सड़क किनारे फूल बेचती बच्ची और औरत निकली… अरबपति की पोती और बहू….. फ़िर जो हुआ
दोपहर का वक्त था। विक्रम राजवंश सिंह रेलवे स्टेशन के पास से गुजर रहे थे। लेकिन जाम लगा होने की बजाय विक्रम को अपनी गाड़ी थोड़ी देर के लिए सिग्नल पर रोकनी पड़ी। ड्राइवर ने खिड़की नीचे की ताकि हवा आ सके। तभी अचानक विक्रम की नजर एक औरत और एक छोटी बच्ची पर पड़ी। जिसे देख उनकी आंखें फटी रह गईं। क्योंकि उन्हें पता था कि उनका बेटा आर्यन, बहू और पोती विदेश में है। लेकिन यह नजारा देख उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। उन्होंने जल्दी से अपनी बहू के पास गए और बोले, “यह क्या हाल बना लिया तुमने? आर्यन कहां है? वो तो तुम्हें विदेश ले गया था। है ना?”
अनन्या हंस पड़ी। पर वो हंसी किसी दर्द की आवाज थी। “विदेश? हां ले गया था। इस स्टेशन तक।” दोस्तों, आखिर क्यों एक राजघराने की बहू होते हुए भी अनन्या को सड़क पर भीख मांगनी पड़ी? और क्यों अनन्या के पति ने उस स्टेशन पर छोड़ दिया था? जब उसके पिता को यह पता चला कि उनकी बहू और पोती सड़क पर भीख मांग रही हैं, तब आगे जो हुआ, उसे सुनकर आप रो पड़ेंगे।
लेकिन दोस्तों, कहानी में आगे बढ़ने से पहले वीडियो को लाइक कर दीजिए ताकि हमें भी मोटिवेशन मिले। तो चलिए शुरू करते हैं।
अनन्या का अतीत किसी कहानी से कम नहीं था। उसके पिता, मोहन चौहान, एक ईमानदार और सादे स्वभाव के व्यक्ति थे। छोटे शहर में रहते थे पर दिल बहुत बड़ा था। उन्होंने अपनी बेटी अनन्या को हमेशा यह सिखाया था कि इज्जत कभी किसी के पैसों से नहीं, अपने कर्मों से बनती है। शायद यही वजह थी कि जब अनन्या बड़ी हुई तो उसके संस्कार किसी राजघराने की लड़की से कम नहीं थे।
दूसरी तरफ, इस शहर का सबसे बड़ा नाम था विक्रम राजवंश सिंह। एक ऐसा इंसान जो अपनी मेहनत से अरबों की कंपनी का मालिक बना था। उसके पास सब कुछ था। दौलत, नाम, इज्जत। लेकिन एक चीज की कमी थी—अपनापन। विक्रम के पास एक ही बेटा था, आर्यन, जो विदेश से एमबीए करके लौटा था। स्मार्ट था, स्टाइलिश था और हर लड़की का ख्वाब। लेकिन उसमें एक चीज की कमी थी—संस्कार। विक्रम हमेशा सोचता था कि कोई ऐसी लड़की हो जो उसके बेटे की जिंदगी में स्थिरता लाए, जो इस घर को संभाल सके और इस खानदान के संस्कारों को आगे बढ़ा सके।
तभी एक दिन उसे अपने पुराने दोस्त मोहन चौहान की याद आई। वह तुरंत अपने दोस्त मोहन के घर जाता है। दोनों एक-दूसरे से मिलकर काफी खुश होते हैं। दोनों में बातचीत हुई, एक-दूसरे का हालचाल जाना। जब उसकी नजर अनन्या पर पड़ी, तो वह बस मुस्कुरा दिया। अनन्या मोहन की बेटी थी। विक्रम ने मोहन से कहा, “मोहन, मेरी एक ख्वाहिश है कि तेरी बेटी अनन्या मेरे घर की बहू बने।”

यह सुनकर मोहन चौंकते हुए बोला, “विक्रम, हम छोटे लोग हैं। तुम्हारे जैसे बड़े घर में मेरी बेटी कैसे?” विक्रम ने बात काट दी। “छोटा कोई नहीं होता मोहन, और बड़ा होना सिर्फ पैसों से नहीं, दिल से होता है।” सिया उस वक्त कमरे के बाहर थी, पर उसने सब सुन लिया था। उसके दिल में डर भी था और आदर भी। उसने अपने पिता से कहा, “पापा, अगर आपको लगता है कि यही सही है तो मैं तैयार हूं।”
और फिर पूरे शहर में वह शादी हुई। ऐसी शादी जिसे लोग सालों तक याद करते रहे। विक्रम राजवंश ने अपनी बहू का स्वागत रानी की तरह किया। अनन्या के सिर पर लाल दुपट्टा था और आंखों में अनजान सफर का साया। चारों तरफ कैमरों की फ्लैश लाइटें थीं। हंसी के ढाके थे, और उस हंसी के बीच सिया का मौन गुम हो गया।
शादी के बाद कुछ महीने बेहद खुशनुमा थे। विक्रम सिया को अपनी बेटी की तरह मानता था। घर के नौकर उससे इज्जत से बात करते थे और पूरे राजवंत हाउस में पहली बार किसी के कदमों से सुकून की खुशबू आई थी। लेकिन कहते हैं ना, जिंदगी इतनी आसान नहीं होती। अनन्या की जिंदगी भी कुछ ऐसे ही थी। आर्यन के चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती थी। लेकिन उस मुस्कान के पीछे एक अजीब सा खालीपन था। वह अनन्या से बातें करता, मगर मन से कभी उसने अनन्या को नहीं अपनाया था।
धीरे-धीरे वो अनन्या पर गुस्सा करने लगा। कभी कहता, “अनन्या, तुम्हें थोड़ा स्टाइलिश होना चाहिए। यह सादगी अब पुरानी हो गई है।” कभी ताना मारता, “तुम्हारा यह देसी तरीका मुझसे नहीं झेलता। मैं शहर के लोगों जैसा हूं। तुम गांव की हो।” अनन्या हर बात को हंसी में टाल देती। वह सोचती, शायद वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा। लेकिन वक्त ठीक नहीं हुआ, बल्कि और भी बेरहम हो गया।
अनन्या हर रोज मंदिर में दीप जलाती। अपने पति की सलामती की दुआ मांगती और उसी वक्त आर्यन ऑफिस के नाम पर किसी और की बाहों में होता। उसे अनन्या की सादगी में अब बोरियत महसूस होती थी। वह अनन्या को पत्नी नहीं, एक जिम्मेदारी समझने लगा था। इसी तरह अनन्या की शादी को एक साल गुजर गया। और इस बीच अनन्या ने एक बेटी को जन्म दिया। एक नन्ही सी परी आर्या। उसके जन्म ने विक्रम के घर में खुशियां भर दीं। दादा ने मिठाई बांटी, पूरे स्टाफ को इनाम दिया। लेकिन आर्यन बस खड़ा रहा बिना किसी भाव के। वो बच्ची उसकी आंखों में बैठी नहीं, बस एक अजनबी थी।
रात को जब सिया ने पूछा, “आर्यन, देखो ना कितनी प्यारी है हमारी बेटी।” आर्यन ने ठंडे लहजे में कहा, “मेरे पास अभी टाइम नहीं है इन सबके लिए।” वह लहजा अनन्या के दिल में तीर की तरह उतर गया। वह जानती थी कि कुछ बदल गया है। पर समझ नहीं पा रही थी। कमरे के अंधेरे में अनन्या अपनी बच्ची को सीने से लगाकर रोती थी। उसकी गोद में आरू होती पर आंखों में सवाल। क्या हर लड़की का नसीब ऐसा ही होता है?
वह नहीं जानती थी कि आने वाले दिनों में उसकी यह सादगी, उसकी यह मासूमियत ही उसे सड़क पर ला देगी। दिन धीरे-धीरे बीतते गए। आर्या अब 6 महीने की हो चुकी थी। अनन्या का दिन उसी के साथ गुजरता था। कभी लोरी गुनगुनाते हुए, कभी मंदिर की घंटियों की आवाज सुनते हुए वह अपनी छोटी सी दुनिया में सुकून ढूंढ रही थी। लेकिन आर्यन की दुनिया कहीं और थी। अब वह पहले जैसा नहीं रहा था। ऑफिस से देर रात लौटता, फोन पर किसी से घंटों बातें करता, कभी मुस्कुराता, कभी चुप रहता। लेकिन सिया उस मुस्कुराहट के पीछे का राज नहीं समझ पाई थी।
एक शाम विक्रम अपने ऑफिस से लौटे। उन्होंने देखा आर्यन फोन पर किसी से बात कर रहा था और अनन्या चुपचाप डाइनिंग टेबल पर बैठी थी। विक्रम ने अनन्या से पूछा, “बेटी, आर्यन खोया खोया सा रहता है। क्या हुआ है?” अनन्या ने धीरे से मुस्कुरा कर कहा, “नहीं पापा, वो काम का दबाव होगा शायद।” पर उसके अंदर एक तूफान चल रहा था, जिसका शोर सिर्फ वही सुन पा रही थी।
कुछ ही दिनों में राजवंश हाउस में एक नया नाम गूंजने लगा। रिया, आर्यन की कंपनी में नई जॉइन हुई थी। स्मार्ट, मॉडर्न और बेहद खूबसूरत। लोग कहते थे, वह जहां जाती है, वहां सबकी नजरें थम जाती हैं। आर्यन ने उसे ट्रेनिंग देने का जिम्मा लिया था और वहीं से शुरू हुई वह कहानी जो किसी की जिंदगी बदलने वाली थी।
आर्यन को रिया से बात करना अच्छा लगने लगा। रिया उसे समझती थी, तारीफ करती थी और वह बातें कहती थी जो अनन्या कभी नहीं कहती थी। क्योंकि अनन्या की बातें संस्कार की थीं और रिया की बातें फ्रीडम की थीं। आर्यन को वह दुनिया पसंद आने लगी जहां कोई उसे बेटा, पति या जिम्मेदार नहीं कहता था। बल्कि सिर्फ आर्यन बुलाता था। वो ऑफिस से देर से लौटने लगा। घर आकर भी मन वहीं रहता था। कभी अनन्या खाना लेकर सामने बैठती तो कह देता, “अब इतनी दयानू सी बातें मत किया करो सिया। यह 90 का नहीं है।”
अनन्या चुप रह जाती। धीरे-धीरे बात यहां तक पहुंच गई कि आर्यन अब रिया से मिलने के बहाने शहर से बाहर जाने लगा। इसी बीच रिया ने आर्यन से कहा, “आर्यन, अगर मुझसे प्यार करते हो और मेरे साथ रहना चाहते हो तो अनन्या और उस बच्चे को छोड़ दो।” वह शब्द अनन्या के भाग्य की अंतिम मोहर बन गए। आर्यन ने कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन उसकी आंखों में साफ था कि उसे रिया के साथ रहना है, अनन्या के नहीं।
अगले दिन की सुबह कुछ अलग थी। ठंडी हवा चल रही थी। पर अनन्या के दिल में अजीब बेचैनी थी। आर्यन आज बहुत प्यार से बात कर रहा था। सालों बाद उसके चेहरे पर मुस्कान थी। वो बोला, “अनन्या, चलो आज कहीं घूम आते हैं। तुम्हें और आर्या को बहुत वक्त से बाहर नहीं ले गया।” अनन्या का दिल पिघल गया। उसे लगा शायद अब सब ठीक हो जाएगा। उसने जल्दी से बच्ची को तैयार किया और उसने खुद एक अच्छी सी साड़ी पहनी और मुस्कुराते हुए बोली, “आज आर्या के पापा फिर से पहले जैसे लग रहे हैं।”
गाड़ी स्टेशन के पास रुकी। आर्यन ने कहा, “मैं टिकट लेकर आता हूं। तुम यहीं रुको।” अनन्या ने बच्ची को गोद में लिया और मुस्कुराई। वह हंसते हुए अपनी बेटी से बातें करने लगी। इसी तरह काफी समय बीत गया, लेकिन आर्यन नहीं लौटा। बच्ची ने पूछा, “मां, पापा कहां गए?” अनन्या ने चारों ओर देखा, पर वहां सिर्फ भीड़ थी, शोर था और उसके आंसू। वो प्लेटफार्म से बाहर भागी। हर तरफ नजर दौड़ाई। स्टेशन के बाहर जाकर देखा। आर्यन की कार वहां नहीं थी। वो कार जो उसे खुशियों की ओर लेकर जा रही थी, अब हमेशा के लिए उसे पीछे छोड़ गई थी।
अनन्या के पैरों तले जमीन खिसक गई। वो वहीं प्लेटफार्म पर बैठ गई और बच्ची को सीने से चिपका लिया। आंखों से आंसू बहने लगे, पर आवाज गले में अटक गई थी। “क्यों किया ऐसा आर्यन? क्यों?” कभी-कभी इंसान किसी को इतना चाहता है कि जब वह छोड़ जाता है, तो जिंदगी नहीं, बस सांसे बाकी रह जाती हैं। रात गहरी होती गई। स्टेशन की बेंच पर मां-बेटी बैठे रहे। ना कोई पूछने आया, ना कोई समझने वाला था। छोटी आर्या ने मां के आंसू पोंछते हुए कहा, “मां, घर चलें?” अनन्या बस मुस्कुरा दी क्योंकि अब उसके पास घर नहीं था।
अगले दिन उसने साड़ी का आंचल फैलाया। लोगों के सामने हाथ बढ़ाया। वो हाथ जो कभी अपने पति की हथेली थामता था, अब सड़क पर भीख मांग रहा था। बच्ची उसके बगल में बैठी थी और उसकी मासूम आंखें हर चेहरे को देख रही थी कि शायद कोई उन्हें पहचान ले। वो दिन, वो स्टेशन अनन्या की जिंदगी का आखिरी मोड़ बन गया जहां उसका सब कुछ छीन गया सिवाय उसकी बेटी के। और वही बेटी अब उसकी जीने की वजह थी।
इसी तरह दिन बीतते गए। अनन्या लोगों से भीख मांगकर अपना पेट भरने लगी। अनन्या जब लोगों के सामने हाथ फैलाती, तब लोग उसे ताना मारते। “कुछ काम नहीं किया जाता। रोज-रोज भीख मांगने बैठ जाती है।” कुछ लोग उसे इस तरह इग्नोर करके चले जाते जैसे वह भीड़ का गुस्सा होते हुए भी अदृश्य हो। किसी ने भी अनन्या को भीख मांगकर कुछ पैसे इकट्ठा करने और फूल खरीदकर स्टेशन के पास फूल बेचने वाली समझा। कभी-कभी कोई सिक्का डाल देता, कभी कोई नजर घुमा लेता। पर वह हर रोज उस रास्ते को देखती जहां से आर्यन उसे छोड़कर गया था। मानो अभी भी यकीन ना हो कि वह लौटकर नहीं आएगा।
आर्यन अब रिया के साथ रह रहा था। बिल्कुल नई जिंदगी, नए सपने, नई दुनिया। रिया ने कहा, “तुम्हारा अतीत अब मर चुका है आर्यन। अब सिर्फ मैं हूं और तुम।” आर्यन मुस्कुराया, पर उस मुस्कान के पीछे कहीं डर छिपा था। क्योंकि सच्चाई यह थी कि जिसने एक बार किसी को छोड़ा, वह खुद भी कभी चैन से नहीं जीता। धोखा देने वाले अक्सर यह भूल जाते हैं कि जिंदगी किसी का हिसाब कभी अधूरा नहीं छोड़ती।
अगले दिन दोपहर के समय शहर की सड़कें तप रही थीं। लोग जल्दी में थे और जिंदगी अपनी तेज रफ्तार से दौड़ रही थी। विक्रम जो अब उम्र के उस पड़ाव पर पहुंच चुके थे जहां इंसान अपने बच्चों की खुशियों में सुकून ढूंढते हैं, उसी दिन वह उसी रेलवे स्टेशन से अपनी एक मीटिंग से लौट रहे थे। गाड़ी की खिड़की से बाहर झांकते हुए उन्होंने सोचा, “आर्यन और रिया का कॉल नहीं आया। काफी समय से उन्हें लगा शायद बिजी होंगे विदेश में।” उन्हें गर्व था कि उनका बेटा विदेश में सेटल है। एक खूबसूरत पत्नी और प्यारी बच्ची के साथ और एक सुखी जिंदगी जी रहा है।
गाड़ी स्टेशन के सामने से गुजर रही थी, पर सिग्नल पर थोड़ी देर के लिए रुकना पड़ा क्योंकि जाम लगा हुआ था। ड्राइवर ने खिड़की नीचे की ताकि हवा आ सके। विक्रम ने अनजाने में बाहर नजर डाली और उनकी नजर वहीं ठिठक गई। भीड़ के बीच फुटपाथ पर एक औरत बैठी थी। फटे हुए कपड़े, धूप में जला हुआ चेहरा और गोद में एक छोटी सी बच्ची। वह बच्ची किसी राहगीर से कह रही थी, “अंकल, फूल ले लो ना। दो दिन से खाना नहीं मिला है।”
विक्रम ने कुछ पल के लिए आंखें मीची, जैसे किसी भूली हुई तस्वीर को पहचानने की कोशिश कर रहे हों। फिर अचानक उनका दिल धड़क उठा। वो चेहरा, वो आंखें, वो सादगी। “क्या यह वही नहीं थी?” उनकी बहू अनन्या। उन्होंने गाड़ी रुकवाई। धीरे-धीरे उतरे और भीड़ को चीरते हुए उसके सामने जा पहुंचे। उन्होंने कहा, “अनन्या!” उनकी आवाज कांप रही थी। औरत ने सिर उठाया। उसकी आंखों में नमी थी। पर जब उसने उस आदमी को देखा, वो जैसे पत्थर बन गई। वो पहचान गई थी। वो उसके ससुर थे।
विक्रम की आंखों में हैरानी और पछतावे का समंदर था। “यह क्या हाल बना लिया तुमने? आर्यन कहां है? वो तो तुम्हें विदेश ले गया था। है ना?” अनन्या हंस पड़ी। पर वह हंसी किसी दर्द की आवाज थी। “विदेश? हां ले गया था इस स्टेशन तक।” विक्रम के चेहरे का रंग उड़ गया। वह वहीं बेंच पर बैठ गए। उनकी आंखों में आंसू थे और जुबान पर कोई शब्द नहीं।
अनन्या ने सब कुछ कह डाला। कैसे आर्यन ने झूठ बोला? कैसे उसने उसे और उसकी बेटी को यहां छोड़ दिया? कैसे वह हर दिन इस प्लेटफार्म पर बैठकर जीने की कोशिश करती रही? हर बात सुनकर विक्रम के सीने में कुछ टूटता गया। वह उस पिता की हालत में थे जिसे अचानक अपने बेटे के पापों का हिसाब दिखा दिया गया हो।
उस दिन उन्होंने पहली बार उस बच्ची को ध्यान से देखा। उसके चेहरे में उन्हें आर्यन की झलक दिखाई दी। उन्होंने बच्ची को अपने सीने से लगा लिया। वो रो पड़े। “मुझे माफ कर दो बिटिया। मैं उस बाप का बाप हूं जिसने तुम्हारी मां का सब कुछ छीन लिया।” उस शाम विक्रम ने उन्हें अपने साथ घर चलने को कहा। पर अनन्या ने मना कर दिया। वह बोली, “अब जब जिंदगी ने मुझे सबक सिखा दिया है तो मैं अपने हक की इज्जत खुद कमाऊंगी। किसी के रहम पर नहीं जिऊंगी।”
विक्रम ने कहा, “लेकिन मैं तुम्हारा गुनहगार हूं अनन्या। मेरे बेटे ने जो किया, वो मैं कैसे भूल जाऊं?” अनन्या बोली, “आप गुनहगार नहीं, बस अंधे रहे। आपको लगा था आपका बेटा देवता है, पर असल में वह इंसान भी नहीं निकला।” विक्रम की आंखों से आंसू गिरते रहे। उन्होंने उस दिन कसम खाई। वह अपने बेटे से मिलेंगे और सच्चाई उसकी आंखों के सामने रखेंगे। पर उन्हें यह नहीं पता था कि अब आर्यन की जिंदगी में वह भी नहीं बचा था जिसके लिए उसने सब छोड़ा था।
रात का सन्नाटा था। शहर की बत्तियां धीरे-धीरे बुझ रही थीं। पर एक घर की लाइट्स अभी भी जल रही थी। वो घर था आर्यन मेहरा का। वो शराब के गिलास के साथ सोफे पर पड़ा था। चेहरे पर उदासी, आंखों में बेचैनी और होठों पर वही सवाल। “क्या मैंने सही किया?” रिया उसके सामने खड़ी थी सजधज कर, पर आंखों में ठंडापन। वो बोली, “आर्यन, मैं कल जा रही हूं।”
आर्यन चौंका, “कहां? क्यों?” रिया मुस्कुराई। “उसके साथ जिससे मैं सच में प्यार करती हूं, वो लौट आया है। तुम बस एक पड़ाव थे मेरी जिंदगी का। एक ऐसा पड़ाव जहां से मैं अपनी मंजिल तक पहुंचना चाहती थी।” आर्यन के हाथ से गिलास गिर पड़ा। कांच के टुकड़े जमीन पर बिखर गए और उसी के साथ उसका भ्रम भी बिखर गया। वो रात भर नहीं सोया। सालों पहले स्टेशन पर छोड़ी अपनी पत्नी और बेटी की यादें उसके दिल को काटने लगीं। हर हंसी, हर आंसू अब उसके कानों में गूंजने लगे।
सुबह होते ही वह अपने पिता के घर पहुंचा। दरवाजा खुला और सामने खड़े थे विक्रम राजवंश सिंह। जो अब कुछ और ही लग रहे थे। थके हुए पर शांत। आर्यन ने कहा, “डैड, रिया चली गई। उसने मुझे छोड़ दिया।” विक्रम ने उसे देखा। उनकी आंखों में कोई गुस्सा नहीं था। बस दर्द था। उन्होंने धीमी आवाज में कहा, “जिंदगी ने वही लौटाया जो तुमने उसे दिया था।”
आर्यन ने माथा झुका लिया। “मुझसे बहुत बड़ी गलती हुई डैड। मैंने अनन्या और आर्या को छोड़ दिया।” विक्रम ने भारी सांस ली। “गलती? नहीं बेटे, वह पाप था और उसकी सजा अब तुम्हारे सामने खड़ी है।” आर्यन ने हैरानी से देखा। “क्या मतलब?” विक्रम ने दरवाजे की ओर इशारा किया और वहां खड़ी थी अनन्या। अपनी छोटी बेटी के साथ। आर्यन के पैरों तले जमीन खिसक गई। वो हिल भी नहीं सका। अनन्या की आंखों में कोई शिकायत नहीं थी। बस एक खामोश सुकून था। जैसे किसी ने उसके भीतर के दर्द को चुपचाप दफना दिया हो।
आर्यन उसके कदमों में गिर पड़ा। रोते हुए बोला, “मुझे माफ कर दो अनन्या। मुझे नहीं पता था कि मैं क्या कर रहा हूं। रिया ने मुझे बहकाया। मैं अंधा हो गया।” अनन्या ने कहा, “बहकाने के लिए कोई और नहीं चाहिए होता। कभी-कभी इंसान खुद ही अपने झूठ का शिकार बन जाता है।” वो बच्ची धीरे से आगे बढ़ी और आर्यन का चेहरा देखने लगी। “आप मेरे पापा हो?” आर्यन की आंखों से आंसू बह निकले। उसने हां में सिर हिलाया और कहा, “हां बेटा, मैं ही हूं तुम्हारा पापा।”
आर्यन ने मासूमियत से मुस्कुराया। फिर बोली, “तो अब हमें कभी स्टेशन पर नहीं छोड़ोगे ना?” उस एक सवाल ने सब कुछ चुप कर दिया। विक्रम ने नजरें झुका लीं और आर्यन वहीं जमीन पर बैठ गया जैसे उसे अपनी जिंदगी का पूरा हिसाब एक पल में समझ आ गया हो।
कुछ पल की चुप्पी के बाद अनन्या ने धीरे से कहा, “मैं तुम्हें माफ तो कर सकती हूं आर्यन, पर वापस नहीं जा सकती क्योंकि जहां एक बार भरोसा टूटता है, वहां रिश्ता सिर्फ जिंदा रहता है पर जिंदा होता नहीं है।” विक्रम ने उसकी बात पर सिर झुका लिया। उन्होंने कहा, “अनन्या, तुम्हारे पास मेरी दुआएं हैं। मैं चाहता हूं तुम और आर्या इस घर में रहो। पर अब अपने नाम से किसी के रहम से नहीं।”
दिन बीतते गए। विक्रम ने अपनी जायदाद का एक बड़ा हिस्सा अनन्या और उसकी बेटी के नाम कर दिया। वह चाहता था कि उसकी गलती की भरपाई किसी तरह हो सके। आर्यन अब अकेला रह गया। वह अक्सर उसी स्टेशन पर जाकर बैठता जहां उसने उन्हें छोड़ा था। वह घंटों तक खाली रेल की पटरियों को देखता। मानो वहां अपनी आत्मा खोज रहा हो। जिंदगी ने उसे सब कुछ दिया था। पैसा, प्यार, घर, पर उसने खो दिया वो जो सबसे कीमती था—रिश्तों की सच्चाई।
एक दिन विक्रम राजवंश अपनी पोती आर्या को स्कूल छोड़ने जा रहे थे। रास्ते में वही पुराना स्टेशन पड़ा। आर्या ने खिड़की से बाहर देखा और चुपचाप बोली, “दादू, यहीं तो मम्मी और मैं बैठे थे ना जब हमें कोई नहीं पहचानता था।” विक्रम की आंखें भर आईं। वह बोले, “हां बिटिया, यही वह जगह है जहां एक दर्द खत्म हुआ और एक नई शुरुआत हुई।”
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सूरज ढल रहा था। अनन्या फूलों की दुकान के सामने खड़ी थी। अब वह भीख मांगने वाली नहीं बल्कि अपनी मेहनत से जीने वाली औरत बन चुकी थी। उसकी बेटी स्कूल से दौड़ती हुई आई और उसे गले लगा लिया। अनन्या मुस्कुराई। फिर आसमान की ओर देखा और बोली, “शायद अब ऊपर वाला भी मुस्कुरा रहा होगा क्योंकि मैं हार कर भी जीत गई। कभी-कभी जिंदगी हमें तोड़ देती है ताकि हम खुद को पहचान सकें। कभी किसी को छोड़ना आसान लगता है। पर उसका पछतावा जिंदगी भर पीछा करता है।”
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