बीमार माँ-बाप को बेटे ने अस्पताल के बाहर फुटपाथ पर छोड़ आया, पर भगवान के घर देर था, अंधेर नहीं
“सच्चाई का आईना: अर्जुन की कहानी”
प्रस्तावना
कहते हैं कि माता-पिता का प्यार और उनकी सेवा करना सबसे बड़ा धर्म है। लेकिन आज के समाज में, जहां दौलत और स्वार्थ ने रिश्तों को पीछे छोड़ दिया है, वहां यह धर्म अक्सर भुला दिया जाता है। यह कहानी एक ऐसे पोते की है, जिसने अपने दादा-दादी को उनका खोया हुआ सम्मान दिलाने के लिए अपने माता-पिता को एक ऐसा सबक सिखाया, जिसे वे कभी नहीं भूल पाएंगे।
अर्जुन का बचपन
अर्जुन उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के एक छोटे से गांव में पैदा हुआ था। वह एक साधारण लेकिन खुशहाल परिवार का हिस्सा था। उसके दादा-दादी, रामेश्वर प्रसाद और सावित्री देवी, उसे बहुत प्यार करते थे। अर्जुन भी अपने दादा-दादी का लाडला था।
अर्जुन का बचपन उनके साथ कहानियां सुनते और खेलते हुए बीता। रामेश्वर जी और सावित्री देवी ने उसे हमेशा सिखाया कि जीवन में मेहनत, ईमानदारी और रिश्तों का महत्व सबसे ऊपर होता है।
अर्जुन की पढ़ाई में गहरी रुचि थी। वह हमेशा अपने दादा-दादी से कहता, “दादाजी, मैं बड़ा होकर डॉक्टर बनूंगा और आपकी सारी बीमारियां ठीक कर दूंगा।”
विदेश जाने का सपना
अर्जुन ने अपनी पढ़ाई पूरी की और विदेश में डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप हासिल की। यह पूरे परिवार के लिए गर्व की बात थी। लेकिन जैसे ही अर्जुन विदेश गया, घर का माहौल बदलने लगा।
दादा-दादी का संघर्ष
अर्जुन के विदेश जाने के बाद, उसके दादा-दादी की हालत धीरे-धीरे खराब होने लगी। उनकी उम्र बढ़ने के साथ-साथ उनकी सेहत भी बिगड़ने लगी। उन्हें हर कदम पर सहारे की जरूरत थी।
लेकिन अर्जुन के माता-पिता, संजय और पूजा, ने उनकी ओर ध्यान देना बंद कर दिया। संजय अपने काम में व्यस्त रहता और पूजा को सिर्फ अपने आराम की परवाह थी।
रामेश्वर जी और सावित्री देवी को बासी खाना दिया जाता। उनकी दवाइयों और जरूरतों को नजरअंदाज किया जाता। जब वे शिकायत करते, तो संजय और पूजा उन्हें चुप करा देते।
अर्जुन की यादें
रामेश्वर जी और सावित्री देवी अक्सर अर्जुन को याद करते। वे सोचते, “अगर अर्जुन यहां होता, तो सब कुछ ठीक होता। वह हमारा ख्याल रखता।”
अर्जुन विदेश में अपनी पढ़ाई में व्यस्त था, लेकिन वह हमेशा अपने दादा-दादी की चिंता करता था। उसने कई बार अपने माता-पिता को फोन पर कहा, “मम्मी-पापा, दादा-दादी का ध्यान रखो। वे अब बूढ़े हो गए हैं। उनकी सेवा करना हमारा कर्तव्य है।”
लेकिन संजय और पूजा ने उसकी बातों को अनसुना कर दिया।
दुखद मोड़
एक दिन, रामेश्वर जी की तबीयत अचानक बहुत खराब हो गई। सावित्री देवी ने संजय से उन्हें अस्पताल ले जाने की गुहार लगाई। लेकिन संजय ने मना कर दिया और गुस्से में कहा, “मेरे पास तुम्हारी फालतू बातों के लिए वक्त नहीं है। जो करना है, खुद करो।”
सावित्री देवी ने अपने बूढ़े हाथों से रामेश्वर जी को सहारा दिया और उन्हें अस्पताल ले गई। उन्होंने अपने बचाए हुए पैसों से उनकी दवाइयां खरीदीं।
संजय की योजना
संजय और पूजा ने महसूस किया कि उनके माता-पिता उनके लिए बोझ बन गए हैं। उन्होंने उन्हें हमेशा के लिए घर से निकालने की योजना बनाई।
संजय ने रामेश्वर जी और सावित्री देवी से कहा, “पिताजी, मैं आपको शहर के बड़े अस्पताल में इलाज के लिए ले जाऊंगा। वहां आपका पूरा ध्यान रखा जाएगा।”
रामेश्वर जी और सावित्री देवी को लगा कि शायद उनका बेटा बदल गया है। वे खुशी-खुशी तैयार हो गए।
संजय उन्हें दिल्ली ले गया और एक बड़े अस्पताल के बाहर छोड़ दिया। उसने कहा, “मैं डॉक्टर से बात करके आता हूं। आप यहां इंतजार करें।”
लेकिन संजय वापस नहीं आया।
अर्जुन की वापसी
विदेश में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, अर्जुन भारत लौट आया। उसने अपने माता-पिता से दादा-दादी के बारे में पूछा, तो उन्होंने झूठ कहा कि वे तीर्थ यात्रा पर गए हैं।
अर्जुन दिल्ली के एक होटल में खाना खाने गया। वहां उसने अपनी दादी को फर्श पर पोछा लगाते देखा। वह सन्न रह गया। उसने उन्हें पुकारा, “दादी!”
सावित्री देवी ने उसे देखा और उसकी ओर दौड़ पड़ीं। उन्होंने अर्जुन को गले लगाया और फूट-फूट कर रोने लगीं।
सच्चाई का खुलासा
सावित्री देवी और रामेश्वर जी ने अर्जुन को अपनी पूरी कहानी सुनाई। अर्जुन का खून खोल उठा। उसने तुरंत उन्हें होटल से बाहर निकाला और उनके लिए एक किराए का घर लिया।
अर्जुन ने संजय और पूजा को सबक सिखाने का फैसला किया।
सबक सिखाना
अर्जुन गांव लौटा और अपने माता-पिता से कहा, “मम्मी-पापा, मुझे विदेश में एक अच्छी नौकरी मिल गई है। लेकिन मैं आपको यहां अकेले नहीं छोड़ सकता। आप मेरे साथ चलो।”
संजय और पूजा खुशी-खुशी तैयार हो गए। अर्जुन उन्हें दिल्ली ले गया और एयरपोर्ट पर छोड़ दिया। उसने कहा, “आप यहां इंतजार करें। मैं टिकट लेकर आता हूं।”
लेकिन अर्जुन वापस नहीं आया।
पश्चाताप
संजय और पूजा को एहसास हुआ कि अर्जुन ने उनके साथ वही किया, जो उन्होंने रामेश्वर जी और सावित्री देवी के साथ किया था। वे शर्मिंदा हो गए।
अर्जुन ने उन्हें माफ कर दिया और कहा, “आपने जो दादा-दादी के साथ किया, वह गलत था। अब उन्हें उनका सम्मान वापस मिलेगा।”
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निष्कर्ष
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि माता-पिता का सम्मान करना हमारा सबसे बड़ा धर्म है। जो लोग अपने माता-पिता का अपमान करते हैं, उन्हें अपने कर्मों का फल जरूर मिलता है। अर्जुन ने अपने दादा-दादी को उनका खोया हुआ सम्मान दिलाया और अपने माता-पिता को एक ऐसा सबक सिखाया, जिसे वे कभी नहीं भूल पाएंगे।
अगर यह कहानी आपको प्रेरणादायक लगी हो, तो इसे दूसरों के साथ जरूर साझा करें। धन्यवाद!
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