भाभी ने अपने गहने बेचकर देवर को पढ़ाया,जब देवर कलेक्टर बनकर घर आया तो भाभी को

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राजस्थान के रीगिस्तान के किनारे बसे छोटे से कस्बे खनकपुर में एक लड़की रहती थी—नैना। उम्र लगभग 24 साल, रूप-रंग साधारण, लेकिन दिल समंदर जितना गहरा और सोच पहाड़ों जितनी ऊँची। नैना पढ़ाई में तेज थी। उसने एम.ए पूरा कर लिया था और अब पीएचडी करने का सपना देख रही थी। लेकिन किस्मत की जंजीरें उसके पैरों में कसी हुई थीं।

पिता रामस्वरूप—रिक्शा चलाते थे। मां सीमा—गांव के सरकारी स्कूल में रसोई बनाती थीं। घर की हालत ऐसी कि एक-एक पैसे का हिसाब रखना पड़ता था। नैना पढ़कर कुछ बड़ा करना चाहती थी, लेकिन घर की हालत देखकर वह सपनों को दिल में ही दबाकर बैठी थी।

घर में अकेली बेटी होने के कारण मां-बाप की चिंता भी बढ़ती जा रही थी। एक दिन मां ने कहा—
“बेटी, पीएचडी तो बाद में भी हो जाएगी, पहले तेरे लिए एक अच्छा रिश्ता आ रहा है… लड़का शहर में नौकरी करता है, परिवार अच्छा है।”

नैना का दिल कांप गया।
“मां, अभी मैं पढ़ना चाहती हूं। शादी में जल्दी क्या है?”

मां ने सिर झुका दिया—
“हम गरीब हैं बेटी… ज्यादा देर तक अच्छे रिश्ते नहीं आते।”

नैना चुप हो गई। वह समझ रही थी—सपना उसके पास है, लेकिन मजबूरी उसके माता-पिता की।

कुछ ही दिनों बाद आरव नाम के युवक से उसकी शादी हो गई। आरव पेशे से इलेक्ट्रिशियन था—साधारण नौकरी, पर दिल का अच्छा। उसकी मां और छोटा भाई करण उसे बहुत मानते थे। घर में गरीबी थी, पर प्यार की कमी नहीं थी।

शादी के बाद नैना ससुराल आ गई। घर छोटा था लेकिन प्यार भरा। नैना सुबह से शाम तक घर का काम करती और रात को चुपके से किताबें खोलकर पढ़ती। आरव को जब भी मौका मिलता, वह उसे कहता—
“तुम पढ़ना चाहती हो न? एक दिन हम तुम्हें जरूर पढ़ाएंगे… बस थोड़ा वक्त दो।”

नैना मुस्कुरा देती, लेकिन मन में सवाल उठते रहते—
क्या गरीबी सपनों को हमेशा कुचल देती है?


पति पर टूटा दुखों का पहाड़

शादी के करीब एक साल बाद आरव के साथ बड़ा हादसा हुआ। एक फैक्ट्री में बिजली मरम्मत का काम करते समय वह बुरी तरह झुलस गया। महीनों अस्पताल में रहा। कमाई बंद। कर्ज बढ़ गया। घर की हालत बिगड़ती चली गई।

उधर अस्पताल के खर्चे से घर बिकने की नौबत आ गई। कर्जदार रोज़ दरवाजे पर खड़े रहते।

इन्हीं मुश्किल दिनों में आरव के छोटे भाई करण ने पढ़ाई बीच में छोड़ दी और छोटा-मोटा काम करने लगा।
नैना घर-घर काम करने लगी—बर्तन धोती, खाना बनाती, बुजुर्गों की सेवा करती।

गांव में लोगों ने बातें बनानी शुरू कर दी—
“देखो educated बहू भी आखिर झाड़ू-पोंछा ही कर रही है।”
“क्या फायदा पढ़ाई का?”

लेकिन नैना के लिए कोई भी काम छोटा नहीं था। वह हर काम इज्जत से करती। बस एक ही डर था—आरव की स्थिति कहीं और खराब न हो जाए।

दिन बीतते गए और एक दिन डॉक्टर ने कहा—
“आरव अब घर जा सकता है, लेकिन उसे कई महीनों तक आराम चाहिए।”

यह खबर खुशी भी थी और डर भी। आरव काम पर नहीं जा सकता था, और घर चलाने की जिम्मेदारी नैना के कंधों पर थी।

भाभी ने अपने गहने बेचकर देवर को पढ़ाया,जब देवर कलेक्टर बनकर घर आया तो भाभी को#heart touching story


गांव में खबर फैल गई

नैना अब प्रतिदिन सुबह 5 बजे उठकर काम पर निकल जाती। दोपहर में लौटकर आरव और सास की सेवा करती। शाम को फिर किसी घर में खाना बनाने चली जाती।

सारा गांव उसकी मेहनत देखता था, लेकिन कोई आगे नहीं आता था।

तभी एक दिन गांव में खबर फैली—
“जिले के नए डीएम खनकपुर गांव में निरीक्षण के लिए आने वाले हैं।”

सड़कें साफ होने लगीं। लोग इकट्ठा होने लगे। सरकारी गाड़ी गांव के मुख्य रास्ते से होकर गुजरने वाली थी।

नैना उस सुबह एक घर में काम करने जा रही थी। हाथ में झोला और आंखों में थकान थी। तभी दूर से सायरन की आवाज आई—
“डीएम साहब की गाड़ी आ रही है!”

गांव वाले भागकर सड़क के किनारे खड़े हो गए।
नैना भी रुक गई।

गाड़ी पास आई, और नैना की नज़र ड्राइवर सीट पर पड़ी।
उसकी सांसें थम गईं।

गाड़ी चला रहा था—करण!
उसका देवर।


गांव में सनसनी फैल गई

लोग हैरान रह गए।
“अरे यह तो नैना का देवर है!”
“यह डीएम साहब के साथ कैसे?”
“कहीं नौकरी लग गई है क्या?”

नैना आश्चर्य से करण को देखने लगी।
गाड़ी धीरे-धीरे गांव के चौक पर रुकी।

ड्राइवर सीट से करण उतरा—साफ यूनिफॉर्म में, आत्मविश्वास से भरा हुआ।
उसने नैना को देखा… और एक पल को उसकी आंखें नम हो गईं।

फिर पीछे का दरवाजा खुला—
और बाहर आए—डीएम अमन सिंह
कद लंबा, व्यक्तित्व दमदार, पर चेहरे पर विनम्रता।

करण ने तुरंत डीएम साहब से कहा—
“सर… यही हैं मेरी भाभी… नैना भाभी… जिनकी वजह से आज मैं इस मुकाम पर हूँ।”

नैना हिल गई—
“मैं? मैंने क्या किया?”


सच्चाई जिसने सभी को झकझोर दिया

डीएम अमन ने मुस्कुराकर कहा—
“आपने वह किया जो आजकल लोग करना भूल गए हैं—
दूसरों की हिम्मत बनना।”

फिर करण ने मुस्कुराते हुए गांव वालों से कहा—
“मैं दसवीं पास था और पढ़ाई छोड़ दी थी। सोचता था पैसा ही सब कुछ है।
लेकिन भाभी ने…
हर रात मुझे पढ़ाया, समझाया, और कहा—
‘गरीबी कोई शर्म नहीं, पर सपने छोड़ देना शर्म है।’

जब भैया अस्पताल में थे और घर की हालत खराब थी, तो भी भाभी ने अपने सपनों को छोड़कर हमें संभाला, लेकिन मुझे पढ़ाई जारी रखने से नहीं रोका।
उन्होंने अपने गहने बेचकर मेरी फीस दी, मुझे फॉर्म दिलवाया, किताबें खरीदी… और कहा—

“तू पढ़ ले करण… तेरी जीत ही मेरे त्याग का जवाब है।”

और आज… मैं डीएम साहब का ड्राइवर नहीं…
बल्कि उनका सहायक अधिकारी (Assistant Administrative Officer) हूँ।
यह सरकारी गाड़ी… मेरी मेहनत और भाभी के त्याग की वजह से है।”

पूरा गांव स्तब्ध था।
नैना की आंखों से आंसू गिरने लगे।
करन आगे बढ़ा और सबके सामने नैना के पैर छू लिए।


डीएम साहब का निर्णय जिसने गांव बदल दिया

डीएम अमन ने कहा—
“नैना जी, मैंने करण की फाइल देखी है। उसमें लिखा था—
‘मेरी सफलता का श्रेय मेरी भाभी को है।’
आपको सम्मान देना मेरा कर्तव्य है।”

उन्होंने वहीं घोषणा कर दी—
“नैना जी को जिला प्रशासन की तरफ से ‘महिला प्रेरणा सम्मान’ दिया जाएगा।
और इनके लिए गांव के स्कूल में लाइब्रेरियन की सरकारी नौकरी मंजूर की जाती है।”

गांव में तालियां गूंज उठीं।

नैना के पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे।
करण गर्व से मुस्कुरा रहा था।
सास रो रही थी।
और आरव—जो धीरे-धीरे ठीक हो चुका था—लाठी के सहारे बाहर आया और बोला—
“नैना, मैंने तो कुछ नहीं दिया…
लेकिन तुमने हम सबकी जिंदगी बदल दी।”

नैना ने उसका हाथ पकड़ लिया—
“हम दोनों ने सबकुछ साथ में झेला है आरव…
अब आगे का सफर भी साथ चलेगा।”


अंत—जहां संघर्ष जीत में बदल जाता है

धीरे-धीरे घर की हालत सुधर गई।
करण अब जिले का सम्मानित अधिकारी था।
नैना सरकारी स्कूल में नौकरी करने लगी।
आरव भी धीरे-धीरे काम पर लौट आया।

गांव में जब भी कोई महिला दुखी होकर नैना के पास आती, वह केवल इतना कहती—
“सपने गरीबी नहीं रोकती…
सपने छोड़ देना रोकता है।”

नैना की कहानी आज भी खनकपुर में सुनाई जाती है—
जहां त्याग, संघर्ष और शिक्षा ने एक परिवार ही नहीं…
पूरे गांव की सोच बदल दी।