लिफाफा होटल के कूड़ेदान में था, जब सफाई कर्मचारी ने उसे खोला तो उसे पचास लाख रुपये मिले, जब उसने वो वापस किया…

.

.

शंकर की ईमानदारी: कूड़े के ढेर से निकली एक अनमोल कहानी

मुंबई के चमचमाते और आलीशान इलाकों में एक ऐसा होटल था, जिसका नाम था “द रॉयल पैलेस”। यह होटल अपनी भव्यता, शानदार सेवा और महंगे मेहमानों के लिए जाना जाता था। लेकिन इस होटल के चमक-दमक के पीछे एक ऐसी कहानी छुपी थी, जो इंसानियत और ईमानदारी की मिसाल बन गई।

शंकर, 45 वर्ष का एक साधारण सफाई कर्मचारी, पिछले 15 वर्षों से इसी होटल में काम कर रहा था। वह अपनी नौकरी को पूरी निष्ठा और ईमानदारी से करता था। उसकी जिंदगी वैसे तो साफ-सुथरी थी, पर उसकी किस्मत पर गरीबी की गहरी छाया थी। मुंबई के बाहर एक छोटे से किराए के कमरे में, वह अपनी पत्नी पार्वती और 12 साल की बेटी रिया के साथ रहता था। रिया शंकर की आंखों का तारा थी, उसकी पूरी दुनिया थी। लेकिन रिया की तबियत कुछ ठीक नहीं थी। जन्म से ही उसके दिल में एक छोटा सा छेद था, जिसकी वजह से उसे जल्द ऑपरेशन की जरूरत थी। डॉक्टरों ने बताया था कि अगर जल्दी इलाज नहीं हुआ तो उसकी जान को खतरा हो सकता है। ऑपरेशन का खर्चा था लगभग 5 लाख रुपये, जो शंकर और पार्वती के लिए एक पहाड़ जैसा भारी था।

शंकर हर दिन दिन-रात मेहनत करता था। होटल में सफाई के बाद वह पास की सोसाइटी में चौकीदारी भी करता था, जबकि पार्वती पड़ोस के घरों में बर्तन मांजती थी। दोनों अपनी बेटी की जिंदगी बचाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक रहे थे। लेकिन फिर भी, उस भारी रकम के सामने वे असहाय थे।

एक रात की बात है, जब होटल में शांति थी और अधिकांश मेहमान सो चुके थे। शंकर प्रेसिडेंशियल सूट की सफाई कर रहा था, जो होटल का सबसे महंगा कमरा था। वहां मेहमानों ने कई सामान छोड़े थे, जिनमें ज्यादातर फटे-पुराने कागज और कचरा था। शंकर ने कूड़े को एक बड़े बैग में डालना शुरू किया। तभी उसकी नजर एक भूरे रंग के मोटे लिफाफे पर पड़ी, जो कूड़े के ढेर में था। उसने सोचा शायद कोई जरूरी कागज गलती से फेंक दिया गया है।

जैसे ही उसने लिफाफा खोला, उसकी सांसें थम गईं। लिफाफे में मोटी गड्डियों में बंद नोट थे। गिनती करने पर पता चला कि उसमें करीब 50 लाख रुपये थे। शंकर के लिए यह रकम सपनों से भी बड़ी थी। वह सोचने लगा कि यह रकम उसकी बेटी के ऑपरेशन के लिए भगवान की तरफ से भेजा गया उपहार है। उसने लिफाफे को अपनी कमीज के नीचे छिपा लिया और उस रात सोचता रहा कि अब उसकी जिंदगी बदल जाएगी।

लेकिन फिर उसकी मां की सीख याद आई, जो कहती थी, “बेटा, बेईमानी की रोटी खाने से अच्छा है ईमानदारी का भूखा सो जाना। पेट की आग तो बुझ जाती है, लेकिन जमीर की आग को कोई नहीं बुझा सकता।” यह सोचकर शंकर के कदम वहीं रुक गए। वह समझ गया कि चाहे परिस्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो, ईमानदारी से डगमगाना नहीं चाहिए।

अगले दिन शंकर ने फैसला किया कि वह यह पैसा अपने मालिक मिस्टर विक्रम राठौड़ को लौटाएगा। मिस्टर राठौड़ होटल के मालिक थे, और उन्हें गुस्सैल मिजाज के लिए जाना जाता था। शंकर ने कई बार मैनेजर से मिलने की कोशिश की, लेकिन हर बार उसे डांट-फटकार सुननी पड़ी। पर वह हार नहीं माना।

तीसरे दिन, जब वह फिर से मालिक के ऑफिस के बाहर खड़ा था, तो खुद मिस्टर राठौड़ वहां से गुजरे। शंकर ने हिम्मत जुटाकर उनसे बात की और लिफाफा उन्हें सौंप दिया। मिस्टर राठौड़ ने लिफाफा खोला और नोटों को देखकर चौंक गए। उन्होंने कहा, “तुम इसे लेकर भाग सकते थे, कोई तुम्हें रोक नहीं सकता था। फिर भी तुमने ऐसा क्यों नहीं किया?”

शंकर ने सिर झुकाकर कहा, “साहब, मेरी मां कहती थीं कि हराम की दौलत इंसान का सुख चैन छीन लेती है। मैं अपनी बेटी को चोरी के पैसों से मिली जिंदगी नहीं देना चाहता।”

मिस्टर राठौड़ ने शंकर की बात सुनी और उसकी ईमानदारी से प्रभावित हुए। उन्होंने होटल की सुरक्षा कैमरों की फुटेज मंगवाई, जिसमें साफ दिख रहा था कि एक मेहमान लिफाफा कूड़ेदान में फेंक देता है और शंकर उसे पाता है, घबराता है, और रोता है।

फुटेज देखकर मिस्टर राठौड़ ने शंकर को अपने ऑफिस बुलाया और कहा, “तुम्हारी ईमानदारी ने मुझे जिंदगी का सबसे बड़ा सबक सिखाया है। मैं भूल गया था कि दौलत के बीच भी इंसानियत जिंदा है।”

उन्होंने शंकर को 50 लाख रुपये का चेक दिया ताकि वह अपनी बेटी का इलाज करवा सके। इसके साथ ही, शंकर को होटल में हाउसकीपिंग डिपार्टमेंट का असिस्टेंट मैनेजर बना दिया गया, जिसकी तनख्वाह पहले से कई गुना ज्यादा थी। साथ ही, होटल की तरफ से शंकर के परिवार को एक 3 बीएचके फ्लैट भी दिया गया।

शंकर और पार्वती की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। रिया का ऑपरेशन सफल रहा और वह पूरी तरह स्वस्थ हो गई। शंकर की जिंदगी पूरी तरह बदल गई थी।

यह कहानी हमें सिखाती है कि चाहे परिस्थितियां कितनी भी मुश्किल क्यों न हों, ईमानदारी और इंसानियत से कभी समझौता नहीं करना चाहिए। शंकर की तरह अगर हम सही रास्ता चुनें तो सफलता और सम्मान अपने आप हमारे कदम चूमते हैं।