लोग बूढ़े आदमी का मज़ाक उड़ा रहे थे… अगली ही पल एयरपोर्ट बंद हो गया!

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रमेश चंद्र: एक फटे टिकट से उठी आवाज़

सर्दी की एक सुबह थी। दिल्ली हवाई अड्डा अपने रोज़ाना के व्यस्ततम दौर में था। व्यापारी अपने लैपटॉप के साथ भाग-दौड़ कर रहे थे, परिवार छुट्टियों के लिए तैयार हो रहे थे, और चारों ओर चमचमाती रोशनी से सजा वातावरण था। इस भीड़ में एक बुजुर्ग व्यक्ति धीरे-धीरे एयरलाइंस के काउंटर की ओर बढ़ रहा था। उसकी पोशाक साधारण थी — सफेद कुर्ता-पायजामा, ऊपर एक पुराना भूरा स्वेटर, और पैरों में घिसी-पूजी चप्पलें। हाथ में एक प्लास्टिक कवर में रखा हुआ प्रिंटेड टिकट था, शायद किसी ने उसे दिया था।

उसके चेहरे पर शांति थी, लेकिन आँखों में थकान साफ झलक रही थी, जैसे लंबी यात्रा के बाद बस एक पक्की सीट की तलाश हो। वह काउंटर पर खड़ी लड़की से विनम्रता से बोला, “बेटी, यह मेरा टिकट है। क्या यह कंफर्म है? मुझे जयपुर जाना है।”

लड़की ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा, मुंह टेढ़ा किया और बोली, “अंकल, यह रेलवे स्टेशन नहीं है। यहां ऐसे बोर्डिंग नहीं होती। पहले ऑनलाइन चेक-इन करना पड़ता है।”

बुजुर्ग थोड़ा घबरा गया। “बेटी, मुझे यह सब नहीं आता। प्लीज, तुम एक बार देख लो। मेरी बहू अस्पताल में है।”

पास खड़ा एक कर्मचारी हंसते हुए बोला, “अरे, इन जैसे लोगों को टिकट कौन देता है? ये तो बस यूं ही घूमते रहते हैं। अंकल, घर जाइए, यह आपके बस की बात नहीं।”

भीड़ में कुछ लोग देख रहे थे, लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा। किसी को फुर्सत नहीं थी, किसी को यह बात महत्वपूर्ण नहीं लगी। बुजुर्ग ने फिर कहा, “बेटी, बस कंप्यूटर में एक बार चेक कर दो, टिकट असली है।”

इस बार लड़की ने टिकट लिया और बिना देखे उसे फाड़ दिया। जोर से बोली, “सर, कृपया जगह खाली करें। यहां ऐसा नहीं चलता।”

बुजुर्ग स्तब्ध रह गए। उनके हाथ में अब सिर्फ फटा हुआ टिकट का आधा हिस्सा था। उनका चेहरा कुछ पल के लिए खाली हो गया। फिर सिर झुकाकर वे भीड़ में गुम हो गए।

अकेलेपन का सामना

हवाई अड्डे के गेट के पास एक बेंच पर वे बैठ गए। ठंड से उनके हाथ कांप रहे थे, लेकिन चेहरे पर कोई गुस्सा नहीं था। सिर्फ एक स्थिरता। उन्होंने अपने कुर्ते की जेब से एक पुराना कीपैड फोन निकाला, जिसकी स्क्रीन धुंधली हो चुकी थी। एक नंबर डायल किया। उनकी आवाज़ नरम थी, शब्द साफ़।

“हाँ, मैं हवाई अड्डे पर ही हूँ। जैसा डर था वैसा ही हुआ। अब आपसे अनुरोध है, वो आदेश जारी करें। हाँ, अभी।”

कॉल कटने के बाद उन्होंने एक लंबी सांस ली और आँखें बंद कर लीं। अंदर हवाई अड्डे पर हंगामा शुरू हो गया। मैनेजर ने काउंटर कर्मचारियों को बुलाया और सारी बोर्डिंग प्रक्रिया रोक दी गई। फ्लाइट्स की क्लीयरेंस रुक गई। कुछ समस्या हो गई थी।

कुछ मिनट बाद सिक्योरिटी चीफ का फोन बजा। डीजीसीए से कॉल था। आज की सारी फ्लाइट्स रद्द कर दी गईं। कर्मचारी सोचने लगे कि शिकायत किसने की होगी।

तभी एक काली गाड़ी हवाई अड्डे के गेट पर रुकी। उसमें से तीन लोग उतरे — एक सीनियर एयरलाइन अधिकारी, एक निजी सहायक, और एक सीनियर सिक्योरिटी ऑफिसर। बुजुर्ग व्यक्ति अब उस प्रवेश द्वार की ओर बढ़े जहाँ कुछ देर पहले उनका मज़ाक उड़ाया गया था।

सच्चाई का सामना

हवाई अड्डे का माहौल अब वैसा नहीं रहा। जहां कुछ देर पहले चाय की चुस्कियां और हंसी-ठिठोली के बीच फ्लाइट्स की घोषणाएं हो रही थीं, वहां अब सन्नाटा था। बोर्डिंग रुक गई थी। यात्रियों को तकनीकी खराबी का हवाला देकर इंतजार करने को कहा गया था, लेकिन कर्मचारियों को भी असल वजह नहीं पता थी।

तभी बुजुर्ग व्यक्ति फिर काउंटर पर आए। इस बार उनके साथ एयरलाइन के चीफ ऑपरेशंस ऑफिसर, डीजीसीए के एक सीनियर सलाहकार, और एक विशेष सिक्योरिटी ऑफिसर थे। काउंटर के कर्मचारी सन्न रह गए। जिन्होंने उनका मज़ाक उड़ाया था, उनके माथे पर पसीना था।

बुजुर्ग उस काउंटर की ओर बढ़े जहाँ उनका टिकट फाड़ा गया था। उन्होंने कुछ नहीं कहा। बस जेब से एक कार्ड निकाला। उस पर लिखा था:

रमेश चंद्र
वरिष्ठ नागरिक, नागरिक उड्डयन मंत्रालय के सलाहकार
पूर्व चेयरमैन, नागरिक उड्डयन प्राधिकरण

मैनेजर का चेहरा फीका पड़ गया। डीजीसीए के अधिकारी ने गुस्से में कहा, “तुमने इनका अपमान किया और बिना आईडी देखे टिकट फाड़ दिया।”

काउंटर की लड़की के हाथ से फटे टिकट का टुकड़ा गिर गया। रमेश जी ने पहली बार कुछ कहा। उनकी आवाज़ में गुस्सा नहीं, सिर्फ दर्द था।

“मैंने चिल्लाया नहीं क्योंकि मैंने जिंदगी में बहुत कुछ देखा है। लेकिन आज देखा कि मानवता कितनी खोखली हो गई है। तुमने मेरा टिकट नहीं फाड़ा, तुमने सम्मान की उस कीमत को फाड़ा जो इंसानियत में बची थी।”

भीड़ में सन्नाटा छा गया। कुछ लोग मोबाइल से वीडियो बनाने लगे। एयरलाइन का सीनियर मैनेजमेंट आगे आया।

“सर, हम शर्मिंदगी महसूस कर रहे हैं। पूरी टीम माफी मांगती है।”

रमेश जी ने मुस्कुराकर कहा, “सभी से माफी मांगो जो भविष्य में कपड़ों के आधार पर इंसान को जज करेंगे। मेरे जाने के बाद भी कोई यह अपमान ना सहे।”

बदलाव की शुरुआत

तुरंत फैसला लिया गया। जिन दो कर्मचारियों ने टिकट फाड़ा था, उन्हें सस्पेंड कर दिया गया। हवाई अड्डे के सभी कर्मचारियों के लिए वरिष्ठ नागरिकों के सम्मान और भेदभाव न करने की अनिवार्य ट्रेनिंग का आदेश दिया गया। डीजीसीए ने एयरलाइन को एक हफ्ते की चेतावनी दी कि अगर ऐसी घटना दोबारा हुई तो लाइसेंस सस्पेंड होगा।

रमेश जी का चेहरा अब शांत था। उन्होंने ना किसी का अपमान किया, ना बदला मांगा। चुपके से सच के साथ सबको आईना दिखा दिया।

गेट की ओर बढ़ते हुए किसी ने उन्हें नहीं रोका। एक कर्मचारी दौड़ कर आया और बोला, “सर, प्लीज बैठिए। हम आपके लिए स्पेशल लाउंज की व्यवस्था कर रहे हैं।”

रमेश जी ने कहा, “नहीं बेटी, मुझे भीड़ में बैठना अच्छा लगता है। वहां इंसानियत का असली चेहरा दिखता है।”

वेटिंग जोन के एक कोने में वे बैठ गए। सबकी निगाहें उन पर थी, लेकिन अब नजरिया बदल चुका था। कुछ लोग ऑनलाइन उनका नाम सर्च कर रहे थे। कुछ पूछ रहे थे, “यह कौन है?”

एक सादगी भरा जीवन

जिन्हें पता चला, उनके चेहरे पर आश्चर्य था। रमेश चंद्र कोई साधारण बुजुर्ग नहीं थे। वे डीजीसीए की पहली सुधार नीति बोर्ड के चेयरमैन रहे थे। उनके नेतृत्व में भारत ने पहली बार वरिष्ठ नागरिकों के लिए हवाई नीतियां बनाई थीं, जिनसे हजारों बुजुर्गों को फायदा हुआ।

वे बड़े अंतरराष्ट्रीय एयरलाइन प्रोजेक्ट्स के मुख्य सलाहकार थे और पद्म भूषण से सम्मानित थे। लेकिन कभी इसका प्रचार नहीं किया। उनकी पहचान वीआईपी पास में नहीं, उनकी सादगी और नजरिए में थी।

एक पत्रकार ने धीरे से पास जाकर पूछा, “सर, जब आपका अपमान हुआ तब आप चुप क्यों रहे?”

रमेश जी ने हंसकर कहा, “कभी मैंने हवाई अड्डे पर वर्दी पहनकर आदेश दिए थे। आज उसी हवाई अड्डे पर साधारण इंसान बनकर अपमान सहे। जानना चाहता था कि हमारे बनाए नियम सिर्फ फाइलों में हैं या लोगों के दिलों में भी।”

उनका लौटने का मकसद था — एयरलाइन उनकी पुरानी पेंशन फंड कंपनी में निवेशक थी। वे सिर्फ यह देखने आए थे कि इस देश में अब भी बुजुर्गों का सम्मान होता है या नहीं।

इंसानियत की सीख

उनकी नजर में एक सिस्टम की ताकत उसकी तकनीक में नहीं, उसकी संवेदनशीलता में है। जिन कर्मचारियों ने उनका मज़ाक उड़ाया वे अब सिर झुकाए खड़े थे।

रमेश जी ने एक युवा कर्मचारी को पास बुलाया। वह कांप रहा था।

“बेटा, तुमने मेरा टिकट छीना था। जिंदगी में कभी किसी का सम्मान मत छीनना। ये कुर्सियां बदल जाएंगी, लेकिन तुम्हारी सोच ही तुम्हें इंसान बनाएगी या सिर्फ एक मशीन।”

लाउंज के हर यात्री ने आज कुछ सीखा। किसी ने ट्वीट किया, “आज देखा असली ताकत वो है जो चुप रहती है और जरूरत पड़ने पर एक कॉल से पूरा सिस्टम हिला देती है।”

एक बुजुर्ग महिला ने हंसकर कहा, “वे अकेले नहीं थे। उनके साथ उनका पूरा अनुभव था।”

अंत में

विस्तारा फ्लाइट 304 बोर के लिए बोर्डिंग शुरू हो चुकी थी, लेकिन आज यात्रियों में वह जल्दबाजी नहीं थी जो आमतौर पर होती है। सबकी नजर उस बुजुर्ग पर थी जिन्होंने एक फटे टिकट से पूरे सिस्टम को हिला दिया था।

रमेश जी धीरे से उठे, अपना पुराना फीका बैग उठाया जिसमें इतिहास का वजन था, और गेट की ओर बढ़े। रास्ते में वही मैनेजर था जिसने उनका अपमान किया था। हाथ जोड़कर खड़ा था।

“सर, प्लीज एक बार माफ कर दीजिए।”

रमेश जी रुके। उनकी आँखों में देखकर बोले, “माफ कर दूंगा, लेकिन एक शर्त पर — हर उस यात्री से माफी मांगो जिसे तुम्हारी बातों से ठेस पहुंची, और हर बुजुर्ग को नम्रता से देखो जो तुम्हारे सिस्टम की चुप बेंचों पर बैठे हैं।”

गेट पर पहुंचते ही एयरलाइन की सीनियर टीम फूलों का गुलदस्ता और वीआईपी कुर्सी लेकर इंतजार कर रही थी। उन्होंने हंसकर मना कर दिया।

“मैं वीआईपी नहीं हूँ। मैं एक याद दिलाने वाला इंसान हूँ। बुढ़ापा बोझ नहीं, समाज की नींव है।”

नीचे वे कर्मचारी, जिनकी वजह से यह हंगामा शुरू हुआ, अब भी उस फटे टिकट को देख रहे थे। उनमें से एक ने धीरे से कहा, “हमने उनका टिकट नहीं फाड़ा, हमने अपनी सोच की परतें फाड़ी। इंसान की पहचान उसके कपड़ों में नहीं, उन घावों में है जो वह चुपचाप सहता है और फिर भी हंसकर माफ कर देता है। जिसे तुम साधारण समझते हो, वही तुम्हारी आखिरी उम्मीद हो सकता है। सम्मान ऊंचे पद के लिए नहीं, इंसानियत के लिए होना चाहिए।”

समाप्त।