बीवी छोड़ कर चली गई, construction worker से बना बॉस, खड़ा कर दिया खुद का Empire
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“आख़िरी सपना”
यह कहानी है आरव मेहता की —
जिसने गरीबी में आँखें खोलीं और सपनों में दुनिया जीत ली।
पर जीत हमेशा आसान नहीं होती।
दिल्ली की तंग गलियों में एक पुरानी चाय की दुकान थी — “शिव चाय भंडार”।
सुबह-सुबह भाप उड़ती केतली के पीछे खड़ा था 24 साल का आरव।
बाप का पुराना कारोबार था, लेकिन अब वह खुद दुकान चलाता था।
पिता का देहांत हो चुका था, और मां बीमार रहती थी।
हर सुबह वह दुकान खोलता, चाय बनाता, और पास की फैक्ट्री के मजदूरों को सर्व करता।
उसी चाय की दुकान से उसकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी कहानी शुरू हुई।
आरव का एक सपना था —
अपनी खुद की “टी ब्रांड” बनाना।
वो हमेशा कहता था,
“अगर बड़ी कंपनियां चाय बेच सकती हैं तो मैं क्यों नहीं?”
लोग हंसते,
“अरे आरव! तेरे पास ना पैसे हैं, ना पढ़ाई, तू ब्रांड बनाएगा?”
पर आरव मुस्कुराता,
“सपना अगर सच्चा हो, तो रास्ता खुद बनता है।”
एक दिन उसकी दुकान पर कव्या आई —
कॉलेज की छात्रा, जो हर दिन बस स्टैंड से पहले यहीं रुकती थी।
वो बोली,
“तुम्हारी चाय सबसे अलग लगती है। इसमें क्या डालते हो?”
आरव ने हंसकर कहा,
“प्यार… और थोड़ी सी उम्मीद।”
धीरे-धीरे दोनों के बीच दोस्ती हुई।
कव्या अमीर घर से थी, लेकिन दिल से जमीन से जुड़ी।
वो अक्सर आरव से कहती,
“तुम्हारे पास पैसे नहीं, लेकिन सोच बहुत बड़ी है।”
आरव को पहली बार लगा कि कोई उसे समझता है।

एक शाम कव्या ने कहा,
“अगर सच में तुम्हें ब्रांड बनाना है, तो छोटा शुरू करो।
‘आरव टी’ नाम से अपने पैक बनाओ, मैं डिज़ाइन में मदद करूंगी।”
आरव की आंखों में चमक आ गई।
उसने अगले दिन कुछ किलो चाय पत्ती खरीदी,
पुराने अखबारों से पैकेट बनाए, और मार्कर से लिखा — Aarav Tea – चाय दिल से।
वो दुकानों पर जाकर बोला,
“भाई, एक बार मेरी चाय ट्राय कर लो, पैसे बाद में लेना।”
कई दुकानदारों ने हंसी उड़ाई,
लेकिन कुछ ने चाय रख ली — बस एक मौका देने के लिए।
दो हफ्तों बाद फोन आया —
“भाई, तेरी चाय तो लोग पूछ रहे हैं, और भेज सकता है?”
आरव के भीतर जैसे आग जल उठी।
उसने घर का पुराना सिलाई वाला कमरा खाली किया और उसे छोटा वर्कशॉप बना दिया।
मां भी मदद करने लगी — पत्तियाँ पैक करना, सील लगाना, लेबल चिपकाना।
अब वही घर उसकी फैक्ट्री था।
लेकिन हर सफर में एक तूफ़ान आता है।
एक रात शॉर्ट सर्किट से कमरे में आग लग गई।
सब जल गया — मशीनें, पैकेट, और वह छोटा सा सपना।
आरव बाहर खड़ा बस देखता रहा, आँखों में धुआँ और आंसू।
कव्या आई, बोली —
“सब खत्म नहीं हुआ, आरव। जो जला है, वो सामान था, सपना नहीं।”
पर आरव टूट चुका था।
उसने कहा,
“कव्या, शायद मैं इस दुनिया के लिए बना ही नहीं हूँ।”
कव्या बोली,
“अगर हार मान ली तो कल तेरी मां क्या कहेगी कि मेरा बेटा राख में सपने छोड़ आया?”
आरव ने सिर झुका लिया, लेकिन दिल में फिर लौ जल उठी।
अगले दिन उसने फिर से काम शुरू किया।
लेकिन अब पैसे नहीं थे।
वो दिन में दुकान पर चाय बेचता और रात में ठेले पर दूध बेचने निकल जाता।
हर रुपये जोड़ता, हर दाने में भविष्य देखता।
धीरे-धीरे फिर से कुछ पैकेट बने।
इस बार कव्या ने सोशल मीडिया पर वीडियो डाला —
“यह है आरव, जो चाय नहीं, उम्मीद बेचता है।”
वीडियो वायरल हो गया।
लोगों ने कहा — “यह तो असली उद्यमी है!”
कुछ ऑर्डर ऑनलाइन आने लगे।
आरव ने खुद डिलीवरी की — पैकेट बैग में रखे, स्कूटी से पूरे शहर में घूमता रहा।
लेकिन जहां रोशनी होती है, वहां परछाईं भी होती है।
कव्या के पिता को जब यह सब पता चला, तो उन्होंने गुस्से में कहा,
“वो लड़का चाय बेचता है, और तुम उसे सपोर्ट कर रही हो?
हमारे घर की इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी!”
कव्या ने कहा,
“पापा, वो गरीब है पर नीच नहीं। वो काम करता है, मांगता नहीं।”
पर पिता नहीं माने।
उन्होंने कव्या को दूसरे शहर भेज दिया।
आरव अकेला रह गया।
कुछ हफ्तों तक उसने किसी से बात नहीं की।
मां बोली,
“बेटा, जब भगवान एक चीज़ छीनता है, तो कोई बड़ी चीज़ देने की तैयारी करता है।”
वह फिर उठ खड़ा हुआ।
वक्त बीता।
“आरव टी” अब छोटे कस्बों में लोकप्रिय होने लगी।
टी-स्टॉल्स पर पोस्टर लगने लगे —
“आरव टी — मेहनत का स्वाद।”
मां ने उसकी आंखों में पहली बार गर्व देखा।
आरव बोला,
“मां, एक दिन इस नाम से देश पहचान बनेगा।”
फिर एक दिन बड़ा मौका आया।
एक रिटेल चैन कंपनी ने उसे मीटिंग के लिए बुलाया।
शर्त थी — “क्वालिटी और पैकेजिंग अंतरराष्ट्रीय स्तर की हो।”
आरव ने सारी बचत लगाई,
नई मशीन खरीदी, ब्रांडिंग सुधारी, और प्रस्तुति तैयार की।
मीटिंग के दिन उसने सादे कपड़े पहने, पर दिल में आत्मविश्वास था।
बोर्डरूम में लोग सूट-बूट में बैठे थे।
किसी ने व्यंग्य से पूछा,
“आपकी कंपनी कितनी बड़ी है, मिस्टर आरव?”
आरव मुस्कुराया —
“अभी सिर्फ दो लोग हैं — मैं और मेरी मां।
लेकिन हमारी मेहनत लाखों से ज्यादा है।”
कमरे में सन्नाटा छा गया।
प्रेजेंटेशन खत्म होते ही कंपनी के डायरेक्टर ने कहा,
“आप जैसे इंसान से मिलकर हमें गर्व हुआ।
‘आरव टी’ अब हमारे स्टोर्स में होगी।”
उस दिन आरव घर लौटा,
मां के पैर छुए और बोला,
“मां, अब तेरी चाय हर शहर में बिकेगी।”
मां की आंखें भर आईं।
“मैंने कहा था न बेटा, राख से भी फसल उग सकती है।”
दो साल बाद —
“आरव टी” देश की मशहूर कंपनियों में शामिल थी।
टीवी पर विज्ञापन आता —
“जब मेहनत से मिले हर घूंट, तो वो आरव टी है।”
मां अब बूढ़ी हो चुकी थी,
पर हर सुबह बेटे की फोटो अखबार में देखती और मुस्कुराती।
एक दिन दरवाजे पर दस्तक हुई।
आरव ने खोला — सामने कव्या खड़ी थी।
उसी मुस्कान के साथ, पर आंखों में पछतावा।
“आरव, पापा अब नहीं रहे। मैं विदेश में थी, पर तुम्हारे बारे में सब देखा।
तुम सच में वो बन गए, जो मैं कहती थी।”
आरव ने बस इतना कहा,
“कव्या, तुमने ही तो सिखाया था — बड़ा सपना देखना गलत नहीं।”
कव्या की आंखों से आंसू गिरे।
“काश पापा आज तुम्हें ऐसे देखते।”
आरव मुस्कुराया,
“शायद वो ऊपर से देख रहे हैं — और सोच रहे हैं, इस लड़के ने चाय से इज्जत बना ली।”
कुछ साल बाद,
दिल्ली में आरव ने अपनी फैक्ट्री के पास एक बड़ा बोर्ड लगाया —
“आरव टी एजुकेशन ट्रस्ट”
जहां चाय बेचने वाले गरीब बच्चों को मुफ्त पढ़ाई मिलती थी।
बोर्ड के नीचे लिखा था:
“जिसने कभी स्कूल छोड़ दिया था,
आज वही दूसरों के लिए स्कूल बना रहा है।”
आरव की मां अब नहीं रही,
लेकिन उसके शब्द हर दीवार पर गूंजते थे —
“बेटा, मेहनत कभी बेकार नहीं जाती।”
और अब जब कोई उससे पूछता,
“आरव जी, आपकी सफलता का राज क्या है?”
तो वह मुस्कुराकर कहता,
“मैंने कभी इंतज़ार नहीं किया कि कोई मेरा साथ दे।
मैं खुद अपनी कहानी लिखने बैठ गया।”
उस शाम जब सूरज ढल रहा था,
आरव फैक्ट्री की छत पर खड़ा था।
हवा में चाय की खुशबू थी,
और आसमान में उसकी मां, कव्या, और हर उस मजदूर का आशीर्वाद,
जिसने कभी उस पर भरोसा किया था।
नीचे चमकते हुए बोर्ड पर लिखा था —
“आरव टी — एक कप उम्मीद।”
https://www.youtube.com/watch?v=iX-UiRO86WI
समापन:
सपनों को सच करने के लिए बड़ी दौलत नहीं,
बड़ा दिल चाहिए।
क्योंकि जब एक चायवाला भी अपनी कहानी बदल सकता है,
तो हम सब क्यों नहीं?
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