मजदूर से व्यापारी तक का सफर 

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रामलाल की मेहनत से सफलता तक की यात्रा

उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर में रामलाल नाम का एक युवक रहता था। उसका जीवन साधारण था, लेकिन संघर्षों से भरा हुआ था। रामलाल दिन भर मजदूरी करता था। कभी वह किसी इंटेड के यहाँ काम करता, तो कभी किसी निर्माण स्थल पर। उसकी मेहनत से घर चलाना मुश्किल था। शाम को जब वह घर लौटता, तो उसकी जेब में मुश्किल से पचास से साठ रुपये होते।

रामलाल का घर एक पुरानी झोपड़ी थी, जिसकी छत से बारिश का पानी टपकता और दीवारें हवा से हिलती थीं। उस झोपड़ी में उसकी पत्नी लक्ष्मी और दो छोटे बच्चे रहते थे। बच्चों की आंखों में भूख के कारण अक्सर उदासी छाई रहती। रामलाल सोचता, “कब तक यह जिंदगी ऐसे ही चलेगी? क्या कभी ऐसा दिन आएगा जब हमारा परिवार बिना किसी चिंता के दो वक्त की रोटी खा सके? बच्चों को अच्छे कपड़े पहनाने का सुख मिले, और सर्दियों में वे गर्म रजाई में सो सकें?”

शहर में अमीर व्यापारी हरिशंकर रहते थे। उनका बड़ा सा बंगला था, और उनके पास कई दुकानें और कारोबार थे। वे शहर के जाने-माने व्यक्ति थे। उनकी पत्नी राधा अचानक बीमार पड़ गई। तेज बुखार ने उनकी हालत खराब कर दी थी। शरीर इतना कमजोर हो गया कि बिस्तर से उठना मुश्किल हो गया। होठ सूखे और चेहरा पीला पड़ गया। हरिशंकर घबरा गए।

उनका इकलौता बेटा अजय और बहू मीना उस समय शहर से बाहर चारधाम की यात्रा पर गए हुए थे। वे वादा करके गए थे कि इस साल व्यापार में अच्छा मुनाफा होगा तो वे यह यात्रा करेंगे। वे अभी-अभी गए थे और कम से कम दो महीने तक लौटने वाले नहीं थे।

हरिशंकर ने तुरंत शहर के प्रसिद्ध डॉक्टर को बुलाया। डॉक्टर ने जांच के बाद दवाइयां दीं और कहा, “चिंता मत कीजिए, यह मौसमी बुखार है। दवाइयां सुबह-शाम लें। कुछ दिनों में ठीक हो जाएगी। लेकिन कम से कम दो महीने पूर्ण आराम चाहिए। कोई भारी काम नहीं, ज्यादा चलना-फिरना भी नहीं।”

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डॉक्टर के जाने के बाद हरिशंकर चिंतित हो गए। घर का सारा काम कौन करेगा? खाना कौन बनाएगा? राधा की देखभाल कौन करेगा? तभी उन्हें रामलाल का ख्याल आया, जो कभी-कभी उनके घर छोटे-मोटे काम करता था। उन्होंने रामलाल को बुलाया और कहा, “रामलाल, मुझे तुम्हारी जरूरत है। जब तक मेरा बेटा वापस नहीं आता, तुम्हें यहां रहना होगा। घर के सारे काम संभालने होंगे—झाड़ू-पोछा, बर्तन धोना, कपड़े धोना, और खाना बनाना भी। तुम्हारा खाना-पीना यही होगा। महीने के पाँच हजार रुपये दूंगा।”

रामलाल की आंखें चमक उठीं। पाँच हजार रुपये? इतने पैसे तो वह साल भर में भी नहीं कमा पाता था। लेकिन एक परेशानी थी। उसने झिझकते हुए कहा, “साहब, मैं सब काम कर लूंगा, लेकिन मुझे खाना बनाना नहीं आता। कभी चूल्हा तक नहीं जलाया।”

हरिशंकर मुस्कुराए और बोले, “फिक्र मत करो। राधा बिस्तर से तुम्हें बताएंगी कि क्या कैसे बनाना है। तुम बस ध्यान से सुनो और करो।”

अगले दिन से रामलाल ने काम शुरू कर दिया। सुबह उठकर आंगन साफ करता, बर्तन मांझता, फिर रसोई में जाता। राधा कमजोर आवाज में बताती, “पहले आटा गूंथ लो, फिर रोटी बेलो, तवे पर सेंको। ध्यान रखना ज्यादा न जल जाए।” शुरुआत में रामलाल से कई गलतियां होतीं। कभी सब्जी कच्ची रह जाती, कभी चाय में चीनी ज्यादा हो जाती। लेकिन वह हार नहीं मानता। हर गलती से सीखता और अगली बार बेहतर करता। राधा भी धैर्य से सिखाती रहती।

एक हफ्ते में रामलाल ने खाना बनाना सीख लिया और इतना अच्छा कि राधा भी हैरान रह गई। एक दिन राधा ने कहा, “रामलाल, आज पनीर की सब्जी सिखाती हूं। यह थोड़ी जटिल है, लेकिन तुम कर लोगे।” उन्होंने विस्तार से बताया कि पनीर को कैसे भूनना है, मसाले कैसे मिलाने हैं, ग्रेवी कैसे बनानी है। रामलाल ने इतने ध्यान से सुना कि पहली बार में ही सब्जी शानदार बनी।

हरिशंकर ने खाई और बोले, “वाह, ऐसी सब्जी तो बाजार में भी नहीं मिलती। रामलाल, तुम्हारे हाथों में तो जादू है।” राधा बोली, “सच कहती हूं, लड़के इतनी जल्दी खाना बनाना नहीं सीखते जितनी जल्दी तुमने सीखा। तुम बहुत होशियार हो। मेहनत और सीखने की लगन है तुम में। यही सफलता की कुंजी है।”

रामलाल शर्मा गया। पहली बार किसी ने उसकी इतनी सराहना की। वह और जोर-शोर से काम करने लगा। हर दिन कुछ नया बनाता। कभी कढ़ी, कभी दाल मखनी, कभी हलवा। लेकिन सबसे ज्यादा तारीफ उसकी पनीर की सब्जी की होती।

दो महीने कैसे निकल गए पता नहीं चला। अजय और मीना भी बाहर से लौट आए। राधा भी स्वस्थ हो गई थी। अब रामलाल की जरूरत नहीं थी। रामलाल उदास हो गया। उसने हिम्मत कर हरिशंकर से कहा, “साहब, मैं यहां खुश हूं। आप जो देते हैं वह आपके लिए कुछ नहीं। कृपया मुझे यहीं रख लीजिए। मैं पूरी लगन से काम करूंगा।”

हरिशंकर हंसे और बोले, “रामलाल, मेरा बेटा बाहर का काम देखता है, मैं घर पर हूं, बहू रसोई संभालती है। छोटे कामों के लिए दो हजार में कोई मिल जाएगा। फिर मैं तुम्हें पाँच हजार क्यों दूं? अमीर होना अलग है, मगर फिजूल खर्ची से पैसा नहीं टिकता। तुम तो चतुर और मेहनती हो। इस घर पर निर्भर मत रहो।”

रामलाल की चिंता बढ़ी। उसने कहा, “साहब, आपने पहली बार मेरी बुद्धि की तारीफ की। मैं मेहनती हूं, लेकिन मेहनत तो सब करते हैं, मगर सब गरीब ही हैं। अगर मेरी चतुराई से रोजगार मिल सकता है तो रास्ता बताइए।”

हरिशंकर ने सोचा और बोले, “रामलाल, तुम्हारे जैसी पनीर की सब्जी और कोई नहीं बना सकता। शहर के बाजार में जो साप्ताहिक मेला लगता है, वहां अगर तुम यह बनाकर बेचो, तो किस्मत पलट सकती है। लोग अच्छे खाने के दीवाने हैं। अच्छे खाने के लिए लोग पैसे देने से नहीं कतराते। अगर काम शुरू करने को पैसे चाहिए तो मैं उधार दे दूंगा।”

रामलाल को डर लगा। व्यापार उसके बस की बात नहीं थी। लेकिन हरिशंकर ने समझाया, “डरने से क्या होगा? छोटे से शुरू करो। एक कढ़ाई बनाओ। बिक गई तो अच्छा, नहीं तो नुकसान कम।”

रामलाल ने दो दिन सोचा। फिर दो हजार रुपये उधार लिए। सामान खरीदा—गैस, कढ़ाई, पनीर, मसाले। पहले दिन तैयारी की। दोपहर तक सब्जी तैयार हो गई।

बाजार में दुकान लगाई और आवाज लगाई, “गरमगरम पनीर की सब्जी, लाजवाब स्वाद, ₹50 प्लेट।” पहले लोग देखते रहे, फिर एक ग्राहक आया, फिर दूसरा, फिर तीसरा। शाम तक सब बिक गया। हिसाब लगाया तो ₹500 मुनाफा हुआ।

एक दिन में इतना मुनाफा देखकर रामलाल हैरान रह गया। अगले दिन उसका आत्मविश्वास बढ़ा। ग्राहकों की संख्या बढ़ी। लोग कहते, “भाई, ऐसी सब्जी तो होटल में भी नहीं मिलती।”

एक महीना गुजर गया। रामलाल ने उधार चुका दिया और हरिशंकर के घर उपहार लेकर गया। हरिशंकर ने पूछा, “काम कैसा चल रहा है रामलाल?” रामलाल बोला, “आपकी मेहरबानी से अच्छा चल रहा है। बस एक समस्या है—कभी सब्जी कम पड़ जाती है, कभी आधी भी नहीं बिकती। ज्यादा बनाने पर ठंडी हो जाती है, तो लोग नहीं लेते।”

हरिशंकर थोड़े नाराज होकर बोले, “रामलाल, यह क्या तरीका है? व्यापार ग्राहक की सुविधा से चलता है। सब एक जैसे नहीं खाते। एक आदमी को मदद के लिए रखो। दो-तीन गैस जलाओ। सब्जी गर्म रहे। जितनी चाहिए उतनी दो। पूरी प्लेट 50 की तो आधी 25 की बेचो। फायदा बढ़ेगा, रोजगार मिलेगा।”

रामलाल ने सुना और बोला, “साहब, आप महान हैं। आपके घर काम करना मेरी खुशनसीबी थी। मैं आपकी सलाह मानूंगा। मुश्किल आएगी तो दोबारा पूछने आऊंगा।”

हरिशंकर ने चेतावनी देते हुए कहा, “बार-बार सलाह मांगना अच्छा नहीं। अच्छा व्यापारी मुश्किलों को खुद हल करता है। अगली बार आए तो कहूंगा व्यापार छोड़ दो।”

रामलाल ने बात याद रखी। उसने मदद के लिए दो मजदूर रखे। एक सब्जी बनाता, दूसरा परोसता। अब ग्राहक की मांग अनुसार गर्म और मसालेदार सब्जी मिलती।

कुछ दिनों बाद एक नई समस्या आई। लोग आधी प्लेट मांगते। अच्छी लगती तो फिर दोबारा लेते। रामलाल के लिए यह मुश्किल था, क्योंकि आधी प्लेट और पूरी प्लेट परोसने में एक ही मेहनत लगती थी। जहां 10 पूरी प्लेट बिकनी चाहिए थी, वहां 20 बार आधी-आधी प्लेट परोसनी पड़ती थी।

रामलाल ने सोचा और एक तरकीब सूझी। उसने पूरी प्लेट को ही आधी कहना शुरू कर दिया और ₹50 में बेचने लगा। जो लोग पूरी प्लेट मांगते, उन्हें वह डबल कहकर दो प्लेट दे देता।

कई महीने बीत गए। हरिशंकर को रामलाल की याद आई। वह सोचने लगा कि पता नहीं रामलाल का व्यापार कैसा चल रहा होगा। एक दिन वह खुद बाजार में गया। वहां देखा कि रामलाल की दुकान पर बड़ी भीड़ लगी है। चार-पांच आदमी काम कर रहे थे। व्यवस्था देखकर हरिशंकर खुश हो गया।

उसने भी आधी प्लेट सब्जी मंगवाई। जब प्लेट आई तो देखा पूरी भरी है। उसने सोचा ₹25 में तो यह बहुत ज्यादा है। सब्जी इतनी स्वादिष्ट थी कि वह सब खा गया। जब पैसे देने लगा तो काम करने वाले ने कहा, “साहब ₹50 दीजिए।”

“अरे भाई, मैंने तो आधी प्लेट मांगी थी, फिर ₹50 क्यों?” हरिशंकर ने पूछा। तभी रामलाल ने आवाज पहचान ली। वह दौड़ कर आया और हरिशंकर के पैर छुए।

अपने आदमी से कहा, “अरे सेठ जी से मत लेना। जब भीड़ कम हुई तो हरिशंकर बोले, ‘रामलाल, मुनाफा कमाना गलत नहीं, लेकिन ग्राहकों को धोखा देना ठीक नहीं। तुम्हारे आदमी ने आधी कहकर पूरी प्लेट दी और पूरे पैसे मांग रहा है।’”

रामलाल हंसते हुए बोला, “सेठ जी, मैं क्या करूं? सब लोग आधी-आधी प्लेट दो बार मांगते थे। इससे काम बढ़ गया था और समय भी बर्बाद होता था। कुछ लोग तो आधी प्लेट ना मिलने पर चले जाते थे। इसलिए मैंने पूरी प्लेट को ही आधी प्लेट का नाम दे दिया। मात्रा में कोई कमी नहीं की। दाम भी नहीं बढ़ाया। बस नाम बदल दिया। इसमें धोखा कहां है? ग्राहक खुश है कि आधी प्लेट में ही पेट भर जाता है और मेरा काम भी आसान हो गया।”

हरिशंकर यह सुनकर बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने रामलाल को शाबाशी देते हुए कहा, “वाह रामलाल, व्यापार की सच्ची समझ तो यही है। ग्राहक भी खुश और तुम भी खुश। अब से तुम सिर्फ रामलाल नहीं, पनीर वाले रामलाल के नाम से जाने जाओगे। पूरे इलाके में तुम्हारा नाम होगा। मुझे तुम पर फक्र है।”

रामलाल की आंखें नम हो गईं। वह गरीब रामलाल आज सफल कारोबारी बन गया था। उसने सीखा कि अगर कोई मेहनत और अपने दिमाग का सही इस्तेमाल करें तो गरीब से गरीब आदमी भी एक सफल व्यापारी बन सकता है।

आज रामलाल के पास अपना छोटा सा घर है। कई कर्मचारी हैं और बाजार में उसकी दुकान सबसे ज्यादा चलने वाली दुकानों में से एक है। लेकिन वह आज भी हरिशंकर और राधा को नहीं भूला है। हर त्यौहार पर वह पनीर की सब्जी भेजता है और कहता है, “यह उस मार्गदर्शन का प्रतिदान है जो आपने दिया है।”

रामलाल की कहानी सिखाती है कि सफलता के लिए मेहनत अकेली काफी नहीं। बुद्धि का उपयोग, सीखने की लगन, अवसर पहचानना और सही मार्गदर्शन। यह सब मिलकर इंसान को ऊंचाइयों तक ले जाते हैं। रामलाल ने दिखाया कि व्यापार में ईमानदारी और चतुराई का संतुलन जरूरी है। नाम बदलने से अगर काम सुगम हो और किसी की हानि ना हो तो यह चालाकी नहीं, व्यवहारिकता है।

समाप्त