बच्चे ने सिर्फ़ एक कचौड़ी माँगी थी… कचौड़ी वाले ने जो किया, इंसानियत हिल गई

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🌾 कहानी का नाम: “एक कटोरी दाल”

भाग 1: चूल्हे की आग और अधूरी थाली

वाराणसी की गलियों में एक छोटी सी झोपड़ी में राधा नाम की महिला अपने 8 साल के बेटे मोहन के साथ रहती थी। राधा विधवा थी। पति को एक सड़क दुर्घटना में खो चुकी थी। तब मोहन मात्र दो साल का था। पति की मौत के बाद ससुराल वालों ने उसे घर से निकाल दिया। मायके वालों की हालत खुद दयनीय थी। मजबूरी में उसने शहर के एक कोने में सरकारी जमीन पर एक झोपड़ी डाल ली और आसपास के घरों में बर्तन मांजने और झाड़ू-पोछे का काम करने लगी।

रोज की तरह उस दिन भी राधा सुबह पांच बजे उठी। मोहन अभी सोया हुआ था। चूल्हा जलाया, और देखा कि घर में सिर्फ एक कटोरी चावल बचा है — वो भी अधपका। दाल नहीं थी। सब्जी नहीं थी। बस चावल और नमक।

राधा ने थाली में थोड़ा चावल परोसा और सोचे बगैर खुद कुछ खाए, मोहन की नींद खुलने पर उसके सामने रख दिया। मोहन ने पूछा, “मां, आज दाल नहीं है?”
राधा ने हँसकर कहा, “बेटा, आज मैंने सोचा तुझे सिर्फ चावल खिलाऊँ, कल तेरी पसंद की अरहर की दाल बनाएंगे।”

मोहन मासूम था, भूखा था, मां की बात पर यकीन कर के चुपचाप चावल खाने लगा। राधा ने अपनी आंखें मोड़ ली, ताकि बेटा उसके आंसू न देख सके।

बच्चे ने सिर्फ़ एक कचौड़ी माँगी थी… कचौड़ी वाले ने जो किया, इंसानियत हिल गई  | Heart touching story


भाग 2: भूख का इम्तिहान

उस दिन राधा काम पर निकली, लेकिन रास्ते में ही एक घर से उसे निकाल दिया गया क्योंकि उसने दो दिन की छुट्टी ली थी — बेटे को बुखार था। अब उसके पास सिर्फ दो घरों का काम बचा था, जिससे महीने में मुश्किल से ₹1000 मिलते थे।

वो सोच रही थी, “अब दाल कहाँ से आएगी?”

तभी एक गली से गुजरते हुए उसने देखा कि सड़क किनारे एक आदमी समोसे बेच रहा है और भीड़ लगी है। वो पलभर के लिए रुकी, पेट की भूख ने आंखों से रिसते पानी को और तेज कर दिया। लेकिन जेब खाली थी।

तभी पास ही एक बच्चा बैठा था — फटे कपड़े, बिखरे बाल और खाली नज़रें। वह धीरे-धीरे समोसे वाले के पास गया और बोला, “भाईया… भूख लगी है… एक समोसा दे दो।”

समोसे वाले ने बच्चे को घूर कर देखा, डांटा और कहा, “चल हट! फालतू के ड्रामे मत कर। पैसे दे तभी मिलेगा।”

बच्चा सहम गया, सिर झुका लिया और वहां से हट गया।

राधा ने यह सब देखा। उसकी आंखों में अपने बेटे की परछाई नजर आई। वो वहीं रुक गई। अपने झोले में से एक छोटी शीशी निकाली — उसमें थोड़ा सा तेल था जिसे वो बेचने वाली थी ₹10 में। उसने वह तेल उसी समोसे वाले को थमा दिया और बोली, “भाई, इस बच्चे को कुछ खिला दो। ये तेल रख लो।”

समोसे वाला हिचकिचाया, पर भीड़ के सामने झेंप गया। उसने बच्चे को एक समोसा और एक चाय दे दी।

बच्चे ने राधा की तरफ देखा, पहली बार मुस्कुराया और धीरे से कहा, “आप भगवान हो।”


भाग 3: पहचान की परछाई

अगले दिन राधा फिर उसी गली से निकली। बच्चा फिर वहीं बैठा था, लेकिन आज उसके साथ दो आदमी और थे। वे उसे ढूंढ रहे थे।

राधा पास गई और पूछा, “क्या हुआ?”

एक बुजुर्ग आदमी ने कहा, “हम इस बच्चे को कल सुबह से ढूंढ रहे थे। यह मेरा पोता है। मेरे बेटे-बहू की मौत के बाद यह कहीं खो गया था। कल किसी ने बताया कि एक औरत ने इसे खाना खिलाया था।”

बच्चे ने राधा की तरफ इशारा किया और कहा, “इन्हीं ने मेरी जान बचाई।”

बुजुर्ग की आंखों से आंसू बहने लगे। उन्होंने राधा का हाथ पकड़ लिया और कहा, “बेटी, तुमने मेरे पोते की जान बचाई है। अब तुम अकेली नहीं रहोगी। चलो हमारे साथ। हम तुम्हें और तुम्हारे बेटे को सहारा देंगे।”

राधा को विश्वास नहीं हो रहा था। पर अगले ही पल उनकी कार में बैठते वक्त उसे अपने बेटे मोहन की याद आई।

 


भाग 4: मोहन का नया जीवन

कुछ ही दिनों में राधा और मोहन उस बड़े से घर में शिफ्ट हो गए। मोहन को अच्छे स्कूल में दाखिला मिला। राधा अब नौकरानी नहीं थी — घर की सदस्य थी। वह बुजुर्ग दंपत्ति ने उसे अपनी बेटी मान लिया था।

समय बीता।

राधा अब एक एनजीओ चलाती है — “एक कटोरी दाल” — जहां हर दिन सैकड़ों बच्चों को मुफ्त खाना और शिक्षा दी जाती है। वह कहती है:

“मुझे जिंदगी ने बहुत कुछ सिखाया, लेकिन सबसे बड़ा सबक यही है —
भूख में रोटी से ज्यादा ज़रूरत होती है इंसानियत की।”


भाग 5: आपकी बारी

आज राधा लाखों के लिए मिसाल बन चुकी है। लेकिन उस दिन अगर उसने अपने बेटे के हिस्से की दाल सोचकर वह तेल ना दिया होता — तो न वह बच्चा मिलता, न उसकी किस्मत बदलती।