बच्ची रोज़ देर से आती थी स्कूल… एक दिन टीचर ने जो किया, इंसानियत रो पड़ी |
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रचना की कहानी: मासूमियत के पीछे छुपा दर्द
झारखंड के धनबाद के एक छोटे से गाँव में रचना नाम की एक नन्ही बच्ची रहती थी। उसकी उम्र महज आठ साल थी, लेकिन उसकी आंखों में एक गहरी उदासी थी, जो उसके मासूम चेहरे से बिलकुल मेल नहीं खाती थी। रचना की माँ बचपन में ही चल बसी थी, और उसके पिता, धर्मवीर, एक मजदूर थे जो दिन भर मेहनत करते और शाम को शराब के सहारे अपने दर्द को भुलाने की कोशिश करते।
रचना हर सुबह स्कूल जाने के लिए जल्दी उठती, लेकिन घर के कामों में इतनी व्यस्त हो जाती कि स्कूल पहुंचने में हमेशा देर हो जाती। स्कूल में मास्टर साहब उसकी इस आदत से बहुत नाराज़ रहते थे। वे रोज़ उसे डाँटते, उसकी हथेलियों पर छड़ी से मारते और बच्चों के सामने उसकी खिल्ली उड़ाते। बच्चे भी रचना का मज़ाक उड़ाते, उसे आलसी और बेपरवाह कहते। लेकिन कोई भी यह नहीं जानता था कि रचना की यह देरी उसके घर की ज़िम्मेदारियों की वजह से थी।
एक दिन जब रचना फिर से देर से स्कूल आई, तो मास्टर साहब का गुस्सा चरम पर था। उन्होंने कहा, “रचना, कितनी बार समझाया है? अब खड़ी हो जाओ और सामने आओ।” रचना चुपचाप खड़ी हो गई, उसकी आंखों में डर और शर्म थी। मास्टर साहब ने छड़ी उठाई, लेकिन तभी उनकी नजर रचना के चेहरे पर पड़ी। उस चेहरे पर जो दर्द और थकान थी, उसने मास्टर साहब के दिल को झकझोर दिया।
मास्टर साहब ने धीरे से छड़ी नीचे रख दी और नरम स्वर में पूछा, “रचना, तुम रोज़ देर से क्यों आती हो? सच बताओ।” रचना की चुप्पी टूट गई। उसने कांपती आवाज़ में बताया कि माँ नहीं है, पिता काम पर रहते हैं और शराब पीते हैं, घर के सारे काम उसे ही करने पड़ते हैं। वह सुबह जल्दी उठकर झाड़ू-पोछा करती, खाना बनाती और फिर स्कूल आती है।
मास्टर साहब की आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने रचना को गले लगाया और कहा, “अब से मैं तुम्हारा सहारा बनूंगा। तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ूंगा।” उन्होंने क्लास के बच्चों को भी समझाया कि रचना का मज़ाक नहीं उड़ाना है, बल्कि उसकी मदद करनी है।
मास्टर साहब ने रचना के घर जाकर उसके पिता से बात की। उन्होंने धर्मवीर को समझाया कि शराब छोड़कर अपनी बेटी का ध्यान रखना उसकी सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है। धर्मवीर ने वादा किया कि वह सुधरेगा और अपनी बेटी के लिए एक अच्छा पिता बनेगा।
धीरे-धीरे धर्मवीर ने शराब छोड़ दी। वह अब घर लौटकर रचना के साथ समय बिताता, उसके होमवर्क में मदद करता और उसकी पढ़ाई का पूरा ध्यान रखता। रचना की जिंदगी में खुशियाँ लौट आईं। स्कूल में भी वह अब समय पर आने लगी और पढ़ाई में भी अच्छा प्रदर्शन करने लगी।
समय के साथ रचना बड़ी हुई और उसने अपनी मेहनत से एक अच्छी नौकरी पाई। उसने अपने पिता की मदद से घर को संभाला और अपने परिवार को खुशहाल बनाया। उसकी कहानी पूरे गाँव में प्रेरणा बन गई।
एक दिन रचना ने अपने शिक्षक धर्मवीर से मुलाकात की और कहा, “सर, आपकी वजह से मेरी जिंदगी बदल गई। आपने मुझे सिर्फ पढ़ाया नहीं, बल्कि जीना सिखाया।” धर्मवीर ने मुस्कुराते हुए कहा, “तुम्हारा हौसला और मेहनत ही तुम्हारी सबसे बड़ी ताकत है।”
कहानी का संदेश:
यह कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं, अगर हम हिम्मत और मेहनत से काम लें, तो कोई भी बाधा हमें रोक नहीं सकती। एक सच्चा शिक्षक न केवल किताबें पढ़ाता है, बल्कि अपने विद्यार्थियों की जिंदगी में भी उजाला लाता है।
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