“सर, ये ब्रिज गिरने वाला है… अभी सबको बताइए, वरना सब मारे जाएंगे ,गरीब बच्चा चीखा सब हैरान

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ब्रिज का सच: एक गरीब बच्चे की आवाज़

शहर के बीचों-बीच एक नया फ्लाईओवर बन रहा था। इसे शहर की नई पहचान माना जा रहा था। बड़े-बड़े नेता, अफसर और मीडिया वाले इस उद्घाटन समारोह के लिए तैयार थे। रंग-बिरंगे पोस्टर, झिलमिलाते होर्डिंग, और लाल फीते से सजा मंच इस बात का सबूत थे कि यह दिन शहर के लिए बहुत बड़ा दिन था। लोगों की भीड़ दूर-दूर से देखने आई थी कि आखिर यह नया फ्लाईओवर कैसा दिखता है।

इस भव्य आयोजन के बीच एक गरीब बच्चा, रोहित, अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी में व्यस्त था। वह कूड़ा बीनने वाला था, कपड़े फटे-पुराने, चेहरे पर धूल जमी, मगर आंखों में एक अलग चमक थी। रोज़ वह इसी पुल के नीचे आता, कूड़ा बीनता, और निर्माण कार्य को करीब से देखता। वह जानता था कि इस पुल में कुछ ठीक नहीं है।

रोहित के पिता मिस्त्री थे। उन्होंने बेटे को बचपन से ही सिखाया था कि असली काम वही होता है जो ईमानदारी से किया जाए। “बेटा, इमारतें तब तक मजबूत नहीं होतीं जब तक उनके अंदर की नींव मजबूत न हो। ऊपर से रंग-रोगन से काम नहीं चलता,” पिता की ये बातें रोहित के दिल में घर कर गई थीं।

जब पुल का निर्माण शुरू हुआ, तो रोहित ने कई बार देखा कि सीमेंट की मात्रा कम डाली जा रही थी, सरिए पतले लग रहे थे, और रेत में मिलावट हो रही थी। मजदूरों की बातचीत से पता चला कि ठेकेदार जल्दी काम खत्म करवाना चाहता था ताकि पेमेंट लेट न हो। रोहित ने कई बार ठेकेदारों को चेताया, लेकिन वे हंसकर उसे भगा देते।

उद्घाटन का दिन और डरावनी सच्चाई

उद्घाटन के दिन रोहित ने पुल के बीच वाले हिस्से पर दरारें देखीं। उसने महसूस किया कि पिलर में हल्की हल्की कंपन हो रही थी। जब ऊपर से कोई ट्रक गुजरता, तो पुल हिलता। वह डर गया। उसे याद आया पिता की बातें, जिसने कहा था कमजोर नींव गिर जाती है।

रोहित ने हिम्मत जुटाई और मंच की ओर दौड़ा। उसने जोर से कहा, “सर,

रुक जाइए! यह ब्रिज गिरने वाला है। अगर अभी लोगों को नहीं रोका गया तो सब मारे जाएंगे।”

भीड़ में सन्नाटा छा गया। इंजीनियर और अधिकारी उसकी बात सुनकर हंसे। कुछ ने कहा, “भिखारी बच्चा ड्रामा कर रहा है। इसे यहां से हटाओ।”

लेकिन रोहित की आंखों में डर और सच्चाई थी। वह सच बोल रहा था।

पुल का हिलना और अफरातफरी

कुछ ही देर में पुल में हल्की सी हिलाहट महसूस हुई। कंक्रीट के टुकड़े गिरने लगे। सजावट के फूल झर गए। भीड़ घबरा गई। पुलिस ने तुरंत लोगों को नीचे उतरने का आदेश दिया। अफरातफरी मच गई। अगर यह हादसा हो जाता, तो सैकड़ों लोग मारे जा सकते थे।

ठेकेदार और अफसरों के चेहरे पीले पड़ गए। जांच में पता चला कि सीमेंट में मिलावट थी, सरिए पतले थे, और रेत में मिट्टी मिलाई गई थी। कागजों पर सब कुछ सही था, लेकिन जमीन पर पुल कमजोर और खतरनाक था।

रोहित की बहादुरी का सम्मान

नेताओं ने रोहित को मंच पर बुलाया। उसकी हिम्मत की तारीफ की गई। उसे पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप दी गई और वादा किया कि वह इंजीनियरिंग कर ऐसे पुलों की निगरानी करेगा।

रोहित के पास ना तो महंगे कपड़े थे, ना कोई डिग्री, लेकिन उसके पास नजर, समझ और हिम्मत थी। उसने सच बोला और कई लोगों की जान बचाई।

कहानी से सीख

यह कहानी हमें सिखाती है कि असली समझ उम्र, कपड़े या डिग्री नहीं देखती। कभी-कभी सबसे नीचे खड़ा इंसान ही सबसे ऊपर वालों की जान बचा सकता है। सच बोलने की हिम्मत ही समाज को बेहतर बनाती है।

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समाप्त।