सड़क पर तड़पती महिला को एक अजनबी लड़के ने बचाया… लेकिन फिर जो हुआ…

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कोलकाता की भीड़-भाड़ भरी सड़कों पर, जहाँ हर कोई अपनी ज़िंदगी की दौड़ में व्यस्त है, वहाँ एक छोटी सी घटना किसी की पूरी ज़िंदगी बदल सकती है। यह कहानी है श्याम की, जो एक साधारण लड़का है, और संगीता की, जिसकी किस्मत एक पल में पलट जाती है। यह कहानी है इंसानियत, विश्वासघात, प्रेम और नए जीवन की।

अध्याय 1: सड़क किनारे एक नई शुरुआत

16 अक्टूबर 2023, कोलकाता की एक हल्की धुंधली सुबह थी। श्याम, मालदा जिले का रहने वाला एक साधारण युवक, कोलकाता में जूते की दुकान पर काम करता था। सुबह-सुबह ही उसे दुकान के मालिक ने निकाल दिया था—“तुम्हारे बस का नहीं, श्याम! तुम कस्टमर से ढंग से बात नहीं कर पाते, कल से मत आना!”
मालिक ने हिसाब कर, 1000 रुपए थमाए और श्याम को बाहर कर दिया।
अपनी किस्मत को कोसता, श्याम सड़क किनारे एक फुटपाथ पर बैठ गया। जेब में सिर्फ 1000 रुपए, दिल में भारीपन और आँखों में आँसू।

तभी, अचानक, उसके कानों में चीखने की आवाज़ आई—“कोई है? मेरी मदद करो! मुझे हॉस्पिटल पहुँचा दो, प्लीज!”
श्याम ने देखा, कुछ दूर एक महिला खून से लथपथ सड़क पर पड़ी थी। उसके कपड़े खून में सने थे, माथे पर गहरा घाव था, और लोग उसे घेरकर खड़े थे।
कोई कह रहा था, “पुलिस का मामला है, मत छुओ।”
कोई बोला, “एंबुलेंस बुला लो।”
कोई वीडियो बना रहा था।
लेकिन कोई मदद करने को आगे नहीं आया।

श्याम ने एक पल भी नहीं सोचा। दौड़कर महिला के पास गया। “दीदी, घबराइए मत, मैं हूँ।”
उसने ऑटो रुकवाया, महिला को गोद में उठाकर ऑटो में बैठाया। जेब से रुमाल निकाला, महिला के सिर पर बाँधा।
महिला दर्द से कराह रही थी, “मुझे बचा लो…।”
श्याम ने दिलासा दिया, “हिम्मत रखो दीदी, सब ठीक हो जाएगा।”

अध्याय 2: अस्पताल की चौखट पर

ऑटो हॉस्पिटल पहुँचा। ऑटोवाला पैसे लेकर चला गया।
श्याम ने इमरजेंसी वार्ड में महिला को पहुँचाया। डॉक्टरों ने तुरंत इलाज शुरू किया।
डॉक्टर बोले, “इनकी हालत गंभीर है, तुरंत दवाइयाँ और इंजेक्शन लाओ।”
श्याम ने बिना सोचे 4000 रुपए दवाइयों पर खर्च कर दिए।
महिला के सिर पर ग्यारह टांके लगे, पैर में प्लास्टर हुआ। तीन-चार घंटे बाद महिला को एक बेड पर शिफ्ट कर दिया गया।

महिला ने धीरे से आँखें खोलीं, पास में श्याम को देख आँसू बह निकले।
“तुम… कौन हो?”
श्याम मुस्कुराया, “मैं श्याम हूँ, दीदी। बंगाल का रहने वाला। यहीं पास में रहता हूँ।”
महिला ने काँपती आवाज़ में पूछा, “मेरे घर से कोई आया?”
श्याम ने सिर हिलाया, “नहीं दीदी। आप किसी को फोन कर सकती हैं?”
महिला बोली, “मेरे पति लंदन में रहते हैं, यहाँ कोई नहीं है। फोन भी नहीं लग रहा।”

अध्याय 3: सेवा का रिश्ता

अगले दिन डॉक्टर बोले, “अब इन्हें नॉर्मल वार्ड में शिफ्ट किया जाएगा। घर के कपड़े पहनने होंगे।”
श्याम बाहर जाकर एक मैक्सी खरीद लाया।
सिस्टर बोलीं, “कोई लेडीज़ है साथ?”
श्याम झिझकते हुए बोला, “मैं ही हूँ, दीदी का जाने वाला।”
सिस्टर ने पर्दा लगाया, श्याम ने संगीता (महिला का नाम) को कपड़े बदलने में मदद की।
सुबह संगीता ने एटीएम कार्ड देकर कहा, “जाकर पैसे निकाल लाओ, तुम्हारे पैसे लौटा दूँ।”
श्याम पैसे लाया, लेकिन बोला, “दीदी, पैसे की बात मत करिए। मैं यहीं रहूँगा, जब तक कोई अपना आ न जाए।”

तीन दिन बीत गए। श्याम ने संगीता की पूरी सेवा की—कपड़े बदलवाना, दवा देना, खाना खिलाना, व्हीलचेयर पर बाथरूम ले जाना।
इस दौरान दोनों के बीच एक अनकहा रिश्ता बन गया। संगीता को श्याम पर भरोसा होने लगा, और श्याम को संगीता की मजबूरी का एहसास।

अध्याय 4: घर की चौखट

डॉक्टर ने डिस्चार्ज दे दिया। श्याम ने ऑटो बुलाया, संगीता को उसके फ्लैट ले गया।
सात मंजिला बिल्डिंग का बड़ा सा फ्लैट देखकर श्याम हैरान रह गया।
“मैडम, यह किसका घर है?”
“मेरा ही है,” संगीता बोली।
“आप अकेली रहती हैं?”
“हाँ। पति लंदन में रहते हैं, बाकी सब मर चुके हैं।”

फ्लैट में पहुँचकर श्याम ने संगीता को बेड पर लिटाया।
तभी संगीता के फोन पर उसके पति राहुल का कॉल आया।
संगीता रोने लगी, “मेरा एक्सीडेंट हो गया… मैं मरते-मरते बची हूँ… एक अनजान लड़के ने मेरी जान बचाई…”
राहुल बोला, “चिंता मत करो, मैं दो दिन में आ रहा हूँ।”

अध्याय 5: भरोसे की डोर

राहुल के आने तक संगीता ने श्याम से कहा, “प्लीज, दो-तीन दिन और रुक जाओ। मैं किसी और पर भरोसा नहीं कर सकती।”
श्याम ने संकोच से कहा, “मैडम, अब घर में आपकी सेवा करना… थोड़ा अजीब लगेगा।”
संगीता बोली, “अभी तक तुमने जो किया, वही बहुत है। बस थोड़ा और… जब तक राहुल आ जाए।”
श्याम ने हाँ कर दी।

अब श्याम घर के सारे काम करता—खाना बनाना, कपड़े धोना, दवा देना, मार्केट जाना।
संगीता व्हीलचेयर पर किचन तक आ जाती, श्याम से बातें करती।
धीरे-धीरे दोनों के बीच गहरा लगाव हो गया।
संगीता ने कई बार कहा, “अगर तुम नहीं होते, तो शायद मैं बचती नहीं। तुम्हारा एहसान मैं जिंदगी भर नहीं भूलूँगी।”
श्याम हँसकर टाल देता, “मैडम, बस आप ठीक हो जाओ, यही काफी है।”

अध्याय 6: सच्चाई का खुलासा

आठवें दिन राहुल लंदन से लौट आया।
संगीता ने उसे देखकर फूट-फूट कर रोते हुए सारी बात बताई।
राहुल ने श्याम को धन्यवाद कहा, “तुमने मेरी पत्नी की जान बचाई, मैं तुम्हारा एहसानमंद हूँ।”
श्याम ने विनम्रता से सिर झुका लिया।

कुछ देर बाद राहुल मार्केट जाने के बहाने घर से बाहर गया।
श्याम ने संगीता से कहा, “मैडम, मुझे आपसे कुछ कहना है… जिस दिन आपका एक्सीडेंट हुआ, मैंने राहुल जी को वहीं देखा था। एक बार नहीं, दो बार।”
संगीता हैरान रह गई, “क्या मतलब?”
श्याम बोला, “मैं झूठ नहीं बोल रहा। मैंने उन्हें उसी जगह देखा था। जब एक्सीडेंट हुआ, वे अपने दोस्त के साथ थे। फिर भीड़ में आपको देखा और वहाँ से चले गए।”
संगीता को विश्वास नहीं हुआ, “तुम्हें गलतफहमी हुई होगी।”
श्याम बोला, “अगर आपको यकीन नहीं, तो उनसे पूछ लीजिए। मैं आपके बीच दरार नहीं डालना चाहता। बस जो देखा, वही बता रहा हूँ।”

संगीता ने श्याम का हाथ पकड़ा, “ठीक है, मैं पता लगाऊँगी। लेकिन तुम अभी किसी से कुछ मत कहना।”

अध्याय 7: साजिश का पर्दाफाश

राहुल के लौटने के बाद संगीता ने उस पर नजर रखनी शुरू कर दी।
धीरे-धीरे उसे कई बातें संदिग्ध लगीं—राहुल का व्यवहार, उसकी बातें, और उसकी लापरवाही।
कुछ दिनों बाद, संगीता ने अपने पिता की पुरानी डायरी में राहुल के बारे में कुछ संदिग्ध कागजात पाए।
उसने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।
जांच में पता चला कि राहुल एक शातिर जालसाज था, जो अमीर और अकेली महिलाओं से शादी कर उनकी संपत्ति हड़प लेता था।
उसने अपने दोस्त राघव के साथ मिलकर संगीता की हत्या की कोशिश की थी, ताकि फ्लैट और पैसे उसके नाम हो जाएँ।

पुलिस ने राहुल और राघव को गिरफ्तार कर लिया।
संगीता टूट चुकी थी, लेकिन श्याम उसके साथ खड़ा रहा—कोर्ट-कचहरी के चक्कर, पुलिस स्टेशन, सब जगह।

अध्याय 8: नया जीवन

छह महीने बाद, राहुल को सजा हो गई।
संगीता ने श्याम से कहा, “तुम्हारे बिना मैं कुछ भी नहीं हूँ। क्या तुम हमेशा मेरे साथ रहोगे?”
श्याम ने सिर झुका लिया, “मैडम, मैं गरीब हूँ, आपके लायक नहीं।”
संगीता रो पड़ी, “अब मुझसे गरीब कोई नहीं। तुम मेरे लिए सब कुछ हो। क्या तुम मेरे पति बन सकते हो?”
श्याम की आँखों में आँसू आ गए।
उसने संगीता का हाथ थाम लिया, “मैं तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ूँगा।”

दोनों ने शादी कर ली।
श्याम अपने माता-पिता को गाँव से ले आया, संगीता के साथ उसी फ्लैट में रहने लगा।
अब दोनों नौकरी करते हैं, जीवन को खुशियों से भर दिया है।

समापन

यह कहानी बताती है कि इंसानियत, प्रेम और सच्चाई कभी हारती नहीं।
श्याम ने निस्वार्थ भाव से मदद की, बदले में उसे जीवनभर का साथी मिला।
संगीता ने भरोसा और साहस से साजिश का मुकाबला किया और नया जीवन पाया।

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जय हिंद, जय भारत!