धर्मेंद्र की आखिरी वसीयत: टूटते रिश्तों को जोड़ने वाली कहानी

परिचय

धर्मेंद्र देओल—बॉलीवुड का वो नाम, जिसकी छाया में पीढ़ियाँ पनपीं, रिश्ते बने, और परिवारों का विस्तार हुआ। मगर जब एक दिन यह छाया सदा के लिए चली गई, तो उसके नीचे छुपी दरारें उजागर हो गईं। धर्मेंद्र के जाने के बाद उनके परिवार में सन्नाटा था, लेकिन जल्द ही यह सन्नाटा तूफान में बदल गया। असली जंग अब शुरू होने वाली थी—विरासत की जंग, संपत्ति की जंग, और सबसे बड़ी जंग—रिश्तों की।

विरासत का सीलबंद लिफाफा

धर्मेंद्र के निधन के बाद उनके जूहू स्थित पुराने घर में परिवार के सभी सदस्य इकट्ठा हुए। एक तरफ थे सनी देओल और बॉबी देओल, दूसरी तरफ हेमा मालिनी, ईशा देओल और अहाना देओल। दीवारों में ऐसी खामोशी थी, जिसमें चीखें दब जाती हैं। सबकी निगाहें धर्मेंद्र के कमरे की उस लोहे की अलमारी पर टिक गईं, जिसमें विरासत के कागज रखे थे। लेकिन जब अलमारी खुली, तो उसमें सिर्फ कुछ जेवर और कपड़े मिले। वसीयत गायब थी।

वसीयत की तलाश ने घर में घमासान मचा दिया। सनी गुस्से से बोले, “पापा ने साफ कहा था कि खेत, फार्म हाउस, स्टूडियो सब हमारा है।” हेमा मालिनी ने जवाब दिया, “धर्मेंद्र सिर्फ तुम्हारे पिता नहीं थे, हमारे भी थे। उनकी आखिरी इच्छा थी कि संपत्ति सबमें बराबर बंटे।” ईशा रोते हुए बोली, “हमने कभी कुछ नहीं मांगा, पर अब कोई पीछे हटने वाला नहीं है।”

आवाजें ऊंची होने लगीं, गुस्सा बढ़ता गया, और घर का एक पुराना लैंप जोर से गिरकर फर्श पर टूट गया। जैसे धर्मेंद्र की विरासत भी टुकड़ों में बंटने वाली थी।

रामू काका और विरासत का असली अर्थ

घर के सबसे भरोसेमंद नौकर रामू काका ने माहौल को शांत किया। उन्होंने अपनी जेब से एक पुराना मोड़ा हुआ सीलबंद लिफाफा निकाला। उसमें धर्मेंद्र की हस्तलिखित वसीयत थी। सबकी सांसें थम गईं। काका ने पढ़ना शुरू किया:

“मेरे प्यारे परिवार, मेरी दौलत, मेरा स्टूडियो, मेरी जमीनें—यह सब सिर्फ चीजें हैं। असली संपत्ति तुम सब हो। अगर मेरा परिवार टूट गया तो समझ लेना कि मेरी जिंदगी की सारी कमाई बर्बाद हो गई। मेरी आखिरी इच्छा है, सब कुछ बराबर बांट देना, चाहे जैसे भी, पर प्यार से।”

वसीयत के आखिरी शब्द पढ़ते ही कमरे में रोना गूंज उठा। सनी और बॉबी चुपचाप खड़े थे, गुस्सा पिघल चुका था। हेमा और प्रकाश कौर की आंखों में सिर्फ आंसू थे, नफरत नहीं। सनी आगे बढ़े, अपनी मां और हेमा दोनों का हाथ पकड़ा और कहा, “पापा जीत गए, हम नहीं टूटेंगे।” उस पल ऐसा लगा जैसे घर की टूटी हुई चीजें भी खुद को जोड़ने लगी हों।

 

रिश्तों की मरम्मत

वसीयत पढ़ने के बाद पहली बार सब ने एक दूसरे से नजर मिलाई और मुस्कुराए। धर्मेंद्र साहब की असली संपत्ति—उनका परिवार—बच गया। पत्थर, जमीन और सोना बंट सकता है, लेकिन दिलों का बंटना सबसे बड़ा अपराध होता है।

कमरे की हवा में अब भी घनी चुप्पी तैर रही थी। वह चुप्पी जो पहले गुस्से से भरी थी, अब पछतावे और टूटते दिलों के बोझ से भारी हो चुकी थी। धर्मेंद्र साहब की लिखी आखिरी वसीयत के शब्द मानो दीवारों पर उकेर दिए गए हों—”असली संपत्ति तुम सब हो।”

सनी देओल की आंखों में लालपन था, लेकिन इस बार गुस्से से नहीं, बल्कि उस दर्द से जो भीतर कहीं बहुत गहरे जमा था। हमेशा मजबूत, हमेशा शांत, हमेशा पिता सा व्यक्तित्व रखने वाला सनी पहली बार खुद को बेहद छोटा महसूस कर रहा था। बॉबी ने सनी के कंधे पर हाथ रखा, उसका हाथ कांप रहा था। उसी भाई की तरह जिसने हमेशा सनी को अपनी ताकत माना था, और आज पहली बार उसे कमजोरी में टूटते देखा।

हेमा मालिनी रोते-रोते कुर्सी पर बैठ गईं, उनके हाथ कांप रहे थे, आंखें इतनी भर चुकी थीं कि वह साफ देख भी नहीं पा रही थीं। उनके बगल में ईशा और अहाना एक दूसरे को संभाल रही थीं, पर खुद टूट रही थीं। प्रकाश कौर दूर खड़ी थीं, चुप शांत लेकिन अंदर से टूटी हुई। उनके चेहरे पर दुख था, मगर कोई शिकायत नहीं।

संपत्ति से ऊपर रिश्ते

कमरे में रखी पुरानी घड़ी की टिक-टिक अब किसी हथौड़े की तरह दिलों पर बज रही थी। अचानक रामू काका बोले, “साहब हमेशा कहते थे, एक घर टूटने में कुछ मिनट लगते हैं, लेकिन उसे जोड़ने में पूरी जिंदगी लग जाती है।”

सनी ने जमीन पर गिरे हुए टूटे कांच के टुकड़ों को देखा, जैसे वह परिवार का बिखराव हो। वह घुटनों पर बैठ गए, खुद अपने हाथों से उस कांच को उठाने लगे। उनकी उंगलियों से खून की बूंदें बहने लगीं। वो खून जो सफेद फर्श पर गिरता हुआ मानो चिल्ला रहा था कि सजाएं बहुत मिल रही हैं।

कमरा भारी था। बीच में गोलमेज थी, जिस पर बिखरे हुए कागज, अधूरी फाइलें और पुरानी यादों की हल्की सी धूल थी। भरपूर रोशनी के बावजूद कमरे में एक अजीब सा अंधेरा फैला हुआ था—घर का अंधेरा, रिश्तों का अंधेरा, चुप्पियों का अंधेरा।

एकता की ओर पहला कदम

हेमा मालिनी की आंखें उस वसीयत पर टिकी थीं जिसने पूरे परिवार को हिला दिया था। लेकिन असली वजह वसीयत नहीं थी, गहरा दबा हुआ दर्द था जो सालों से किसी कोने में पड़ा हुआ अब फटकर बाहर आना चाहता था। सनी खड़ा था—कड़क, मजबूत मगर अंदर से टूटा हुआ। शायद पहली बार उसने अपनी मां को इतना कमजोर देखा था।

हेमा ने खुद को रोकने की कोशिश की, लेकिन दिल हार गया। वह धीरे-धीरे चलकर सनी के पास आईं, उनका हाथ कांप रहा था। उन्होंने सनी के हाथ पकड़ लिए, आंखें भर आईं। “सनी, मैं बुरी नहीं हूं। मैंने कभी तुमसे कुछ छीना नहीं। मैं सिर्फ अपना हिस्सा नहीं, अपना सम्मान ढूंढ रही थी।”

सनी की आंखें भी भर आईं। उसके भीतर का किला जो कभी टूटता नहीं था, आज मिट्टी की दीवार जैसा घुलने लगा। “मां, हम सब गलत थे। पापा कभी नहीं चाहते थे कि हम एक दूसरे के सामने खड़े हों।”

बॉबी हल्के से बोला, “पापा कहते थे, शेर का परिवार जब लड़ता है तो दुनिया हंसती है और हम वही कर रहे थे।”

प्रकाश कौर आखिर बोल उठीं, “मेरी सबसे बड़ी गलती यह थी कि मैंने चुप रहना सीख लिया। अगर मैं बोलती, तो शायद आज यह दिन ना आता। धर्म का जाना हम सबको अकेला कर गया है, पर अकेले मरने की जरूरत नहीं है।”

धर्मेंद्र की विरासत: प्यार और एकता

अगले दिन सुबह, परिवार धर्मेंद्र के पुराने फार्म हाउस पहुंचा। वही जगह, जहां वह कहा करते थे—”यह जमीन मेरी सांस है।” सूरज ढल रहा था, आसमान नारंगी था, खेतों से आती मिट्टी की खुशबू में दिव्य शांति थी। एक पेड़ के नीचे पुरानी लकड़ी की मेज रखी गई, उस पर धर्मेंद्र की तस्वीर और चारों तरफ गेंदे और गुलाब के फूल।

सब एक सर्कल में बैठ गए, बिना कागज, बिना फाइलें, बस दिलों के साथ। रामू काका मसाला चाय बना रहे थे—वही चाय जो धर्मेंद्र सबको खुद पिलाते थे। जब सबने कप उठाए, तो कुछ पल के लिए किसी की सांस भी नहीं सुनी गई।

बॉबी ने धीरे से कहा, “पापा कहते थे, हीरो बनने के लिए स्क्रीन जरूरी नहीं होती, दिल बड़ा होना चाहिए।” उसकी आंखों में बचपन का डर, अधूरापन और पिता की कमी सब साफ दिख रहा था। ईशा ने अपनी डायरी खोली, एक चिट्ठी बाहर निकाली—”अगर कभी तुम सब अलग हो जाओ, तो वापस वहीं जाना जहां से प्यार शुरू हुआ था।”

आज प्यार बिल्कुल वहीं था—इन खेतों में, इन पेड़ों में, इन हवाओं में। हेमा और प्रकाश कौर एक दूसरे को देखकर मुस्कुराई। सनी तस्वीर के सामने घुटनों पर बैठ गया, हाथ जोड़कर बोला, “पापा, हम वादा करते हैं, अब यह घर कभी नहीं टूटेगा।”

अचानक आसमान से हल्की बारिश होने लगी। ऐसा लगा जैसे ऊपर से आशीर्वाद की बूंदें भेजी जा रही हों। सबके चेहरों पर एक हल्की मुस्कान आ गई। बारिश की बूंदें धर्मेंद्र की तस्वीर पर पड़ीं—जैसे खुद ईश्वर ने उनके आंसू पोंछे हों।

समाप्ति: असली विरासत

सनी, बॉबी, ईशा, अहाना, हेमा, प्रकाश कौर—सब खड़े हुए, हाथों में हाथ डाले। कई साल बाद, शायद पहली बार उनके बीच कोई दीवार नहीं थी। सिर्फ प्यार, सिर्फ परिवार, सिर्फ धर्मेंद्र की सीख—एकता।

धर्मेंद्र साहब की असली विरासत यही थी—रिश्तों की मरम्मत, परिवार की एकता, और प्यार की जीत। पत्थर, जमीन और सोना बंट सकता है, लेकिन दिलों का बंटना सबसे बड़ा अपराध है।

समाप्त