शादी के दिन दूल्हे वालों ने दुल्हन की बहनों के साथ की छेड़खानी, फिर दुल्हन ने जो किया देख सभी के होश

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लखनऊ के एक छोटे से मोहल्ले में श्रीवास्तव जी का घर था, जो प्यार और संस्कारों से भरा हुआ था। श्रीवास्तव जी एक सरकारी दफ्तर से रिटायर्ड थे और उन्होंने अपनी तीन बेटियों की परवरिश में अपनी सारी मेहनत और बचत लगा दी थी। उनकी पत्नी शारदा जी एक ममतामई गृहणी थीं, जो हमेशा परिवार की खुशियों का ध्यान रखती थीं। उनकी सबसे बड़ी बेटी, पूनम, 27 साल की थी। वह न केवल खूबसूरत थी, बल्कि समझदार और पढ़ी-लिखी भी थी। उसने एमबीए किया था और एक अच्छी कंपनी में नौकरी कर रही थी।

पूनम की छोटी बहनें पूजा और आरती थीं। पूजा 20 साल की थी और कॉलेज में पढ़ाई कर रही थी, जबकि आरती 17 साल की थी और स्कूल में पढ़ती थी। तीनों बहनों में गहरा प्यार था। पूनम, पूजा और आरती एक-दूसरे की सबसे अच्छी दोस्त थीं और हमेशा एक-दूसरे का साथ देती थीं।

कई महीनों की तलाश के बाद, पूनम का रिश्ता कानपुर के एक बड़े कारोबारी वर्मा परिवार में तय हुआ। लड़का राहुल था, जो अपने पिता का बिजनेस संभालता था। राहुल देखने में अच्छा, पढ़ा-लिखा और समझदार था। दोनों परिवारों ने इस जोड़ी को सही माना और शादी की तैयारियां शुरू हो गईं।

शादी का दिन आ गया। श्रीवास्तव जी का घर सुबह से ही मेहमानों, ढोल की थाप और मंगल गीतों से गूंज रहा था। घर को गेंदे के फूलों और रंग-बिरंगी रोशनियों से सजाया गया। पूनम सुर्ख लाल रंग के शादी के जोड़े में अपनी बहनों और सहेलियों के साथ बैठी हुई थी, और उसकी आंखों में नए जीवन के सपने थे।

शाम को बारात आई। राहुल एक सजी-धजी घोड़ी पर बैठा था। बारात का स्वागत बहुत धूमधाम से हुआ। सब कुछ परंपरा के अनुसार चल रहा था। लेकिन राहुल के दोस्तों और भाइयों का व्यवहार कुछ अजीब था। उन्होंने मजाक मस्ती के नाम पर कई बार हदें पार कीं।

शादी की रस्मों के दौरान, विक्की और सुमित, जो राहुल के करीबी दोस्त थे, ने दुल्हन की बहनों के साथ बेतुके मजाक किए। पूजा और आरती को देखकर उन्होंने गंदे कमेंट्स किए, जो उन्हें बहुत बुरा लगा। पूनम ने यह सब देखा, लेकिन उसने सोचा कि शादी में थोड़ा बहुत ऐसा चलता है। लेकिन यह तो बस शुरुआत थी।

जब पूनम को जयमाला के लिए मंच पर लाया गया, तो विक्की और सुमित ने राहुल को अपने कंधों पर इतना ऊपर उठा लिया कि पूनम का हाथ उसके तक पहुंच नहीं पा रहा था। राहुल इस सब पर हंस रहा था, और पूनम को अपमानित महसूस हुआ।

अब मजाक मस्ती का दौर धीरे-धीरे बदतमीजी में बदलने लगा। जूता छिपाई की रस्म के दौरान, विक्की ने शरारती अंदाज में कहा कि पहले डांस करना होगा। पूजा को बहुत अजीब लगा, लेकिन जीजाजी के कहने पर उसने मना नहीं किया। जब पूजा नाचने लगी, तो विक्की और सुमित ने जानबूझकर उसके करीब आने की कोशिश की। पूजा घबरा गई और वहां से भाग गई।

खाने के समय, सुमित ने आरती को रोक लिया और उसके हाथ को पकड़ लिया। आरती ने घबराकर अपना हाथ छुड़ाया और वहां से भाग गई। पूनम यह सब देख रही थी, और उसका गुस्सा बढ़ता जा रहा था। लेकिन उसने अपने माता-पिता की इज्जत और शादी की रस्मों की वजह से चुप रहना बेहतर समझा।

फेरों का समय आया। पूनम को मंडप में बुलाया गया। जब वह मंडप में पहुंची, तो सभी लोग उसे देखकर हैरान रह गए। पंडित जी ने कहा, “बेटी, फेरों का मुहूर्त निकला जा रहा है। दूल्हे को बुलाओ।” पूनम ने सबकी तरफ देखा और फिर अपनी पूरी ताकत से ऊंची आवाज में कहा, “पंडित जी, अब कोई फेरे नहीं होंगे। मैं यह शादी नहीं कर रही हूं।”

यह सुनते ही पूरे मंडप में सन्नाटा छा गया। सभी लोग स्तब्ध रह गए। श्रीवास्तव जी घबराकर पूनम के पास आए और कहा, “पूनम, यह क्या कह रही हो?” पूनम ने अपने पिता की आंखों में देखते हुए कहा, “पापा, मेरा दिमाग आज ही तो ठीक हुआ है। आज ही तो मेरी आंखें खुली हैं।”

राहुल के पिता वर्मा जी गुस्से से चिल्लाए, “यह क्या बकवास है? शादी वाले दिन मंडप में यह सब तमाशा करने का क्या मतलब है?” पूनम ने कहा, “तमाशा तो आप लोगों ने बना रखा है। मेरी बहनों की इज्जत का। आपने अपने बेटों और उनके दोस्तों को औरतों की इज्जत करना नहीं सिखाया। पर मेरी मां ने मुझे आत्मसम्मान के लिए लड़ना सिखाया है।”

उसने एक-एक करके हर घटना को बयान किया। उसने बताया कि कैसे मजाक के नाम पर उसकी बहनों को छुआ गया और उन पर गंदी फब्बियां कसी गईं। फिर उसने राहुल की तरफ इशारा करते हुए कहा, “और यह हैं आपके लायक बेटे जो यह सब तमाशा अपनी आंखों से देखते रहे और रोकने के बजाय हंसते रहे।”

पूनम की बातें सुनकर वहां मौजूद हर शख्स स्तब्ध रह गया। श्रीवास्तव जी और शारदा जी का सिर शर्म और दुख से झुक गया था, लेकिन अपनी बेटी की हिम्मत पर गर्व भी महसूस कर रहे थे। वर्मा परिवार के पास अब कहने के लिए कुछ नहीं था। उनका सारा घमंड एक पल में चूर-चूर हो गया था।

श्रीवास्तव जी ने अपनी बेटी के पास आए और कहा, “तुमने जो फैसला किया है, वह बिल्कुल सही है। हमें ऐसी जगह अपनी बेटी नहीं बहानी चाहिए जहां उसकी और उसके परिवार की इज्जत ना हो।” उन्होंने वर्मा जी की तरफ हाथ जोड़कर कहा, “आप अपनी बारात वापस ले जा सकते हैं।”

सुनकर वर्मा परिवार का सिर शर्म से झुक गया। दूल्हे के पिता ने सभी लड़कों को खरी-खोटी सुनाई, लेकिन अब गंगा बह चुकी थी। उन्होंने दुल्हन के पिता से माफी भी मांगी, लेकिन श्रीवास्तव जी ने शादी के लिए राजी नहीं हुए।

बारात बेरंग लौट गई। ढोल ताशे, रोशनियां सब एक मातम के सन्नाटे में बदल गए। पूनम ने एक साहसिक कदम उठाया और अपने आत्मसम्मान की रक्षा की। उसकी कहानी हर लड़की के लिए एक प्रेरणा बन गई।

यह कहानी हमें यह सिखाती है कि हमें अपनी इज्जत और आत्मसम्मान के लिए कभी भी समझौता नहीं करना चाहिए। पूनम ने समाज की लोकलाज की परवाह किए बिना अपने और अपने परिवार के सम्मान को चुना। उसने एक रात में अपनी शादी तोड़ दी, लेकिन अपनी पूरी जिंदगी को टूटने से बचा लिया।

यह संदेश हर उस लड़के और मर्द के लिए है जो मजाक और बदतमीजी के बीच का फर्क भूल जाते हैं। हमें यह याद रखना चाहिए कि औरतों का सम्मान करना हमारी संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है।

अगर आपने पूनम की इस हिम्मत भरी कहानी को पसंद किया है, तो इसे अपने दोस्तों और परिवार के साथ साझा करें ताकि औरतों का सम्मान करने का यह जरूरी संदेश हर घर तक पहुंच सके।