होटल में झाड़ू लगाते बच्चे ने कहा-‘सर, आपकी घड़ी नकली है…’ और फिर जो हुआ!

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सच्चाई की घड़ी – होटल के बच्चे की कहानी

होटल में झाड़ू लगाते बच्चे ने कहा-'सर, आपकी घड़ी नकली है...' और फिर जो हुआ!  | Emotional Story

प्रस्तावना

नागपुर के एक छोटे से होटल “सुदर्शन इन” में हर दिन सैकड़ों लोग आते-जाते थे। होटल के मालिक मोहन भालेराव, उम्र 48, खुद गरीब थे लेकिन दिल के बड़े। होटल उनके लिए सिर्फ एक व्यवसाय नहीं, बल्कि जीवन की आखिरी उम्मीद था। मोहन के पास ज्यादा कर्मचारी नहीं थे, लेकिन एक बच्चा था – नायन पाटिल, उम्र सिर्फ 12 साल। दुबला, शांत, हमेशा सहमा-सहमा सा। उसकी आँखों में गहरा दर्द, और हाथों में अद्भुत हुनर था। टूटी चीजें उसके हाथ में आते ही जैसे खुद ठीक हो जातीं।

नायन की दुनिया

नायन झाड़ू लगाता, मेहमानों के कमरे साफ करता, और होटल की मशीनों को ठीक करता। मेहमान अक्सर कहते, “यह बच्चा नहीं, मशीनों का डॉक्टर है।” लेकिन असलियत यह थी कि नायन किसी भी चीज को ठीक नहीं कर रहा था, बल्कि उसे समझ रहा था। उसकी उंगलियाँ धातु, पेंच, स्प्रिंग को छूते ही उनकी कहानी जान लेती थीं। मोहन को उसका हुनर हैरान करता था, लेकिन नायन कभी घमंड नहीं करता था। बस चुपचाप काम करता और उसकी आँखों में एक पुराना दर्द तैरता रहता।

एक खास शाम

उस दिन शाम 6:40 बजे होटल के बाहर एक चमचमाती गाड़ी आकर रुकी। उसमें से उतरे सुरेश गावली, उम्र 38, शहर के नामी बिजनेसमैन। उनके पास महंगी घड़ियों का कलेक्शन था। रिसेप्शन पर आते ही मोहन ने स्वागत किया। सुरेश की नजर होटल की सादगी पर थी, और फिर मोहन ने नायन को इशारा किया – कमरा 204 साफ है ना?

नायन बोला, “जी मालिक। बस पानी रख देता हूँ।” सुरेश हल्का सा मुस्कुराए, “मेहनती लड़का है आपका।” मोहन ने गर्व से कहा, “हमारा नायन दिल से काम करता है।”

घड़ी की सच्चाई

जब नायन कमरे की ओर जा रहा था, उसकी नजर सुरेश की कलाई पर पड़ी। एक महंगी विदेशी घड़ी। नायन कुछ सेकंड उसे देखता रहा, फिर अचानक बोला, “सर, आपकी घड़ी असली नहीं है।” पूरा रिसेप्शन खामोश। मोहन का चेहरा सफेद। सुरेश वहीं रुक गए – शॉक्ड, गुस्से और हैरानी के बीच।

“क्या कहा तुमने?” सुरेश की आवाज भारी थी।

नायन ने नीचे देखा, फिर धीरे कहा, “सर, यह घड़ी जितनी कीमत आप बता रहे हैं, उतनी नहीं है। इसमें असली मशीन जैसी आवाज नहीं है, सेकंड की टिक अटकी हुई है।”

सुरेश ठहाका मारने वाले थे, लेकिन रुक गए। उन्होंने अपनी घड़ी उतारी, “इसे पकड़ो।” नायन ने कांपते हाथों से घड़ी पकड़ी, दो सेकंड सुना और बोला, “सर, यह घड़ी किसी और के हाथ में थी, इसे जल्दबाजी में खोला गया है। एक स्क्रू नहीं है, बाकी पुरानी।”

सुरेश का चेहरा पहली बार बदल गया।

बच्चे का राज

मोहन घबरा गया, “बेटा, छोड़ दे घड़ी। सर, माफ कीजिए।” लेकिन सुरेश बोले, “इसे बहुत कुछ पता है।”

पूरे होटल में चुप्पी। सुरेश ने धीरे कहा, “यह घड़ी मेरे करीबी इंसान ने दी थी, हाल ही में किसी ने रिपेयर किया था। लेकिन सवाल यह है कि तुम्हें इतनी गहराई कैसे पता लगी?”

नायन चुप रहा, उसकी उंगलियाँ घड़ी को पकड़ते हुए कांप रही थीं। जैसे कोई पुरानी याद उसके मन में दर्द बनकर उठ रही हो।

“बोलो बच्चा, यह हुनर कहां से आया?” सुरेश ने पूछा।

मोहन बेचैन। लेकिन सुरेश ने कहा, “इस बच्चे की आँखों में कुछ है जो वह छुपा रहा है।”

नायन ने घड़ी वापस करते हुए कहा, “मैंने एक बार ऐसी ही घड़ी खोली थी और उसकी आवाज टूट गई।”

मोहन ने पहली बार गौर किया, नायन की आँखों में नमी थी।

बीती रात की कहानी

रात को होटल की लाइटें बंद हुईं, नायन अकेले कोने में बैठा था। उसकी उंगलियाँ अभी भी उसी घड़ी की कंपट महसूस कर रही थीं। उसकी आँखों में वही पुरानी याद चमक रही थी, जिसने उसके जीवन को बदल दिया था।

सवालों का जवाब

अगले दिन सुरेश फिर होटल आए। मोहन ने उन्हें स्टोर में भेजा, जहां नायन पुराने टूलबॉक्स को साफ कर रहा था। सुरेश ने मेज पर अपनी घड़ी रख दी, “यह घड़ी कल तुमने कहा था असली नहीं है, कैसे जाना?”

नायन ने सांस खींची, “सर, चीजें आवाज से खुद बता देती हैं। इस घड़ी के अंदर वाला रिंग बहुत हल्का है, असली वाली घड़ी के जैसी गूंज नहीं देता।”

“और वो स्क्रू?” सुरेश ने पूछा।

नायन की उंगलियाँ कांप गईं, “ऐसा स्क्रू मैंने पहले भी देखा है।”

“कहाँ?” सुरेश की आवाज धीमी थी।

नायन ने पहली बार सीधे उनकी तरफ देखा, “एक आदमी था सर, जो हर चीज जोड़ता था, पर अपनी जिंदगी नहीं जोड़ पाया। उसके पास भी ऐसी ही घड़ी थी। मैं उसकी घड़ी खोलता रहता था। वही स्क्रू, वही आवाज, वही हल्की सी दरार।”

“वह आदमी कौन था?” सुरेश ने पूछा।

“वो मेरे बाबा थे।” नायन की आवाज में सालों का दबा दर्द था।

बाबा की याद

“मेरे बाबा घड़ी रिपेयर करते थे, छोटी-छोटी चीजें जोड़ते बनाते। मैं उनके पास बैठकर सब देखता। उन्होंने कहा था – चीजें टूटती हैं, पर अगर ध्यान से सुनो तो बता देती हैं कि उन्हें ठीक कैसे होना है।”

“फिर क्या हुआ?” सुरेश ने पूछा।

“एक रात बहुत बड़ा झगड़ा हुआ था घर में। बाबा कहीं जाने लगे और जाते हुए घड़ी मेरे पास रख गए। सुबह मोहल्ले वाले आए, बोले बाबा नहीं रहे।”

मोहन की आँखें भर आईं। उसे पहली बार समझ आया कि यह बच्चा हमेशा इतना चुप क्यों रहता था।

घड़ी का रहस्य

“उस दिन से मैं आवाज सुनकर समझ जाता हूँ कि चीज टूटी है या जुड़ी है। बाबा की दी हुई आखिरी चीज रोज खोलता हूँ। वही स्क्रू, वही आवाज, वही कमी इस घड़ी में भी थी। इसलिए बोल दिया।”

सुरेश कुछ पल चुप रहे, फिर बोले, “जिस आदमी ने मेरी घड़ी ठीक की थी, उसका नाम भी पाटिल था।”

“कौन पाटिल?” नायन की आँखें फैल गईं।

“कारीगर का नाम वसंत पाटिल था।”

“वो मेरे बाबा का नाम है।” नायन का चेहरा पीला पड़ गया।

सच्चाई का खुलासा

सुरेश बोले, “यह घड़ी उसी दुकान में ठीक करवाया गया था जहां नायन के पिता काम करते थे।”

“और एक बात और है नायन। यह घड़ी मुझे किसी और ने दी थी। उसने कहा था, ‘इसे संभाल कर रखना, कभी काम आएगी। अगर किसी बच्चे ने इसे देखकर कुछ कहा, तो उसका हाथ मत छोड़ना।’”

“किसने दी थी सर?” नायन ने पूछा।

“नाम नहीं जानता, लेकिन उसने कहा था कि वह तुम्हारे बाबा को जानता है।”

हवा भारी हो गई। शायद किसी बहुत बड़े राज की शुरुआत थी।

बाबा की तलाश

सुरेश बोले, “3 साल पहले मैं पुणे गया था। एक आदमी आया, चुप, शांत, आँखों में थकान। उसने मुझे यह घड़ी दी और कहा – ‘अगर नागपुर जाओ तो होटल सुदर्शन इन देखना, वहां कोई बच्चा है जो टूटी चीजें ठीक करता है।’”

नायन की धड़कनें तेज होने लगीं, “शायद मेरे बाबा जिंदा हैं?”

मोहन ने हाथ पकड़ लिया, “बेटा, कभी-कभी बड़े लोग मजबूरी में टूट जाते हैं।”

नागपुर स्टेशन से शांतिनगर तक

तीनों – मोहन, सुरेश और नायन – नागपुर रेलवे स्टेशन पहुंचे। वहां किसी को बाबा याद नहीं था। थक कर प्लेटफार्म पर बैठ गए। घड़ी की बैक कवर पर हल्की खरोच थी – “शांतिनगर” लिखा था।

तीनों ऑटो से शांतिनगर पहुंचे। पुरानी गलियां, हल्की रोशनी, पुराने मकान। एक बुजुर्ग मिले, बोले – “कुछ महीनों पहले एक आदमी यहां आया था, घड़ी और औजारों की आवाज आती थी उसके कमरे से।”

“वह आदमी अब कहां है?” सुरेश ने पूछा।

“वह कहता था, ‘मेरा काम पूरा हुआ, अब मुझे अपने बेटे को ढूंढना है।’ अगर कोई बच्चा मुझे ढूंढने आए तो बता देना, मैं वहीं जाऊंगा जहां उसकी मां आखिरी बार गई थी।”

धारणी की यात्रा

नायन की मां का गांव था धारणी। अगले दिन तीनों धारणी पहुंचे, नदी किनारे गए जहां नायन की मां का अंतिम संस्कार हुआ था। वहां एक पेड़ था, और उसके पास एक आदमी बैठा था – साधारण कपड़े, थका हुआ शरीर, चेहरे पर वही गहराई।

नायन के कदम रुक गए। आदमी ने मुड़कर देखा, “नायन!” नायन की आंखों से आंसू फूट पड़े, “बाबा!” आदमी घुटनों पर गिर पड़ा, “माफ कर दे बेटा, मजबूरी थी।”

“मैं तुझे खतरे में नहीं डाल सकता था, इसलिए चला गया। हर दिन, हर रात सिर्फ तू ही याद आता था।”

परिवार का पुनर्मिलन

नायन अपने बाबा के गले लग गया, “अब आप कहीं नहीं जाएंगे। हम साथ रहेंगे।” बाबा ने सिर हिलाया, “अब कभी नहीं।”

हवा में शांति थी, सूरज ढल रहा था, और एक टूटा हुआ परिवार आखिर जुड़ गया था।

कहानी का संदेश

सच्चाई कभी उम्र नहीं देखती, बस सही वक्त देखकर बोल पड़ती है। नायन के हुनर ने उसकी जिंदगी का सबसे बड़ा राज खोल दिया। परिवार, दर्द, और सच्चाई – तीनों ने मिलकर एक टूटे हुए बच्चे को फिर से जोड़ दिया। कभी-कभी छोटी-सी चीज, जैसे एक घड़ी, पूरी जिंदगी बदल सकती है।

समाप्त