यह 15 साल का लड़का गर्मी में कार में बंद रोते हुए बच्चे को देखकर तुरंत कांच तोड़ देता है और फिर…
एक नई शुरुआत: आरव की यात्रा
भाग 1: सुबह की हलचल
दिल्ली की सड़कों पर सुबह का शोर हमेशा कुछ अलग होता है। ऑटो, बसें, और भीड़भाड़ के बीच हर कोई अपनी मंजिल की ओर भाग रहा होता है। उसी भीड़ में एक पंद्रह साल का लड़का, आरव मेहता, अपने स्कूल की ओर दौड़ रहा था। उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें थीं—इतिहास की परीक्षा में देर हो रही थी। उसकी मां ने उसे सुबह जल्दी उठाने की कोशिश की थी, लेकिन देर रात तक पढ़ाई करने के कारण उसकी नींद नहीं खुली।
आरव के घर की दीवारों पर पुरानी तस्वीरें टंगी थीं। उसके पिता का एक फ्रेम था, जिसमें वह सेना की वर्दी में मुस्कुरा रहे थे। आरव के लिए वह तस्वीर प्रेरणा का स्रोत थी। पिता की मृत्यु के बाद उसकी मां ने अकेले ही घर संभाला था। आरव जानता था कि उसकी मेहनत की कीमत क्या है।
स्कूल की ओर भागते हुए उसकी नजर सड़क किनारे फूल बेच रही एक बूढ़ी औरत पर पड़ी। वह रोज उसे देखता था, लेकिन आज उसकी आंखों में अजीब सी बेचैनी थी। आरव ने रुककर पूछा, “क्या हुआ दादी?”
“कुछ नहीं बेटा, बस आज फूल कम बिके हैं,” उसने मुस्कुराने की कोशिश की।
आरव ने अपनी जेब से पांच रुपये निकालकर उसे दे दिए। “आपके फूल सबसे अच्छे हैं,” उसने कहा और आगे बढ़ गया।
भाग 2: एक अप्रत्याशित मोड़
स्कूल पहुंचने के बाद आरव ने देखा कि उसकी दोस्त, सिया, परेशान दिख रही थी। सिया पढ़ाई में तेज थी, लेकिन आज उसकी आंखें सूजी हुई थीं।
“क्या हुआ?” आरव ने पूछा।
“मां की तबियत ठीक नहीं है,” सिया ने धीरे से कहा।
आरव ने उसके कंधे पर हाथ रखा, “अगर तुम्हें किसी मदद की जरूरत हो तो मुझे बताना।”
इतिहास की परीक्षा शुरू हो गई। आरव ने सवालों के जवाब दिए, लेकिन उसका ध्यान बार-बार सिया की ओर जाता रहा। परीक्षा के बाद उसने सिया को घर छोड़ने का फैसला किया। रास्ते में सिया ने कहा, “तुम्हारे जैसे दोस्त कम मिलते हैं।”
घर लौटते वक्त अचानक बारिश शुरू हो गई। दोनों ने एक पुराने पेड़ के नीचे शरण ली। बारिश की बूंदें, मिट्टी की खुशबू, और दिल्ली की हलचल के बीच आरव ने महसूस किया कि छोटी-छोटी चीजें जिंदगी को खूबसूरत बनाती हैं।
भाग 3: एक नया दोस्त
अगले दिन स्कूल में एक नया लड़का आया—नाम था समीर। समीर बहुत चुप रहता था, किसी से बात नहीं करता था। टीचर ने सबको उससे दोस्ती करने को कहा, लेकिन बच्चे उसका मजाक उड़ाने लगे।
आरव को यह अच्छा नहीं लगा। उसने समीर के पास जाकर पूछा, “तुम्हारा घर कहां है?”
समीर ने धीरे से जवाब दिया, “मैं बिहार से आया हूं, पापा की नौकरी बदल गई है।”
आरव ने मुस्कुराकर कहा, “चलो, आज लंच में साथ बैठते हैं।”
धीरे-धीरे समीर ने खुलना शुरू किया। उसने बताया कि उसकी मां बीमार रहती हैं और वह दिल्ली में खुद को अकेला महसूस करता है। आरव ने उसे अपने दोस्तों से मिलवाया और सबको समझाया कि किसी का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए।
एक दिन समीर ने आरव को अपने घर बुलाया। उसका घर छोटा था, लेकिन मां ने बहुत प्यार से खाना बनाया। समीर की मां ने कहा, “तुम्हारे जैसे बच्चे बहुत कम होते हैं।”
आरव ने महसूस किया कि दोस्ती की असली कीमत दिल से मिलती है।
भाग 4: कठिनाई का सामना
एक शाम आरव की मां की तबियत अचानक बिगड़ गई। वह घबराकर पड़ोसियों को बुलाने गया। पड़ोसी अंकल ने उसे अस्पताल ले जाने में मदद की। अस्पताल की सफेद दीवारें, डॉक्टरों की भागदौड़, और इंतजार की बेचैनी ने आरव को भीतर से कमजोर कर दिया।
डॉक्टर ने कहा, “मां को कुछ दिन आराम की जरूरत है।”
आरव ने मां का हाथ पकड़े हुए खुद से वादा किया कि वह उनकी देखभाल करेगा। अगले कुछ दिनों तक उसने घर का काम किया, पढ़ाई की, और मां का ध्यान रखा।
मां ने एक रात उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “तुम मेरे बेटे ही नहीं, मेरी ताकत भी हो।”
भाग 5: एक साहसी कदम
एक दिन स्कूल से लौटते वक्त आरव ने देखा कि सड़क किनारे एक बच्चा रो रहा है। उसके आस-पास कोई नहीं था। आरव ने दौड़कर बच्चे से पूछा, “क्या हुआ?”
“मैं अपनी मां से बिछड़ गया हूं,” बच्चे ने सिसकते हुए कहा।
आरव ने आसपास देखा, एक महिला घबराई हुई सड़क पर दौड़ रही थी।
“मेरा बेटा! किसी ने देखा है?”
आरव ने बच्चे का हाथ पकड़कर महिला के पास पहुंचाया। महिला ने रोते हुए बच्चे को गले लगा लिया।
“तुम्हारा नाम क्या है?” महिला ने पूछा।
“आरव,” उसने मुस्कुराकर जवाब दिया।
महिला ने कहा, “तुमने मेरी दुनिया बचा ली।”
भाग 6: आत्म-खोज की यात्रा
आरव की जिंदगी में बदलाव आने लगा था। अब लोग उसे बहादुर कहते थे। स्कूल में प्रिंसिपल ने उसे सम्मानित किया।
“आरव, तुमने दिखा दिया कि उम्र छोटी हो सकती है, लेकिन दिल बड़ा होना चाहिए।”
आरव ने महसूस किया कि उसकी जिम्मेदारी बढ़ गई है। उसने स्कूल के बच्चों के लिए एक क्लब शुरू किया, जिसमें सब मिलकर समाज सेवा करते थे—सड़क पर कूड़ा साफ करना, गरीब बच्चों को पढ़ाना, और वृद्धाश्रम में बुजुर्गों से मिलना।
एक दिन क्लब के बच्चों ने अस्पताल जाकर मरीजों को फल बांटे। समीर, सिया, और बाकी दोस्त भी साथ थे। अस्पताल की एक नर्स ने कहा, “तुम सब मिलकर बहुत बड़ा बदलाव ला सकते हो।”
भाग 7: जीवन की सच्चाई
एक शाम आरव अपने दोस्तों के साथ पार्क में बैठा था। समीर ने पूछा, “तुम्हें कभी डर नहीं लगता?”
आरव ने मुस्कुराकर जवाब दिया, “डर सबको लगता है, लेकिन अगर हम सही काम करें तो डर कम हो जाता है।”
सिया ने कहा, “तुम्हारे साथ रहकर मुझे भी बहादुरी सीखने का मन करता है।”
आरव ने महसूस किया कि उसके भीतर एक नई ताकत आ गई है। उसने अपने पिता की तस्वीर को देखा और खुद से कहा, “मैं वादा करता हूं कि मैं हमेशा सही काम करूंगा।”
भाग 8: एक कठिन फैसला
स्कूल में एक प्रतियोगिता थी—’सर्वश्रेष्ठ नागरिक’। बच्चों को एक सामाजिक समस्या चुननी थी और उसका समाधान बताना था।
आरव ने ‘बच्चों की सुरक्षा’ विषय चुना। उसने अपने अनुभव साझा किए—कैसे सड़क पर बच्चा खो गया था, कैसे दोस्तों को सहारा देना चाहिए, और समाज में जागरूकता बढ़ानी चाहिए।
उसने अपनी टीम के साथ मिलकर एक पोस्टर बनाया, जिसमें लिखा था—
“हर बच्चा सुरक्षित है, तो समाज सुरक्षित है।”
प्रतियोगिता में उसकी टीम जीत गई। प्रिंसिपल ने कहा, “आरव, तुमने साबित किया है कि नेतृत्व उम्र से नहीं, सोच से आता है।”
भाग 9: एक नई शुरुआत
समय के साथ आरव का क्लब बड़ा हो गया। अब उसमें तीस बच्चे थे। वे हर महीने किसी सामाजिक संस्था में जाते, जरूरतमंदों की मदद करते।
एक दिन क्लब के बच्चों ने एक अनाथालय में किताबें और खिलौने बांटे। वहां के बच्चों ने आरव को घेर लिया।
“भैया, आप फिर कब आएंगे?”
आरव ने मुस्कुराकर कहा, “हम हर महीने आएंगे।”
उस रात उसने अपनी मां से कहा, “मुझे लगता है मैं अब बड़ा हो गया हूं।”
मां ने हंसते हुए जवाब दिया, “बड़ा होने का मतलब जिम्मेदारी लेना है, और तुमने वह बखूबी निभाया है।”
भाग 10: आत्म-साक्षात्कार
एक दिन आरव को स्कूल में भाषण देने के लिए बुलाया गया। उसने मंच पर खड़े होकर कहा—
“हम सबके जीवन में मुश्किलें आती हैं, लेकिन अगर हम मिलकर उनका सामना करें तो सब आसान हो जाता है। मुझे नहीं पता था कि मैं बहादुर हूं, लेकिन जब सही वक्त आया तो मैंने वही किया जो सही था।”
उसके शब्दों ने सबको भावुक कर दिया। टीचर्स और बच्चे तालियां बजाने लगे।
स्कूल के बाद उसकी मां ने उसे गले लगाया।
“तुमने मुझे गर्वित किया है,” मां ने आंसुओं के साथ कहा।
आरव ने मुस्कुराकर जवाब दिया, “मां, यह सब आपकी वजह से है।”
भाग 11: भविष्य की ओर
समय बीतता गया। आरव का क्लब अब पूरे मोहल्ले में प्रसिद्ध हो गया था। लोग उसे सलाह लेने आते थे। उसने एक वेबसाइट बनाई, जिसमें बच्चों की सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी थी।
एक दिन उसे एक ईमेल आया—”आपका काम देखकर मुझे प्रेरणा मिली है। मैं भी अपने शहर में ऐसा क्लब शुरू करना चाहता हूं।”
आरव ने जवाब दिया, “अगर हम सब मिलकर काम करें तो दुनिया बदल सकती है।”
भाग 12: एक नई सुबह
एक सुबह आरव पार्क में टहल रहा था। सूरज की किरणें उसकी आंखों में चमक रही थीं। उसने महसूस किया कि जिंदगी में सबसे बड़ा सुख दूसरों की मदद करने में है।
उसने अपने दोस्तों को बुलाया, “चलो आज फिर किसी की मदद करते हैं।”
सिया ने कहा, “तुम्हारे साथ रहकर मुझे लगता है कि दुनिया में अच्छाई अभी भी बाकी है।”
समीर ने मुस्कुराकर कहा, “हम सब मिलकर बहुत कुछ कर सकते हैं।”
आरव ने आसमान की ओर देखा। उसे अपने पिता की मुस्कान याद आई। उसने मन ही मन कहा, “पापा, मैं आपके सपनों को पूरा करूंगा।”
समाप्त
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