बेटे का एडमिशन कराने गया ऑटो वाला… और प्रिंसिपल उसके पैरों में गिर पड़ी… फिर जो हुआ सब हैरान रह गए!
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भाग 1: मधुबनपुर का सपना
मधुबनपुर, उत्तर प्रदेश का एक छोटा सा गांव। यहाँ की गलियों में हर सुबह की शुरुआत चिड़ियों की चहचहाहट और लोगों की रोजमर्रा की जद्दोजहद से होती थी। उसी गांव में रहता था रवि चौहान—एक सीधा-साधा, मेहनती लड़का। उसके परिवार में तीन लोग थे—माता-पिता और एक बड़ी बहन। बहन की शादी के लिए उसके पिता ने कर्ज ले लिया था, और अब हर दिन कोई न कोई कर्जदार दरवाजे पर आकर धमकाता, चिल्लाता। रवि का दिल यह सब देखकर टूट जाता।
एक दिन उसने अपनी माँ से कहा, “माँ, मैं अब और यह नहीं देख सकता। मैं दिल्ली जाऊंगा, नौकरी करूंगा, पैसा कमाऊंगा और सबका कर्ज चुकाऊंगा।”
माँ की आँखें नम हो गईं। पिता बोले, “बेटा, तू तो अभी 17 साल का भी नहीं हुआ।”
लेकिन रवि के चेहरे पर जिद थी—वो जिद जो किस्मत बदलने वालों के चेहरे पर होती है।
रात के अंधेरे में रवि अपने गांव से रवाना हुआ। एक छोटा सा झोला, तीन जोड़ी कपड़े, और आँखों में वह सपना कि एक दिन इज्जत से कमाएगा और माँ-बाप का सिर ऊँचा करेगा।
भाग 2: दिल्ली का संघर्ष
दिल्ली की चिल्लाती सड़कें, तेज भागते लोग, अजनबी चेहरों की भीड़। रवि ने उम्र छुपाकर कहा, “मैं 18 का हूं,” और किसी होटल में बर्तन धोने की नौकरी पकड़ ली।
जहाँ काम मिला, वहाँ किया। किसी ने निकाल दिया, तो अगले दिन नई जगह ढूंढी।
दिन में काम, रात में फुटपाथ पर नींद।
दो साल ऐसे ही गुजर गए, लेकिन रवि की मेहनत ने उसका साथ नहीं छोड़ा।
20 साल की उम्र में रवि ने फैसला लिया—अब किसी के नीचे नहीं काम करूंगा।
अब खुद का मालिक बनूंगा।
किस्तों पर एक ऑटो खरीदी।
वो पहला दिन जब उसने ऑटो की चाबी घुमाई थी, उसके चेहरे पर वो मुस्कान थी जो कई सालों बाद लौटी थी।
सुबह से रात तक सवारी ढूंढता, पैसे कमाता, बचत करता, और सबसे बड़ी बात—हर महीने माँ को मनीऑर्डर भेजना कभी नहीं भूलता।
धीरे-धीरे उसके पिता का सारा कर्ज चुक गया। बहन का घर बस गया।
अब रवि खुद को भी जिंदगी का हकदार समझने लगा था।
भाग 3: ऑटो में बैठी लड़की
एक दिन उसकी ऑटो में एक लड़की बैठी—हर दिन आती, पिछली सीट पर बैठती।
रवि आईने से कभी उसे देखता, कभी खुद को टालता।
वो लड़की थी श्रुति मिश्रा—एक अमीर बाप की बेटी, दिल्ली में पढ़ाई कर रही थी।
रवि की आंखों में शायद कोई मासूमियत देखती थी।
धीरे-धीरे दोनों में बातें होने लगीं।
एक दिन श्रुति ने सीधे-सीधे कह दिया, “रवि, मुझे तुमसे प्यार हो गया है। अगर तुमने मुझे अपनाया नहीं, तो मैं जिंदगी खत्म कर लूंगी।”
रवि सन्न रह गया।
एक तरफ उसका डर, दूसरी तरफ श्रुति का प्यार।
फिर उसने हां कह दिया।
कुछ महीने दोनों ने एक ख्वाब जैसा रिश्ता जिया।
भाग 4: ब्लैकमेलिंग का जाल
एक शाम श्रुति ने कहा, “चलो होटल चलते हैं।”
रवि ने कहा, “शादी से पहले यह सब ठीक नहीं।”
पर श्रुति ने जिद की और रवि झुक गया।
उस रात जो हुआ, वो सिर्फ एक पल की भूल नहीं थी, वो तो एक जाल था।
होटल के कमरे में श्रुति ने सब रिकॉर्ड कर लिया था।
अगली सुबह रवि के मोबाइल पर वह वीडियो भेजते हुए लिखा था—”अब से तुम मेरी हर बात मानोगे, वरना यह वीडियो सोशल मीडिया पर डाल दूंगी और तुम्हारा सब कुछ खत्म हो जाएगा।”

रवि के पैरों तले जमीन खिसक गई।
उसे लगा था उसने प्यार किया है, पर यह तो ब्लैकमेलिंग थी।
अब जब भी श्रुति बुलाती, रवि सवारी छोड़ देता।
पैसे मांगती, वो दे देता।
धमकियां मिलती, वो चुप रहता।
रवि अंदर ही अंदर टूटने लगा था।
शरीर कमजोर हो रहा था, मन बेचैन।
भाग 5: गाँव की दिवाली और दोस्त की सलाह
दिवाली के पहले माँ का फोन आया—”बेटा, बहुत दिन हो गए, इस बार दिवाली हमारे साथ मना ले।”
रवि ने कुछ नहीं कहा, बस बैग उठाया और चल पड़ा मधुबनपुर।
इस बार दिवाली की रोशनी उसके चेहरे को नहीं छू पा रही थी।
कुछ तो था जो अंदर ही अंदर उसे खा रहा था।
माँ ने देखा, बेटा परेशान है।
पिता भी कुछ समझ नहीं पाए।
अगले दिन बचपन का दोस्त करण आया।
करण ने रवि को देखकर कहा, “अबे, तू तो हीरो लगता था, अब भूत क्यों बन गया है?”
रवि हंसने की कोशिश करता है, लेकिन उसका गला भर आता है।
करण ने अकेले में ले जाकर पूछा, “क्या बात है? मैं वो करण हूं जिससे तू लंगोटी पहनकर खेला है, मुझसे क्या छुपा रहा है?”
रवि टालने की कोशिश करता है, लेकिन करण उसे अपनी कसम दे देता है और बस वही टूट जाता है रवि।
उसकी आँखों से आंसू बहने लगते हैं और फिर वह पूरी कहानी सुना देता है—श्रुति, प्यार, होटल, वीडियो, धमकियां, पैसे और अब डर का ऐसा पहरा कि वो खुद से भी डरने लगा है।
करण सब कुछ सुनकर सन्न रह गया।
कुछ पल के लिए दोनों चुप बैठे रहे।
फिर करण ने धीरे से कहा, “भाई, तुझे डराने वाली को अब डर दिखाने का वक्त आ गया है। तेरे पास उसका वीडियो है ना? तो अब खेल उसके मैदान में लेकिन अपने दिमाग से।”
रवि ने हैरानी से पूछा, “क्या करूं?”
करण मुस्कुराया और धीरे-धीरे एक ऐसा प्लान बताया जिसे सुनते ही रवि की आंखों में फिर से चमक लौट आई।
भाग 6: आजादी की लड़ाई
दिवाली के अगले दिन रवि दिल्ली लौट आया।
इस बार वह कमजोर नहीं था।
वो तैयार था अपनी इज्जत, आत्मसम्मान और जिंदगी को वापस जीतने के लिए।
वह सबसे पहले श्रुति से मिला।
श्रुति ने हमेशा की तरह उसका स्वागत किया जैसे कुछ हुआ ही ना हो।
रवि ने प्यार से बातें की, घर-परिवार की जानकारी ली और आखिर में कहा, “श्रुति, अब मैं तुम्हारे पापा से मिलना चाहता हूं।”
श्रुति चौंक गई, “क्यों?”
रवि ने उसकी आंखों में आंखें डालकर कहा, “क्योंकि अब मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं। और तुम्हारे पापा से कहूंगा कि दहेज में मुझे बस एक चीज चाहिए—तुम्हारा होटल वाला वीडियो।”
श्रुति का चेहरा जर्द हो गया।
हंठ कांपने लगे।
आंखें फैल गईं।
“क्या बकवास है रवि? तुम ऐसा नहीं कर सकते।”
रवि मुस्कुराया, “मैं सब कर सकता हूं। क्योंकि मेरे पास वो है जो तुम्हारे सारे नकाब उतार देगा।”
श्रुति गिड़गिड़ाने लगी, “रवि प्लीज ऐसा मत करो। मेरी शादी हो चुकी है। मेरी इज्जत, मेरा नाम सब कुछ मिट जाएगा।”
रवि शांत था, लेकिन उसकी आंखों में वह आग थी जो खुद को तो जला चुकी थी, अब सामने वाले को राख करने वाली थी।
श्रुति ने रोते हुए कहा, “जो चाहे वह कर लो, लेकिन वो वीडियो मेरे पिता को मत दिखाना। मैं मानती हूं, मैंने गलती की थी। मुझे माफ कर दो।”
रवि कुछ देर तक उसे देखता रहा।
फिर बोला, “ठीक है, मैं तुम्हें माफ करता हूं। लेकिन एक शर्त पर—अब से अगर तू कभी भी मेरे सामने आई तो यह वीडियो सीधा तुम्हारे पति के पास जाएगा। और हां, यह मत सोचना कि मेरे पास अब वो वीडियो नहीं है। मेरे पास अब है। लेकिन मैं तब तक चुप रहूंगा जब तक तू अपनी हद में रहेगी।”
श्रुति ने सिर झुका लिया।
रवि ने जैसे ही कमरे से बाहर कदम रखा, उसे महसूस हुआ जैसे किसी कैद से आजाद हो गया हो।
उस दिन वह पहली बार खुलकर हंसा था।
रात में उसने अपने मोबाइल से वो वीडियो हमेशा के लिए डिलीट कर दिया।
क्योंकि बदला नहीं चाहिए था उसे, सिर्फ आजादी चाहिए थी।
भाग 7: नई शुरुआत
दिल्ली की वही सड़कों पर उसका ऑटो फिर दौड़ने लगा।
लेकिन अब रफ्तार में भरोसा और चेहरों पर आत्मविश्वास था।
महीनों बीते, फिर साल।
रवि अब सिर्फ ऑटो ड्राइवर नहीं रहा।
उसने धीरे-धीरे चार ऑटो ले लिए और कुछ भरोसेमंद ड्राइवरों को काम पर रख लिया।
जहाँ एक समय वह अपनी ऑटो की सफाई खुद करता था, अब वह दूसरों को ट्रेनिंग देता था।
दिल्ली जैसे शहर में जहां लोग पहचान खो देते हैं, वहीं रवि ने अपनी पहचान बनाई।
फिर एक दिन उसकी शादी हो गई—प्रीति नाम की एक प्यारी, समझदार और पढ़ी लिखी लड़की से।
रवि ने कभी प्रीति को अपने अतीत के बारे में कुछ नहीं बताया।
ना इसलिए कि उसे शर्म थी, बल्कि इसलिए कि वह बीती बातें थीं जो अब किसी को भी चोट ना दे।
समय बीतता गया।
अब उनका एक छोटा बेटा था—आरव।
जो स्कूल जाने की उम्र में आ गया था।
रवि और प्रीति दोनों चाहते थे कि उनका बेटा किसी बड़े इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़े।
जहां उसे दुनिया की हर भाषा, हर तमीज और हर मौके की पहचान हो।
भाग 8: स्कूल का इंटरव्यू
एक दिन प्रीति बोली, “रवि, मैंने एक स्कूल देखा है। बहुत नाम है उसका। लेकिन वहां पेरेंट्स का इंटरव्यू भी होता है।”
रवि ने मुस्कुरा कर कहा, “कोई बात नहीं, तू पढ़ी लिखी है, तू जवाब दे देना। और अगर मुझसे कुछ पूछा गया तो मैं कह दूंगा—मैं ऑटो चलाता हूं। और यही मेरा गर्व है।”
रवि को डर तो था क्योंकि इंग्लिश मीडियम स्कूलों की चमकदार दीवारें अक्सर गरीब माता-पिता की आत्मा को डरा देती हैं।
लेकिन वह अब डर से नहीं, उम्मीद से भरा हुआ इंसान था।
फिर एक दिन आरव को लेकर रवि और प्रीति उस स्कूल पहुंचे।
बाहर कई अमीर लोग खड़े थे—सूटेड-बूटेड, मोबाइल पर इंग्लिश में बातें करते हुए।
रवि थोड़ा घबराया, लेकिन अपने बेटे का हाथ थामे हुए अंदर गया।
जब उनका नंबर आया और वह प्रिंसिपल ऑफिस में पहुंचे,
तो जैसे ही रवि की आंखें सामने बैठी महिला पर पड़ी—उसकी धड़कन थम गई।
कुर्सी पर बैठी महिला वही आंखें, वही चेहरा—वो थी श्रुति मिश्रा।
अब वो इसी स्कूल की प्रिंसिपल बन चुकी थी।
महंगी साड़ी, क्लासी चश्मा, लेकिन चेहरे पर वही पुरानी झिझक और डर।
श्रुति की आंखें जैसे ही रवि से मिलीं—वो एकदम हिल गई।
उसने झट से कहा, “प्लीज मां और बच्चे को बाहर बिठाइए। मैं सर से अकेले में बात करना चाहती हूं।”
रवि समझ गया।
प्रीति और आरव बाहर चले गए।
कमरे का दरवाजा बंद हुआ।
श्रुति कांपती आवाज में बोली, “रवि, तुम…”
रवि ने मुस्कुरा कर जवाब दिया, “हां, मैं वो रवि जिसे तुमने कभी खरीदने की कोशिश की थी। आज अपने बेटे का एडमिशन कराने आया हूं।”
श्रुति की आंखों से आंसू निकल पड़े।
वो कुर्सी से उठी और रवि के पैरों में गिर पड़ी।
“प्लीज, वो वीडियो…”
रवि ने तुरंत उसे उठाया, “श्रुति, अब मैं उस रास्ते पर नहीं हूं। मुझे बदला नहीं चाहिए। मेरा बेटा मेरा भविष्य है। मैं तो बस उसका एडमिशन कराने आया हूं।”
श्रुति हकी बक्की उसे देखती रही, “तुम वाकई सब भूल गए हो?”
रवि ने सिर झुका कर कहा, “नहीं, मैं भला नहीं हूं, लेकिन माफ कर चुका हूं। और माफी का मतलब यह नहीं कि मैं कमजोर हूं, इसका मतलब है कि मैं तुमसे बेहतर हूं।”
श्रुति का चेहरा शर्म से झुक गया।
रवि ने दरवाजा खोला, प्रीति और आरव को बुलाया।
श्रुति ने तुरंत फॉर्म साइन कर दिए, “आपका बेटा अब हमारे स्कूल का हिस्सा है।”
रवि ने हाथ जोड़कर कहा, “धन्यवाद। आज मेरा बेटा यहां पढ़ेगा और मैं चाहता हूं कि उसे सीख मिले। लेकिन जो सिखाएं, वो खुद भी इंसानियत सीखे।”
रवि बिना पीछे देखे वहां से चला गया।
भाग 9: सुकून की सुबह
उस दिन जब रवि अपने बेटे का एडमिशन करवा कर स्कूल से बाहर निकला था,
तो उसका बेटा आरव उसका हाथ थामे चल रहा था।
लेकिन रवि को लग रहा था जैसे किसी ने उसके सीने से एक बड़ा भारी पत्थर हटा दिया हो।
सालों बाद वह बिना किसी डर के, बिना किसी बोझ के सचमुच हल्का महसूस कर रहा था।
रास्ते में प्रीति ने मुस्कुरा कर पूछा, “रवि, वो मैडम बहुत अजीब सी लग रही थी। क्या तुम उन्हें पहले से जानते हो?”
रवि कुछ पल चुप रहा।
फिर सिर्फ मुस्कुरा कर बोला, “कभी जानता था, लेकिन अब नहीं। अब तो बस हमारा बेटा स्कूल में पढ़ेगा, यही सबसे जरूरी है।”
प्रीति को कुछ समझ नहीं आया, लेकिन उसने रवि की आंखों में जो सुकून देखा,
वो शायद हर पत्नी अपने पति की आंखों में देखना चाहती है—एक अधूरी लड़ाई के खत्म होने का सुकून।
भाग 10: जिंदगी का नया पाठ
समय गुजरता गया।
आरव स्कूल में बहुत तेज निकला।
हर क्लास में टॉप करता, भाषण प्रतियोगिता जीतता।
इंग्लिश इतनी धारा प्रवाह बोलता कि रवि कभी-कभी चुपचाप उसे देखता रहता।
एक दिन स्कूल से एक नोट आया—पेरेंट्स टीचर्स मीटिंग थी।
प्रीति बिजी थी तो रवि अकेले गया।
क्लास टीचर ने तारीफ करते हुए कहा, “आरव में लीडरशिप क्वालिटी है। वह दूसरों की मदद करता है और उसका सोचने का तरीका बाकी बच्चों से अलग है।”
रवि मुस्कुरा दिया।
लेकिन जैसे ही वह स्कूल के कॉरिडोर से गुजर रहा था, एक कोने में खड़ी एक नजर उसके ऊपर रुक गई।
श्रुति स्कूल की प्रिंसिपल, वही पुराना चेहरा।
लेकिन आज उसकी आंखों में ना डर था, ना घमंड, बल्कि कोई कसक, कोई अधूरापन जो उसे चैन से खड़े नहीं रहने दे रहा था।
भाग 11: माफी का पाठ
श्रुति ने रवि को हाथ से इशारा किया।
रवि पास गया।
श्रुति ने धीरे से कहा, “अगर दो मिनट दोगे तो कुछ कहना चाहती हूं।”
रवि ने चुपचाप सिर हिलाया।
“रवि, मैंने अपनी जिंदगी में बहुत कुछ पाया है—एक नाम, एक मुकाम, एक स्कूल और एक परिवार।
लेकिन एक चीज जो हमेशा खोई रही, वो थी चैन की नींद।
जिस दिन तुमने मुझे माफ किया था ना, उस दिन मैं पहली बार आईने के सामने देर तक खड़ी रह सकी थी।
तुम सोच भी नहीं सकते, उस माफी ने मुझे कितना तोड़ा और कितना जोड़ा।”
रवि ने कुछ नहीं कहा, सिर्फ सुनता रहा।
श्रुति ने आंखें पोंछते हुए कहा, “तुमने जब मुझे माफ किया, तब मुझे समझ आया कि मैं क्या बन चुकी थी।
और तब से अब तक मैं बस यही कोशिश कर रही हूं कि मैं उस माफी के लायक बन सकूं।”
अब रवि ने पहली बार कुछ कहा, “श्रुति, हम सब जिंदगी में गलती करते हैं।
लेकिन कुछ लोग होते हैं जो अपनी गलती मान लेते हैं और उससे बेहतर इंसान बन जाते हैं।
तुम भी उन्हीं में से एक हो। तुम्हें अब खुद को माफ कर देना चाहिए।”
श्रुति की आंखों से आंसू फिर गिर पड़े।
लेकिन इस बार वो आंसू शर्म के नहीं, बल्कि अंदर की गांठ खुलने के थे।
रवि ने जाते-जाते कहा, “मैं अब उस रवि को पीछे छोड़ चुका हूं, जो डरा हुआ था, टूटा हुआ था।
अब मैं सिर्फ एक बाप हूं, जो अपने बेटे के लिए सबसे अच्छा चाहता है।
और हां, तुम्हें शुक्रिया कहना चाहता हूं क्योंकि अगर तुमने वो गलतियां नहीं की होतीं तो शायद मैं यह सब कभी सीख नहीं पाता।”
रवि ने धीमे कदमों से स्कूल से बाहर की तरफ रुख किया।
लेकिन आज उसकी चाल में एक अलग ही ठहराव था।
एक ऐसा ठहराव जो सिर्फ वही पा सकता है, जिसने तकलीफों की तपस्या करके खुद को मजबूत बनाया हो।
भाग 12: अंतिम संदेश
घर पहुंचकर रवि ने आरव को सीने से लगाया और कहा,
“बेटा, जब तू बड़ा होगा और तुझे दो रास्ते दिखेंगे—एक बदले का और एक माफी का,
तो तू माफी वाला रास्ता चुनना क्योंकि माफ करने वाले कमजोर नहीं होते, वो सबसे मजबूत होते हैं।”
आरव ने बस एक बात कही, “पापा, आप मेरे हीरो हो।”
रवि की आंखें भर आईं।
उसने ऊपर आसमान की ओर देखा।
शाम का सूरज डूब रहा था, लेकिन उसकी जिंदगी में अब एक नया सवेरा चढ़ चुका था, हमेशा के लिए।
समाप्त
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