लेना था।

उसने धीमे लेकिन कड़क स्वर में कहा, “आरती, तेरे भाई की कसम अब यह लड़ाई यहीं नहीं रुकेगी। उसने सिर्फ तेरे साथ बदतमीजी नहीं की है। उसने पूरे फौजी खानदान को चुनौती दी है और इसका जवाब मैं दूंगा।” आरती ने डरते हुए कहा, “भैया, वो बहुत ताकतवर है। मंत्री तक से उसकी पहचान है। लोग कहते हैं उसकी पहुंच बहुत दूर तक है।”

अर्जुन ने ठंडी हंसी भरी। “पहुंच मंत्री की पहचान आरती, यह भूल मत। तेरा भाई उस फौज का हिस्सा है जो देश की सरहद पर दुश्मन के टैंकों को तोप से उड़ा देता है। मेरे लिए एक दरोगा क्या? उसका मंत्री भी कुछ नहीं।” उसकी आवाज में इतनी ठंडक और गुस्सा था कि आरती कुछ बोल ही ना पाई।

अर्जुन खड़ा हुआ और सीधा बाहर निकल गया। उसके कदम भारी थे, पर हर कदम की आहट ऐसे थी मानो धरती हिल रही हो। कस्बे की उस रात ने यह सुन लिया था कि अब एक आग उठ चुकी है। और यह आग तब तक नहीं बुझेगी जब तक दरोगा राजेश यादव की अकड़ राख में ना बदल जाए।

भाग 3: न्याय की तैयारी

अगले ही दिन सुबह माधवपुर कस्बे का वही चौराहा हमेशा की तरह शोरगुल से भरा हुआ था। ठेले वालों की आवाजें, बसों के हॉर्न और राहगीरों की भीड़ सब कुछ सामान्य लग रहा था। लेकिन लोगों को अंदाजा नहीं था कि आज यहां कुछ असामान्य होने वाला है।

ठीक उसी समय जब सूरज तेजी से ऊपर चढ़ रहा था, एक जीप बाजार की ओर आई। दरोगा राजेश यादव उतरते ही वैसी ही ऐंठ दिखा रहा था जैसे कल दिखाई थी। सिगरेट जलाते हुए उसने इधर-उधर नजर दौड़ाई। दुकानदार एकदम खामोश होकर अपने-अपने काम में लग गए। किसी ने उसकी तरफ सीधी नजर डालने की हिम्मत नहीं की।

भीड़ में अचानक हलचल मची। दूर से एक लंबा चौड़ा शख्स धीरे-धीरे चौराहे की ओर बढ़ रहा था। उसकी चाल में वो आत्मविश्वास था जो सिर्फ एक सच्चे फौजी में होता है। तनकर चलती हुई वर्दी, चमकते जूते और सीने पर चमकते हुए मेडल। वह था मेजर अर्जुन सिंह। उसकी मौजूदगी ने भीड़ का माहौल बदल दिया।

लोग फुसफुसाने लगे। “अरे यह तो फौजी है। लगता है बड़ा अफसर है। हां, यह तो वही है। कल जिस लड़की से दरोगा ने बदतमीजी की थी, वो इसकी बहन बताई जाती है।” अर्जुन सीधा दरोगा के सामने आकर रुक गया। दोनों की आंखें मिलीं। एक तरफ अहंकार से भरा हुआ राजेश यादव। दूसरी तरफ तपते लहू वाला फौजी।

राजेश ने सिगरेट का कश लिया और हंसी उड़ाते हुए बोला, “ओ हो फौजी साहब, लगता है बहुत गुस्से में आए हैं। तो क्या कर लेंगे? यह चौराहा मेरा है और यहां कानून मेरी जेब में चलता है। तुम चाहो तो अपनी बंदूकें सरहद पर चला लेना। यहां तुम्हारी नहीं चलेगी।”

अर्जुन ने गहरी आवाज में कहा, “तूने कल मेरी बहन के साथ जो किया, उसका हिसाब देना होगा।” राजेश ने हंसकर कहा, “बहन? ओह, तो वो लड़की तेरी बहन थी। अरे, मुझे क्या पता था? वरना…” फिर तुरंत ही उसने लापरवाही से कहा, “वरना भी क्या कर लेते तुम? लड़की तो लड़की ही होती है और इस कस्बे में दरोगा राजा होता है। समझे?”

अर्जुन की आंखों में लहू उतर आया। लेकिन उसने संयम रखा। वह एक सैनिक था। जानता था कि लड़ाई का समय और तरीका चुनना पड़ता है। उसने भीड़ की तरफ मुड़कर ऊंची आवाज में कहा, “सुन लो सब लोग। यह वही आदमी है जिसने कल मेरी बहन की इज्जत सरेआम सड़कों पर तार-तार की। और आज भी इसे शर्म नहीं बल्कि घमंड है।”

भीड़ सन्न रह गई। कई लोगों ने सिर झुका लिया क्योंकि वे कल का तमाशा देख चुके थे। राजेश ने अर्जुन को धक्का देकर कहा, “बहुत भाषण हो गया। यह कोई फौज का कैंप नहीं है। यह मेरा इलाका है। यहां दरोगा की इजाजत के बिना पत्ता तक नहीं हिलता। समझे मेजर साहब?”

अर्जुन ने एक कदम आगे बढ़ते हुए कहा, “और आज से यह इलाका तेरा नहीं रहेगा। क्योंकि तेरे जैसे लोगों की वजह से ही जनता पुलिस से डरती है। तू सोचता है कि तेरी वर्दी तेरे लिए ढाल है। लेकिन याद रख, फौजी की वर्दी सिर्फ उसकी इज्जत नहीं, उसकी जान भी होती है। और जब इस वर्दी वाला कदम उठाता है तो पूरा सिस्टम हिलता है।”

राजेश हंसी रोक नहीं पाया। “सिस्टम हिलाएगा तू अकेला? अरे मेजर साहब, यहां पुलिस की पूरी फौज है और तू है बस एक आदमी। क्या कर लेगा?”

अर्जुन ने ठंडी नजर से देखा और कहा, “मैं अकेला नहीं हूं। मेरे पीछे वो फौज खड़ी है जो सरहद पर खून बहाकर तिरंगा लहराती है। और अगर मैंने एक शब्द कह दिया ना तो कल सुबह इस थाने के बाहर बंदूकें लिए मेरी पूरी यूनिट खड़ी होगी। फिर तेरे पास भागने की भी जगह नहीं बचेगी।”

भीड़ में हलचल मच गई। लोग दबी आवाज में बोलने लगे। “यह तो मामला बड़ा हो जाएगा। अगर फौज आ गई तो सच में शहर हिल जाएगा।” राजेश को पहली बार थोड़ी बेचैनी महसूस हुई पर उसने अपनी अकड़ नहीं छोड़ी। उसने ऊंची आवाज में कहा, “ओ जनता, देख लो, यह फौजी हमें धमका रहा है। पुलिस को चैलेंज कर रहा है। याद रखो, इस पर देशद्रोह का केस भी लग सकता है।”

अर्जुन ने उसके हर शब्द पर गुस्से से दांत भी ली। पर आवाज स्थिर रही। उसने कहा, “देशद्रोह? तू मुझे देशद्रोह की बात सिखाएगा। मैं वो हूं जिसने सरहद पर खून देकर इस मिट्टी की हिफाजत की है। और तू तू वो है जो अपने ही लोगों का खून चूसता है। दरोगा, आज तेरी अकड़ को तोड़ना मेरा फर्ज है।”

राजेश अचानक चिल्लाया, “सिपाहियों, इसे पकड़ लो!” लेकिन पास खड़े कांस्टेबल हिचकिचा गए। वे सब अर्जुन को पहचान चुके थे। सबको पता था, फौजी के खिलाफ खड़ा होना आसान नहीं। अर्जुन ने चारों ओर नजर डाली और कहा, “देख लिया जनता ने, यह दरोगा और इसका डर बस अब यह खेल खत्म होने वाला है। आज मैंने वादा किया है कि अब इस शहर में किसी बहन की इज्जत सरेआम लूटने की हिम्मत कोई दरोगा नहीं करेगा।”

राजेश गुस्से से कांप गया। उसने जेब से लाठी निकाली और अर्जुन पर तान दी। लेकिन अर्जुन ने बिजली की गति से उसका हाथ पकड़ लिया और इतनी जोर से मरोड़ा कि लाठी जमीन पर गिर पड़ी। भीड़ एक साथ चीख उठी, “वाह फौजी जिंदाबाद!” कस्बे की गलियों में यह नारा गूंज उठा। राजेश का चेहरा लाल पड़ गया। उसने छूटने की कोशिश की। लेकिन अर्जुन की पकड़ पत्थर जैसी थी।

अर्जुन ने उसकी आंखों में झांक कर धीरे-धीरे कहा, “यह तो बस शुरुआत है। कल सुबह तेरे थाने के बाहर पूरी फौज खड़ी होगी। और उस दिन तेरे लिए रास्ता सिर्फ दो होंगे। या तो माफी मांग और नौकरी छोड़ दे या फिर तेरा यह घमंड बर्बाद हो जाएगा।”

भीड़ में खामोशी छा गई। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि कल इस कस्बे में क्या होने वाला है। राजेश ने दांत भी कर कहा, “देख देख लेंगे मेजर साहब, देख लेंगे।” अर्जुन ने उसका हाथ छोड़ा और सीधे जनता की तरफ देखा। “अब वक्त आ गया है कि डर टूटे। कल इस शहर में वो दिन होगा जिसे इतिहास याद रखेगा।” इतना कहकर अर्जुन सीधा भीड़ को चीरता हुआ निकल गया।

भाग 4: न्याय की सुबह

अर्जुन की सदी हुई चाल थाने से निकलते हुए सीधे अपने छोटे से किराए के कमरे की ओर जा रही थी। भीतर पहुंचते ही उसने वर्दी नहीं पहनी। उसने वही पुराना कैजुअल पहनावा पहना जो अक्सर वह छुट्टियों में पहनता था। पर उस दिन कपड़ों से ज्यादा उसकी आंखों की सख्ती मायने रखती थी।

उसे पता था कि कल का शहर में किया गया वो इशारा सिर्फ शोर नहीं है। वो आहट थी एक बड़े तूफान की। उसने फोन उठाया और अपने पुराने कर्नल को कॉल कर दिया। वो आदमी जिसे उसने समझा था कि जरूरत पड़ने पर हर हद तक साथ देगा। कर्नल ने शांत स्वर में कहा, “मेरे पास सबूत भेज दे। पर सुन, त्वरित शो ऑफ करना और अनुशासन छोड़ना दोनों अलग बातें हैं। हमें सही तरीके से चलना होगा।”

अर्जुन ने कहा, “कर्नल साहब, मैं अनुशासन टूटने नहीं दूंगा पर जो होना है वो आज से शुरुआत करेगा। लोग डरना छोड़ें और कानून का चेहरा वापस पाएं।” उसने कागजों में बंधी हुई फाइलों जैसी छोटी-छोटी नोट्स निकालकर कर्नल को भेज दी।

कल की भीड़ की बातें, आरती का बुरा हाल और दरोगा राजेश के पुराने दुराचारों के संदर्भ। कर्नल ने पढ़कर कहा, “ठीक है पर मुझे कमान से आधिकारिक अनुमति चाहिए होगी कि हम सिविल बैकअप दें। हम किसी भी तरह की बाहरी दिखावा ताकत नहीं दिखाएंगे। बस एक संरक्षित कानूनी उपस्थिति ताकि नागरिकों को मनोबल मिले।”

अर्जुन ने कहा, “वही चाहिए। दिखावा नहीं लेकिन मौजूदगी। मुझे चाहिए कि हमारी उपस्थिति जनता के भय को तोड़े और उसी समय प्रशासनिक प्रक्रिया भी ठीक से चले।” कर्नल ने कहा, “ठीक है पर मेरे मार्गदर्शन में चलना होगा। किसी भी तरह का शोषण हमें करना नहीं है। हमारा काम सुरक्षा और कानून की रक्षा है ना कि उसकी जगह लेना।”

भाग 5: एकजुटता का संदेश

उसी शाम अर्जुन दफ्तर गया। उसने स्थानीय वकील से संपर्क किया जो पहले भी मानवाधिकार के मुकदमों में काम कर चुका था। वकील का नाम प्रकाश ठाकुर था। एक सख्त अनुभवी वकील जिसकी आवाज में विश्वास था और कागजों में उसकी जानकारी घनी।

प्रकाश ने कहा, “हमारे पास कड़े सबूत हैं। वीडियो क्लिप्स, प्रत्यक्षदर्शियों के बयान और कुछ शिकायतें जो पहले ठुकरा दी गई थीं। अगर हम इसे ठीक तरह से फाइल करें तो प्रशासनिक स्तर पर बड़ी कार्यवाही का रास्ता खुलेगा। पर हमें सोशल प्रेशर भी चाहिए ताकि मामले पर उच्च कमान का ध्यान अटल रहे।”

अर्जुन ने तुरंत ही फैसला किया कि कानूनी रास्ते और सार्वजनिक चेतना दोनों साथ-साथ चलेंगे। उसने स्थानीय पत्रकारों को चुपके से बुलाया और कुछ विश्वसनीय नागरिक नेताओं से मुलाकात की। उन सभी से उसने कहा कि शांतिपूर्ण और व्यवस्थित तरीके से एक सभा होनी चाहिए।

पर यह सभा सिर्फ शोर मचाने के लिए नहीं बल्कि सबूत और गवाहों की मौजूदगी दिखाने के लिए होगी। प्रकाश ने कहा, “जब कोर्ट में मामला जाएगा तो यह दिखना जरूरी होगा कि जनता भी पीछे है। वरना राजनीतिक दबाव इसे दबा देगा।”

रात के पाले में अर्जुन अपने कुछ पुराने साथियों से मिला। कुछ कप्तानों और सीनियर जवानों से जो अब रिटायर थे और जिला में रहते थे। उन्होंने कहा, “हमारी कोई भी हरकत अगर कानूनी रूप से गलत पर डडी तो फौजी की इमेज पर असर पड़ेगा। पर भाई, इंसानियत और मर्यादा के लिए खड़ा होना भी हमारा फर्ज है।”

सबने ठान लिया कि अनुशासन और कानून की हदें नहीं टूटने दी जाएंगी। तो भी व्यवस्थित तौर पर वे नागरिक सुरक्षा की गारंटी देंगे। बिल्कुल वैसा ही जैसा कर्नल ने निर्देश दिया था।

भाग 6: न्याय का दिन

सुबह होने से पहले ही अर्जुन ने अपने कदम साफ कर दिए थे। उसने डीआईजी को एक पत्र लिखा सभी तथ्यों के साथ और विनम्र पर निर्णायक स्वर में कहा कि यदि विभाग स्वयं गंभीर कार्यवाही नहीं करता तो वह शांति भंग नहीं करेगा।

पर एक शांत और सुव्यवस्थित जन पक्ष की उपस्थिति को सुनिश्चित करेगा ताकि किसी भी तरह की मनमानी रोकी जा सके। पत्र में उसने यह भी लिखा कि उसकी ड्यूटी केवल अपनी बहन की गरिमा की रक्षा नहीं बल्कि पूरे कस्बे के सामान्य नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना है।

पत्र भेजने के बाद अर्जुन ने अपने सैनिकों को बुलाकर निर्देश दिए। “कोई शोर नहीं। कोई हथियारों का प्रदर्शन नहीं। बस अनुशासन और सुरक्षा।” उसने हर एक से कहा कि वे केवल सुरक्षा और निगरानी के काम आए। भीड़ नियंत्रित करना, गवाहों की सुरक्षा और किसी भी तरह की अफवाह फैलने से रोकना।

उसने साफ निर्देश दिए कि किसी भी तरह की हिंसा या जबरदस्ती का इस्तेमाल नहीं होगा। यदि कोई भी आदेश गलत हुआ तो वे उठकर वापस आ जाइए। यह बात उसने जोर देकर कही कि हम न्याय के लिए हैं बदले के लिए नहीं।

शहर में हवा बदल रही थी। एक तरह की आशा और साथ ही एक तरह की कराहती बेचैनी लोगों के चेहरों पर दिख रही थी। अर्जुन ने तुरंत ही फैसला किया कि कानूनी रास्ते और सार्वजनिक चेतना दोनों साथ-साथ चलेंगे।

उसने स्थानीय पत्रकारों को चुपके से बुलाया और कुछ विश्वसनीय नागरिक नेताओं से मुलाकात की। उन सभी से उसने कहा कि शांतिपूर्ण और व्यवस्थित तरीके से एक सभा होनी चाहिए।

भाग 7: न्याय की जीत

शाम ढलने से पहले पूरे चौराहे में साफ संदेश पहुंच गया। अब यह शहर डर और घमंड का नहीं बल्कि न्याय और अनुशासन का प्रतीक होगा। सूरज ढलने से कुछ घंटे पहले माधवपुर के थाने के बाहर फिर एक हलचल मच चुकी थी।

हवा में एक अजीब सी बेचैनी थी। जैसे शहर खुद अपनी सांसे रोके बैठा हो। अब मामला किसी एक दरोगा और एक फौजी के बीच नहीं रह गया था। अब यह इज्जत, न्याय और व्यवस्था की असली लड़ाई थी।

थाने के मुख्य गेट पर आज किसी आम आदमी की नहीं बल्कि एक सशक्त आवाज की दस्तक हुई। मेजर अर्जुन साफ वर्दी में कंधे पर फाइल और आंखों में दृढ़ निश्चय लिए दरवाजे के भीतर कदम रख चुका था। उसके पीछे उसकी पूरी कानूनी टीम और कुछ वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे।

थाने के अंदर राजेश यादव अपनी कुर्सी पर बैठा था। लेकिन इस बार उसके चेहरे पर कल जैसा घमंड नहीं था। पसीने की बूंदे उसकी गर्दन से बह रही थीं। उसकी आंखें नीचे झुकी थीं। जैसे वह समझ चुका हो कि अब उसका खेल खत्म हो चुका है।

अर्जुन उसके सामने जाकर रुका। बिना एक शब्द कहे कुछ देर तक उसे देखता रहा। आवाज में कहा ने शांत लेकिन सख्त आवाज में कहा, “राजेश यादव, कल तक तुम सोचते थे कि यह कुर्सी तुम्हारी ताकत है। लेकिन असली ताकत कानून में होती है और कानून आज तुम्हारे खिलाफ है। कल तुमने एक फौजी की बहन की इज्जत से खिलवाड़ किया था। आज वही फौजी तुम्हारे किए की सजा देने आया है। लेकिन बंदूक से नहीं, सबूत और न्याय से।”

राजेश ने कांपती आवाज में कहा, “मैंने कुछ गलत नहीं किया।” अर्जुन ने मेज पर एक मोटी फाइल पटकते हुए कहा, “यह गवाहों के बयान है। यह वीडियो फुटेज है। यह तुम्हारे ही कांस्टेबलों के बयान है। हर पन्ना तुम्हारे झूठ का पर्दाफाश करता है। अब भी कहोगे कुछ गलत नहीं किया?”

राजेश की आंखें अब पूरी तरह झुक चुकी थीं। कांस्टेबल एक-एक कर उसके पीछे हटने लगे। वही लोग जो कल तक उसके साथ थे, आज दूरी बना चुके थे। थाने के बाहर सैकड़ों लोग इकट्ठा हो चुके थे। वे सब इंतजार कर रहे थे उस पल का जब कानून की जीत और अन्याय की हार होगी।

कुछ देर बाद थाने का दरवाजा खुला और बाहर आई पुलिस टीम के साथ हथकड़ियों में बंधा राजेश यादव। भीड़ में सन्नाटा छा गया। फिर धीरे-धीरे वह सन्नाटा तालियों की गड़गड़ाहट में बदल गया। हर किसी की आंखों में चमक थी। यह जीत केवल अर्जुन की नहीं बल्कि हर उस आम आदमी की थी जो अब तक सिस्टम के सामने झुकता आया था।

अर्जुन ने वहां खड़े होकर भीड़ को संबोधित किया। उसकी आवाज में ना घमंड था, ना बदला, बस सच्चाई की ताकत थी। “दोस्तों, आज यह जीत मेरी नहीं है। यह जीत उस बहन की है जिसने चुप नहीं रहने का फैसला किया। यह जीत उन सभी की है जो डरकर भी अन्याय के खिलाफ खड़े हुए। और याद रखिए, जब तक हम अपनी आवाज नहीं उठाएंगे तब तक कोई भी राजेश यादव हमें दबाता रहेगा।”

भाग 8: एक नई सुबह

भीड़ ने एक सुर में नारे लगाए। “न्याय की जीत हो!” बच्चों की मुस्कान और बुजुर्गों की आंखों में आंसू थे। महिलाओं ने राहत की सांस ली। उस दिन माधवपुर ने सिर्फ एक दरोगा नहीं गिराया था। उसने अपनी चुप्पी तोड़ी थी।

शाम का आसमान लाल हो चुका था। अर्जुन धीरे-धीरे वहां से निकला। उसकी बहन उसके पास आई। आंखों में गर्व और सुकून लिए। उसने कहा, “भैया, अब डर नहीं लगता। अब लगता है कि सच में देश का सिपाही केवल सीमा पर ही नहीं बल्कि हर गली और हर थाने में भी हमारी रक्षा करता है।”

अर्जुन ने मुस्कुराते हुए उसके सिर पर हाथ रखा और बोला, “देश की इज्जत तभी बचती है जब उसकी बेटियों की इज्जत सुरक्षित हो। और यह लड़ाई मैं तब तक नहीं रोकूंगा जब तक हर बेटी खुद को सुरक्षित महसूस ना करे।”

रात पूरी तरह ढल चुकी थी। सड़कें अब शांत थीं लेकिन उस शांति में अब डर नहीं बल्कि सम्मान और उम्मीद की गूंज थी। राजेश यादव जेल की कोठरी में बैठा था और शहर ने पहली बार महसूस किया कि न्याय सिर्फ किताबों में नहीं, जमीनी सच्चाई में भी मौजूद होता है।

भाग 9: एक नई शुरुआत

कहानी यहीं खत्म नहीं होती। यह तो बस एक शुरुआत है। हर वह इंसान जो अपने हक के लिए आवाज उठाता है। हर वह बहन जो अपमान के खिलाफ खड़ी होती है और हर वह सैनिक जो सच्चाई की रक्षा करता है, वही असली हीरो है।

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