बारिश में भीगे अनजान लड़के को अकेली लड़की ने घर में पनाह दी… फिर जो हुआ
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एक ठंडी रात थी, जब आसमान काले बादलों से ढका हुआ था और बारिश की बूंदें लगातार गिर रही थीं। देहरादून के एक छोटे से मोहल्ले में, एक लड़की जिसका नाम निशा था, अपने कमरे में बैठी थी। वह एक शिक्षिका थी और अपने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देख चुकी थी। उसकी शादी कुछ साल पहले हुई थी, लेकिन पति ने उसे छोड़ दिया था, और अब वह अकेली अपने घर में रह रही थी। निशा का दिल अक्सर अकेलेपन की गहराई में डूब जाता था, लेकिन उसने कभी हार नहीं मानी।
उस रात, जब बारिश की तेज बौछारें गिर रही थीं, निशा अपने पुराने दिनों को याद कर रही थी। उसकी आंखों में आंसू थे, लेकिन तभी अचानक बिजली की एक चमक ने उसके कमरे को रोशन कर दिया। उसने खिड़की के पास जाकर बाहर झांका। बारिश में भीगते हुए, उसने देखा कि उसके दरवाजे के पास एक लड़का सिकुड़ा हुआ बैठा था। उसका पूरा शरीर भीगा हुआ था और वह कांप रहा था। निशा का दिल धड़क उठा।
उसने सोचा, “इतनी रात को यह लड़का यहां क्या कर रहा है?” लेकिन उसके भीतर की इंसानियत ने उसे डर को पीछे छोड़ने पर मजबूर कर दिया। उसने हिम्मत जुटाई और दरवाजा खोला। “कौन हो तुम?” उसने धीरे से पूछा। लड़के ने सिर झुकाकर कहा, “मेरा नाम अमन है। मेरी बाइक पंचर हो गई थी और इतनी रात को कोई मदद नहीं मिली। बस एक रात काटनी है।”
निशा ने उसकी कांपती आवाज सुनी और उसके दिल में दया का भाव जाग उठा। उसने कहा, “डरो मत, मैं तुम्हें अंदर बुला लेती हूं।” अमन ने थोड़ी राहत की सांस ली और दरवाजे के भीतर कदम रखा। निशा ने उसे एक पुराना स्वेटर और पायजामा दिया ताकि वह ठंड से बच सके। अमन ने धन्यवाद कहा और धीरे-धीरे कपड़े बदलने लगा।
कमरे में हल्की गर्माहट थी, और निशा ने चारपाई की ओर इशारा करते हुए कहा, “यहां लेट जाओ। सुबह होते ही निकल जाना।” अमन ने चारपाई को देखा और बोला, “आप इस पर सो जाइए, मैं किसी कोने में बैठ जाऊंगा।” निशा ने मुस्कुराते हुए कहा, “घर में और बिस्तर नहीं है। इतनी ठंड में बैठने का मतलब है बुखार को न्योता देना। लेटो, मैं कुर्सी पर बैठ जाऊंगी।”
अमन ने कोई विरोध नहीं किया और चारपाई पर लेट गया। थोड़ी देर बाद, निशा ने चाय बनाई और दोनों ने गर्मागर्म चाय पी। अमन ने हैरानी से पूछा, “आपने खुद कहा कि आपको डर लगता है, फिर भी इतना सब क्यों कर रही हैं मेरे लिए?” निशा ने उसकी आंखों में देखा और कहा, “कभी-कभी अकेले रहने से डर कम हो जाता है। इंसान का दर्द ज्यादा बड़ा लगता है।”
फिर निशा ने हिम्मत करके पूछा, “कहां जा रहे थे इतनी रात को?” अमन ने गहरी सांस ली और बताया, “दीदी के घर से लौट रहा था। जीजा जी ने बाइक मंगवाई थी। रास्ते में पंचर हो गई। जेब में पैसे भी खत्म थे।” निशा ने ध्यान से उसकी बातें सुनीं और फिर पूछा, “मां-बाप कहां रहते हैं तुम्हारे?”
अमन की आंखें भारी हो गईं। “गांव में, देहरादून के पास ही। वे जंगल से जड़ी बूटियां लाकर बेचते हैं। गुजारा मुश्किल से चलता है। मैं भी वही करता था। लेकिन पढ़ाई पूरी करने के बाद कुछ बड़ा करना चाहता हूं।” निशा ने उसे देखा और मुस्कुरा कर बोली, “सपना देखना बुरी बात नहीं है। सपना ही इंसान को आगे बढ़ने का हौसला देता है।”
दोनों के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया। अमन ने अपनी जिंदगी के बारे में बताया, कैसे उसके परिवार ने कर्ज लिया था, और वह किस तरह अपने परिवार की मदद करना चाहता था। निशा ने भी अपने दर्द को साझा किया, कैसे उसके पति ने उसे छोड़ दिया और वह अकेली रह गई।
कमरे में सर्दी अब भावनाओं से भरी थी। बारिश अभी भी बरस रही थी, लेकिन दोनों के बीच की दूरियां धीरे-धीरे कम हो रही थीं। अमन ने धीरे-धीरे अपनी जिंदगी का हर पन्ना खोल दिया। उसने बताया कि कैसे उसकी मां जंगल से जड़ी बूटियां लाती थीं और पिता छोटे-मोटे काम करके गुजारा करते थे। निशा ने उसकी बातें सुनकर महसूस किया कि वह भी अपने दर्द को साझा कर रही है।
जब खिड़की से पहली किरण अंदर आई, तो निशा ने चाय बनाई और कहा, “अब मुझे चलना चाहिए। कोई देख लेगा तो आपके लिए गलतफहमी होगी।” अमन ने कहा, “इतनी सुबह कहां जाओगे? पंचर की दुकान भी तो नहीं खुली होगी।” लेकिन अमन जाने को तैयार था।
दरवाजे तक पहुंचकर उसने एक पल रुका और कहा, “क्या आप मेरी एक मदद कर सकती हैं? पंचर बनवाने के लिए ₹50 चाहिए।” निशा ने बिना कुछ कहे अंदर जाकर पैसे लाए और उसके हाथ में रख दिए। अमन ने कहा, “मैं लौटूंगा। पैसे देने नहीं, कुछ पल चुराने।”
जब अमन अपने गांव लौटा, तो घर का माहौल भारी था। मां की आंखें दरवाजे पर टिकी थीं और पिता की चुप्पी में सवाल छिपा हुआ था। अमन ने धीरे-धीरे सब कुछ बताया। मां ने गहरी सांस ली और बोली, “बेटा, दुनिया में हर कोई बुरा नहीं होता। लेकिन हर किसी पर आंख मूंदकर भरोसा भी नहीं करना चाहिए। समझदारी रखना।”
अमन ने सिर झुका लिया, लेकिन उसके दिल में एक अजीब हलचल थी। वह बार-बार निशा की मुस्कान, उसकी आंखों की थकी हुई चमक और उसकी बातें याद कर रहा था। तीन दिन तक वह बेचैन रहा। चौथे दिन शाम को उसने फैसला कर लिया। अमन ने जेब में वही ₹50 रखे और बाइक उठाकर उसी रास्ते की ओर निकल पड़ा।
उस छोटे से घर के दरवाजे पर उसने दस्तक दी। “कौन?” निशा ने आवाज दी। अमन मुस्कुराकर बोला, “मैं हूं वो जो उस रात बारिश में भीग गया था।” दरवाजा खुला और निशा सामने खड़ी थी। उसकी आंखों में हल्की हैरानी और होठों पर अनजानी मुस्कान थी।
“आ गए,” उसने कहा। अमन ने जेब से ₹50 निकाले और कहा, “यह आपकी अमानत।” निशा ने पैसे लिए लेकिन उसकी आंखें अमन से हट नहीं रही थीं। कुछ देर चुपचाप खड़ी रही। फिर बोली, “इतनी जल्दी लौट आए। मुझे लगा था तुम भूल जाओगे।” अमन ने मुस्कुराते हुए कहा, “भूलता अगर तो शायद खुद को खो देता।”
इसके बाद अमन का आना-जाना एक सिलसिला बन गया। दोनों साथ बैठते, चाय पीते और घंटों बातें करते। अमन हंसी-मजाक करता तो निशा की आंखों की उदासी मिट जाती। छ महीने ऐसे ही गुजर गए। अब निशा के घर की खिड़कियां सिर्फ हवा नहीं बल्कि मुस्कुराहट भी अंदर लाती थीं।
लेकिन गांव की निगाहें यह सब कब तक अनदेखा करतीं? एक सुबह पड़ोस की औरत ने देखा कि अमन निशा के घर से निकल रहा था। यह बात आग की तरह फैल गई। जब यह अमन के कानों तक पहुंची, तो उसका चेहरा सख्त हो गया। उसने निशा से मिलने का फैसला किया।
उस शाम, अमन ने निशा के घर पहुंचकर कहा, “अब यह आने जाने का सिलसिला ऐसे नहीं चलेगा। लोगों ने बातें बनानी शुरू कर दी हैं और मैं चुप रहकर आपको तोड़ते हुए नहीं देख सकता।” निशा की सांस अटक गई। उसने धीरे से पूछा, “तो फिर?” अमन ने कहा, “क्यों ना हम दोनों इस रिश्ते को एक नाम दे दें, शादी का नाम।”
निशा के होठ कांप उठे। उसकी आंखें डबडबा गईं। “क्या तुम्हारे मां-बाप मुझे स्वीकार करेंगे? मैं तुमसे उम्र में बड़ी हूं, तलाकशुदा हूं और अकेली भी।” अमन ने उसका हाथ थाम लिया। “मैंने उन्हें सब बता दिया है और उन्होंने सिर्फ एक बात कही। अगर तुम खुश हो, तो हम भी खुश हैं।”
कुछ हफ्तों बाद गांव की गलियों में हल्की ढोलक की थाप गूंज रही थी। लोग इकट्ठा हुए, लेकिन यह कोई शाही शादी नहीं थी। बस सादगी थी और उस सादगी में एक गहरी मोहब्बत छुपी थी। मंदिर में अमन और निशा सात फेरे ले रहे थे। अमन के माता-पिता भी वहां मौजूद थे।
जब उन्होंने निशा की आंखों में अपने बेटे के लिए अपनापन देखा, तो उनकी आंखों में भी मुस्कुराहट उतर आई। पंडित ने जैसे ही सप्तपदी का मंत्र पढ़ा, अमन ने आंखें बंद कर लीं। उसे याद आया वह रात जब बारिश में एक अजनबी औरत ने उसका दरवाजा खोला था। आज वही औरत उसकी जिंदगी का दरवाजा बन चुकी थी।
शादी के बाद जब दोनों गांव लौटे, तो कुछ लोग अब भी फुसफुसा रहे थे। अमन सबके सामने खड़ा हुआ और साफ आवाज में कहा, “जिसने मुझे बारिश में ठंड से बचाया, मैं उसे जिंदगी भर तन्हाई से बचाऊंगा।”
सभी ने तालियां बजाईं और अब उस रिश्ते पर सवाल नहीं उठे। अमन और निशा ने एक छोटा सा घर लिया स्कूल के पास जहां निशा पढ़ाती थी। शादी के बाद उनका घर छोटा था, लेकिन उसमें अपनापन और सुकून भरपूर था।
कुछ सालों बाद निशा ने एक बेटे को जन्म दिया। उस पल जैसे उनकी अधूरी जिंदगी पूरी हो गई। निशा ने अपने बच्चे को गोद में लिया और कहा, “बच्चा नहीं है, यह हमारी किस्मत की मुस्कान है।” अमन ने बेटे को गोद में उठाया और कहा, “अब हमारी जिंदगी की हर कमी पूरी हो गई।”
समय ने उनके जख्मों पर मरहम लगाया। निशा की आंखों की उदासी अब खुशी में बदल गई थी। अमन की मुस्कान अब सिर्फ हंसी नहीं, जिम्मेदारी की पहचान बन चुकी थी।
आज जब दोनों पीछे मुड़कर उस रात को याद करते हैं, तो एक ही ख्याल आता है: “अगर उस रात दरवाजा बंद कर दिया होता तो शायद जिंदगी की सारी खिड़कियां हमेशा के लिए बंद हो जातीं।”
क्योंकि वही रात, वही बरसात, वही दस्तक उनकी जिंदगी की सबसे बड़ी दुआ साबित हुई। यह कहानी सिर्फ अमन और निशा की नहीं है। यह इंसानियत और भरोसे की मिसाल है। यह सिखाती है कि इंसान की कीमत उसकी उम्र, हालात या समाज की सोच से तय नहीं होती।
असली कीमत तय करती है करुणा, समझदारी और इंसानियत। कभी-कभी एक छोटा सा फैसला पूरी जिंदगी बदल सकता है।
तो दोस्तों, अगर आपके दरवाजे पर भी कभी कोई अनजान शख्स मदद मांगते हुए दस्तक दे, तो क्या आप दरवाजा खोलने की हिम्मत करेंगे? क्या आप वह करेंगे जो निशा ने किया? अपनी राय हमें कमेंट में जरूर लिखें।
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