सड़क किनारे जलेबी बेचने वाली दादी के लिए उठ खड़ी हुई आईपीएस!हकीकत जैसी कहानी – भ्रष्टाचार के खिलाफ
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आईपीएस प्रिया मिश्रा: न्याय की मिसाल
सुबह की हल्की धूप और एक साधारण महिला
सुबह की हल्की धूप में हरे रंग का सलवार सूट पहने एक साधारण सी महिला सब्जी मंडी की ओर बढ़ रही थी। उसके चेहरे पर कोई खास पहचान नहीं थी, न ही उसके हाव-भाव में कोई रौब। लोग उसे देखकर बस यही सोचते—शायद वह भी रोज की तरह सब्जी लेने आई है। लेकिन कोई नहीं जानता था कि यह आम दिखने वाली महिला दरअसल जिले की आईपीएस प्रिया मिश्रा है। आज प्रिया ने जानबूझकर ऐसा रूप लिया था ताकि कोई उसे पहचान न सके। वह अपनी पुरानी यादों में खोई हुई थी। अचानक उसके मन में आया—क्यों ना आज पुराने दिनों की तरह सड़क किनारे वाले ठेले से गरमागरम जलेबियां खाई जाएं।
बचपन की यादें और जलेबी का स्वाद
थोड़ा आगे बढ़ते ही उसकी नजर सड़क किनारे एक छोटे से ठेले पर पड़ी, जहां करीब 50 साल की दुबली पतली बुजुर्ग महिला, शांति देवी, जलेबियां बेच रही थी। प्रिया धीरे-धीरे चलते हुए ठेले के पास पहुंची और मुस्कुरा कर बोली, “दादी, तीन गरमागरम जलेबी दीजिए।” शांति देवी ने तुरंत मुस्कुराते हुए कढ़ाई से जलेबियां निकाली और झटपट गरमागरम रसीली जलेबियां प्लेट में परोस दीं। जैसे ही प्रिया ने पहला कौर लिया, उसके चेहरे पर सुकून और खुशी झलक उठी। बचपन से ही उसे जलेबियों का बहुत शौक था और आज सड़क किनारे की वही साधारण सी जलेबी उसे पुराने दिनों की यादों में ले गई।
लेकिन ड्यूटी और व्यस्त जिंदगी की वजह से उसे ऐसा मौका बहुत कम मिलता था। वह चुपचाप जलेबी के स्वाद का मजा ले ही रही थी कि तभी अचानक वहां एक सब इंस्पेक्टर, विक्रम सिंह, अपने सिपाहियों के साथ आया और ठेले के पास रुक कर जोर से चिल्लाया, “अरे ओ बूढ़ी औरत, जल्दी से पैसे निकाल!”

शांति देवी पर पुलिस का अत्याचार
अचानक आवाज सुनकर शांति देवी घबरा गई। उसके हाथ कांपने लगे। वह घबराई हुई बोली, “साहब, अभी तो दिन की शुरुआत है। अभी तक मैंने कुछ कमाया भी नहीं। ग्राहक भी बस अभी आए हैं। शाम को आ जाइए तब दे दूंगी। अभी सच में पैसे नहीं हैं।”
यह सुनते ही सब इंस्पेक्टर विक्रम सिंह आग बबूला हो गया। उसने बिना कुछ सोचे समझे उस महिला के गाल पर जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। यह नजारा देखकर आईपीएस प्रिया मिश्रा का खून खौल उठा। उसने तुरंत आगे बढ़कर सख्त आवाज में कहा, “रुकिए सब इंस्पेक्टर साहब, आप इनसे किस बात के पैसे मांग रहे हैं और क्यों? किस हक से आपने इन्हें थप्पड़ मारा? आपको कोई अधिकार नहीं है किसी गरीब मेहनतकश महिला के साथ ऐसा व्यवहार करने का।”
आईपीएस प्रिया मिश्रा का सामना
सब इंस्पेक्टर विक्रम सिंह ने घूरते हुए प्रिया से कहा, “तुम कौन होती हो बीच में बोलने वाली? तुम्हें पता भी है बात क्या है? ज्यादा बोलेगी तो अभी यहीं गिरफ्तार कर लूंगा। चुपचाप खड़ी रहो।”
प्रिया ने गुस्से में आंखें तड़ते हुए जवाब दिया, “देखिए, आप जो कर रहे हैं, वह बिल्कुल गलत है। कहीं भी कानून में नहीं लिखा है कि आप गरीबों से वसूली करें। आप इस महिला पर जुल्म कर रहे हैं और इसका अंजाम आपको भुगतना पड़ेगा। सुधर जाइए।”
यह सुनते ही सब इंस्पेक्टर विक्रम सिंह और भड़क गया। उसने अपना आपा खो दिया और प्रिया के गाल पर एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। थप्पड़ इतना तेज था कि प्रिया थोड़ा लड़खड़ा गई, लेकिन तुरंत खुद को संभाल लिया। उसकी आंखों में अब गुस्से की ज्वाला थी। उसने चिल्लाते हुए बोला, “आपने मुझ पर हाथ उठाया है। अब मैं आप पर एफआईआर दर्ज करवाऊंगी।”
पुलिस का क्रूर व्यवहार और प्रिया का संकल्प
विक्रम सिंह हंस पड़ा और धमकी भरे लहजे में बोला, “एफआईआर तुझे समझ नहीं आया? अगर ज्यादा बोली तो इतना मारूंगा कि घर तक नहीं जा पाएगी। निकल यहां से वरना धक्के मार कर भगा दूंगा।” इतना कहकर वह फिर से जलेबी बेचने वाली शांति देवी की ओर मुड़ा। उसने उसका कॉलर पकड़ लिया और चीखते हुए बोला, “अबे औरत, ज्यादा होशियारी मत कर। जल्दी से पैसे निकाल वरना तेरा ठेला यहीं सड़क पर तोड़ दूंगा।”
यह कहते ही सब इंस्पेक्टर ने गुस्से में ठेले पर एक जोरदार लात मार दी। ठेला उलट गया और सारी जलेबियां सड़क पर बिखर गईं। बेचारी शांति देवी डर के मारे कांप उठी। उसकी आंखों से आंसू छलक पड़े। वह घुटनों के बल बैठकर बिखरी हुई जलेबियां समेटने लगी और रोते हुए बुदबुदाने लगी, “हे भगवान, यह क्या हो गया?”
तभी सब इंस्पेक्टर विक्रम सिंह गुस्से में अपना डंडा उठाता है और शांति देवी की पीठ पर जोर से दे मारता है। महिला दर्द से चीख उठती है और हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगती है, “साहब, मैं सच कह रही हूं। अभी तक कुछ कमाया ही नहीं। शाम को आइएगा, जो भी कमाऊंगी दे दूंगी। प्लीज मुझे मत मारिए। प्लीज माफ कर दीजिए।”
यह दृश्य देखकर प्रिया मिश्रा का खून खौल उठा। वह और सहन नहीं कर सकी। गुस्से से आगे बढ़कर बोली, “मां जी, आपको किसी से माफी मांगने की जरूरत नहीं है। यह लोग गरीबों पर जुल्म ढा रहे हैं और इन्हें जरा भी शर्म नहीं आती। बड़ी मुश्किल से आप जैसे लोग ठेला लगाकर अपना और अपने परिवार का पेट पालते हैं और यह पुलिस वाले आपकी मेहनत की कमाई लूटते हैं। सब इंस्पेक्टर साहब, अब मैं आपको आपकी औकात दिखाकर ही रहूंगी।”
अपमान और गुस्सा
सब इंस्पेक्टर ठहाका मारते हुए बोला, “तेरी इतनी हिम्मत, तू मुझे औकात दिखाएगी? तेरी औकात ही क्या है? मेरे सामने जा अपना काम कर। ज्यादा बकवास करेगी तो इतना मारूंगा कि चलने लायक नहीं बचेगी।” इतना कहकर सब इंस्पेक्टर और उसके साथ खड़े हवलदार हंसते हुए वहां से लौटने लगे। जाते-जाते सब इंस्पेक्टर ने मुड़कर शांति देवी को घूरते हुए धमकी दी, “शाम को फिर आऊंगा। अगर पैसे नहीं मिले तो ना तू बचेगी और ना तेरा ठेला। समझ गई ना?”
यह कहकर वह लोग वहां से चले गए। प्रिया तुरंत शांति देवी के पास गई और झुक कर प्यार से बोली, “मां जी, आप ठीक हैं ना? टेंशन मत लीजिए। आप घर जाइए। इन पुलिस वालों को सबक सिखाना अब मेरा काम है।”
शांति देवी की आंखों से आंसू बह निकले। कांपते हुए स्वर में बोली, “बेटा, तूने मेरे लिए इतना क्यों किया? मेरे ही चक्कर में तुझे मार पड़ी। तू क्या कर लेगी उनका? वो पुलिस वाले हैं। सालों से हम गरीबों पर जुल्म करते आ रहे हैं। हम कुछ नहीं कर पाए। तू भी कुछ नहीं कर पाएगी। छोड़ दे यह सब।”
प्रिया ने गहरी सांस ली। उसकी आंखों में आग और चेहरे पर दृढ़ संकल्प साफ झलक रहा था। “नहीं मां जी, अब बहुत हो गया। आप नहीं जानती मैं क्या कर सकती हूं। इन लोगों को उनके गुनाहों की सजा दिलवा कर ही रहूंगी। आप फिक्र मत कीजिए। बस घर जाइए और आराम कीजिए।”
थाने में न्याय की लड़ाई
प्रिया मिश्रा सीधा घर पहुंची। सड़क पर हुई सारी बातें उसके दिमाग में घूमने लगीं। उसे महसूस हो रहा था कि पानी सिर से ऊपर जा चुका है। यह पुलिस वाले वर्दी की आड़ में भेड़िए बन चुके हैं। अब उसने मन ही मन ठान लिया—अब इन्हें छोड़ना नहीं है। सबसे पहले इस सब इंस्पेक्टर पर रिपोर्ट दर्ज कराऊंगी और इसे सस्पेंड करवा कर रहूंगी।
अगली सुबह प्रिया मिश्रा ने खुद को बिल्कुल साधारण महिला के रूप में तैयार किया। जामुनी रंग की सलवार सूट पहनी और बिना किसी पहचान के थाने पहुंच गई। जैसे ही अंदर दाखिल हुई तो देखा सामने लकड़ी के काउंटर के पीछे हेड कांस्टेबल राहुल कुमार ऊंघ रहा था। उसकी तोंद मेज पर टिकी हुई थी और मुंह से खर्राटों की हल्की आवाज आ रही थी। एक कोने में दो और सिपाही बैठे थे। चाय की चुस्कियां लेते हुए जोर-जोर से हंस रहे थे। माहौल देखकर प्रिया के मन में गुस्सा और दुख दोनों उमड़ पड़ा।
प्रिया ने सख्त आवाज में कहा, “सुनिए राहुल!” राहुल कुमार की नींद टूटी। उसने चिढ़कर आंखें खोली और प्रिया को ऊपर से नीचे तक घूरा। उसकी आंखों में मदद का भाव नहीं बल्कि वही पुरानी घृणा और अहंकार था। हेड कांस्टेबल राहुल कुमार गुर्राया, “क्या है इस वक्त? क्या करने आई है यहां?”
प्रिया ने शांत लेकिन दृढ़ स्वर में जवाब दिया, “मैं यहां रिपोर्ट लिखवाने आई हूं।” हेड कांस्टेबल ने ऊंची आवाज में पूछा, “रिपोर्ट किसके खिलाफ और किसके लिए?”
प्रिया ने कहा, “तुम्हारे खिलाफ। क्योंकि उस गरीब औरत के लिए जिसे तुम लोगों ने सड़क पर जलेबी बेचते समय सताया था और उस मेहनत की कमाई के लिए जिसे तुम लोगों ने लात मारकर सड़क पर बिखेर दिया था और मैं जब रोकने गई तो मुझे भी मारा।”
यह सुनते ही राहुल कुमार जोर से हंस पड़ा। उसकी हंसी में क्रूरता थी। वह बोला, “रिपोर्ट तू लिखवाएगी मेरे खिलाफ रिपोर्ट? अरे पगली, यहां इंसाफ नहीं चलता। यहां चलता है राहुल कुमार का डंडा। चल भाग यहां से नहीं तो थाने के अंदर कर दूंगा।”
एएसपी दीपक वर्मा का अहंकार
तभी अंदर के कमरे का दरवाजा जोर से खुला और एक दीपक वर्मा नाम का एएसपी थाने के अंदर आया। उसकी आंखों में इंसानियत की जगह सिर्फ अहंकार और क्रूरता झलक रही थी। उसने प्रिया को देखा और अपनी मूछों पर ताव देते हुए गुर्राया, “क्या हो रहा है राहुल? यह कौन लड़की है?”
राहुल कुमार ने लापरवाही से जवाब दिया, “कुछ नहीं साहब, यह वही है जो उस जलेबी बेचने वाली औरत के मामले को लेकर आई है। भगा रहा हूं इसे।” दीपक वर्मा धीरे-धीरे प्रिया के पास आया। उसने उसे ऐसे देखा जैसे वह कोई कीड़ा-मकोड़ा हो। उससे पूछा, “क्या नाम है तेरा?”
प्रिया ने दृढ़ स्वर में कहा, “प्रिया मिश्रा और मैं यहां रिपोर्ट लिखवाने आई हूं।” दीपक वर्मा तुर्शी से हंस पड़ा और बोला, “देख, हमारे पास फालतू कामों के लिए वक्त नहीं है। सुबह से आकर ड्रामा करने चली आई। चल निकल यहां से वरना इसी हवालात में बंद कर दूंगा।”
प्रिया अपनी जगह से हिली नहीं। उसकी आंखों में वही आक्रोश और संकल्प झलक रहा था। यह देखकर दीपक वर्मा का पारा चढ़ गया। उसने गुस्से में कहा, “सुना नहीं तूने?” इतना कहकर उसने हाथ उठाया और पूरी ताकत से प्रिया को धक्का दे दिया। प्रिया सीधे जमीन पर गिर पड़ी। उसके सिर में मेज के कोने से हल्की चोट लगी। एक पल के लिए उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा गया। लेकिन दर्द से भी बड़ा था अपमान का घाव।
आईपीएस की असली पहचान
एक आईपीएस ऑफिसर जिसके सामने खड़े होने की किसी की हिम्मत नहीं होती, आज एक मामूली एसपी के अहंकार ने उसे जमीन पर गिरा दिया था। प्रिया के अंदर का गुस्सा अब लावा बनकर उबल रहा था। उसे साफ दिख चुका था—यह लोग वर्दी के लायक नहीं हैं। यह वर्दी सिर्फ गरीबों को रौंदने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
प्रिया जमीन पर से उठी और गुस्से में बोली, “तुम दोनों का हाल ऐसा करूंगी कि तुम दोनों पानी पीने लायक भी नहीं रहोगे।” इतना सुनते ही एएसपी दीपक ने प्रिया को धक्का देकर थाने से बाहर निकाल दिया। यह सब देखकर अंदर खड़े सिपाही ठहाके लगाने लगे। उनमें से एक बोला, “देखो, बड़ी आई थी गरीबों की हमदर्द। देखो, कैसे सर झुका कर जा रही है।”
प्रिया मिश्रा ने अपमान और गुस्से को भीतर समेट लिया। उसकी आंखों में आंसू तो थे लेकिन उनमें आग भी थी। उसने मन ही मन कठोर संकल्प लिया, “अब इन्हें मैं छोडूंगी नहीं। इन सबको उनकी सजा ऐसी दूंगी कि वह सपने में भी नहीं सोच सकते।”
न्याय की सुबह और वर्दी का सम्मान
फिर अगली सुबह का नजारा पूरे शहर के लिए हैरान कर देने वाला था। सूरज की पहली किरणों के साथ ही सड़क पर सायरनों की गूंज फैल गई। दो पुलिस जीपें सबसे आगे रास्ता साफ करती हुई चल रही थीं। उनके पीछे काले शीशों वाली आईपीएस प्रिया मिश्रा की ऑफिशियल गाड़ी थी और उसके ठीक पीछे दो और पुलिस वाहन सुरक्षा घेरे में थे। पूरा इलाका सन्नाटे में डूब गया। लोग घरों की खिड़कियों और दुकानों से झांक कर देखने लगे कि आखिर शहर में इतना बड़ा काफिला क्यों निकला है।
जैसे ही काफिला थाने के मुख्य दरवाजे पर आकर रुका, गाड़ियों के दरवाजे एक साथ खुले। आईपीएस प्रिया पूरी गरिमा के साथ चमकदार सफेद रंग की आधिकारिक वर्दी पहने टोपी सिर पर सटी हुई गाड़ी से उतरी। उनके साथ बड़े-बड़े पुलिस अधिकारी दोनों ओर खड़े हो गए। थाने के बरामदे में खड़े वही सिपाही जो कल तक उस पर हंस रहे थे, अब इस नजारे को देखकर मानो पत्थर के बुत बन गए। उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। आंखें फटी की फटी रह गईं और होंठ सूख कर एकदम चुप हो गए।
ईएसपी दीपक वर्मा अपने डेस्क पर बैठा कुछ फाइलें देख रहा था और हेड कांस्टेबल राहुल कुमार उसके बगल में खड़ा था। दोनों को जरा भी अंदाजा नहीं था कि आज उनका सबसे बुरा दिन आने वाला है।
जनता के सामने न्याय
प्रिया ने बिना किसी को देखे सीधी नापतल वाली चाल में थाने के अंदर कदम रखा। उनकी वर्दी की चमक और चारों तरफ गूंजता सन्नाटा सब कुछ बयां कर रहा था। प्रिया की आंखें सीधी दीपक पर जाकर ठहरी। दीपक ठिठक कर खड़ा हो गया। चेहरे की रंगत उड़ चुकी थी। उसके दिमाग में वही कल का मंजर घूम गया—वही लड़की जिसे उसने इस थाने से धक्के देकर बाहर निकाला था, अपमानित किया था, अब वही लड़की आज इस थाने में आईपीएस बनकर खड़ी थी। दीपक के बगल में खड़ा राहुल कुमार भी हक्का-बक्का रह गया। उसके चेहरे पर भी डर साफ झलक रहा था।
प्रिया ने ठंडी लेकिन बेहद सख्त आवाज में कहा, “क्या हुआ? चेहरे का रंग क्यों उतर गया? याद है ना? जब मैं जलेबी बेच रही शांति देवी के साथ किए गए कुकर्म को देखकर रिपोर्ट लिखवाने आई थी तो यहीं से धक्के मारकर निकाला था मुझे। आज उसी दरवाजे से वापस आई हूं। फर्क बस इतना है कि कल मैं साधारण कपड़ों में आम लोगों की तरह बनकर आई थी और आज आईपीएस की वर्दी में हूं।”
दीपक और राहुल के पास कोई जवाब नहीं था। दोनों के चेहरे झुके हुए थे। प्रिया ने सख्त स्वर में कहा, “तुम दोनों ने गरीबों पर जुल्म ढाया है। कानून की मर्यादा तोड़ी है। अब तुम्हें जनता के सामने शर्मिंदा होकर अपनी औकात याद करनी होगी।”
अंतिम न्याय और सजा
उन्होंने पीछे खड़े हुए वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को तुरंत आदेश दिया, “दोनों की वर्दी उतारो और सर्विस रिवॉल्वर जमा करो।” वर्दी उतरवाने के बाद आईपीएस प्रिया मिश्रा ने और भी सख्त आदेश दिया, “अब इन दोनों को वहीं बाजार ले जाओ जहां वह बुजुर्ग महिला शांति देवी जलेबी बेच रही थी और जनता के सामने इनसे माफी मंगवाई जाए।”
पूरा थाना और सुरक्षा काफिला बाजार की ओर बढ़ा। बाजार में लोगों की भारी भीड़ इकट्ठा हो गई थी। वहीं शांति देवी अपने जलेबी बेच रही थी। प्रिया ने भीड़ के सामने कहा, “याद रखो, जो गरीबों का हक मारता है उसका यही हश्र होता है।”
फिर उन्होंने एईएसपी दीपक वर्मा और हेड कांस्टेबल राहुल कुमार को कहा, “अब झुको और इन बुजुर्ग महिला से माफी मांगो।” भीड़ सन्नाटे में खड़ी देख रही थी। दोनों अपराधियों ने कांपते हाथ जोड़कर वृद्धा से माफी मांगी। लेकिन सजा यहीं खत्म नहीं हुई। आईपीएस प्रिया मिश्रा ने अगले ही पल आदेश दिया, “अब इन्हें सफेद गंजी और हाफ पैंट में पूरे बाजार में दौड़ाया जाए। आगे-आगे यह दोनों भागेंगे और पीछे-पीछे मेरा काफिला चलेगा। ताकि लोग देखें कि सत्ता का दुरुपयोग करने वालों का अंजाम क्या होता है।”
कुछ ही देर बाद पूरा शहर यह नजारा देख रहा था। आगे-आगे दीपक वर्मा और राहुल कुमार पसीने-पसीने होकर अपमानित दौड़ रहे थे और पीछे-पीछे आईपीएस प्रिया मिश्रा की शाही गाड़ी और पुलिस अफसरों का काफिला चल रहा था। लोग तालियां बजाकर इस न्याय की मिसाल का स्वागत कर रहे थे। हर कोई यही कह रहा था—सच्चा न्याय हुआ है। गरीबों पर जुल्म करने वालों को उनकी असली औकात दिखाई गई है।
कहानी का उद्देश्य
तो दोस्तों, यह कहानी केवल मनोरंजन और शिक्षा के उद्देश्य से बनाई गई है। इसमें दिखाए गए सभी पात्र, घटनाएं और संवाद काल्पनिक हैं। किसी भी वास्तविक व्यक्ति, संस्था या घटना से इनका कोई संबंध नहीं है। कृपया इसे केवल कहानी के रूप में देखें और इसका आनंद लें। हम किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं चाहते। अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो तो इसे लाइक करें, शेयर करें और कमेंट करके बताएं कौन सा कदम सबसे अच्छा लगा। हमारे चैनल ड्रीम सूत्र को सब्सक्राइब करना ना भूलें क्योंकि हम आपके लिए ऐसे ही प्रेरणादायक कहानियां लाते रहेंगे।
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