सिर्फ़ एक रात की पनाह मांगी थी… युवक ने जो किया, सबकी रुह कांप गई
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संगठन और इंसानियत: विकास और सुमित्रा की कहानी
भूमिका
आओ सुनाऊं किसे कहानियां। संध्या का समय था। आसमान में लालिमा फैली हुई थी और धीरे-धीरे अंधकार गिरने लगा था। विकास अपने घर के बरामदे में कुर्सी पर बैठा था। उसका मन भारी था। चेहरे पर उदासी की छाया थी। पिछले दो सालों से वह इसी तरह अकेला जी रहा था। जब से उसकी पत्नी का देहांत हुआ था, तब से यह घर सुना लगता था।
पहला मील का पत्थर
तभी दरवाजे पर आवाज हुई। विकास ने उठकर दरवाजा खोला तो सामने गोपाल काका खड़े थे। उनके साथ एक स्त्री और एक छोटा बालक था। बच्चे की उम्र तीन-चार साल की रही होगी। काका ने कहा, “आइए। क्या बात है?” विकास ने पूछा। गोपाल काका ने इधर-उधर देखा। फिर धीमी आवाज में कहा, “बेटा, यह महिला कई दिनों से मेरी दुकान के बाहर बैठी है। इसके पास रहने को कोई जगह नहीं है। सोचा तुम्हारे पास इसे एक रात के लिए छोड़ दूं। सुबह यह अपना रास्ता देख लेगी।”
विकास ने महिला की ओर देखा। उसके कपड़े मैले थे। चेहरे पर थकावट साफ झलक रही थी। बच्चा डरा हुआ, अपनी मां के पीछे छुपा खड़ा था। “लेकिन काका, मैं अकेला रहता हूं। लोग क्या कहेंगे?” विकास ने हिचकिचाते हुए कहा।
“अरे बेटा, इंसानियत की भी कोई बात होती है। यह बेचारी कहां जाएगी? बस एक रात की बात है। सुबह चली जाएगी,” गोपाल काका ने समझाया। विकास ने महिला के चेहरे पर नजर डाली। उसकी आंखों में गहरा दुख था। छोटा बच्चा भूख से बेहाल लग रहा था।
“ठीक है काका, आ जाओ अंदर,” विकास ने कहा। गोपाल काका चले गए। विकास ने महिला को घर के एक कमरे में बिठाया। “तुम यहां आराम करो। कोई परेशानी की बात नहीं है,” विकास ने कहा और बाहर चला आया।
रात की बेचैनी
रात हो चुकी थी। विकास के मन में बेचैनी थी। वो सोच रहा था कि कहीं यह महिला भूखी तो नहीं है। उसका बच्चा भी छोटा है। उसने रसोई से दूध गर्म किया और दो गिलास चाय बनाई। धीरे से वो कमरे के पास गया। दरवाजा हल्का खुला था। अंदर देखा तो महिला दीवार के सहारे बैठी थी। बच्चा उसकी गोद में सिर रखकर सो रहा था। दोनों के चेहरे पर गहरी थकान थी।
विकास ने धीमे से दरवाजा खटखटाया। “जी,” महिला ने डरी आवाज में कहा। “घबराओ मत। यह चाय है तुम्हारे लिए,” विकास ने कहा। महिला ने शक की नजरों से देखा। फिर धीरे से उठकर चाय का गिलास ले लिया। “धन्यवाद,” उसने हल्की आवाज में कहा और जल्दी से दरवाजा बंद कर लिया।
विकास समझ गया कि यह औरत बहुत डरी हुई है। शायद बुरे हालात ने इसे इतना सहमा दिया है। वो अपने कमरे में लौट आया। बिस्तर पर लेटते समय उसके मन में कई सवाल आए। यह कौन है? कैसे इस हालत में पहुंच गई? इसका बच्चा इतना छोटा है। इसका क्या कसूर? लेकिन उसने तय किया कि वह कोई सवाल नहीं करेगा। बस एक रात की मेहमानी है।
सुबह का नया सवेरा
सुबह जब विकास की आंख खुली तो वह दंग रह गया। घर का नजारा ही बदल चुका था। जो घर महीनों से गंदा और बिखरा पड़ा था, वो अब साफ-सुथरा चमक रहा था। फर्श चमकाया गया था। बर्तन धुले हुए रखे थे। रसोई एकदम व्यवस्थित लग रही थी। विकास को यकीन नहीं हुआ। वो इधर-उधर देखता रहा। सालों बाद उसके घर में यह सफाई दिखी थी। तभी महिला एक तश्तरी में चाय लेकर आई। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट थी।
“यह लीजिए चाय। अब हम निकल जाते हैं,” उसने कहा। “यह सब तुमने किया?” विकास ने आश्चर्य से पूछा। महिला ने नजरें झुकाई। “हां, आपने हमें जगह दी, तो यह तो हमारा फर्ज था। गंदगी देखकर मन नहीं माना।”
विकास कुछ देर खामोश रहा। उसे अपनी पत्नी की याद आई। जब वह थी तो घर भी इसी तरह सजा रहता था। आज वही सब कुछ वापस लौटा लगा। महिला अपने बेटे को जगाने लगी। “चल बेटा। हमें काम ढूंढने निकलना है। अगर काम नहीं मिला तो फिर सिर छुपाने की जगह भी नहीं मिलेगी।”
यह सुनकर विकास के दिल में कुछ हलचल हुई। वो सोचने लगा, “यह औरत इतनी मेहनती है। घर भी अच्छे से संभालती है। क्यों ना इसे यहीं रोक लूं? मेरा अकेलापन भी कम हो जाएगा।”
नई शुरुआत
“सुनो,” विकास ने कहा, “अगर तुम्हें कोई आपत्ति ना हो तो यहीं रहकर घर का काम कर सकती हो। मैं तुम्हें पैसे भी दूंगा।” महिला ने चौंक कर देखा। “लेकिन लोग क्या कहेंगे? मैं यहां कैसे रह सकती हूं?”
“लोगों की बात मत सोचो। तुम मेहनती हो, ईमानदार लगती हो। मुझे कोई गलत बात नजर नहीं आती।” महिला ने अपने बेटे को देखा। मासूम बच्चा विकास की तरफ देखकर हंस रहा था। “अगर आप सच कह रहे हैं, तो मैं यहीं रह जाऊंगी,” महिला ने कहा। विकास के चेहरे पर खुशी छा गई। “हां, अब से यह घर तुम्हारा भी है।”
इस तरह नई शुरुआत हुई। महिला ने घर संभाल लिया। विकास काम पर जाता और लौट कर तैयार खाना पाता। छोटा बच्चा भी उससे घुल-मिल गया था। धीरे-धीरे विकास का उदास मन खुशियों से भरने लगा।
छह महीने बाद
छह महीने बीत चुके थे। विकास की जिंदगी पूरी तरह बदल गई थी। अब वह सुबह उठता तो घर में खुशबूदार चाय की महक होती। दोपहर को काम से लौटने पर गर्म खाना तैयार मिलता। शाम को छोटा राहुल उसके साथ खेलता और उसे अंकल कहकर बुलाता। लेकिन एक बात हमेशा विकास के दिल में चुभती रहती थी। वो आज तक उस महिला का नाम भी नहीं जानता था। ना ही उसके अतीत के बारे में कुछ पता था। वो कहां से आई है? क्यों इतनी मुसीबत में है? यह सब जानने की इच्छा दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही थी।
एक शाम खेत से वापस आते समय विकास ने मन में ठान लिया। आज वह सब कुछ पूछेगा। घर पहुंचकर उसने देखा कि महिला रसोई में व्यस्त है और राहुल आंगन में खेल रहा है। विकास ने हिम्मत जुटाई और रसोई के पास जाकर कहा, “सुनो, मुझे तुमसे कुछ पूछना है। बुरा मत मानना।”
महिला के हाथ रुक गए। उसने चौंकते हुए पूछा, “जी, क्या बात है?” “तुम यहां 6 महीने से हो। इस घर को अपना बना लिया है। मेरी देखभाल भी करती हो। लेकिन आज तक मैंने तुम्हारा नाम भी नहीं पूछा। यह भी नहीं जाना कि तुम कहां से आई हो।”
यह सुनकर महिला की आंखों में आंसू आ गए। उसकी सांस तेज हो गई। “क्षमा करिए। अगर यह सवाल आपको परेशान करता है तो…” विकास ने कहा, “नहीं, आपकी कोई गलती नहीं। आपका हक है जानने का।”
सुमित्रा का अतीत
महिला ने कांपती आवाज में कहा, “मेरा नाम सुमित्रा है।” फिर वह चुप हो गई। कुछ देर बाद उसने गहरी सांस लेकर कहना शुरू किया, “मेरे पति का नाम राजेश था। वो एक छोटी सी दुकान चलाते थे। हमारी शादी को 5 साल हुए थे। राहुल पैदा होने के बाद हमारी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था।”
सुमित्रा की आवाज में दर्द झलक रहा था। “लेकिन एक दिन अचानक सब कुछ उजड़ गया। राजेश दुकान से घर लौट रहे थे तो रास्ते में एक ट्रक से टक्कर हो गई। वो घटना स्थल पर ही मर गए।” विकास का दिल जोर से धड़कने लगा। उसे अपनी पत्नी की मृत्यु की याद आई।
सुमित्रा आंसू पोंछते हुए आगे बोली, “हमने प्रेम विवाह किया था। घर वालों की मर्जी के बिना। इसलिए जब राजेश की मौत हुई तो उनके परिवार ने मुझे दोष दिया। कहा कि मैं अशुभ हूं। इसीलिए उनका बेटा मर गया।”
“यह कैसी बात है?” विकास ने हैरानी से कहा। “उन्होंने मुझसे कहा कि मैं और मेरा बच्चा अब उनके लिए बोझ है। मैंने बहुत गिड़गिड़ाया। कहा कि मुझे निकाल दो लेकिन राहुल को मत निकालो। यह तुम्हारे बेटे का खून है। लेकिन किसी ने नहीं सुना।”
सुमित्रा रो पड़ी। “उस दिन रात को उन्होंने हमारा सामान फेंक दिया और कहा कि सुबह तक घर खाली कर दो।” विकास की आंखें भी नम हो गई। “तब से हम यहां-वहां भटक रहे थे। कभी किसी की दया मिल जाती। कभी भूखे सोना पड़ता। उस दिन गोपाल काका की दुकान पर पहुंचे तो उन्होंने आपके बारे में बताया।”
विकास का निर्णय
“माफ करना सुमित्रा। मैंने तुम्हारे जख्मों को कुरेद दिया,” विकास ने कहा। “नहीं, आपकी कोई गलती नहीं। आज मन हल्का हो गया। महीनों बाद किसी ने मेरी बात सुनी।” उस दिन से विकास का दिल सुमित्रा के और भी करीब आ गया। उसे लगा कि दोनों की तकलीफें मिलती-जुलती हैं। दोनों ने अपना सब कुछ खोया है।
दिन बीतते गए। सुमित्रा और राहुल अब विकास के जीवन का अहम हिस्सा बन चुके थे। लेकिन गांव में अफवाहें फैलने लगीं। लोग कहते, “एक जवान औरत अकेले मर्द के घर में रह रही है। यह गलत बात है।”
गांववालों का विरोध
एक दिन सुबह-सुबह गांव के पांच-छह बुजुर्ग विकास के घर आ पहुंचे। उनमें से सबसे बड़े सरपंच ने गंभीर आवाज में कहा, “विकास, यह सब ठीक नहीं है। इस औरत को यहां से भेज दो।”
“क्यों? इसने क्या गलत किया है?” विकास ने पूछा। “गलत यह है कि तुम अकेले हो और यह जवान है। गांव में बदनामी हो रही है।”
“यह मेरे घर का काम करती है। बस इतना ही रिश्ता है।” लेकिन किसी ने नहीं सुना। सुमित्रा यह सब सुनकर रोने लगी। उसने जल्दी-जल्दी अपना सामान बांधा और राहुल का हाथ पकड़ा। “मैं जा रही हूं। आपकी बदनामी नहीं होने दूंगी।” वो बोली, राहुल रोता हुआ विकास से चिपक गया। “अंकल, मुझे यहीं रहना है।”
विकास का साहस
विकास का दिल टूट गया। उसने सबकी तरफ देखा और जोर से कहा, “अगर तुम लोगों को इतनी ही तकलीफ है तो सुनो। आज से यह मेरी पत्नी है और राहुल मेरा बेटा।” यह कहकर वह भीतर दौड़ा और सिंदूर लेकर आया। सबके सामने उसने सुमित्रा की मांग में सिंदूर भरा। “अब कोई कुछ नहीं कह सकता,” विकास ने कहा।
गांव वाले हैरान रह गए। सुमित्रा की आंखों से खुशी के आंसू बह रहे थे। गांव के लोग धीरे-धीरे वापस चले गए। सबके चेहरे पर हैरानी थी। किसी ने सोचा भी नहीं था कि विकास इतना बड़ा फैसला ले लेगा। सुमित्रा अभी भी सदमे में थी। उसके माथे पर सिंदूर चमक रहा था।
“आपने यह क्या कर दिया?” सुमित्रा ने कांपती आवाज में बोला। “मैं तो सिर्फ एक मजदूर थी।” विकास ने उसके कंधे पर हाथ रखा। “तुमने मेरे घर में जान डाली है। सुमित्रा, मैं सालों से अकेला था। तुम और राहुल ने मुझे जीने का मतलब दिया है।”
राहुल खुशी से तालियां बजाने लगा। “अब मैं यहीं रहूंगा। अंकल, मेरे पापा हैं।” हां बेटा, अब तू मेरा बेटा है। विकास ने उसे गोद में उठा लिया। सुमित्रा की आंखों से आंसू बहते रहे। “मैंने कभी सोचा नहीं था कि मुझे इतना सम्मान मिलेगा। आपने मुझे सिर्फ काम नहीं दिया बल्कि एक नई पहचान दी है।”
समाज का बदलाव
विकास मुस्कुराया। “सुमित्रा, यह सिर्फ समाज को दिखाने के लिए नहीं किया। मैं सच में चाहता था कि तुम हमेशा यहीं रहो। तुम्हारी वजह से मेरा यह घर फिर से घर लगने लगा था।”
शाम का समय था। पूरे गांव में यह खबर फैल चुकी थी कि विकास ने सुमित्रा से शादी कर ली है। कुछ लोग इसकी आलोचना कर रहे थे, कुछ तारीफ। रात को खाना खाते समय राहुल ने पूछा, “पापा, अब हम हमेशा साथ रहेंगे?”
“हां बेटा, अब कोई हमें अलग नहीं कर सकता,” विकास ने कहा। सुमित्रा चुपचाप खाना परोस रही थी। उसके चेहरे पर संतुष्टि थी। लेकिन कहीं ना कहीं चिंता भी। “क्या सोच रही हो?” विकास ने पूछा।
“बस यही कि लोग क्या कहेंगे? आपको कोई दिक्कत तो नहीं होगी?”
“अरे लोगों के मुंह बंद कराना हमारे बस की बात नहीं। हमें अपनी खुशी देखनी चाहिए,” विकास ने समझाया।
खुशियों का आगमन
दिन बीतते गए। घर में खुशियों का माहौल था। राहुल स्कूल जाने लगा था। विकास अपने काम में मन लगाता और घर आकर अपने नए परिवार के साथ समय बिताता। सुमित्रा भी अब पहले जैसी डरी हुई नहीं थी। वह खुलकर हंसती, घर की सजावट करती और पड़ोसी औरतों से बात करने लगी थी।
एक दिन गोपाल काका मिलने आए। उन्होंने विकास को अलग में बुलाकर कहा, “बेटा, तुमने जो किया वो बहुत अच्छा किया। उस बेचारी को सहारा मिल गया।”
“काका, मैंने कोई एहसान नहीं किया। बल्कि मुझ पर एहसान किया है इन्होंने। मेरी टूटी जिंदगी को फिर से जोड़ दिया।”
“यही तो इंसानियत है बेटा। दो टूटे हुए लोग मिलकर एक पूरा घर बना लेते हैं।”
महीनों बाद गांव वालों को भी एहसास हुआ कि विकास का फैसला सही था। सुमित्रा एक अच्छी पत्नी और मां साबित हुई थी। राहुल भी अब गांव के बाकी बच्चों के साथ घुल-मिल गया था।
होली का त्यौहार
एक साल बाद की बात है। होली का त्यौहार था। पूरा गांव रंगों में डूबा था। विकास के घर में भी धूमधाम से होली मनाई जा रही थी। राहुल खुशी से नाच रहा था। “देखो पापा, मैंने मम्मी को रंग लगाया।”
सुमित्रा हंसती हुई बोली, “अब तुम्हारी बारी है।” और उसने विकास के चेहरे पर गुलाल लगाया। विकास ने महसूस किया कि जिंदगी में यह खुशी उसे बहुत दिनों बाद मिली है। उसकी आंखें भर आईं।
“क्या हुआ? रो क्यों रहे हैं?” सुमित्रा ने चिंता से पूछा। “खुशी के आंसू हैं। सोच रहा था कि कितने सालों बाद होली का यह रंग मेरे जीवन में आया है।”
सुमित्रा भी भावुक हो गई। “मैं भी यही सोच रही थी। राजेश के जाने के बाद लगा था कि अब कभी खुशी नहीं मिलेगी।”
नवीनता और बदलाव
उस दिन शाम को जब मेहमान चले गए तो तीनों अपने आंगन में बैठे थे। आसमान में तारे चमक रहे थे। राहुल विकास की गोद में सिर रखकर बोला, “पापा, मुझे बहुत अच्छा लगता है यहां।”
“हमें भी बेटा,” विकास ने उसके बालों में हाथ फेरा। “सुमित्रा ने कहा, पता है कभी-कभी लगता है कि भगवान हमें तोड़कर फिर से जोड़ते हैं। शायद यही उनकी योजना थी।”
“सच कह रही हो? हम दोनों टूटे थे लेकिन साथ आकर एक मजबूत परिवार बन गए।” रात गहरा गई थी। राहुल सो गया था। विकास और सुमित्रा चुपचाप बैठे थे।
अंतिम विचार
विकास ने कहा, “सुमित्रा, एक बात कहूं?”
“हां, कहो।”
“आज लगता है कि मैं फिर से जी उठी हूं। आपने मुझे सिर्फ घर नहीं दिया बल्कि खुद की एक पहचान दी है और तुमने मुझे सिखाया है कि अकेलापन इंसान को कैसे मार देता है। साथ होने से कितनी ताकत मिलती है।”
इस तरह दो टूटे हुए लोगों की मुलाकात एक खूबसूरत कहानी बन गई। समाज जो गलत समझ रहा था, वह दरअसल दो दिलों का मिलना था। दो परिवारों के बिखरने के बाद एक नए परिवार का बनना था। विकास, सुमित्रा और राहुल अब एक पूरा घर थे। उनकी मुस्कुराहट में वह संतुष्टि थी जो सिर्फ सच्चे रिश्तों से मिलती है।
समापन
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इस कहानी ने हमें यह सिखाया कि इंसानियत और सहानुभूति का कोई मूल्य नहीं होता। जब हम एक-दूसरे का साथ देते हैं, तो हम न केवल अपने लिए बल्कि समाज के लिए भी एक सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं।
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