मौलवी ने जवान लड़की को पहाड़ से नीचे क्यों गिराया? मौलवी और जवान लड़की पहाड़ी इलाके में…

हिमाचल की रहस्यमयी रातें

हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी इलाके में ऊँचे और सन्नाटे से भरे जंगलों के बीच एक लकड़ी का पुराना सा घर बना हुआ था। घर की छत पर बर्फ की सफेद चादर बिछी रहती थी और चारों ओर देवदार के पेड़ों की खुशबू हवा में फैली रहती थी। यही घर उस इलाके की सबसे पुरानी इमारत थी, जिसके बारे में गाँव वाले कहते थे कि यहाँ कभी कोई साधारण इंसान नहीं रहता। उसी घर में एक बुजुर्ग मौलवी साहब अकेले रहा करते थे। उनका चेहरा झुर्रियों से भरा, आँखों में गहराई, चाल में तसल्ली और आवाज में सुकून था। उनकी जिंदगी सादगी और खामोशी से भरी थी।

पहाड़ की चोटी पर सिमरन

सुबह का वक्त था। सूरज की हल्की किरणें पहाड़ों पर बिखर रही थीं। मौलवी साहब रोज की तरह अपने घर से बाहर निकले, तो उनकी नजर एक अजीब मंजर पर पड़ी। सामने पहाड़ की ऊंची चोटी पर एक नौजवान हसीन लड़की खड़ी थी और उसके पीछे गहराई में हजारों फीट खाई थी। वह लड़की सिमरन थी, जो कुछ दिनों से गाँव के लोगों को भी अजनबी लगने लगी थी। उसकी आँखों में गहरी उदासी थी और चेहरे पर थकावट।

यह नजारा इतना हैरान कर देने वाला था कि मौलवी साहब बगैर कुछ सोचे दौड़ पड़े। अभी लड़की छलांग लगाने ही वाली थी कि मौलवी साहब ने पीछे से उसके बाजू को पकड़ कर उसे अपनी तरफ खींच लिया। लड़की ने झटके से उन्हें पीछे धक्का दिया और गुस्से में बोली, “तुमने मुझे रोकने की हिम्मत कैसे की? तुम होते कौन हो मेरी जिंदगी में दखल देने वाले?”

मौलवी साहब ने नरमी से कहा, “आखिर क्या कर रही हो बेटी? बताओ तो सही। शायद मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूं।” सिमरन की आँखें आँसुओं से भरी थीं। उसने कहा, “मदद? तुम क्या मदद करोगे मेरी? मेरा शौहर गुम हो गया है और मेरे अपने घर वालों ने मुझे निकाल दिया है। अब मेरे पास ना कोई ठिकाना है, ना कोई सहारा।”

मौलवी साहब कुछ पल उसे देखते रहे। फिर उसके हाथ की कलाई थाम कर बोले, “चलो मेरे साथ।” सिमरन सहम गई, “कहाँ?” मौलवी साहब ने सिर्फ इतना कहा, “बस चलो।” वे उसका हाथ पकड़कर ऊँचे पहाड़ों की ओर चल पड़े।

पुराने घर में कैद

कुछ देर बाद वह उस लकड़ी के घर के दरवाजे पर पहुँचे। मौलवी साहब ने दरवाजा खोला और सिमरन को अंदर ले गए। सिमरन ने घबराकर पूछा, “यह कौन सी जगह है? यह किसका घर है? तुम मुझे यहाँ क्यों लाए हो?” मौलवी साहब ने उसका हाथ छोड़ दिया और दरवाजा अंदर से बंद करके कुंडी लगा दी।

सिमरन डर गई। जोर से चीखी, “तुम यह क्या कर रहे हो? दरवाजा क्यों बंद किया? मुझे यहाँ क्यों ले आए हो? बोलते क्यों नहीं?” उसकी आवाज कमरे में गूंज रही थी। मगर मौलवी साहब चुपचाप बस उसे देख रहे थे। उनके चेहरे पर ताज्जुब का साया था, लेकिन जबान पर खामोशी थी। अचानक उन्होंने दरवाजा खोला और बाहर निकल गए, और बाहर से भी कुंडी लगा दी। सिमरन हड़बड़ा गई। उसने जोर से दरवाजा पीटना शुरू किया, “तुमने मुझे अंदर क्यों बंद किया? कहाँ जा रहे हो? मुझे जवाब दो!” लेकिन मौलवी साहब ने एक लफ्ज भी नहीं कहा और उसी खामोशी के साथ पहाड़ों की तरफ चढ़ते चले गए।

अब रात हो चुकी थी। घर के अंदर सिमरन अकेली और सहमी हुई थी। दरवाजा पीटते-पीटते वह थक चुकी थी। आवाज भर्रा गई थी, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं था। बाहर सिर्फ अंधेरा था और हवा की सरसराहट जो दिल को और भी ज्यादा डरा रही थी।

मौलवी साहब का व्यवहार

अचानक दरवाजे से हल्की सी आवाज आई। सिमरन दौड़ती हुई दरवाजे की तरफ गई। मौलवी साहब अंदर दाखिल हो रहे थे, उसी सुकून भरे अंदाज में। सिमरन ने गुस्से में कहा, “तुमने मुझे यहाँ क्यों लाया? दिन भर बंद करके कहाँ चले जाते हो? मैं कोई कैदी हूँ क्या?” मौलवी साहब उसके करीब आए और बड़े नरम इत्मीनान भरे लहजे में बोले, “डरने की जरूरत नहीं बेटी। इस घर को अब अपना ही समझो। आज के बाद तुम यहीं रहोगी। तुम्हें कहीं और जाने की जरूरत नहीं।”

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उनकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जैसे दिल में कोई राज छुपा हो। सिमरन ने हिचकिचाते हुए कहा, “मैं तुम्हारे साथ कैसे रह सकती हूँ? मेरे अपने तो मुझे पहचानने से भी इंकार कर चुके हैं और तुम एक अजनबी हो। फिर भी इतनी मेहरबानी क्यों कर रहे हो?” मौलवी साहब ने नरमी और तसल्ली से बात की, जिससे सिमरन का दिल थोड़ा पिघल गया। वह लड़की जो जिंदगी से ठुकरा दी गई थी, अब थोड़ा सुकून महसूस कर रही थी और रुकने के लिए तैयार हो गई।

उन्होंने उसे एक पुरानी चारपाई दी और कहा, “यहाँ आराम से सो जाओ।” सिमरन चुपचाप लेट गई। उसकी आँखों में अब भी डर था, लेकिन थकावट ने उसे जल्द ही नींद की आगोश में ले लिया। मौलवी साहब अपने बिस्तर पर तो लेट गए, लेकिन नींद से कोसों दूर थे। उनकी आँखें सिमरन के चेहरे को तलाशती रहीं। कितनी मासूम है, कितनी टूटी हुई और फिर भी कितनी सच्ची। यही सोचते-सोचते वह करवटें बदलते रहे।

रहस्यमयी क्रियाएँ

सुबह का उजाला फैलने लगा। मौलवी साहब उठकर सिमरन के पास आए और काफी देर तक उसका चेहरा देखते रहे। अचानक सिमरन की आँख खुली। उसने झट से अपनी चादर ठीक की और हैरानी से बोली, “क्या बात है? आप यहाँ क्या करने आए हैं?” मौलवी साहब ने नरमी से मुस्कुराकर कहा, “सुबह हो गई है बेटी। उठ जाओ।”

सिमरन उठकर बैठ गई। मगर अब उसकी आँखों में शक और सवाल तैर रहे थे। फिर मौलवी साहब दरवाजे की तरफ गए और बाहर निकलते ही दरवाजे को बाहर से फिर से बंद कर दिया। सिमरन चौंक गई। वह घबरा कर दौड़ती हुई दरवाजे तक आई और जोर से बोली, “अब दरवाजा क्यों बंद कर दिया? क्या बात है?” लेकिन मौलवी साहब ने कुछ नहीं कहा और पहाड़ों की ओर बढ़ने लगे। पीछे से सिमरन दरवाजा पीटती रही, चिल्लाती रही, पर मौलवी साहब जा चुके थे।

दिन बीतते गए। हर रात मौलवी साहब उसके पास बैठते, कुछ पढ़ते और उस पर फूंक मारते। सिमरन डरती, सहमती, पर हर बार मौलवी साहब का व्यवहार रहस्यमय ही रहता। कभी वह उसे पहाड़ों पर ले जाते, कभी घर में बंद कर देते। सिमरन को लगता, कहीं वह पागल तो नहीं। हर रात उसकी बेचैनी बढ़ जाती।

सच्चाई का खुलासा

एक रात, जब सिमरन ने आँखें बंद कर लीं और मौलवी साहब ने फिर कुछ पढ़ा और उस पर फूंक मारी, अचानक उसे लगा किसी ने पीछे से उसके कंधों को पकड़ लिया है और उसकी आँखों पर हाथ रख दिए हैं। उसका दिल तेज धड़कने लगा। जब उसने झटका दिया और पीछे मुड़ी, तो वहाँ मौलवी साहब नहीं बल्कि एक नौजवान खड़ा था। सिमरन की आँखें फटी की फटी रह गईं। फिर वह चिल्लाई, “यह तो मेरा शौहर है!” वो दौड़कर उसके गले लग गई।

उसकी खुशी की कोई हद नहीं थी। फिर अचानक उसने चारों तरफ देखा और पूछा, “वो मौलवी साहब कहाँ गए? क्या तुम उन्हें जानते हो? क्या उन्होंने तुम्हें यहाँ लाकर छोड़ा?” नौजवान चुपचाप खड़ा रहा। हर बात सुनता रहा। जैसे हर लफ्ज उसकी रगों में उतर रहा हो। फिर उसने सिमरन का हाथ थामा और कहा, “चलो मेरे साथ।” वह उसे लेकर उसी लकड़ी के घर में पहुँचा जहाँ कभी एक मौलवी साहब रहा करते थे।

सिमरन ने घर की तरफ देखा और हैरानी से बोली, “यह तो वही घर है ना?” नौजवान चुपचाप खड़ा रहा। कुछ भी नहीं बोला। सिमरन ने दोबारा पूछा, “तुम मुझे यहाँ क्यों लाए हो?” उसने हल्की मुस्कुराहट के साथ कहा, “तुम पहले भी तो यहीं रहती थी। अब भी रह लो।” सिमरन हैरानी से उसका चेहरा देखने लगी, “तुम्हें यह सब कैसे पता?” नौजवान ने नरमी से जवाब दिया, “मुझे सब कुछ पता है। यह घर उसी मौलवी साहब का है। और तुमने यहाँ क्या-क्या देखा, वह भी मुझे मालूम है।”

फिर उसने सिमरन की आँखों में देखा और मुस्कुरा कर पूछा, “तुम्हें क्या लगता है, वो मौलवी साहब कैसे इंसान थे?” सिमरन ने लंबी सांस ली और कहा, “क्या कहूं, अच्छे थे या अजीब? समझ नहीं आता। मगर जो भी करते थे, वह बहुत रहस्यमई था। कभी कुछ पढ़कर मुझ पर फूंकते, कभी पहाड़ों पर ले जाते, कभी घर में बंद कर देते।” नौजवान ने शांत लहजे में कहा, “किसी को पूरी तरह समझे बिना उसके बारे में फैसला नहीं करना चाहिए। हो सकता है उसके पीछे कोई मजबूरी रही हो।”

सिमरन ने धीरे से पूछा, “मगर कैसी मजबूरी? और तुम यह सब कैसे जानते हो? यह सब तो मेरे साथ ही हुआ है।” उसने जवाब दिया, “मैं जानता हूँ, और इससे पहले कि मैं सब कुछ बताऊं, क्या तुम नहीं जानना चाहती कि मैं उस दिन कहाँ चला गया था?”

मौलवी साहब का राज

नौजवान ने कहना शुरू किया, “वो दिन जब मैं घर से निकला और फिर लौट कर नहीं आया। रास्ते में मुझे एक अजीब सी लड़की मिली। वो रहस्यमयी थी। उसने मुझसे कहा कि मुझसे शादी कर लो। मैंने गुस्से में कहा कि मैं पहले से शादीशुदा हूँ और मेरी पत्नी मेरा इंतजार कर रही है। लेकिन उसके चेहरे पर एक अजीब सा डर था। जैसे वह इंसान नहीं कुछ और हो। जब मैंने उसे मना किया, उसने कुछ पढ़ा और मुझ पर फूंक मारी और उसी पल मेरी जिंदगी बदल गई। मैं जो एक नौजवान था पल भर में बूढ़ा बन गया।”

“उसके बाद मैं घर की ओर भागा। लेकिन जब दरवाजे तक पहुंचा तो मेरे मन में ख्याल आया कि इस हालत में तुम मुझे पहचान नहीं पाओगी। एक बूढ़े आदमी की सूरत में कैसे तुम्हारे सामने आऊं। इसलिए मैं वापस लौट गया और उसी जगह गया जहाँ वह रहस्यमयी लड़की मिली थी। मगर अब वहाँ कोई नहीं था। थका हारा लौट रहा था कि रास्ते में एक बुजुर्ग मौलवी मिले। उन्हें सब कुछ बताया। उन्होंने कहा यह काला जादू है लेकिन नेक इरादे और सच्चे दिल के सामने टिक नहीं सकता।”

“उन्होंने मुझे सलाह दी, किसी वीरान जगह में अकेले रहो। अगर तुम्हारी पत्नी सच्चे दिल से तुम्हें ढूंढती हुई वहाँ आ जाए और तुम हर रात उसके पास बैठकर कुछ पढ़कर फूंकते रहो तो एक दिन ऐसा आएगा जब वह तुम्हें गले लगाएगी और वही लम्हा जादू के टूटने का होगा। यही सुनकर मैंने ठान लिया कि मैं इसी रास्ते पर चलूंगा। मैं उस वीराने में मौलवी का रूप धर कर रहने लगा और हर रात तुम्हारे पास बैठकर चुपचाप वहीं पढ़ता रहा। जिस दिन तुमने मुझे गले लगाया उसी पल मेरा जादू टूट गया और मैं फिर वही इंसान बन गया जिसे तुम दिल से चाहती हो।”

अंतिम मोड़

सिमरन यह सब सुनकर स्तब्ध रह गई। उसकी आँखों से आँसू बह निकले। वो बोली, “क्या वो मौलवी तुम थे?” नौजवान ने सर हिलाया, “हाँ, वो मैं ही था।” सिमरन दौड़कर उसके गले लग गई और रोते हुए बोली, “मुझे माफ कर दो। मैं तुम्हें पहचान नहीं पाई।” उसने उसके सिर पर हाथ रखा और कहा, “तुम्हारा कोई कसूर नहीं है। यह सब एक राज था जो मैं छुपा नहीं सकता था। मगर तुमने जो निभाया वो सच्ची मोहब्बत की मिसाल है।”

फिर मुस्कुरा कर पूछा, “अब बताओ मौलवी कैसा था?” सिमरन हँसते हुए बोली, “बहुत अजीब था। लेकिन अब समझ में आया कि वह मौन, रहस्यमयी और अकेला क्यों था? क्योंकि वह तुम थे।” वह जोड़ा जो बरसों पहले बिछड़ गया था आज फिर से मिल गया। एक सच्चे दिल पर ना कोई जादू असर करता है ना कोई छल। सच्चाई और नेक इरादा हर अंधेरे को मिटा देता है।

हर इंसान की जिंदगी में एक कहानी होती है और कभी-कभी चेहरों के पीछे छिपे राज, तकलीफ और तनहाई किसी बड़ी खुशी का रास्ता बन जाते हैं। यही होती है सच्ची मोहब्बत की असली परिभाषा।