मालिक ने नौकर पर चोरी का आरोप लगाया, लेकिन जब पुलिस ने सीसीटीवी देखा तो मालिक हैरान रह गया!

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यह कहानी है एक ऐसे पिता की, जिसकी पगड़ी का मान उसकी बेटी की मुस्कान से भी बढ़कर था। यह कहानी है कैलाश कुमार की, जो एक रिटायर्ड पोस्ट मास्टर थे और अपने छोटे से घर ‘आंचल’ में अपनी दिवंगत पत्नी की यादों और अपनी इकलौती बेटी खुशी के साथ रहते थे। कैलाश जी की पूरी जिंदगी खुशी की खुशियों के इर्द-गिर्द घूमती थी। पत्नी के निधन के बाद उन्होंने मां और पिता दोनों बनकर खुशी को पाला, उसकी हर जरूरत और हर इच्छा को अपने त्याग से पूरा किया। उनका सपना था कि उनकी बेटी की शादी धूमधाम से हो और वह एक अच्छे घर में जाए, जहां उसे कभी किसी चीज की कमी महसूस न हो।

आंचल नाम का वह घर, जो उन्होंने अपनी प्रोविडेंट फंड की बचत और कर्ज लेकर बनवाया था, उनके लिए सिर्फ एक मकान नहीं, बल्कि उनकी पत्नी की यादों और अपनी मेहनत की जीती जागती निशानी था। घर के आंगन में लगा अमरूद का पेड़, जिसे उन्होंने खुशी के पांचवें जन्मदिन पर लगाया था, अब एक घना पेड़ बन चुका था। वह पेड़ उनके जीवन के सुख-दुख का गवाह था।

खुशी अब 25 साल की हो चुकी थी। उसने शहर के सबसे अच्छे कॉलेज से एमकॉम किया था और एक प्राइवेट बैंक में नौकरी करती थी। वह अपने पिता की परछाई थी, जो उनकी मेहनत और त्याग को समझती थी। खुशी अपनी तनख्वाह का एक-एक पैसा अपने पिता को देती और कहती, “पापा, अब आराम कीजिए। आपकी मेहनत रंग लाएगी।” कैलाश जी अपनी बेटी की समझदारी पर गर्व करते थे, लेकिन उनकी चिंता खुशी की शादी को लेकर बढ़ती जा रही थी।

 

एक दिन कैलाश जी के पुराने दोस्त, जो दिल्ली में एक बड़ी कंपनी में ऊंचे पद पर थे, उनके पास एक रिश्ता लेकर आए। लड़का मोहित दिल्ली के एक प्रतिष्ठित और अमीर परिवार से था। मोहित एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर था और उसके परिवार को दहेज की कोई लालच नहीं थी। वे केवल एक अच्छी, पढ़ी-लिखी और संस्कारी बहू चाहते थे। कैलाश जी को यह रिश्ता सुनकर थोड़ी घबराहट हुई क्योंकि उन्हें लगा कि उनकी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं कि वे इस परिवार के बराबर खड़े हो सकें। पर उनके दोस्त ने उन्हें तसल्ली दी कि चौहान परिवार पैसे से ज्यादा इंसानियत को महत्व देता है।

कुछ दिनों बाद मोहित और उसके माता-पिता खुशी को देखने आए। खुशी और मोहित की बातचीत में दोनों एक-दूसरे के सरल और ईमानदार स्वभाव से प्रभावित हुए। मोहित को खुशी की सादगी और पिता के प्रति सम्मान बहुत भाया, जबकि खुशी मोहित की जमीन से जुड़ी सोच और संवेदनशीलता से खुश हुई। रिश्ता पक्का हो गया और शादी की तारीख तय हुई।

जैसे-जैसे शादी का दिन नजदीक आया, कैलाश जी की खुशी चिंता में बदलने लगी। वे चाहते थे कि शादी में कोई कमी न हो, ताकि उनकी बेटी को अपने ससुराल में गर्व महसूस हो। उन्होंने अपनी सारी बचत, पेंशन के पैसे जोड़कर शादी की तैयारियां शुरू कीं, लेकिन खर्च उनकी पहुंच से बाहर था। यह चिंता उनके स्वाभिमान को भीतर से खा रही थी। वे रात-रात भर जागकर हिसाब लगाते, चिंता करते।

खुशी अपने पिता की बेचैनी देख रही थी। उसने कई बार उनसे बात की कि मोहित और उसके परिवार को शादी के खर्चों से कोई फर्क नहीं पड़ता, वे एक साधारण शादी करना चाहते हैं। लेकिन कैलाश जी मानने को तैयार नहीं थे। वे कहते, “बेटा, यह सब तुम मुझ पर छोड़ दो। एक पिता का फर्ज होता है कि वह अपनी बेटी की शादी में कोई कमी न रखे।”

एक रात कैलाश जी ने एक बड़ा फैसला किया। उन्होंने अपने सपनों के घर ‘आंचल’ को बेचने का मन बना लिया। यह उनके लिए आत्मा को बेचने जैसा था। वह घर, जिसे उन्होंने अपनी पत्नी की याद में बनवाया था, जिसमें उनकी बेटी का बचपन बीता था, जिसकी हर दीवार पर उनकी यादें थीं। लेकिन बेटी की शादी की इज्जत के लिए यह बलिदान उन्हें छोटा लग रहा था। उन्होंने यह बात किसी को नहीं बताई, यहां तक कि खुशी को भी नहीं।

उन्होंने शहर के एक प्रॉपर्टी डीलर से संपर्क किया। घर की अच्छी लोकेशन की वजह से खरीदार आसानी से मिल गया। सौदा तय हो गया और रजिस्ट्री की तारीख शादी से ठीक दो दिन पहले रखी गई। कैलाश जी ने घर खाली करने के लिए एक हफ्ते का वक्त मांगा। जब उन्होंने सौदे के कागजों पर दस्तखत किए, तो वह घर लौटकर बहुत रोए। उन्होंने घर की हर दीवार को छुआ जैसे अपनी पत्नी की आत्मा से माफी मांग रहे हों।

इधर, खुशी ने अपनी नौकरी के सिलसिले में तहसील जाना था, जहां उसकी नजर उसी प्रॉपर्टी डीलर पर पड़ी। वह डीलर किसी से फोन पर बात कर रहा था और कह रहा था कि विद्यानगर वाला सौदा पक्का हो गया है, पोस्ट मास्टर साहब अपनी बेटी की शादी के लिए मजबूरी में घर बेच रहे हैं। खुशी के कानों में यह शब्द पिघले हुए शीशे की तरह गूंजे। वह कांपती हुई वहां से भागी और मोहित को सारी बात बताई।

मोहित ने खुशी को हिम्मत दी कि वे पिता के स्वाभिमान को ठेस पहुंचाए बिना इस समस्या का हल निकालेंगे। उसने अपने एक करीबी वकील दोस्त से मदद ली और योजना बनाई। खुशी ने पिता के कमरे से घर के सौदे के कागजात की तस्वीरें खींचकर मोहित को दीं। मोहित ने वकील के साथ मिलकर खरीदार और डीलर का पता लगाया।

मोहित ने अपने पिता, श्री अवधेश चौहान, को पूरी स्थिति बताई। अवधेश जी भी कैलाश जी के स्वाभिमान के कायल थे और मदद के लिए तुरंत तैयार हो गए। अगले दिन मोहित और उसके पिता खरीदार से मिले और उसे एक आकर्षक प्रस्ताव दिया कि वह सौदा रद्द कर दे, और बदले में उन्हें एक दूसरी बेहतर प्रॉपर्टी उसी दाम में देंगे, साथ ही नुकसान की भरपाई भी करेंगे।

खरीदार भी समझदार था, उसने बिना हिचकिचाए सौदा रद्द कर दिया। अब चुनौती थी कि कैलाश जी तक यह बात बिना बताए घर को बचाया जाए। मोहित ने वकील दोस्त को एक अनजान शुभचिंतक बनाकर डीलर के पास भेजा। वकील ने डीलर से कहा कि वह कैलाश जी का पुराना हितैषी है और वह घर खरीदना चाहता है, लेकिन घर हमेशा कैलाश जी के नाम पर रहेगा और वे इसमें आजीवन रह सकेंगे।

नया एग्रीमेंट तैयार हुआ और घर के नए मालिक का नाम गुप्त रखा गया। मोहित ने अपने पैसों से अपने ससुराल वाले का घर वापस खरीद लिया था। शादी से ठीक एक दिन पहले डीलर कैलाश जी के पास आया और बताया कि पुराने खरीदार ने सौदा रद्द कर दिया है, लेकिन एक नया खरीदार है जो उन्हें अच्छी कीमत देगा और वे हमेशा इसी घर में रह सकेंगे।

कैलाश जी हैरान थे, उन्हें लगा जैसे यह भगवान का चमत्कार है। उन्होंने नए कागजों पर दस्तखत किए और उनके सिर से बड़ा बोझ उतर गया। अब उन्हें सुकून था कि वे अपनी पत्नी की यादों वाले इस घर में अपनी आखिरी सांस तक रह सकेंगे।

शादी का दिन आया। कैलाश जी ने खुशी की शादी की हर रस्म पूरे दिल से निभाई। उनके चेहरे पर सुकून और खुशी थी। उन्होंने बेटी को राजकुमारी की तरह विदा किया। विदाई के भावुक पल में खुशी ने अपने पिता को गले लगाकर रोते हुए एक लिफाफा दिया और कहा, “पापा, यह आपके लिए है, प्लीज इसे मेरे जाने के बाद खोलिएगा।”

डोली उठ गई और घर खाली हो गया। कैलाश जी आंगन में अमरूद के पेड़ के नीचे बैठे, उनकी आंखों से आंसू बह रहे थे। उन्होंने लिफाफा खोला तो उसमें घर के नए रजिस्ट्री के कागजात थे, जिन पर साफ लिखा था—”श्री कैलाश जी कुमार”। एक छोटे से खत में खुशी ने लिखा था कि मोहित और उसने यह सब उनके स्वाभिमान को बचाने के लिए किया है। यह घर उनकी जिंदगी भर की मेहनत, त्याग और प्यार का सम्मान था।

कैलाश जी कुर्सी से नीचे बैठ गए और बच्चे की तरह फूट-फूट कर रोने लगे। यह आंसू दुख के नहीं, बल्कि गर्व, खुशी और सम्मान के थे। उन्हें लगा कि वे दुनिया के सबसे अमीर और भाग्यशाली पिता हैं।

यह कहानी हमें सिखाती है कि बेटियां बोझ नहीं, बल्कि परिवार का मान होती हैं। वे अपने माता-पिता के स्वाभिमान के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं। खुशी और मोहित ने साबित किया कि रिश्ते सिर्फ लेने का नहीं, देने का नाम हैं। उन्होंने दिखावे की दुनिया से परे जाकर एक पिता के मौन बलिदान को समझा और उसे उसका सम्मान लौटाया।