मैकेनिक ने 24 घंटे काम करके आर्मी ट्रक को ठीक किया और पैसे तक नहीं लिए, फिर जब…

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जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग, जो भारत की जीवन रेखा माना जाता है, बर्फीले पहाड़ों और खतरनाक मोड़ों से भरा हुआ है। इस सड़क की सुरक्षा और सुचारु संचालन के लिए भारतीय सेना दिन-रात तैनात रहती है। इसी वीरान सड़क के बीच, रामबन और बनिहाल के बीच, एक छोटी सी दुकान है – रफीक ऑटोवॉक्स। यह दुकान टिन की चादरों से बनी है, जिसके ऊपर धुंधले अक्षरों में लिखा है ‘रफीक ऑटोवॉक्स 24 घंटे सेवा’। इस दुकान का मालिक रफीक अहमद है, एक 40 वर्षीय मैकेनिक जिसकी सादगी और मेहनत उसकी आंखों में झरनों जैसी साफ झलकती है।

रफीक पिछले 15 वर्षों से इसी दुकान को संभाल रहा है। उसकी दुनिया बहुत छोटी है – दुकान और उसके पीछे एक छोटा सा कमरा, जहां वह अपनी पत्नी जरीना और 12 वर्षीय बेटे इरफान के साथ रहता है। इरफान सातवीं कक्षा में पढ़ता है और उसका सपना भारतीय सेना में भर्ती होना है। जब भी सड़क से सेना के ट्रक गुजरते हैं, इरफान की आंखों में चमक आ जाती है। रफीक अपने बेटे के इस सपने को जानता है और उस पर गर्व भी करता है, लेकिन गरीबी और संसाधनों की कमी उसकी चिंता का कारण हैं।

रफीक की दुकान इस वीरान सड़क पर मुसाफिरों के लिए किसी वरदान से कम नहीं। चाहे कोई ट्रक ड्राइवर हो, पर्यटक हो या सेना का जवान, अगर किसी की गाड़ी खराब हो जाती है तो रफीक का दरवाजा उनके लिए हमेशा खुला रहता है। वह दिन हो या रात, बर्फबारी हो या तूफान, वह कभी मदद करने से मना नहीं करता। खासकर सेना के जवानों के लिए उसके दिल में एक अलग ही इज्जत है, क्योंकि वह उन्हें देश का रक्षक मानता है।

मैकेनिक ने 24 घंटा काम करके फौजी ट्रक ठीक किया , और पैसे भी नहीं लिए , फिर  जब फौजी कुछ माह बाद

एक दिसंबर की ठंडी शाम को, जब रफीक अपनी दुकान बंद करने की तैयारी कर रहा था, तभी एक जवान दौड़ता हुआ आया। वह बुरी तरह हाफ रहा था और उसके कपड़े बर्फ से भीगे हुए थे। वह सूबेदार बलविंदर सिंह के नेतृत्व में सेना का जवान था। उसने बताया कि उनकी गाड़ी, एक स्टालियन ट्रक, सड़क के बीचों-बीच खराब हो गई है। उस ट्रक में सेना के लिए जरूरी सामान था, जिसे सुबह तक श्रीनगर पहुंचाना था।

रफीक ने बिना देर किए अपने औजार उठाए और जवानों के साथ बर्फ में पैदल चलकर उस जगह पहुंचा। उसने ट्रक का निरीक्षण किया और बताया कि क्लच प्रेशर पाइप फट गया है और गियर बॉक्स का ऑयल सील लीक हो रहा है। उसके पास दुकान में पूरा सामान नहीं था, इसलिए कुछ जुगाड़ करना पड़ेगा। मौसम की वजह से काम में कम से कम 7-8 घंटे लगेंगे।

सूबेदार बलविंदर सिंह ने वायरलेस से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन बर्फबारी के कारण सिग्नल नहीं मिल रहा था। वे पूरी तरह से दुनिया से कट चुके थे। उनकी एकमात्र उम्मीद रफीक था। उन्होंने कहा, “ठीक है रफीक, तुम अपना काम शुरू करो। तुम्हें जो भी मदद चाहिए बताना। हमारे जवान तुम्हारे साथ हैं।”

रफीक ने ट्रक के नीचे लेटकर काम शुरू किया। बर्फीली जमीन उसकी हड्डियों तक कंपा रही थी, लेकिन वह अडिग था। जवान टॉर्च और इमरजेंसी लाइट लेकर खड़े थे। जरीना घर से गरम-गरम चाय और रोटियां लेकर आईं। वह जवानों को दुकान में बैठने के लिए कहती, ताकि वे ठंड से बच सकें। सूबेदार और उनके साथी बारी-बारी से दुकान में जाकर आग तापते और फिर वापस रफीक की मदद के लिए आते। वे देख रहे थे कि रफीक किस लगन और जुनून से काम कर रहा था। वह सिर्फ मैकेनिक नहीं, बल्कि एक फौजी की तरह मिशन पर था।

रात गुजरती गई। बर्फबारी तेज हो गई। रफीक के हाथ कई जगह से छिल गए थे, लेकिन वह रुका नहीं। सूबेदार ने कई बार आराम करने को कहा, लेकिन उसने मुस्कुरा कर मना कर दिया। उसने कहा, “आप लोग अपनी जान हथेली पर रखकर हमारी हिफाजत करते हैं, क्या मैं आपके लिए एक रात भी नहीं जाग सकता?” उसकी यह बात सूबेदार के दिल को छू गई।

सुबह के करीब पांच बजे, रफीक ट्रक के नीचे से बाहर निकला। उसके कपड़े ग्रीस और मिट्टी से सने थे, चेहरा थका हुआ था, लेकिन आंखों में मिशन पूरा करने की चमक थी। उसने सूबेदार को चाबी दी और कहा, “हो गया साहब, एक बार स्टार्ट करके देख लीजिए।”

सूबेदार ने ट्रक स्टार्ट किया। इंजन ने एक बार में जोरदार दहाड़ लगाई। जवानों के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। उन्होंने जोश से भारत माता की जय का नारा लगाया और रफीक को कंधों पर उठा लिया। रफीक झिझका, “मैंने तो सिर्फ अपना फर्ज निभाया है।”

सूबेदार ने पर्स निकालकर कहा, “रफीक, मैं जानता हूं तुम्हारी मेहनत का कोई मोल नहीं है, लेकिन यह हमारी तरफ से एक छोटा सा धन्यवाद है।” रफीक ने हाथ पकड़कर कहा, “नहीं साहब, यह कहकर मुझे शर्मिंदा मत कीजिए। मैंने सिर्फ अपना फर्ज निभाया है। आपकी दुआएं ही मेरी सबसे बड़ी कमाई हैं।”

सूबेदार बलविंदर सिंह निशब्द रह गए। उन्होंने रफीक को गले लगा लिया, “तुम सिर्फ एक मैकेनिक नहीं, एक सच्चे हिंदुस्तानी हो। हम तुम्हारा एहसान जिंदगी भर नहीं भूलेंगे।” जवानों ने रफीक और उसके परिवार का शुक्रिया अदा किया और अपने मिशन पर आगे बढ़ गए। रफीक उन्हें तब तक देखता रहा जब तक उनका ट्रक आंखों से ओझल नहीं हो गया।

चार महीने बीत गए। जिंदगी फिर से अपनी पुरानी रफ्तार पर लौट आई। रफीक अपनी दुकान में मशरूफ था और इरफान अपनी पढ़ाई में। इरफान अक्सर अपने अब्बू से उन फौजी अंकल के बारे में पूछता और अपने अब्बू पर गर्व करता।

एक दिन दोपहर को रफीक की दुकान पर वही सेना का ट्रक रुका। सूबेदार बलविंदर सिंह और उनके कुछ साथी उतरे। रफीक की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वह दौड़ा और सबसे गले मिला। सूबेदार ने मुस्कुरा कर कहा, “आज हम चाय पीने नहीं, बल्कि चाय का कर्ज उतारने आए हैं।”

रफीक कुछ समझ नहीं पाया। सूबेदार ने इरफान को अपने पास बुलाया, जो स्कूल से लौटकर खड़ा था। उन्होंने सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा, “क्या यह तुम्हारा बेटा है?” रफीक ने कहा, “जी साहब, इरफान है।”

सूबेदार ने गंभीर आवाज में कहा, “रफीक, उस रात जब हम फंसे हुए थे, तो मैंने तुम्हारे बेटे की आंखों में एक सपना देखा था और तुम्हारी आंखों में उस सपने को पूरा करने की चिंता। तुमने उस रात हमारी मदद करके हम पर और इस देश पर एक बहुत बड़ा एहसान किया था। आज हम उस एहसान का एक छोटा सा हिस्सा चुकाने आए हैं।”

उन्होंने एक फाइल रफीक को दी, “यह इरफान का एडमिशन फॉर्म है, जम्मू के आर्मी पब्लिक स्कूल का। हमने वहां के प्रिंसिपल से बात कर ली है। अब से उसकी पढ़ाई, रहने-खाने का खर्च भारतीय सेना उठाएगी।”

रफीक के आंखों से आंसू बहने लगे, “साहब, यह आप क्या कह रहे हैं? हम इतने बड़े एहसान के काबिल नहीं हैं।”

सूबेदार ने कहा, “यह एहसान नहीं, तुम्हारा हक है। जो इंसान देश के जवानों की इतनी कदर करता है, उसके बच्चों के भविष्य की कदर करना देश का भी फर्ज है। हम सिर्फ इरफान को पढ़ाएंगे नहीं, बल्कि सुनिश्चित करेंगे कि जब वह बड़ा हो, तो उसे सेना में भर्ती होने का हर मौका मिले। हम उसे ऐसा अफसर बनाएंगे जिस पर तुम भी गर्व करोगे और यह देश भी।”

रफीक और जरीना दोनों हाथ जोड़कर खड़े थे, उनकी आंखों से आंसू बह रहे थे। इरफान दौड़ा और सूबेदार के गले लग गया। सूबेदार ने कहा, “तुमने कहा था कि तुम सिर्फ अपना फर्ज निभा रहे हो। आज हम अपना फर्ज निभा रहे हैं। एक फौजी दूसरे फौजी के परिवार का हमेशा ख्याल रखता है, और तुम हमारे लिए किसी फौजी से कम नहीं हो।”

समय बीता। इरफान ने अपनी पढ़ाई पूरी की और नेशनल डिफेंस एकेडमी (NDA) के लिए चयनित हो गया। जिस दिन उसने पहली बार भारतीय सेना की वर्दी पहनी, उस दिन रफीक और जरीना की खुशी का ठिकाना नहीं था। उस समारोह में सूबेदार बलविंदर सिंह, जो अब सूबेदार मेजर बन चुके थे, विशेष रूप से आए। उन्होंने लेफ्टिनेंट इरफान अहमद को सलाम किया, “जय हिंद सर।”

इरफान की आंखों में आंसू थे। उसने अपने पहले गुरु, अपने अब्बू, और दूसरे गुरु, सूबेदार मेजर बलविंदर सिंह, दोनों के पैर छुए। आज लेफ्टिनेंट इरफान भारतीय सेना की एक प्रतिष्ठित रेजीमेंट में देश की सेवा कर रहा है।

रफीक अहमद आज भी उसी वीरान सड़क पर अपनी छोटी सी दुकान में देश के जवानों की गाड़ियां ठीक करता है। लेकिन अब उसकी आंखों में चिंता नहीं, बल्कि गहरा संतोष और अनमोल गर्व है।

यह कहानी हमें सिखाती है कि देश प्रेम और देश सेवा सिर्फ वर्दी पहनकर सरहदों पर लड़ना ही नहीं है। रफीक जैसे गुमनाम नायक, जो अपने छोटे-छोटे कामों से निस्वार्थ भाव से देश के रक्षकों की मदद करते हैं, वे उतने ही बड़े देशभक्त हैं। यह कहानी भारतीय सेना के उस जज्बे को भी सलाम करती है, जो न सिर्फ दुश्मनों से लड़ना जानती है, बल्कि अपने लोगों के एहसानों को याद रखना और उन्हें ब्याज समेत लौटाना भी जानती है।

देशभक्ति का मतलब सिर्फ शस्त्र उठाना नहीं, बल्कि अपने देश के लिए हर संभव योगदान देना है। रफीक की कहानी हर भारतीय के लिए प्रेरणा है कि सच्चा देशभक्त वही है जो दिल से देश को प्यार करता है और अपने कर्तव्य को पूरी निष्ठा से निभाता है।