बैंक का मालिक अपने ही बैंक में गरीब बनकर पैसे निकालने पहुचा तो मैनेजर ने पैसे निकालने
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दिन के ग्यारह बजे का समय था। शहर के सबसे व्यस्त व्यावसायिक इलाके में स्थित एक बहुत बड़े और आधुनिक बैंक की शाखा में काँच के दरवाज़े खुलते और बंद होते रहे, जिससे अंदर की ठंडी, वातानुकूलित हवा और बाहर की हलचल भरी दुनिया के बीच एक अदृश्य दीवार बनी हुई थी। अंदर, पॉलिश किए हुए संगमरमर के फर्श पर महंगे जूतों की खनक गूँज रही थी। सूट-बूट पहने व्यवसायी अपने फोन पर धीमी आवाज़ में करोड़ों के सौदों की बातें कर रहे थे, और फैशनेबल महिलाएँ अपने डिजाइनर हैंडबैग को सँभालते हुए काउंटरों पर खड़ी थीं। हवा में महंगी परफ्यूम और ताज़ी प्रिंट हुई करेंसी की मिली-जुली गंध थी। यह एक ऐसी दुनिया थी जहाँ समय पैसा था, और हर व्यक्ति की कीमत उसके कपड़ों और आत्मविश्वास से आँकी जाती थी।
इसी चकाचौंध और औपचारिकता के बीच, काँच का दरवाज़ा धीरे से खुला और एक बुजुर्ग व्यक्ति ने अंदर कदम रखा। उन्होंने बेहद साधारण, लगभग पुराने हो चुके कपड़े पहन रखे थे—एक सफ़ेद सूती कुर्ता जो कई धुलाई के बाद थोड़ा पीला पड़ गया था, और एक ढीला-ढाला पाजामा। उनके एक हाथ में सहारे के लिए एक पुरानी लकड़ी की छड़ी थी, और दूसरे हाथ में उन्होंने एक पुराना, भूरे रंग का लिफाफा पकड़ रखा था, जिसकी सिलवटें बता रही थीं कि इसे कई बार खोला और बंद किया गया है।
जैसे ही वह बुजुर्ग व्यक्ति उस भव्य बैंक के अंदर घुसे, माहौल में एक क्षणिक ठहराव आ गया। वहाँ मौजूद लगभग हर ग्राहक और हर बैंक कर्मचारी की निगाहें उन पर टिक गईं। उनकी नज़रें सवाल पूछ रही थीं—यह व्यक्ति यहाँ क्या कर रहा है? क्या वह गलत जगह आ गया है? उन निगाहों में जिज्ञासा कम, और उपेक्षा और संदेह ज़्यादा था।
उन बुजुर्ग व्यक्ति का नाम था हरपाल सिंह। उम्र के असर से उनकी कमर थोड़ी झुक गई थी, लेकिन उनकी चाल में एक गरिमा थी। वह किसी भी टिप्पणी से बेपरवाह, अपनी छड़ी को धीरे-धीरे फर्श पर टिकाते हुए ग्राहकों के लिए बने मुख्य काउंटर की तरफ बढ़ने लगे। उस काउंटर के पीछे ग्राहकों की मदद के लिए एक युवा महिला बैठी हुई थी, जिसका नाम संगीता था। संगीता अपने काम में माहिर थी, लेकिन उसकी व्यावसायिक मुस्कान अक्सर उसके चेहरे पर ही रहती थी, दिल तक नहीं पहुँचती थी।
हरपाल सिंह जी धीरे-धीरे संगीता के काउंटर तक पहुँच गए। तब तक बैंक के अंदर मौजूद लगभग सभी लोग, चाहे वे ग्राहक हों या कर्मचारी, उन्हें ही देख रहे थे। कुछ लोग कानाफूसी भी करने लगे थे। हरपाल सिंह जी ने संगीता की तरफ देखा और बड़ी ही विनम्रता से कहा, “देखिए मैडम, मेरे अकाउंट में कुछ समस्या हो गई है। यह अच्छी तरह से चल नहीं रहा है।” ऐसा कहकर, उन्होंने वह पुराना लिफाफा संगीता की तरफ बढ़ा दिया।
संगीता ने लिफाफे को लेने से पहले हरपाल सिंह जी को ऊपर से नीचे तक देखा। उसकी पेशेवर आँखें तुरंत उनके साधारण कपड़ों, पुरानी छड़ी और घिसी हुई चप्पलों का आकलन कर चुकी थीं। उसने मन ही मन फैसला सुना दिया था। उसने लिफाफे को छुए बिना, एक बनावटी मुस्कान के साथ कहा, “बाबा, क्या आप गलत बैंक में तो नहीं आ गए? यह हमारे बैंक की कॉर्पोरेट शाखा है। मुझे लगता है कि आपका खाता इस बैंक में नहीं होगा। शायद किसी सरकारी बैंक में हो।”
तभी हरपाल सिंह जी ने बड़े ही सहज भाव से कहा, “बेटी, एक बार तुम देख तो लो। शायद हो सकता है मेरा खाता इसी बैंक में हो।” उनकी आवाज़ में कोई गुस्सा या नाराज़गी नहीं थी, बस एक सरल अनुरोध था।
संगीता ने अनमने ढंग से वह लिफाफा लिया और उसे अपने कीबोर्ड के पास रखते हुए कहा, “ठीक है, लेकिन बाबा इसमें थोड़ा समय लगेगा। सिस्टम धीमा चल रहा है। आपको थोड़ी देर इंतज़ार करना होगा।” यह कहकर संगीता ने हरपाल सिंह जी को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया और अपने दूसरे ग्राहकों के काम में लग गई, जो ज़्यादा ‘महत्वपूर्ण’ दिख रहे थे। हरपाल सिंह जी वहीं काउंटर के पास चुपचाप खड़े होकर अपनी बारी का इंतज़ार करने लगे।

पंद्रह मिनट, बीस मिनट, आधा घंटा बीत गया। संगीता ने कई ग्राहकों का काम निपटा दिया, लेकिन हरपाल सिंह जी की तरफ एक बार भी मुड़कर नहीं देखा। वह वहीं धैर्यपूर्वक खड़े रहे। अंत में, उन्होंने फिर से विनम्रता से कहा, “बेटी, अगर तुम ज़्यादा व्यस्त हो, तो क्या तुम मैनेजर साहब को फ़ोन कर सकती हो? दरअसल, मुझे उनसे भी कुछ ज़रूरी काम है, तो मैं उनसे ही बात कर लेता हूँ।”
यह सुनकर संगीता को थोड़ा गुस्सा आया। उसे लगा कि यह बुड्ढा उसका समय बर्बाद कर रहा है। उसने ना चाहते हुए भी अपना इंटरकॉम उठाया और मैनेजर के केबिन का नंबर डायल कर दिया। मैनेजर का केबिन काँच का बना था, जहाँ से पूरे बैंकिंग हॉल का नज़ारा दिखता था। संगीता ने फ़ोन पर कहा, “सर, एक बुजुर्ग व्यक्ति आपसे मिलना चाहते हैं। आप कहें तो मैं उन्हें आपके पास भेज दूँ?”
मैनेजर, मिस्टर वर्मा, ने अपने काँच के केबिन से बाहर झाँका। उनकी नज़र हरपाल सिंह जी पर पड़ी, जो साधारण कपड़ों में एक कोने में खड़े थे। मिस्टर वर्मा एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति थे, जो हमेशा बड़े और अमीर ग्राहकों को प्राथमिकता देते थे। उन्होंने संगीता से फ़ोन पर ही पूछा, “क्या यह हमारे बैंक का कोई बड़ा कस्टमर है? या फिर ऐसे ही कोई मुँह उठाकर चला आया है?”
संगीता ने जवाब दिया, “सर, यह बात तो मुझे नहीं पता, लेकिन यह आपसे मिलने की ज़िद कर रहे हैं।”
मैनेजर ने तिरस्कारपूर्वक कहा, “देखो संगीता, मेरे पास ऐसे फालतू लोगों के लिए समय नहीं है। तुम ऐसा करो, इन्हें वेटिंग एरिया में बिठा दो। थोड़ी देर बैठेंगे, थक जाएँगे और फिर अपने आप यहाँ से चले जाएँगे।”
संगीता को जैसे मनचाहा आदेश मिल गया हो। उसने फ़ोन रखा और हरपाल सिंह जी से कहा, “बाबा, मैनेजर साहब अभी एक ज़रूरी मीटिंग में हैं। आप वहाँ वेटिंग एरिया में बैठ जाइए। जैसे ही वह फ्री होंगे, मैं आपको बुला लूँगी।”
हरपाल सिंह जी ने कुछ नहीं कहा। उन्होंने बस एक गहरी साँस ली और धीरे-धीरे वेटिंग एरिया की तरफ चले गए। वहाँ एक कोने में रखी एक खाली कुर्सी पर जाकर बैठ गए। अब भी सभी लोग उन्हें ही घूर रहे थे। यह बैंक शहर के सबसे अमीर लोगों का अड्डा था। यहाँ आने वाले ग्राहक लाखों की घड़ियाँ और हज़ारों के जूते पहनते थे। ऐसे में, हरपाल सिंह जी का साधारण पहनावा उन्हें एक अजूबे की तरह प्रस्तुत कर रहा था। लोगों की कानाफूसी अब और बढ़ गई थी। “यह भिखारी यहाँ कैसे आ गया?” कोई कह रहा था। “लगता है रास्ता भटक गया है,” दूसरा हँस रहा था। “बैंक वालों ने इस बुड्ढे को अंदर आने ही क्यों दिया?” इस तरह की बातें हरपाल सिंह जी के कानों तक भी पहुँच रही थीं, लेकिन उन्होंने इन सभी चीज़ों को नज़रअंदाज़ किया और शांति से अपनी आँखें बंद करके मैनेजर का इंतज़ार करने लगे।
इसी बैंक में एक छोटी पोस्ट पर एक और व्यक्ति काम करता था, जिसका नाम था पवन। पवन एक नेक दिल और मेहनती युवक था, जो एक छोटे से गाँव से आया था और अपने बड़ों का सम्मान करना जानता था। वह किसी काम से बैंक से बाहर गया हुआ था। जब वह वापस आया, तो उसने देखा कि वेटिंग एरिया में बैठे एक बुजुर्ग व्यक्ति की तरफ सभी लोग घूर-घूर कर देख रहे हैं और उनके बारे में भद्दी बातें कर रहे हैं। कोई उन्हें ‘भिखमंगा’ कह रहा था, तो कोई उनके कपड़ों का मज़ाक उड़ा रहा था।
यह सब देखकर पवन को बहुत बुरा लगा। उसे उन बुजुर्ग व्यक्ति में अपने दादाजी की छवि दिखाई दी। वह बिना किसी की परवाह किए सीधा हरपाल सिंह जी के पास गया और बड़े आदर भाव से उनके पैरों के पास ज़मीन पर बैठते हुए पूछा, “बाबा, आप ठीक तो हैं? आप यहाँ क्यों आए हैं? क्या मैं आपकी कोई मदद कर सकता हूँ?”
पहली बार किसी ने उनसे इतने सम्मान से बात की थी। हरपाल सिंह जी ने अपनी आँखें खोलीं और पवन की तरफ देखकर मुस्कुराए। उन्होंने कहा, “बेटा, मुझे मैनेजर साहब से मिलना है। मेरे खाते में कुछ समस्या है।”
इस बात को सुनकर पवन ने कहा, “ठीक है बाबा, आप यहीं बैठिए। मैं अभी मैनेजर साहब से बात करके आता हूँ।”
पवन तुरंत मैनेजर के केबिन में गया। मिस्टर वर्मा उस समय भी फ़ोन पर किसी बड़े क्लाइंट से हँस-हँस कर बात कर रहे थे। पवन ने कहा, “सर, बाहर जो बुजुर्ग बैठे हैं, वह काफी देर से आपका इंतज़ार कर रहे हैं।”
मैनेजर ने उसे घूरकर देखा और कहा, “पता है मुझे। मैंने ही उसे वहाँ बिठा रखा है। थोड़ी देर बैठेगा और चला जाएगा। पवन, तुम अपना काम करो। तुम्हें इन सब चीज़ों में पड़ने की ज़रूरत नहीं है।” यह कहकर मैनेजर ने पवन को कोई दूसरा काम बताकर वहाँ से टाल दिया।
पवन निराश होकर वापस आ गया। धीरे-धीरे समय बीतता गया। हरपाल सिंह जी को वहाँ बैठे हुए लगभग एक घंटा हो गया था। एक घंटे तक उन्होंने धैर्य रखा, लेकिन अब उन्हें यह अपमान सहन नहीं हो रहा था। वह अपनी कुर्सी से उठे और बिना किसी से कुछ कहे, सीधे मैनेजर के केबिन की तरफ बढ़ने लगे।
जैसे ही मैनेजर ने देखा कि वह बुजुर्ग व्यक्ति उसके केबिन की तरफ ही आ रहा है, वह गुस्से में फौरन अपनी कुर्सी से उठा और केबिन से बाहर निकलकर उनका रास्ता रोकते हुए खड़ा हो गया। उसने अकड़कर पूछा, “हाँ बाबा, बताइए अब आपको क्या काम है? मैंने कहा था न कि मैं व्यस्त हूँ।”
हरपाल सिंह जी ने अपना वही लिफाफा आगे बढ़ाते हुए कहा, “बेटा, यह देखो, मेरे बैंक अकाउंट की डिटेल इसके अंदर है। मेरे अकाउंट से कोई भी लेन-देन नहीं हो पा रही है। आप कृपया देखकर बताइए कि इसमें क्या दिक्कत है।”
इस बात को सुनकर मैनेजर ज़ोर से हँस पड़ा। उसने कहा, “बाबा, जब किसी बैंक अकाउंट में सालों तक पैसे नहीं रहते, तो वह बंद हो जाता है। मेरे ख्याल से आपने भी अपने अकाउंट में कभी पैसे जमा नहीं करवाए होंगे, और इसी वजह से आपके अकाउंट की लेन-देन रोक दी गई है। यह तो कॉमन सेंस की बात है।”
बुजुर्ग व्यक्ति ने शांत भाव से कहा, “बेटा, पहले तुम एक बार अकाउंट को सिस्टम में चेक तो कर लो। बिना देखे तुम कैसे बता सकते हो?”
मैनेजर का अहंकार अब और बढ़ गया। वह हँसते हुए बोला, “बाबा, यह सालों का एक्सपीरियंस है। मैं आप जैसे लोगों की शक्ल देखकर ही बता देता हूँ कि किसके अकाउंट में कितना पैसा होगा। आपके अकाउंट में तो मुझे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा। मैं चाहता हूँ कि अब आप यहाँ से चले जाएँ। आपकी वजह से हमारे दूसरे कीमती ग्राहकों का समय बर्बाद हो रहा है और बैंक का माहौल खराब हो रहा है।”
हरपाल सिंह जी ने एक पल के लिए मैनेजर की आँखों में देखा। फिर उन्होंने वह लिफाफा उसकी टेबल पर रख दिया और कहा, “ठीक है बेटा, मैं तो चला जाऊँगा। लेकिन जाने से पहले, तुम इस लिफाफे में जो भी डिटेल लिखी हुई है, उसे एक बार ज़रूर देख लेना।” ऐसा कहकर हरपाल सिंह जी वहाँ से जाने के लिए मुड़े। जैसे ही वह मुख्य दरवाज़े पर पहुँचे, वह अचानक रुके, मुड़े और मैनेजर की तरफ देखकर बोले, “बेटा, तुम्हें अपने इस व्यवहार का बहुत बुरा नतीजा भुगतना पड़ेगा।”
यह कहकर हरपाल सिंह जी बैंक के मेन गेट से बाहर निकल गए और धीरे-धीरे भीड़ में ओझल हो गए।
मैनेजर को जब यह धमकी सुनाई दी, तो एक पल के लिए तो उसे थोड़ा अजीब लगा, लेकिन फिर वह हँस पड़ा और सोचने लगा, “बुढ़ापे में सठिया गया है। मेरा क्या बिगाड़ेगा?” यह सोचकर वह अपने काम में फिर से लग गया।
टेबल पर वह लिफाफा अभी भी पड़ा हुआ था। पवन, जो दूर से यह सब देख रहा था, धीरे से उस लिफाफे को उठा लाया। उसके मन में एक अजीब सी जिज्ञासा थी। वह अपने कंप्यूटर पर गया, बैंक के सर्वर में लॉग इन किया और उस लिफाफे के अंदर दी गई अकाउंट नंबर की जानकारी को सिस्टम में डालने लगा।
जैसे ही उसने एंटर दबाया, स्क्रीन पर जो जानकारी उभरकर आई, उसे देखकर पवन की आँखें फटी की फटी रह गईं। उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। स्क्रीन पर लिखा था:
खाताधारक का नाम: श्री हरपाल सिंह खाते का प्रकार: संस्थापक/अध्यक्ष बैंक में हिस्सेदारी: 60%
पवन को अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ। यह व्यक्ति, जिसे सब भिखारी समझ रहे थे, वह इस बैंक का मालिक था! इस बैंक की 60 प्रतिशत हिस्सेदारी उसी के नाम पर थी। पवन ने पूरी डिटेल को और ध्यान से पढ़ा और वह पूरी तरह से निश्चित हो गया कि यह वही व्यक्ति है। उसने तुरंत उस रिपोर्ट का एक प्रिंटआउट निकाला और काँपते हुए हाथों से उसे लेकर मैनेजर के केबिन की तरफ भागा।
बैंक मैनेजर उस समय अपने केबिन में किसी अमीर कस्टमर के साथ बैठकर उसे बैंक की नई स्कीमें समझा रहा था। पवन ने दरवाज़ा खटखटाया। मैनेजर ने उसे अंदर आने का इशारा किया और फिर आँखों से पूछा कि क्या काम है। पवन ने इशारों में ही कहा, “सर, यह बहुत ज़रूरी रिपोर्ट है, उस व्यक्ति की जो अभी आया था। आपने उसे ऐसे ही यहाँ से भेज दिया। आप एक बार इस पर नज़र डाल लेंगे तो अच्छा रहेगा।”
यह कहकर पवन ने वह रिपोर्ट मैनेजर की टेबल पर रख दी। मैनेजर ने अपने क्लाइंट से एक मिनट का समय माँगा और पवन से गुस्से में कहा, “देखो भाई पवन, मैंने तुमसे कितनी बार कहा है कि हमारे पास ऐसे-वैसे लोगों के लिए टाइम नहीं है।”
पवन ने बड़े आदर से कहा, “सर, प्लीज़, बस एक बार आप इसे देख लें तो बड़ा ही अच्छा रहेगा।”
तभी मैनेजर ने उस फाइल को बिना देखे पवन की तरफ सरकाते हुए कहा, “मुझे इसको नहीं देखना और मुझे ऐसे कस्टमर में कोई भी दिलचस्पी नहीं है।” यह कहकर उसने रिपोर्ट को पवन की तरफ बढ़ा दिया। पवन निराश होकर वह रिपोर्ट लेकर वापस अपने काम में लग गया।
शाम हुई, बैंक बंद हो गया।
दूसरे दिन, ठीक ग्यारह बजे, बैंक के काँच के दरवाज़े फिर से खुले। हरपाल सिंह जी ने अंदर कदम रखा। लेकिन आज वह अकेले नहीं थे। उनके साथ एक सूट-बूट पहना हुआ व्यक्ति था, जिसके हाथ में एक लेदर का ब्रीफकेस था और आँखों में एक पेशेवर गंभीरता।
अंदर आते ही हरपाल सिंह जी ने मैनेजर की तरफ देखा और उसे अपनी तरफ आने का इशारा किया। मैनेजर, जो कल के वाक्य के बाद थोड़ा असहज था, डरते-डरते अपने केबिन से निकलकर हरपाल सिंह जी के सामने आकर खड़ा हो गया।
हरपाल सिंह जी ने शांत लेकिन दृढ़ आवाज़ में कहा, “मैनेजर साहब, मैंने आपसे कल कहा था ना कि यह बात आपको बहुत भारी पड़ेगी। आपने जो कुछ भी कल मेरे साथ किया, वह इस बैंक की नीति और मेरे सिद्धांतों के बिल्कुल खिलाफ है। तो अब आप अपनी सज़ा भुगतने के लिए तैयार हो जाइए।”
यह सुनकर मैनेजर थोड़ा बौखला गया, लेकिन फिर भी अकड़कर बोला, “सज़ा? आप मुझे क्या सज़ा दे सकते हैं?”
तभी हरपाल सिंह जी ने कहा, “तुम्हें आज से मैनेजर के पद से हटाया जा रहा है। तुम्हारी जगह इस बैंक में काम करने वाले पवन को नया मैनेजर बनाया जा रहा है। और तुम्हें आज से फील्ड का काम देखना होगा, जहाँ तुम लोगों से मिलना और उनकी इज़्ज़त करना सीखोगे।”
यह सुनकर मैनेजर हक्का-बक्का रह गया। वह गुस्से में बोला, “आप होते कौन हैं मुझे इस तरह से हटाने वाले?”
हरपाल सिंह जी ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैं इस बैंक का मालिक हूँ। इस बैंक के 60 प्रतिशत शेयर मेरे पास हैं। और मेरे पास यह अधिकार है कि मैं किसी को भी हटा सकता हूँ और किसी को भी उसकी सही जगह पर लगा सकता हूँ।”
यह बात सुनकर बैंक के अंदर मौजूद सभी कर्मचारी और वे ग्राहक जो कल भी वहाँ थे, एकदम हैरान रह गए। सबकी आँखें फटी की फटी रह गईं।
तभी हरपाल सिंह जी के साथ आए व्यक्ति ने अपना ब्रीफकेस खोला। उसमें से उसने दो लिफाफे निकाले। एक लिफाफा, जो पवन की प्रमोशन का था, उसने पवन को दिया, जिसे बैंक का नया मैनेजर बना दिया गया था। पवन की आँखों में आँसू थे, उसे यकीन ही नहीं हो रहा था।
दूसरा लेटर उसने मैनेजर को दिया और कहा, “यह आपका डिमोशन लेटर है। अगर तुम्हें फील्ड में ड्यूटी करनी है, तो बेशक कर लो। लेकिन मैनेजर बनकर तुम इस बैंक में अब एक दिन भी नहीं रह सकते।”
यह बात सुनकर मैनेजर के पसीने छूटने लगे। वह अपनी गलती समझ चुका था। वह तुरंत हरपाल सिंह जी के पैरों में गिर गया और अपनी कल की गलती के लिए माफी माँगने लगा।
तभी हरपाल सिंह जी ने उसे उठाया और कहा, “माफी किस बात की माँग रहे हो? और मैं तुम्हें किस वजह से माफ कर दूँ? तुमने मेरा अपमान नहीं किया, तुमने उस हर गरीब और साधारण व्यक्ति का अपमान किया है जो इस उम्मीद से बैंक में आता है कि उसकी मदद की जाएगी। क्या तुमने कभी इस बैंक की पॉलिसी नहीं पढ़ी? यहाँ अमीर और गरीब में कोई फर्क नहीं किया जाएगा। पवन, जिसके हाथ में कोई अधिकार नहीं था, उसने इंसानियत दिखाई। इसलिए इस कुर्सी का असली हकदार वही है।”
इसके बाद हरपाल सिंह जी ने संगीता को बुलाया और उसे भी कड़ी फटकार लगाई। संगीता भी हाथ जोड़कर माफी माँगने लगी।
अंत में, हरपाल सिंह जी ने पूरे स्टाफ से कहा, “याद रखना, किसी भी संस्थान की नींव उसकी इमारतें नहीं, बल्कि उसके मूल्य होते हैं। और हमारा सबसे बड़ा मूल्य है—हर इंसान का सम्मान।”
यह कहकर हरपाल सिंह जी वहाँ से चले गए, लेकिन अपने पीछे एक ऐसा सबक छोड़ गए, जिसे वह बैंक और वहाँ काम करने वाला हर व्यक्ति शायद कभी नहीं भूल पाएगा। उस दिन के बाद, उस बैंक में किसी भी व्यक्ति को उसके कपड़ों से नहीं, बल्कि एक इंसान के तौर पर देखा जाने लगा।
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