हेमा रोते हुए वापस लौटी 😔सनी बोला तू घर से निकल जा विरासत की लड़ाई hema Malini Dharmendra Deol Movie
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विरासत की जंग: देओल परिवार की कहानी

24 नवंबर की वह काली रात थी, जब बॉलीवुड के महानायक धर्मेंद्र देओल का दिल अचानक थम गया। अस्पताल के मॉनिटर पर आखिरी बीप गूंजी, डॉक्टर सिर झुका कर बोले—“धर्मेंद्र अब इस दुनिया में नहीं रहे।” पूरे देओल परिवार की दुनिया एक पल में बदल गई। प्रकाश कौर जमीन पर गिर पड़ी, सनी दीवार पकड़ कर खड़े होने की कोशिश कर रहे थे, बॉबी रोते-रोते कुर्सी पर ढह गए। हेमा मालिनी की चीख पूरे घर में गूंज गई, उनकी बेटियां ईशा और अहाना भागती हुई मां को संभालने आईं। इस एक पल ने रिश्तों की दीवारें हिला दीं।
अंतिम विदाई और विरासत का सवाल
अंतिम संस्कार के बाद तेरह दिन तक सब चुप रहे। दुख के साथ-साथ दिलों में तूफान था। तेरहवीं के दिन वकील ने एक सफेद लिफाफा सबके सामने रखा—धर्मेंद्र की वसीयत। उसमें लिखा था—“मेरी जमीन, फार्महाउस, प्रॉपर्टी, पैसा सब बराबर बांटा जाए, लेकिन सिर्फ उन्हीं को जो परिवार को बचाए रखेंगे। अगर कोई परिवार को तोड़ने की कोशिश करेगा, वह मेरी विरासत का हकदार नहीं होगा।”
पर असली फैसला जुहू वाले पुराने बंगले की तिजोरी में बंद दस्तावेज से होना था। तिजोरी तभी खुलेगी जब पूरा परिवार एक साथ उसके सामने खड़ा होगा। यहीं से शुरू हुई विरासत की सबसे बड़ी जंग—दो परिवार, दो संसार।
टकराव और तिजोरी की चाबी
सनी बोले—“पापा चाहते थे परिवार एक रहे, तो रहेगा।” ईशा खड़ी हुई—“कौन सा परिवार? 40 साल तक हमारी मां को अलग रखा, अब परिवार की बात?” हेमा मालिनी रोते हुए बोलीं—“हम सिर्फ हमारा चाहते हैं।” प्रकाश कौर की आंखों में आंसू थे—“40 साल तुम चुप थी हेमा, आज विरासत की बात आई तो मां बन गई।”
एक हफ्ते बाद सब जुहू बंगले पहुंचे। वहां अंधेरे, धूल और पुरानी यादों के बीच लाल रंग की तिजोरी थी। वकील बोले—“कोड गलत हुआ तो तिजोरी हमेशा के लिए लॉक हो जाएगी।” दीवार पर धर्मेंद्र के परिवार की पुरानी फोटो थी। फोटो के पीछे लिखा था—“सात लोग एक दिन।” अहाना ने नंबर डाला—1958 (धर्मेंद्र की पहली फिल्म का साल)। क्लिक! तिजोरी खुल गई।
अंदर कोई जेवर नहीं, सिर्फ एक मोटी डायरी और सीलबंद यूएसबी। डायरी के पहले पन्ने पर लिखा था—“विरासत सिर्फ संपत्ति नहीं, परिवार है।” दूसरे पन्ने पर—“अगर तुम यह डायरी पढ़ रहे हो, तो समझ लो तुम टूट चुके हो।” तीसरे पन्ने पर—“मैंने वो राज छुपाया है, जिसे जानकर तुम तय करोगे कि किसे मेरा नाम आगे ले जाना चाहिए।” फिर लिखा था—“यूएसबी चलाओ।”
धर्मेंद्र का आखिरी संदेश
यूएसबी स्क्रीन में लगाई गई। वीडियो चालू हुआ—धर्मेंद्र कुर्सी पर बैठे, चेहरे पर थकान, आंखों में दर्द। बोले—“मैं मरने से नहीं डरता, लेकिन डरता हूं कि मेरे बाद मेरा परिवार बिखर जाएगा। इसलिए अपनी सारी संपत्ति, पैसा और नाम एक ही इंसान के नाम कर दिया है। वह वही होगा जो मेरी आखिरी इच्छा पूरी करेगा—परिवार को एक कर दो। अगर एक हो गए तो सब तुम्हारा, नहीं तो सब गरीब बच्चों के नाम चला जाएगा।”
कमरे में सन्नाटा। असली जंग शुरू। सनी बोले—“मैं तैयार हूं।” ईशा बोली—“हम तुम्हारा नेतृत्व कभी स्वीकार नहीं करेंगे।” बॉबी चीखें—“पापा छोड़ गए, हम अब भी लड़ रहे हैं।” हेमा रोते हुए—“यह विरासत की नहीं, इज्जत की लड़ाई है।” प्रकाश चिल्लाईं—“इज्जत हमने खोई है, हेमा तुमने नहीं।”
अस्तित्व की लड़ाई
अचानक बाहर एक काली कार आकर रुकी। अंदर से आदमी निकला—“मैं बैंक से हूं। देओल समूह पर 420 करोड़ का कर्ज है। 15 दिन में पैसा नहीं लौटा तो सारी प्रॉपर्टी नीलाम।” सबके पैरों तले जमीन खिसक गई। अब यह विरासत की नहीं, अस्तित्व की लड़ाई थी।
सनी ने अपनी फिल्मों की कमाई लगा दी। बॉबी ने बिजनेस लोन लिया। हेमा ने बंगला बेचने की बात चलाई। ईशा-अहाना ने गहने गिरवी रख दिए। 15 दिन में पहली बार सब बिना लड़ाई के साथ बैठे, साथ खाए, साथ रोए।
परिवार की असली विरासत
15वें दिन रात को बिजली चली गई। मोमबत्ती की रोशनी में सनी ने डायरी खोली—आखिरी पन्ने पर लिखा था—“अगर तुम सब एक हो गए, तो तुमने जीत लिया। यही मेरी सच्ची विरासत।”
सनी ने हाथ बढ़ाया—“हम एक हैं।” एक-एक कर सबने हाथ पकड़े। प्रकाश कौर और हेमा मालिनी ने भी हाथ मिलाया। अगले दिन बैंक गए, सबकी संपत्ति जोड़कर कर्ज चुका दिया। किसी को कुछ नहीं मिला, लेकिन सबको परिवार वापस मिल गया।
बाहर आते-आते मोबाइल पर मैसेज आया—“यूएसबी पार्ट दो अनलॉक हो गया।” उसमें सिर्फ एक लाइन थी—“अब मेरी सारी विरासत तुम्हारी है, क्योंकि तुमने खुद को जीत लिया।” धर्मेंद्र साहब की सारी संपत्ति आधिकारिक रूप से देओल फैमिली के संयुक्त नाम हो गई। आसमान में हल्की बारिश शुरू हो गई—लग रहा था जैसे धर्मेंद्र ऊपर से मुस्कुरा रहे हों।
अंतिम राज़ और सच्चाई का तूफान
रात गहरी थी, देओल हाउस की खिड़कियां तेज हवा में कांप रही थीं। परिवार के चेहरे पर तनाव था। धर्मेंद्र की तिजोरी में मिली यूएसबी ने जो सच बताया, वह पूरे हिंदुस्तान को हिला सकता था।
सनी टेबल पर झुका था, हाथ में धर्मेंद्र और एक अजनबी आदमी की पुरानी फोटो। पीछे लिखा था—“जिसे सब दुश्मन कहेंगे, असल में वही दोस्त होगा।” धर्मेंद्र ने वीडियो में कहा—“मेरी मौत किसी बीमारी से नहीं, मुझे जहर दिया गया था।” सब सन्न रह गए। स्क्रीन पर नाम उभरा—गौरव अरोड़ा। सनी बोले—“गौरव तो पापा का बचपन का दोस्त था।”
धर्मेंद्र ने बताया—गौरव अंडरवर्ल्ड के डॉन शेर खान के साथ काम करता था। उसने धर्मेंद्र को काले धन में निवेश के लिए मनाया, लेकिन धर्मेंद्र ने इंकार कर दिया। गौरव ने कहा—“तुम्हारी इज्जत ही तुम्हें मार डालेगी।” और उसने धर्मेंद्र की मौत का प्लान बनाया।
परिवार का फैसला
वीडियो बंद हुआ। सनी बोले—“अब हम सब एक होकर रहेंगे। यही पापा की सच्ची विरासत है।” परिवार ने मिलकर तय किया कि अब कोई राज छुपेगा नहीं, कोई रिश्ता टूटेगा नहीं।
कहानी का संदेश:
विरासत सिर्फ जमीन, बंगला या पैसे की नहीं होती। असली विरासत परिवार, रिश्तों और इज्जत की होती है। जब परिवार एक हो जाता है, तो हर जंग जीती जा सकती है। धर्मेंद्र देओल ने जो संदेश छोड़ा, वह हर परिवार के लिए है—अपनों को जोड़ो, तो सब कुछ तुम्हारा है।
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समाप्त
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