सौतेली मां ने छोटे बच्चे को एक कटोरी दूध के लिए मरते छोड़ा लेकिन, फिर जो हुआ

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माया: मां जो खून से नहीं, दिल से बनती है

उत्तराखंड के एक छोटे से गाँव दौलतपुर में मनु नाम का एक मासूम बच्चा रहता था। मनु की दुनिया उसकी मां सीमा थी। सीमा की ममता, उसकी हंसी, उसका प्यार मनु की ज़िंदगी की सबसे बड़ी खुशी थी। मनु डेढ़ साल का था जब एक दिन उसकी मां की अचानक मौत हो गई। सीमा बिजली के टूटे तार से करंट लगने से गिर पड़ी और फिर कभी उठ नहीं सकी।

मनु के पिता प्रकाश के लिए यह सदमा असहनीय था। वह अकेले ही मनु की परवरिश करने की कोशिश करता रहा, लेकिन मजदूरी की थकान और घर की जिम्मेदारियां उसे कमजोर कर रही थीं। गांव की औरतों ने सलाह दी कि प्रकाश को एक औरत का सहारा लेना चाहिए, ताकि घर संभल सके और मनु को मां जैसा प्यार मिल सके।

प्रकाश ने रूपा नाम की लड़की से शादी कर ली। शुरू में रूपा ने मनु का ध्यान रखा, उसे खिलाया, गोद में लिया। मनु भी उसके पास आने लगा। लेकिन समय के साथ रूपा का चेहरा बदल गया। वह मनु की हर गलती पर गुस्सा करती, उसे मारती और अपमानित करती। मनु के शरीर पर चोट के निशान बढ़ते गए, लेकिन गांव वाले चुप थे। रूपा ने मनु को भेदभाव और क्रूरता का शिकार बना दिया।

मनु अब पांच साल का हो चुका था, लेकिन उसकी मासूमियत कहीं खो गई थी। वह गांव की गलियों में अकेला घूमता, बच्चों के साथ खेलता तो था पर खुलकर हंस नहीं पाता था। उसकी आंखों में डर और सन्नाटा था। गांव के बच्चे उसे ताने मारते, लेकिन मनु चुप रहता।

एक दिन प्रकाश के छोटे भाई अविनाश की शादी हुई। नई बहू माया आई, जो पढ़ी-लिखी, समझदार और दयालु लड़की थी। माया ने मनु को देखा और उसकी हालत देखकर दिल भर आया। उसने मनु को अपनाया, उसे प्यार दिया, उसकी देखभाल की। मनु ने पहली बार किसी औरत की गोद में सुकून महसूस किया। माया ने मनु को अपने बच्चों की तरह प्यार किया।

धीरे-धीरे मनु का जीवन बदलने लगा। वह माया के साथ खेलने लगा, स्कूल जाने लगा, और पहली बार उसने माया को “मम्मा” कहकर पुकारा। माया की ममता ने मनु के जीवन में नई रोशनी लाई।

लेकिन रूपा को यह सब पसंद नहीं था। वह माया से जलने लगी और मनु को और भी ज्यादा सताने लगी। एक दिन माया को पता चला कि मनु दो दिन से खाना नहीं खा रहा है और रूपा ने उसे बंद कमरे में रखा है। माया ने मनु को बचाया और उसकी हालत देखकर वह फूट-फूट कर रोई।

गांव में पंचायत बुलाई गई, जहां रूपा के खिलाफ कार्रवाई हुई। लेकिन प्रकाश चुप रहा, क्योंकि समाज की मजबूरियां उसे चुप रहने पर मजबूर करती थीं। माया ने मनु को अपने साथ ले लिया और उसकी जिंदगी को नई दिशा दी।

सालों बाद मनु मुंबई में नौकरी करने लगा। वह मेहनत करता, अपनी तनख्वाह से माया और उसके बच्चों की मदद करता। मनु की जिंदगी में अब खुशी थी, प्यार था, और वह कभी अकेला महसूस नहीं करता था।

वहीं रूपा की जिंदगी तबाह हो चुकी थी। उसके बच्चे बिगड़ गए थे, और वह अकेली, बीमार और पछतावे में डूबी थी।

एक दिन गांव की पंचायत में रूपा ने मनु से उसके कमाए पैसों का हिस्सा मांगा। मनु ने पूरे गांव के सामने अपने जख्म दिखाए और माया को अपना सच्चा मां बताया। पंचायत ने रूपा को नसीहत दी कि जिसने बच्चे को पीटा और भूखा रखा, वह मां नहीं हो सकती।

मनु ने माया के पैर छुए और कहा कि वह हमेशा उसकी परछाई बनकर उसके साथ रहेगा। माया ने मनु के लिए मां बनने का सच्चा अर्थ दिखाया, जो खून से नहीं, कर्म से तय होता है।

कहानी का संदेश

यह कहानी हमें सिखाती है कि मां केवल खून का रिश्ता नहीं होती, बल्कि वह प्यार, ममता और समर्पण की भावना होती है। माया ने साबित किया कि सच्चा मां वही है जो दिल से अपने बच्चे का ख्याल रखे, चाहे वह उसका अपना न हो। मनु की जिंदगी की यह कहानी हर उस बच्चे और हर उस मां के लिए प्रेरणा है, जो प्यार और सम्मान के लिए लड़ते हैं।

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