शादी की तैयारी चल रही थी… पर बहू पकड़ी गई रंगेहाथ, फिर जो हुआ किसी ने सोचा नहीं था
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रंगे हाथ पकड़ी गई बहू – एक रहस्यमयी हत्या की कहानी
प्रस्तावना
उत्तराखंड के देहरादून जिले के श्यामपुर गाँव में कमला देवी का परिवार बहुत ही प्रतिष्ठित और खुशहाल माना जाता था। उनके पास करोड़ों की संपत्ति थी, दो बेटे – राजेंद्र और दीपक, और एक प्यारा पोता भास्कर। दीपक सेना में कार्यरत था, राजेंद्र खेती-बाड़ी देखता था। परिवार में सबसे छोटी बहू चंचल थी, जो पढ़ी-लिखी, सुंदर और फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर रही थी। सब कुछ सामान्य लग रहा था, लेकिन इसी परिवार में एक ऐसा तूफान आने वाला था, जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी।
शादी की तैयारी और रहस्य की शुरुआत
कमला देवी की सबसे बड़ी चिंता थी कि राजेंद्र की गृहस्थी फिर से बस जाए। उसका तलाक हो चुका था और भास्कर उसके साथ ही रहता था। कमला चाहती थीं कि भास्कर को माँ का प्यार मिले और राजेंद्र को जीवन में सहारा। उन्होंने कई रिश्तेदारों से बात की, लेकिन राजेंद्र की उम्र और बेटे की वजह से कोई रिश्ता नहीं बन पा रहा था।
आखिरकार पिथौरागढ़ में एक रिश्ता मिला। परिवार को लड़की और उसके घर वाले पसंद आए। तय हुआ कि कमला, राजेंद्र और भास्कर लड़की देखने जाएंगे। दीपक से बात हुई, उसने भी अपनी माँ को शुभकामनाएँ दीं। 27 नवंबर 2015 की सुबह तीनों कार से पिथौरागढ़ के लिए रवाना हुए।
गुमशुदगी और सनसनी
शाम तक जब दीपक ने माँ को फोन किया तो मोबाइल स्विच ऑफ मिला। अगली सुबह भी कोई संपर्क नहीं हुआ। चिंता बढ़ी तो दीपक छुट्टी लेकर पत्नी चंचल के साथ घर आ गया। खुद खोजबीन की, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला। पुलिस में गुमशुदगी दर्ज कराई गई।
28 नवंबर को उनकी कार रामपुर जिले के बिलासपुर इलाके में लावारिस मिली। कार में सामान सुरक्षित था, लेकिन एटीएम की पर्ची काशीपुर की थी। CCTV फुटेज में राजेंद्र और कमला दिखे, उनके साथ एक लंबा युवक भी था। बाद में पता चला वह सिक्योरिटी गार्ड था। पुलिस को उम्मीद थी कि परिवार काशीपुर तक सुरक्षित था।
भास्कर का शव और जांच की दिशा
सितारगंज में सिडकुल के पास एक बच्चे का शव मिला। पोस्टमार्टम के बाद पता चला वह भास्कर था। कमला और राजेंद्र का कोई सुराग नहीं था। पुलिस ने तीन टीमें गठित कीं। सबसे बड़ा सवाल था – ड्राइवर कौन था? परिवार के आस-पास के लोगों से पूछताछ की, लेकिन कोई जानकारी नहीं मिली। संपत्ति के विवाद की भी जांच की गई, लेकिन सब ठीक था।
राजेंद्र के मोबाइल की कॉल डिटेल्स खंगाली गईं, लेकिन कोई संदिग्ध नंबर नहीं मिला। पुलिस ने पूर्व ससुराल वालों से भी पूछताछ की, लेकिन वहाँ से भी कुछ नहीं मिला। जांच अब शक के आधार पर आगे बढ़ रही थी।
शवों की बरामदगी और जांच का नया एंगल
7 दिसंबर को पुलिस ने भास्कर के शव मिलने वाली जगह के आसपास तलाशी अभियान चलाया। दो और शव मिले – कमला और राजेंद्र के। अब पुलिस के पास तीन एंगल थे – ड्राइवर, संपत्ति और प्रेम प्रसंग। पुलिस ने अब प्रेम प्रसंग वाले एंगल पर ध्यान देना शुरू किया।
चंचल की कॉल डिटेल्स निकाली गईं। घटना वाले दिन उसके मोबाइल पर संजय पंत के नंबर से एसएमएस आए थे। संजय गाँव का ही युवक था, जो पड़ोस में रहता था। पुलिस ने उसकी लोकेशन ट्रैक की – वह घटना वाले दिन राजेंद्र के मोबाइल के साथ-साथ सितारगंज तक गया था। अब पुलिस को यकीन हो गया कि संजय ही ड्राइवर था। चंचल और संजय के बीच लगातार बातचीत होती थी।
साजिश का खुलासा
पुलिस ने संजय को गिरफ्तार किया। पूछताछ में वह पुलिस को चुनौती देने लगा। चंचल को भी हिरासत में लिया गया। दोनों के मोबाइल से घटना वाले दिन के एसएमएस गायब थे। पुलिस को यकीन हो गया कि दोनों ने सबूत मिटाए हैं। गहराई से पूछताछ की गई तो सच्चाई सामने आ गई – पूरे परिवार का कातिल संजय था और साजिश में चंचल भी शामिल थी।
डेढ़ साल पहले चंचल और संजय के बीच नजदीकियाँ बढ़ी थीं। दीपक सेना में तैनात था, चंचल अकेलापन महसूस करती थी। संजय ने इसका फायदा उठाया। दोनों का रिश्ता मर्यादा की सीमाएँ लांघने लगा। कमला देवी को शक हुआ और उन्होंने दोनों को समझाया, लेकिन वे नहीं माने। चंचल ने माफी माँगी, कमला ने परिवार की शांति के लिए मामला दबा दिया।
हत्या की योजना और क्रूरता
धीरे-धीरे चंचल और संजय को लगने लगा कि परिवार उनके अवैध रिश्ते के रास्ते की सबसे बड़ी बाधा है। संजय की सोच आपराधिक थी और चंचल पूरी तरह उसके रंग में रंग चुकी थी। संजय चाहता था कि दीवारें गिर जाएँ – उसका इरादा सिर्फ चंचल से शादी करने का नहीं था, बल्कि करोड़ों की संपत्ति हथियाने का भी था।
27 नवंबर को संजय ने ड्राइवर बनने का प्रस्ताव रखा। कमला, राजेंद्र और भास्कर को कार में बैठाकर पिथौरागढ़ के लिए निकला। रास्ते में उसने माउजर और चाकू साथ रखे थे। हरिद्वार के पास दीपक का फोन आया, कमला ने बात की। काशीपुर में एटीएम से पैसे निकाले। आगे बढ़े तो रास्ता सुनसान था।
सिडकुल के पास संजय ने कार रोक दी। राजेंद्र को बहाने से बाहर बुलाया और सिर में गोली मार दी। शव झाड़ियों में छिपा दिया। कमला को बहाने से बुलाया और उसे भी गोली मार दी। दोनों शव छिपा दिए। भास्कर को जगाया, बहाने से झाड़ियों की ओर ले गया और चाकू से उसकी हत्या कर दी।
अंतिम योजना और गिरफ्तारी
चंचल और संजय की योजना थी कि मामला ठंडा हो जाए तो दीपक को भी ठिकाने लगा दें। लेकिन इससे पहले ही पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया। माउजर बेचने वाले अनिल को भी पकड़ लिया गया। संजय के खिलाफ हत्या, अपहरण और साक्ष्य छुपाने की धाराओं में मुकदमा दर्ज हुआ। चंचल और अनिल के खिलाफ साजिश रचने का मामला बना। सभी आरोपी अदालत में पेश किए गए और जेल भेज दिए गए।
दीपक का दर्द और गाँव की प्रतिक्रिया
दीपक को यकीन नहीं था कि उसकी पत्नी इस हत्याकांड में शामिल थी। गाँव में इस घटना ने सनसनी फैला दी। लोग हैरान थे कि कैसे एक पढ़ी-लिखी बहू, जो सबका ख्याल रखती थी, इतनी बड़ी साजिश में शामिल हो सकती है। कमला देवी की उम्र के आखिरी पड़ाव पर ऐसी दर्दनाक मौत, राजेंद्र का विश्वासघात, और मासूम भास्कर की हत्या – सब कुछ लोगों के लिए अविश्वसनीय था।
गाँव में चर्चा होने लगी – क्या संपत्ति का लालच इंसान को इतना अंधा कर सकता है? क्या अकेलापन और गलत संगति किसी को अपराधी बना सकती है? क्या परिवार के भीतर छिपा हुआ जहर इतना घातक हो सकता है?
न्याय और संदेश
अदालत ने संजय को उम्रकैद की सजा सुनाई। चंचल को साजिश और सबूत मिटाने के आरोप में दस साल की सजा मिली। अनिल को हथियार सप्लाई करने के लिए पाँच साल की सजा दी गई। दीपक ने अपने बेटे भास्कर की याद में गाँव के स्कूल में एक पुस्तकालय बनवाया, ताकि बच्चे पढ़ें और कभी गलत रास्ते पर न जाएँ।
यह कहानी हमें सिखाती है कि परिवार में विश्वास, संवाद और पारदर्शिता सबसे जरूरी है। अकेलापन, लालच और गलत संगति इंसान को बर्बाद कर सकती है। रिश्तों की मर्यादा और परिवार की इज्जत बचाना हर सदस्य का कर्तव्य है। अगर कोई गलती करे, तो उसे समय रहते सुधारना चाहिए, वरना परिणाम बहुत भयावह हो सकते हैं।
समाप्त
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