साहब पांच हज़ार रूपए दे दो मै बिजनेस शुरू करूँगा ,भिखारी बच्चे की बात सुनकर करोड़पति चौंक पड़ा , फिर

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₹5000 का सपना: फुटपाथ से करोड़ों तक

मुंबई की उमस भरी गर्मी। ट्रैफिक की लगातार आवाजें, चमचमाती गाड़ियाँ और फुटपाथ पर बिखरे सपने। इसी शहर में एक 10 साल का लड़का था—राजू। उसके माता-पिता एक सड़क हादसे में गुजर चुके थे। तब से राजू का घर फुटपाथ था और छत आसमान।

राजू आम बच्चों की तरह नहीं था। उसके कपड़े फटे थे, चेहरे पर धूल थी, लेकिन आँखों में चमक थी। वो भीख नहीं माँगता था, बल्कि कभी बर्तन धोकर, कभी किसी गाड़ी वाले का सामान उठाकर मेहनत करता था। उसे मुफ्त की रोटी पसंद नहीं थी। उसमें एक अजीब सी खुद्दारी थी।

राजू अक्सर ट्रैफिक सिग्नल पर खड़े होकर बड़ी-बड़ी गाड़ियों में बैठे लोगों को देखता था। वो सोचता—आखिर ये लोग ऐसा क्या करते हैं, जो इनके पास इतना पैसा है और मेरे पास खाने को भी नहीं?

एक अलग सोच

राजू के मन में हमेशा एक ही सवाल चलता था कि क्या मैं भी कभी ऐसी गाड़ी में बैठ सकता हूँ? क्या मेरी किस्मत कभी बदल सकती है? एक दिन जून की दोपहर थी, सूरज आग उगल रहा था। राजू द रॉयल एंपायर होटल के गेट के पास खड़ा था। वहाँ एक काली Mercedes आकर रुकी। उसमें से विजय सेठी नामक उद्योगपति उतरे।

विजय जल्दी में थे। जैसे ही उन्होंने गेट की तरफ कदम बढ़ाया, राजू उनके सामने आ गया। सिक्योरिटी गार्ड राजू को हटाने ही वाला था कि राजू ने आवाज लगाई—”साहब, एक मिनट रुकिए!” विजय ने सोचा, यह बच्चा पैसे माँगेगा। उन्होंने जेब से ₹10 का सिक्का निकालकर राजू की तरफ बढ़ाया।

राजू ने सिक्का नहीं लिया। उसने विजय की आँखों में सीधे देखा और कहा—”साहब, मुझे भीख नहीं चाहिए। मुझे ₹10 नहीं चाहिए।” विजय हैरान रह गए। उन्होंने पूछा, “तो क्या चाहिए?” राजू ने जवाब दिया—”मुझे ₹5000 चाहिए।” विजय हँसे। “₹5000 क्यों?”

राजू ने गंभीरता से कहा—”मुझे बिजनेस करना है।”

साहब पांच हज़ार रूपए दे दो मै बिजनेस शुरू करूँगा ,भिखारी बच्चे की बात सुनकर  करोड़पति चौंक पड़ा , फिर

सपना और निवेश

एक 10 साल का बच्चा, फटे कपड़ों में, बिजनेस की बात कर रहा था। विजय ने पूछा, “₹5000 में कौन सा बिजनेस?” राजू ने ट्रैफिक सिग्नल की ओर इशारा किया—”देखिए, वहाँ लोग गर्मी में प्यास से परेशान हैं। अगर मैं ठंडे पानी की बोतलें खरीदकर बेचूं तो मुनाफा कमा सकता हूँ। ₹5000 में पानी की क्रेट और बर्फ खरीद सकता हूँ। मैं आपसे भीख नहीं, इन्वेस्टमेंट माँग रहा हूँ।”

राजू के मुँह से ‘इन्वेस्टमेंट’ और ‘मुनाफा’ जैसे शब्द सुनकर विजय सन्न रह गए। उन्होंने राजू का चेहरा गौर से देखा—वहाँ सिर्फ आग थी, कुछ कर गुजरने की। विजय ने ₹5000 का नोट निकाला और राजू के हाथ में रख दिया। “बिजनेस में ईमानदारी सबसे बड़ी पूँजी होती है। इन पैसों को बर्बाद मत करना।”

राजू ने विजय के पैर छुए और कहा, “साहब, आप देखना, मैं आपको निराश नहीं करूँगा।”

संघर्ष की शुरुआत

राजू ने उन ₹5000 को अपनी मुट्ठी में भींचा। वह थोक बाजार गया, पानी की बोतलों की क्रेट, बाल्टी और बर्फ खरीदी। पहली बार व्यापार का नशा चढ़ा। उसने देखा, जो बोतल ₹10 की थी, वह ₹20 में बिक रही थी। शाम तक उसकी सारी बोतलें बिक चुकी थीं। उसके पास ₹1000 थे—सीधा मुनाफा।

राजू ने तय किया, कल दो क्रेट माल उठाएगा। अब उसकी संघर्ष यात्रा शुरू हुई।

वह सुबह जल्दी उठता, मंडी जाता, माल उठाता, दिन भर धूप में तपता। मुश्किलें आईं—कभी पुलिसवाले भगाते, कभी बड़े लड़के पैसा छीनने की कोशिश करते, कभी लोग पैसे दिए बिना चले जाते। लेकिन राजू ने हार नहीं मानी। उसे विजय की बात याद थी—”ईमानदारी सबसे बड़ी पूँजी है।”

टीम वर्क और विस्तार

6 महीने में राजू ने इतने पैसे जमा कर लिए कि उसने एक पुरानी साइकिल खरीद ली। अब वह ज्यादा माल ला सकता था। उसने देखा, बस स्टॉप और रेलवे स्टेशन के बाहर भी पानी की मांग है। उसने अपने जैसे और बच्चों को साथ जोड़ा। जो बच्चे पहले भीख माँगते थे, राजू ने उन्हें काम दिया।

“भीख से पेट भरता है, काम से इज्जत मिलती है।”

राजू ने चारप लड़कों की टीम बनाई। अब वह खुद भी उतनी ही मेहनत करता था। माल लाता, टीम को अलग-अलग जगह भेजता, हर बोतल पर कमीशन देता। 1 साल, 2 साल, 5 साल बीत गए। अब राजू—आर्यन बन चुका था। उसने रात के स्कूल में दाखिला लिया, पढ़ाई पूरी की, अंग्रेजी सीखी, हिसाब-किताब सीखा।

ब्रांडिंग और बड़ा सपना

आर्यन ने देखा कि लोग सेहत को लेकर जागरूक हो रहे हैं। वह सिर्फ ठंडा पानी नहीं, बल्कि मिनरल वाटर चाहते हैं। अपनी जमा पूँजी से उसने छोटा सा आरओ प्लांट लगाया। खुद की ब्रांडिंग शुरू की—”लायन वाटर”। शेर का लोगो, नीली बोतलें।

शुरुआत में उसका ब्रांड छोटा था, लेकिन क्वालिटी और सर्विस इतनी अच्छी थी कि धीरे-धीरे मांग बढ़ने लगी। आर्यन ने कभी क्वालिटी से समझौता नहीं किया। गर्मियों में गरीबों के लिए मुफ्त पियाऊ लगवाता था।

15 साल बीत गए। वह ₹5000 अब ₹5000 करोड़ के साम्राज्य में बदल चुके थे। लायन वाटर देश का बड़ा ब्रांड बन गया। एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन, मॉल, फाइव स्टार होटल्स—हर जगह उसकी बोतलें।

आर्यन आलीशान ऑफिस में बैठता था, महंगे सूट पहनता, लग्जरी गाड़ियों में चलता। लेकिन उसकी कुर्सी के पीछे एक फ्रेम में ₹5000 का पुराना नोट लगा था—उसकी शुरुआत की याद।

मुलाकात और इंसानियत

आर्यन की सफलता की चर्चा हर जगह थी। उसे “वाटर किंग” कहा जाता था। लेकिन उसके दिल में एक कसक थी—वो उस इंसान से दोबारा मिलना चाहता था जिसने उसे ₹5000 दिए थे। उसे पता चला, विजय सेठी का बिजनेस घाटे में चला गया था, वे मुंबई छोड़कर चले गए थे।

एक दिन आर्यन को बिजनेस एक्सीलेंस अवार्ड समारोह में बुलाया गया। वही द रॉयल एंपायर होटल था। आर्यन चमचमाती गाड़ी से उतरा, उसकी आँखों में आँसू थे—15 साल पहले वो यहाँ नंगे पैर खड़ा था, आज सबसे खास मेहमान था।

समारोह में आर्यन ने अपनी कहानी सुनाई। ₹5000 वाली घटना का जिक्र किया। हॉल में सन्नाटा छा गया। भाषण के बाद उसकी नजर हॉल की आखिरी पंक्ति में बैठे एक बुजुर्ग पर पड़ी—विजय सेठी।

आर्यन स्टेज से नीचे उतरा, विजय के पास गया, उनके पैर छुए। विजय हड़बड़ा गए—”सर, आप क्या कर रहे हैं?” आर्यन ने कहा, “साहब, 15 साल पहले इसी होटल के बाहर एक बच्चे ने आपसे ₹5000 मांगे थे। आपने उसे दिए थे।”

विजय की आँखों में चमक लौट आई—”तुम वही बच्चे हो राजू?”
“हाँ साहब, वही राजू। आपका ₹5000 का बीज आज पेड़ बन गया है।”

विजय की आँखों से आँसू बहने लगे। उनका बिजनेस डूब चुका था, वे अकेले थे। लेकिन आज उन्हें एहसास हुआ—उनकी असली कमाई इंसानियत थी।

आर्यन ने विजय को गले लगाया। पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। आर्यन ने अपना अवार्ड विजय के हाथों में थमाया—”यह अवार्ड मेरे मेंटर, मेरे भगवान का है।”

रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट

आर्यन ने घोषणा की—”आज मैं विजय सर की कंपनी में 50% पार्टनरशिप का ऐलान करता हूँ। मैं पैसे नहीं दूँगा, अपनी मेहनत और संसाधन दूँगा। हम मिलकर फिर से शुरुआत करेंगे।”

विजय ने मना करना चाहा, लेकिन आर्यन ने कहा—”यह एहसान नहीं, रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट है। आपने ₹5000 लगाए थे, अब उसका रिटर्न लेने का वक्त है।”

अब शहर में सिर्फ लायन वाटर की नहीं, बल्कि उस रिश्ते की चर्चा होने लगी। विजय की कंपनी फिर से खड़ी हो गई। विजय को बेटा मिल गया, आर्यन को पिता।

₹5000 फाउंडेशन

आर्यन ने एक ट्रस्ट खोला—₹5000 फाउंडेशन। यह ट्रस्ट गरीब बच्चों को ढूंढता, जिनके पास आईडिया और जुनून होता, पैसे नहीं। आर्यन उन्हें छोटी पूँजी देता, उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करता।

समाज को संदेश

आर्यन अपनी फैक्ट्री के बाहर खड़ा है। एक तरफ विजय सेठी, दूसरी तरफ अनाथ बच्चे। वह बच्चों से कहता है—”तुम्हारी जेब खाली हो सकती है, लेकिन दिमाग और दिल कभी खाली नहीं होना चाहिए। नियत साफ है, मेहनत है तो ₹5000 भी करोड़ बन सकते हैं। गरीबी कमजोरी नहीं, ताकत है।”

शेर जंगल का राजा इसलिए नहीं होता क्योंकि उसके पास सोने का मुकुट है, बल्कि इसलिए क्योंकि उसका जिगर बड़ा होता है।

यह कहानी सिखाती है कि इंसान चाहे तो क्या नहीं कर सकता। परिस्थितियाँ तोड़ सकती हैं, लेकिन हरा नहीं सकती जब तक आप खुद हार न मान लें। भीख माँगना आसान है, पसीना बहाकर किस्मत लिखना मुश्किल। जो मुश्किल रास्ता चुनता है, मंजिल उसी के कदमों में होती है।

हमारी छोटी मदद, हमारा भरोसा किसी की पूरी दुनिया बदल सकता है। विजय सेठी ने उस दिन ₹5000 दिए, उनकी अच्छाई व्यर्थ नहीं गई। अच्छाई कभी न कभी ब्याज समेत लौटती है।

अगर यह कहानी आपको प्रेरित करे, तो इसे जरूर शेयर करें। शुरुआत कहीं से भी, कितने भी कम संसाधनों से हो सकती है—बस शुरुआत जरूरी है।

जय हिंद।