10 साल की बच्ची अचानक गर्भवती हो गई – डॉक्टर दंग रह गए, पीछे का राज़ सुनकर सबकी आँखों में आँसू आ गए!
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प्रिया की संघर्ष और साहस
प्रस्तावना
आंसु भारी कहानियों चैनल में आपका स्वागत है, जहां हम जिंदगी के अंधेरे कोनों से निकली सच्ची भावुक ड्रामा से भरपूर और गहरी सीख देने वाली कहानियां सुनाते हैं। आज हम एक नई कहानी लेकर आए हैं। यह कहानी है प्रिया की, एक 10 साल की बच्ची जो उत्तर प्रदेश के एक गरीब गांव में रहती थी। उसकी कहानी न केवल दिल को छू लेगी, बल्कि यह हमें मानवीयता और साहस का एक नया पाठ भी सिखाएगी।
शांतिपुर गांव का जीवन
शांतिपुर गांव गंगा नदी के किनारे शांति से बसा हुआ था। यहां के लोग खेती और मछली पकड़कर अपना गुजारा करते थे। प्रिया का परिवार भी इसी गांव में रहता था। उसका पिता रमेश एक गरीब किसान था, जबकि उसकी मां सरिता कबाड़ बिनकर कुछ पैसे कमाती थी। प्रिया की एक 15 साल का भाई रोहन था, जो अक्सर स्कूल छोड़कर अपने पिता के साथ खेतों में काम करने चला जाता था।
प्रिया सिर्फ 10 साल की थी, लेकिन उसमें एक देहाती बच्चे की मासूम सुंदरता थी। उसकी बड़ी-बड़ी गोल आंखें और मुस्कान सुबह की धूप की तरह भोली थी। उसे ज्यादा पढ़ने का मौका नहीं मिला, लेकिन वह अपनी मां से कुछ बुनियादी अक्षर पढ़ना सीख चुकी थी। उसका ज्यादातर समय घर पर अपनी मां के साथ कबाड़ बिनने या गांव के दोस्तों के साथ नदी किनारे खेलने में बीतता था।
एक दिन की घटना
गांव के लोग प्रिया को उसकी मासूमियत और आज्ञाकारिता के कारण बहुत प्यार करते थे। लेकिन प्रिया की शांतिपूर्ण जिंदगी अगस्त की एक बरसात की दोपहर में अचानक बिखर गई। उस दिन प्रिया अपने दोस्तों के साथ आंगन में खेल रही थी कि अचानक वह अपना पेट पकड़ कर जमीन पर गिर पड़ी। उसका चेहरा पीला पड़ गया और पसीना ऐसे छूट रहा था मानो नहा ली हो।
सरिता घबरा गई और दौड़कर अपनी बेटी को गले से लगा लिया। “प्रिया, मेरी बच्ची, क्या हुआ? कहां दर्द हो रहा है?” प्रिया ने कमजोर आवाज में रोते हुए कहा, “मां, पेट में बहुत दर्द हो रहा है। मुझसे सहा नहीं जा रहा।”
अस्पताल की दौड़
रमेश ने जल्दी से साइकिल चलाकर प्रिया को गांव के स्वास्थ्य केंद्र ले जाने की कोशिश की। लेकिन वहां के डॉक्टर ने सिर हिलाया। “इतना तेज दर्द है। इसे तुरंत जिला अस्पताल ले जाना होगा। मैं इसे नहीं संभाल सकता।”
परिवार घबरा गया। उन्होंने पड़ोसियों से मोटरसाइकिल उधार ली और मूसलाधार बारिश में प्रिया को जिला अस्पताल ले गए। इमरजेंसी रूम में डॉ. वर्मा ने प्रिया को देखा। वह दर्द से लगभग बेहोश हो चुकी थी। उन्होंने उसकी जांच की और फिर अचानक नर्स को बुलाया। “तुरंत स्त्री रोग विशेषज्ञ को बुलाओ। जल्दी करो।”

गर्भावस्था का रहस्य
सरिता बाहर चिंता में खड़ी डॉक्टर से पूछ रही थी, “मेरी बेटी को क्या हुआ है? उसे तो बस पेट में दर्द है। आप स्त्री रोग विशेषज्ञ को क्यों बुला रहे हैं?” डॉ. वर्मा मुड़े, उनका चेहरा पीला पड़ चुका था। उनकी आवाज कांप रही थी। “शांत रहिए। मैं विश्वास नहीं कर पा रहा हूं। लेकिन आपकी बेटी प्रिया गर्भवती है। गर्भ 3 महीने से ज्यादा का है और पेट में दर्द गर्भपात के संकेत हैं।”
यह सुनते ही रमेश कुर्सी पर गिर पड़े और चिल्लाए, “क्या मेरी बेटी 10 साल की है? वह कैसे गर्भवती हो सकती है? डॉक्टर साहब, आपसे कोई गलती हुई है, यह नामुमकिन है।” सरिता अपना चेहरा ढक कर सिसक-सिसक कर रोने लगी। “हे भगवान, मेरी बच्ची सिर्फ 10 साल की है। किसने उसके साथ ऐसा किया? डॉक्टर साहब, मेरी बच्ची को बचा लीजिए।”
सच्चाई का खुलासा
इमरजेंसी रूम के डॉक्टर हैरान थे। कोई विश्वास नहीं कर पा रहा था कि 10 साल की बच्ची गर्भवती हो सकती है। स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. शर्मा दौड़कर आई और अल्ट्रासाउंड करके पुष्टि की। “हां, गर्भ 3 महीने से ज्यादा का है। लेकिन प्रिया बहुत छोटी है। उसका शरीर यह सहन नहीं कर सकता। हमें तुरंत इमरजेंसी ऑपरेशन करना होगा।”
प्रिया को गंभीर हालत में ऑपरेशन थिएटर ले जाया गया। जबकि रमेश और सरिता बाहर गलियारे में घुटनों के बल बैठकर रो रहे थे। “मेरी बच्ची, तेरे साथ किसने ऐसा किया? मां माफ कर दे, मां तेरी रक्षा नहीं कर सकी।”
गांव में हंगामा
यह खबर अस्पताल में और फिर पूरे शांतिपुर गांव में आग की तरह फैल गई। हर कोई हैरान था। “हे भगवान, जिसने भी यह किया है वह कितना बड़ा पापी है।” ऑपरेशन थिएटर में 2 घंटे से ज्यादा समय के बाद डॉ. शर्मा बाहर निकलीं। उनका चेहरा उदास था। “हमने प्रिया को बचा लिया है लेकिन गर्भ नहीं बच सका। बच्ची का शरीर बहुत कमजोर था। वह उसे संभाल नहीं पाई। लेकिन सवाल यह है कि उसे गर्भवती किसने किया? यह सामान्य बात नहीं है। हमें पुलिस को सूचित करना होगा।”
पिता का गुस्सा
रमेश ने दीवार पर हाथ पटकते हुए चिल्लाया, “कौन? किसने मेरी बेटी के साथ ऐसा किया? मैं उसे मार डालूंगा।” सरिता जमीन पर गिरकर रोने लगी। “प्रिया, मां माफ कर दे। मुझे पता नहीं था। मैंने तुझे इतना दुख झेलने दिया।”
प्रिया रिकवरी रूम में लेटी थी। उसकी आंखें बंद थीं, सांसे कमजोर थीं। उसे नहीं पता था कि एक ऐसा रहस्य जिसका खुलासा होने पर हर कोई रो पड़ेगा, सामने आने का इंतजार कर रहा था।
पुलिस की जांच
जिला अस्पताल में इमरजेंसी ऑपरेशन के बाद प्रिया रिकवरी रूम में लेटी थी। रमेश और सरिता प्रिया के माता-पिता बाहर गलियारे में एक दूसरे को पकड़ कर सिसक-सिसक कर रो रहे थे। डॉ. शर्मा ने एक लंबी सांस ली और रमेश से कहा, “रमेश जी, प्रिया अब खतरे से बाहर है लेकिन उसका शरीर बहुत कमजोर है। उसे ठीक होने में समय लगेगा। लेकिन इस मामले को ऐसे नहीं छोड़ा जा सकता। एक 10 साल की बच्ची का गर्भवती होना जरूर किसी ने उसके साथ गलत किया है। आप पुलिस को रिपोर्ट करें। हम भी अपने सीनियर्स को रिपोर्ट करेंगे।”
पिता का प्रतिशोध
रमेश ने चिल्लाया, “पुलिस को रिपोर्ट? मैं पहले उस कमीने को ढूंढूंगा। मैं उसके टुकड़े-टुकड़े कर दूंगा। मेरी बेटी अभी बच्ची है। वह सिर्फ 10 साल की है। डॉक्टर साहब, आप समझ रहे हैं?”
सरिता अपना चेहरा ढक कर रोने लगी। “डॉक्टर, मेरी बच्ची को बचा लीजिए। क्या उसे होश आ गया? मैं उससे मिलना चाहती हूं।”
डॉ. शर्मा ने उसका हाथ पकड़ा। “सरिता जी, प्रिया को अभी होश नहीं आया है लेकिन हम पूरी कोशिश कर रहे हैं। आप शांत रहिए ताकि पुलिस जांच कर सके। उस अपराधी को सजा मिलनी ही चाहिए।”
प्रिया की हालत
सुबह होने तक प्रिया ने आंखें खोलनी शुरू की। उसकी साफ आंखें अब दर्द और थकान से धुंधली थीं। उसने फुसफुसाया, “मां, मां मुझे बहुत दर्द हो रहा है। मुझे क्या हुआ है?”
सरिता कमरे में भागी और अपनी बेटी को गले लगाकर सिसक-सिसक कर रोने लगी। “प्रिया, मेरी बच्ची, मां यहीं है। तुझे होश आ गया।”
प्रिया ने अपनी मां का हाथ पकड़ा। उसकी आवाज कमजोर थी। “मां, मेरे पेट में दर्द हो रहा है। मुझे नहीं पता। मुझे बहुत डर लग रहा है।”
भाई का अपराधबोध
रमेश पास ही खड़ा था। उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। “प्रिया, मेरी बच्ची, डरो मत। पापा यहां हैं। पापा तुम्हारी रक्षा करेंगे। बस पापा को बताओ, तुम्हारे साथ किसने क्या किया।”
प्रिया ने अपने पिता की ओर देखा। उसकी आंखों में घबराहट थी और फिर वह रो पड़ी। “पापा, मुझे नहीं पता। मुझे बस याद है कि एक बार मैं सो रही थी। मुझे दर्द हुआ। मैं समझ नहीं पाई।”
यह सुनकर रमेश अपना सिर पकड़ कर बिस्तर पर गिर कर रोने लगा। “हे भगवान, मेरी बच्ची, मेरी बच्ची के साथ ऐसा किसने किया?”
सच्चाई का सामना
प्रिया की मासूम शब्द उसके माता-पिता के दिल में चाकू की तरह चुभ गए। सरिता ने अपनी बेटी को गले लगाया और चिल्लाई, “प्रिया, क्या तुम सच कह रही हो? तुम्हें किसने दर्द दिया? तुम्हें कुछ याद है? मां की खातिर, मां को बताओ।”
प्रिया ने सिर हिलाया, उसके आंसू गिर रहे थे। “मां, मुझे नहीं पता। मुझे बस याद है कि एक बार मैं घर पर सो रही थी। मेरे पेट में दर्द हुआ। मैं डर गई थी, लेकिन मैंने किसी को बताने की हिम्मत नहीं की।”
गांव का गुस्सा
प्रिया की हालत की खबर शांतिपुर गांव में तेजी से फैल गई जिससे पूरे समुदाय में सदमा और गुस्सा भर गया। प्रिया की पड़ोसन माया अस्पताल दौड़कर आई और रोने लगी। “हे भगवान, प्रिया तो इतनी अच्छी बच्ची है। कौन इतना नीच हो सकता है? 10 साल की उम्र में गर्भवती, मुझे विश्वास नहीं हो रहा।”
खेत में काम करने वाले रामू चाचा ने मछली पकड़ने वाले श्याम भैया से फुसफुसाया, “रमेश के घर में यह किसने किया होगा? जरूर कोई करीबी ही होगा। पुलिस को आना ही होगा, नहीं तो गांव वाले खुद ही इंसाफ कर देंगे।”
पुलिस की कार्रवाई
अफवाहें फैलने लगीं। “उस प्रिया के साथ किसी ने गलत किया है। 10 साल की उम्र में गर्भवती, कितना भयानक है।” पूरा गांव बेचैन था और शक की निगाहें प्रिया के परिवार की ओर उठने लगीं। लेकिन किसी ने सीधे तौर पर कुछ कहने की हिम्मत नहीं की।
इस बीच जिला पुलिस को अस्पताल से रिपोर्ट मिली। वे तुरंत जांच में जुट गए। इंस्पेक्टर सिंह जो इस मामले के इंचार्ज थे, प्रिया के परिवार से अस्पताल में ही मिलने आए। उन्होंने रमेश से पूछा, “रमेश जी, प्रिया को अब होश आ गया है। आप मुझे बताइए पिछले कुछ महीनों में कोई अजनबी आपके घर आया था?”
पिता का विश्वास
रमेश ने इंस्पेक्टर का हाथ पकड़ लिया। उसकी आवाज कांप रही थी। “साहब, मुझे नहीं पता। हमारा घर गरीब है। कोई ज्यादा आता-जाता नहीं। बस मैं, सरिता, रोहन और प्रिया ही रहते हैं। मैं खेत पर जाता हूं। सरिता कबाड़ बिनने जाती है। रोहन प्रिया के साथ घर पर ज्यादा रहता है। मुझे किसी पर शक नहीं है।”
इंस्पेक्टर सिंह ने नोट किया। उनकी आवाज धीमी हो गई। “आप शांत रहिए। हम जांच करेंगे। लेकिन आपने कहा कि रोहन प्रिया के साथ घर पर रहता है। हमें उससे मिलना होगा। यह मामला सीधा नहीं है। इसे साफ करना होगा।”
रमेश चौंक गया और चिल्लाया, “रोहन? यह नामुमकिन है। रोहन प्रिया का भाई है। वह ऐसा नहीं करेगा।”
आधिकारिक जांच
पुलिस ने उस पर शक ना करें। सरिता रोने लगी। “साहब, रोहन 15 साल का है। वह बहुत सीधा है। यह नामुमकिन है। मेरी बेटी पहले ही बहुत दुख में है, उसे और दुख मत दीजिए।”
इंस्पेक्टर सिंह ने सिर हिलाया लेकिन उनकी आंखों में शक की एक झलक थी। “आप चिंता ना करें। हम जल्दबाजी में कोई नतीजा नहीं निकालेंगे। लेकिन हमें सुराग के लिए रोहन से पूछना होगा।”
प्रिया 10 साल की है। यह मामला बहुत ही असामान्य है। प्रिया बिस्तर पर लेटी थी। उसके छोटे हाथ मां के हाथ को कसकर पकड़े हुए थे। वह रो रही थी। “मां, मुझे डर लग रहा है। मुझे और दर्द नहीं चाहिए।”
भाई से सामना
सरिता ने अपनी बेटी को गले लगाया। “प्रिया, मां यहीं है। कोई तुम्हें नुकसान नहीं पहुंचाएगा। तुम सोचो, मां तुम्हारे साथ यहीं है।” लेकिन उसके दिल में एक भयानक शक घर करने लगा था। बच्ची को गर्भवती किसने किया? कहीं घर का ही कोई तो नहीं।
रमेश पास में बैठा अपना सिर पकड़ कर रो रहा था। “प्रिया, पापा माफ कर देना। पापा तुम्हारी रक्षा नहीं कर पाए। पापा उस कमीने को ढूंढ निकालेंगे। पापा कसम खाते हैं।”
प्रिया के अस्पताल में होश में आने के बाद कमरे का माहौल भारी और तनावपूर्ण हो गया था। प्रिया बिस्तर पर सिकुड़ी हुई लेटी थी। उसकी आंखें लाल थीं। उसकी आवाज कमजोर थी। “मां, मुझे नहीं पता। मुझे बस याद है कि एक बार मैं सो रही थी। मुझे दर्द हुआ। मैं डर गई। लेकिन मैंने किसी को बताने की हिम्मत नहीं की।”
दुख का सामना
रमेश ने दीवार पर हाथ पटकते हुए चिल्लाया, “नामुमकिन है। मैं भी विश्वास नहीं करता। लेकिन प्रिया कह रही है कि घर पर तो रोहन के अलावा कौन? हमारे घर में मेरे, तुम्हारे और रोहन के अलावा कौन है?”
सरिता चौंक गई। उसकी आवाज कांप रही थी। “जी, आप क्या कह रहे हैं? कहीं-कहीं रोहन तो नहीं? यह नामुमकिन है। वह प्रिया का भाई है। वह ऐसा नहीं करेगा।”
रमेश ने दीवार पर हाथ पटकते हुए चिल्लाया, “नामुमकिन है। मैं भी विश्वास नहीं करता। लेकिन प्रिया कह रही है कि घर पर तो रोहन के अलावा कौन? हमारे घर में मेरे, तुम्हारे और रोहन के अलावा कौन है?”
सच्चाई का खुलासा
इंस्पेक्टर सिंह जो मामले के इंचार्ज थे, पास ही खड़े प्रिया और परिवार की हर बात नोट कर रहे थे। उन्होंने रमेश की ओर देखा। “रमेश जी, मैं आपका दर्द समझता हूं लेकिन जल्दबाजी में कोई नतीजा ना निकालें। हमें रोहन से मिलना होगा। सारी बातें साफ करनी होंगी। अगर यह घर का कोई है तो हम उसे साफ कर देंगे।”
पुलिस की कार्रवाई
इंस्पेक्टर सिंह ने पुलिस की टीम को निर्देश दिया कि वे रोहन को बुलाएं। रमेश ने कहा, “मैं उसे अकेले में पूछूंगा।” लेकिन उसकी आंखों में गुस्सा भरा था। “ठीक है साहब, मैं उसे अभी लाता हूं। अगर उसने सच में ऐसा किया है तो मैं उसे नहीं छोड़ूंगा। भले ही वह मेरा बेटा हो।”
सरिता सिसक-सिसक कर रोने लगी। “आप ऐसा मत कहिए। रोहन बहुत सीधा है। वह ऐसा नहीं करेगा।”
रोहन की स्थिति
रमेश शांतिपुर गांव की ओर भागा। बारिश में पागलों की तरह साइकिल चला रहा था। उसका दिल पिता के प्यार और प्रिया के दर्द के बीच उलझा हुआ था। जब वह अपनी फूस की झोपड़ी पर पहुंचा तो उसने देखा कि रोहन, उसका 15 साल का बेटा, बरामदे में सिकुड़ा हुआ बैठा था।
“रोहन, यहां आ। पुलिस तुझे बुला रही है। तुझे प्रिया के बारे में पता चला।”
रोहन ने सिर उठाया। उसकी आंखों में घबराहट थी। “पापा, क्या बात है? मैंने गांव वालों से सुना कि प्रिया की तबीयत ठीक नहीं है। उसे क्या हुआ है?”
पिता का गुस्सा
रमेश ने रोहन का कॉलर पकड़ लिया और गरजा, “तू अभी भी नाटक कर रहा है। प्रिया गर्भवती है। 10 साल की उम्र में गर्भवती है। तू उसके साथ घर पर रहता था। सच बता, तूने उसके साथ कुछ किया है?”
रोहन चौंक गया। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। “पापा, आप क्या कह रहे हैं? मैंने प्रिया के साथ कुछ नहीं किया। मैं उसका भाई हूं। आप मुझ पर शक कैसे कर सकते हैं?”
पुलिस की पूछताछ
रमेश ने अपने बेटे की ओर देखा। उसका दिल कट रहा था। लेकिन प्रिया के शब्द और पुलिस के शक ने उसे शांत नहीं रहने दिया। उसने रोहन को साइकिल पर खींचा और सीधे अस्पताल ले गया।
“रोहन, पुलिस को सच बताना। अगर तूने किया है तो पापा तुझे माफ नहीं करेंगे। लेकिन अगर तूने नहीं किया है तो पापा माफ कर देना।”
रोहन रोने लगा। “पापा, मैंने नहीं किया। मैं प्रिया से बहुत प्यार करता हूं। मैंने उसके साथ कुछ नहीं किया।”
जब वे अस्पताल पहुंचे तो इंस्पेक्टर सिंह ने रोहन को एक अलग कमरे में ले गए। जबकि रमेश और सरिता प्रिया के पास रुक गए। उन्होंने रोहन से पूछा।
“रोहन, डरो मत। मैं पुलिस वाला हूं। मुझे तुमसे सच जानना है। तुम पिछले कुछ महीनों से प्रिया के साथ घर पर थे? क्या तुमने किसी अजनबी को घर में आते देखा या तुमने प्रिया के साथ कुछ किया?”
रोहन अपना चेहरा ढक कर रोने लगा। “पुलिस अंकल, मैंने कुछ नहीं किया। मैं घर पर प्रिया के साथ रहता था। मैंने पापा के साथ खेत पर जाता था। मैंने किसी अजनबी को नहीं देखा। मुझे नहीं पता था कि वह गर्भवती है। मैंने कुछ नहीं किया।”
पुलिस की जांच
इंस्पेक्टर सिंह ने रोहन को देखा। लड़के की आंखों में घबराहट और सच्चाई थी। लेकिन उन्होंने जल्दबाजी में कोई नतीजा नहीं निकाला। उन्होंने आगे पूछा। “रोहन, ध्यान से याद करो। क्या कभी प्रिया सो रही थी और तुमने किसी को आते देखा या कुछ अजीब सुना?”
रोहन ने सिर हिलाकर रोते हुए कहा, “अंकल, मुझे नहीं पता। एक बार मैं खेत से लौटा तो मैंने प्रिया को रोते हुए देखा। मैंने पूछा तो उसने कहा कि पेट में दर्द है। मैंने सोचा कि उसने कुछ गलत खा लिया होगा। मुझे नहीं पता था।”
पुलिस की कार्रवाई
इंस्पेक्टर सिंह ने नोट किया। उनकी आवाज धीमी हो गई। “ठीक है, रोहन, मुझे विश्वास है कि तुम सच कह रहे हो। लेकिन मुझे और जांच करनी होगी। तुम अपने माता-पिता के पास जाओ लेकिन गांव मत छोड़ना। अगर कुछ हुआ तो मुझे तुमसे फिर मिलना होगा।”
जब रोहन बाहर निकला तो रमेश उसकी ओर लपका और उसके कंधे पकड़ लिए। “रोहन, तूने पुलिस को क्या बताया? क्या तूने सच में किया है?”
रोहन सिसक-सिसक कर रोने लगा। “पापा, मैंने नहीं किया। मैंने कसम खाई है कि मैंने प्रिया के साथ कुछ नहीं किया।”
माता-पिता का दर्द
सरिता दौड़ कर आई और रोहन को गले लगाकर रोने लगी। “जी, आप बेटे पर शक मत कीजिए। रोहन ने नहीं किया। मुझे उस पर विश्वास है। लेकिन अगर उसने नहीं किया तो किसने? किसने प्रिया के साथ ऐसा किया?”
रमेश ने अपना सिर पकड़ लिया। “मुझे नहीं पता। अगर रोहन ने नहीं किया तो किसने? हमारे घर में तो कोई और है ही नहीं।”
गांव का गुस्सा
कमरे में प्रिया ने अपने माता-पिता को झगड़ते हुए सुना। वह रोने लगी। “मां, पापा, झगड़ा मत करो। मुझे डर लग रहा है। मैं नहीं चाहती कि रोहन भैया को डांट पड़े।”
सरिता ने अपनी बेटी को गले लगाया। “प्रिया, मेरी बच्ची, चिंता मत कर। मां रोहन भैया पर विश्वास करती है। मां पता लगाएगी कि तुम्हें किसने नुकसान पहुंचाया। तुम सोचो, मां तुम्हारे साथ यहीं है।”
लेकिन उसके दिल में एक भयानक शक अभी भी बना हुआ था। अगर रोहन ने नहीं किया तो हमारे घर में कौन आया? या फिर वह आगे सोचने की हिम्मत नहीं कर सकी। लेकिन उसकी नजरें दरवाजे की ओर गई जहां गांव वाले इकट्ठा होकर फुसफुसा रहे थे।
गांव की चर्चा
इस घटना की खबर पूरे शांतिपुर गांव में फैल गई और समुदाय में भावनाओं का एक तूफान उमड़ पड़ा। माया दौड़कर आई और रोने लगी। “हे भगवान, क्या रोहन पर शक किया जा रहा है? यह नामुमकिन है। वह बहुत सीधा है।”
रामू चाचा ने जोर से कहा, “अगर रोहन ने नहीं किया तो किसने? रमेश का घर बहुत बंद रहता है। केवल कोई परिचित ही हो सकता है।”
पुलिस ने जांच शुरू की। पड़ोसियों से बयान लिए लेकिन भयानक सच अभी भी गहरा दबा हुआ था। सामने आने का इंतजार कर रहा था।
सुरेश का खुलासा
रोहन से अस्पताल में पूछताछ के बाद प्रिया के परिवार का माहौल और भी भारी हो गया। रमेश बाहर गलियारे में गुमसुम बैठा था। उसके कांपते हाथ सिर पर थे। उसका दिल पिता के प्यार और शक के बीच उलझा हुआ था। अगर यह रोहन नहीं है तो कौन? हमारे घर में कौन था? जिसने प्रिया के साथ ऐसा किया।
सरिता ने प्रिया के पास बैठी उसका हाथ कसकर पकड़े हुए थी। “रोहन, मेरी बच्ची, कुछ याद आए तो मां को बताना। मां को विश्वास नहीं है कि रोहन भैया ने ऐसा किया है। लेकिन मां को जानना है कि तुम्हें किसने नुकसान पहुंचाया।”
पुलिस की कार्रवाई
इंस्पेक्टर सिंह ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर सुरेश, रमेश के चचेरे भाई की जांच शुरू की। सुरेश अक्सर रमेश के घर आता था और बच्चों के साथ खेलता था। लेकिन अब सभी की नजरें उस पर थीं।
इंस्पेक्टर ने सुरेश को पूछताछ के लिए बुलाया। सुरेश ने घबराकर कहा, “मैंने कुछ नहीं किया। मैं तो बस खेलने और बच्चों के लिए कुछ सामान देने जाता था।”
लेकिन सुरेश के घबराए हुए रवैये ने इंस्पेक्टर को शक में डाल दिया। उन्होंने उसे विस्तृत बयान के लिए थाने ले जाने का आदेश दिया।
सुरेश का अपराधबोध
पुलिस थाने में पूछताछ के दबाव में सुरेश आखिरकार सिर झुका कर रो पड़ा। “मुझसे गलती हो गई। मैंने ही किया है। मैं खुद को रोक नहीं पाया। मुझे माफ कर दो।”
इंस्पेक्टर सिंह ने मेज पर हाथ पटकते हुए चिल्लाया, “तुम क्या कह रहे हो? तुमने प्रिया के साथ क्या किया? साफ-साफ बताओ।”
सुरेश ने अपना चेहरा ढक लिया। उसकी आवाज कांप रही थी। “एक बार मैं रमेश के घर गया तो प्रिया घर पर अकेली थी। मैंने उसे देखा। वह बहुत मासूम थी। मैं खुद को रोक नहीं पाया। मैंने गलत किया। मैंने बस एक बार किया। मैंने नहीं सोचा था कि वह गर्भवती हो जाएगी। मुझे माफ कर दो।”
पुलिस की कार्रवाई
लेकिन उसकी माफी उस भयानक अपराध को नहीं मिटा सकती थी जिसका खुलासा हुआ था। पुलिस ने तुरंत प्रिया के परिवार को खबर दी। जब इंस्पेक्टर सिंह अस्पताल पहुंचे तो रमेश और सरिता प्रिया के पास बैठे थे।
उन्होंने उन्हें बाहर बुलाया। उनकी आवाज भर्रा गई। “रमेश जी, सरिता जी, हमने उसे ढूंढ लिया है। यह आपके चचेरे भाई सुरेश ने प्रिया के साथ यह किया है। उसने अपना जुर्म कबूल कर लिया है।”
पिता का गुस्सा
यह सुनते ही रमेश जमीन पर गिर पड़े और चिल्लाए, “क्या? सुरेश, मेरा भाई जैसा! उसने मेरी बेटी के साथ ऐसा किया। मैं उसे मार डालूंगा।”
वह दरवाजे की ओर भागे लेकिन पुलिस ने उन्हें रोका। “नहीं, रमेश जी, ठहरिए। हमें कानून के अनुसार कार्यवाही करनी होगी।”
सुरेश की गिरफ्तारी
सुरेश को जेल हो गई थी। लेकिन प्रिया और उसके परिवार का दर्द अभी रुका नहीं था। अस्पताल में कुछ दिन रहने के बाद प्रिया की सेहत धीरे-धीरे सुधरने लगी। लेकिन उसकी आत्मा अभी भी डर और दर्द में कैद थी।
हर रात प्रिया चौंक कर उठ जाती और रोते हुए अपनी मां को बुलाती। “मां, मुझे डर लग रहा है। सुरेश मामा आ गए।”
सरिता अपनी बेटी को गले लगाती। “प्रिया, मां यहीं है। कोई तुम्हें नुकसान नहीं पहुंचाएगा। तुम सो जाओ। मां तुम्हारे पास है।”
नए जीवन की शुरुआत
धीरे-धीरे मीना जी की कोमलता ने प्रिया के डर को कम करने में मदद की। वह बेहतर सोने लगी और कभी-कभी उन लोकगीतों को भी गुनगुनाती थी जो मीना जी ने सिखाए थे।
रमेश और सरिता अक्सर सप्ताहांत पर प्रिया से मिलने आते। अपने साथ कुछ सब्जियां और सूखी मछली लाते। हर बार जब वह अपनी मां से मिलती, प्रिया सरिता की गोद में कूद जाती और रोती, “मां, मुझे आपकी याद आती है। आप मेरे साथ रहिए।”
सरिता अपनी बेटी को गले लगाती, उसके आंसू बहते। “प्रिया, मां को भी तुम्हारी याद आती है। लेकिन तुम यहां मीना दीदी के साथ ज्यादा अच्छी हो। मां और पापा तुमसे अक्सर मिलने आएंगे।”
सपनों की ओर कदम
प्रिया की कहानी यह सिखाती है कि अच्छाई का फल देर से मिलता है, लेकिन मिलता जरूर है। जब आप दूसरों की मदद करते हैं, तो जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं।
निष्कर्ष
इस तरह, प्रिया ने न केवल अपनी जिंदगी बदली, बल्कि अपने परिवार और समुदाय के लिए भी एक मिसाल कायम की। उसकी कहानी आज भी लोगों को प्रेरित करती है कि वे हमेशा दूसरों की मदद करें, क्योंकि कभी-कभी एक छोटी सी मदद किसी की जिंदगी को बदल सकती है।
यह कहानी हमें यह भी याद दिलाती है कि हमें अपने आस-पास के बच्चों की सुरक्षा के लिए हमेशा जागरूक रहना चाहिए। हमें उन्हें ऐसे खतरों से बचाना चाहिए जो उनके मासूम बचपन को छीन सकते हैं।
प्रिया की कहानी एक सच्ची त्रासदी है, लेकिन यह भी एक प्रेरणा है कि कैसे एक बच्चा अपने दर्द और संघर्ष से उबरकर जीवन में आगे बढ़ सकता है।
आशा है कि इस कहानी ने आपके दिल को छू लिया होगा और आप इसे अपने दोस्तों और परिवार के साथ साझा करेंगे। धन्यवाद!
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