भिखारी बच्चा Bank में 50 हजार का चेक लेकर पैसे निकालने पहुंचा फिर जो हुआ…
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अध्याय 1: फुटपाथ की तपिश
नई दिल्ली की तपती दोपहर में, एक भीड़भाड़ वाली सड़क के किनारे, 12 साल का आरव अपनी 10 महीने की छोटी बहन को गोद में लिए खड़ा था।
फटी हुई कमीज, गंदी चप्पलें और सूखे होंठ उसकी गरीबी की गवाही दे रहे थे।
माता-पिता की मृत्यु के बाद वह अकेले दोनों का सहारा था।
हर रोज सुबह से शाम तक वह लोगों के आगे हाथ फैलाता, कभी कोई ₹2 देता, कभी ₹5, तो कभी कोई डांटकर भगा देता।
लेकिन आज उसकी बहन की हालत बेहद खराब थी—चेहरा लाल, सांसें तेज, बुखार से तपता शरीर।
आरव घबरा गया। उसे पता था कि अब देर की तो बहन की जान जा सकती है।
अध्याय 2: उम्मीद की किरण
इसी बेचैनी में उसने देखा कि एक महंगी कार से एक व्यापारी उतरा—महंगे कपड़े, कीमती घड़ी, चमकदार ब्रीफकेस।
आरव दौड़कर उसके पास गया, उसके पैर पकड़ लिए।
“साहब, मेरी बहन बहुत बीमार है। डॉक्टर के पास ले जाना है, प्लीज कुछ पैसे दे दीजिए।”
व्यापारी पहले झुंझलाया, फिर आसपास की भीड़ और बच्ची की हालत देखकर दया आ गई।
उसने अपना बटुआ देखा, ₹1000 थे, लेकिन उसे एक जरूरी मीटिंग में देर हो रही थी।
उसने जल्दी-जल्दी चेकबुक निकाली और ₹500 का चेक लिख दिया।
“यह ले, पास में ही बैंक है, जाकर चेक भुना लेना।”
आरव को लगा जैसे भगवान मिल गए, उसने धन्यवाद दिया और बहन को कसकर गोद में लिए बैंक की तरफ दौड़ पड़ा।
अध्याय 3: बैंक की दीवारें
राज्य बैंक की शानदार इमारत आरव के लिए किसी महल से कम नहीं थी।
संगमरमर के फर्श, एसी की ठंडक, अच्छे कपड़े पहने कर्मचारी।
अपनी फटी कमीज और गंदी चप्पलों में वह वहां बेमेल लग रहा था।
जैसे ही वह अंदर गया, सबकी नजरें उस पर टिक गईं।
कुछ ग्राहक नाक-भौं सिकोड़ने लगे।
आरव ने चेक काउंटर पर जाकर चेक आगे बढ़ाया।
कैशियर ने घृणा से देखा, “यह क्या है?”
“अंकल, यह चेक है, मुझे पैसे चाहिए। मेरी बहन बीमार है।”
कैशियर ने साथियों को इशारा किया, जल्द ही चार-पांच बैंक कर्मचारी जमा हो गए।
“तू यह चेक कहां से लाया?”
“एक साहब ने दिया है, मेरी बहन बीमार है।”
लेकिन बैंक वालों को यकीन नहीं आया।
“यह चेक चोरी का है।”
“गार्ड सुरेश को बुलाओ।”
अध्याय 4: अपमान और अन्याय
गार्ड सुरेश—मोटी मूंछें, तनी वर्दी, गुस्से से भरा चेहरा।
“क्या मामला है?”
“यह लड़का नकली चेक लेकर आया है। चोरी का माल है।”
सुरेश ने आरव का हाथ पकड़कर खींचा, छोटी बहन डर से रोने लगी।
“चल बाहर, यहां चोरी चकारी नहीं चलेगी।”
आरव गिड़गिड़ाया, “अंकल, प्लीज सुन लीजिए, यह सच में एक साहब ने दिया है।”
लेकिन किसी ने उसकी बात नहीं सुनी।
भीड़ बढ़ती जा रही थी, कुछ लोग मोबाइल से वीडियो बना रहे थे।
बैंक मैनेजर भी आ गया—मध्यम आयु, चेहरे पर अहंकार।
“क्या समस्या है?”
“यह लड़का चोरी का चेक लेकर आया है, पुलिस को सूचना देनी चाहिए।”
मैनेजर ने चेक देखा, असली लग रहा था, हस्ताक्षर सही थे, लेकिन गरीब बच्चे के हाथ में बड़ा चेक देखकर उसने भी फैसला कर लिया—”पुलिस को फोन करो।”
अध्याय 5: कानून का अंधापन
10 मिनट बाद पुलिस स्टेशन से तीन सिपाही आए—राजीव, दिनेश, अक्षय।
तीनों के चेहरे पर अहंकार, शक्ति का नशा।
राजीव सबसे वरिष्ठ, आते ही धमकाने लगा।
“क्या मामला है?”
“साहब, यह लड़का चोरी का चेक लेकर आया है।”
दिनेश ने आरव को देखा, “यह तो पक्का चोर है, देखो इसकी हालत।”
अक्षय ने भी हामी भरी।
राजीव ने आरव का कॉलर पकड़ा, “कहां से चुराया है यह चेक? सच-सच बता वरना जेल में डाल दूंगा।”
आरव की आंखों में आंसू आ गए, छोटी बहन की हालत बिगड़ती जा रही थी।
“साहब, प्लीज मेरी बात सुन लीजिए, एक अंकल ने यह चेक दिया है क्योंकि मेरी बहन बीमार है।”
“झूठ बोल रहा है। इन सड़क के बच्चों पर भरोसा नहीं करना चाहिए।”
भीड़ बढ़ती जा रही थी, सोशल मीडिया पर लाइव वीडियो बनने लगे।
अक्षय ने आरव के हाथों पर हथकड़ी लगाने की तैयारी की, “इसे थाने ले चलते हैं।”
अध्याय 6: भीड़ में एक उम्मीद
इसी भीड़ में एक महिला खड़ी थी, जो पूरे दृश्य को ध्यान से देख रही थी—डीएम राधिका शर्मा।
अनुभवी प्रशासनिक अधिकारी, पैनी नजर, चेहरे पर गंभीरता।
भीड़ अपने आप रास्ता बनाने लगी।
उसने देखा कि पुलिस वाले बिना जांच के बच्चे को गिरफ्तार करने जा रहे हैं।
“क्या हो रहा है यहां?”
राजीव ने घबराकर बताया, “मैडम, यह लड़का चोरी का चेक लेकर आया है।”
“रुकिए, पहले मुझे पूरी स्थिति समझाइए।”
बैंक मैनेजर ने कहानी सुनाई, लेकिन राधिका शर्मा की नजरों ने पकड़ लिया कि सब अनुमान के आधार पर फैसला हो रहा है।
“क्या आपने चेक की जांच की है?”
“मैडम, चेक तो असली लगता है, लेकिन यह लड़का…”
“कोई लेकिन नहीं। अगर चेक असली है तो समस्या क्या है?”
अध्याय 7: सच्चाई की तलाश
राधिका शर्मा ने आरव की तरफ देखा, उसकी आंखों में सच्चाई थी।
बेहोश पड़ी छोटी बच्ची को देखकर उसका दिल पिघल गया।
“बेटा, सच-सच बताओ, यह चेक तुम्हें कैसे मिला?”
आरव को लगा जैसे आखिरकार कोई उसकी बात सुनने को तैयार है।
उसने पूरी कहानी बताई—कैसे बहन बीमार हुई, कैसे एक व्यापारी ने चेक दिया।
राधिका शर्मा ने चेक को ध्यान से देखा, हस्ताक्षर ताजा थे, तारीख आज की थी, रकम साफ थी।
उसने अपने फोन से खाता विवरण की जांच करवाई।
2 मिनट बाद पुष्टि आई—चेक असली था, व्यापारी के खाते में पर्याप्त रकम थी।
अध्याय 8: न्याय की जीत
राधिका शर्मा का चेहरा गुस्से से लाल हो गया।
“तो यह है आप लोगों की न्याय व्यवस्था!”
उसकी आवाज में सच्चे नेता का गुस्सा था।
“एक असली चेक धारक को अपराधी बनाने में आप सभी लगे हुए थे!”
बैंक मैनेजर, पुलिस अधिकारी, गार्ड सुरेश सबका आत्मविश्वास हवा हो गया।
“आपको लगा कि एक गरीब बच्चा अपराधी है, सिर्फ उसकी हालत के आधार पर?”
पुलिस वालों ने सफाई दी, “मैडम, हमें बैंक वालों ने सूचना दी थी…”
“तो आंख-कान बंद करके गिरफ्तार कर देते? जांच का क्या मतलब है?”
राधिका शर्मा ने अपने सहायक को फोन किया, “पुलिस अधीक्षक को जोड़ो, मुझे इन तीनों अधिकारियों के विरुद्ध शिकायत दर्ज करनी है।”
अध्याय 9: बदलाव की शुरुआत
गार्ड सुरेश भी घबरा गया।
राधिका शर्मा ने बैंक मैनेजर को आदेश दिया, “आप इस चेक को तुरंत भुनाइए और इस बच्चे को पूरा पैसा दीजिए। आपके बैंक के भेदभावपूर्ण व्यवहार की रिपोर्ट मैं बैंकिंग लोकपाल को भेजूंगी।”
मैनेजर के पास कोई विकल्प नहीं था।
उसने कैशियर को आदेश दिया, तुरंत चेक क्लियर करके पैसे दे दिए जाएं।
अगले ही दिन कार्रवाई शुरू हुई—
बैंक मैनेजर को निलंबित कर दिया गया।
कैशियर और अन्य कर्मचारियों को कारण बताओ नोटिस मिला।
गार्ड सुरेश को नौकरी से निकाल दिया गया।
पुलिस अधिकारी राजीव, दिनेश और अक्षय के विरुद्ध विभागीय जांच शुरू हुई, उन्हें निलंबित कर दिया गया।
अध्याय 10: समाज का आईना
यह घटना पूरे शहर में फैल गई।
लोगों ने समझा कि भेदभाव की कोई जगह नहीं है।
राधिका शर्मा ने साफ संदेश दिया—न्याय में देरी हो सकती है, लेकिन अन्याय बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हो गया, लोग आरव के साहस और राधिका शर्मा की ईमानदारी की तारीफ करने लगे।
अध्याय 11: नई जिंदगी की शुरुआत
आरव को चेक की पूरी रकम मिल गई।
उसने सबसे पहले अपनी बहन को अस्पताल में भर्ती कराया।
डॉक्टरों ने इलाज शुरू किया, कुछ ही दिनों में बच्ची की हालत ठीक हो गई।
राधिका शर्मा ने आरव के लिए सरकारी सहायता का इंतजाम किया।
उसके लिए एक छोटा सा घर, स्कूल में दाखिला, और बहन के लिए पोषण योजना।
अध्याय 12: प्रेरणा का संदेश
समाज में बदलाव की लहर दौड़ गई।
बैंक में अब गरीबों के साथ भेदभाव नहीं होता था।
पुलिस विभाग में भी संवेदनशीलता बढ़ी।
आरव अब स्कूल जाता, बहन स्वस्थ थी, दोनों की जिंदगी पटरी पर लौट आई थी।
राधिका शर्मा ने एक सार्वजनिक सभा में कहा—
“गरीब होना कोई अपराध नहीं, हालात किसी को अपराधी बना सकते हैं, लेकिन न्याय सबका अधिकार है।”
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