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नेहा का बचपन

नेहा उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव सूरजपुर में पली-बढ़ी। उसके पिता, रामलाल, एक किसान थे, जो दिन-रात खेतों में मेहनत करते थे। उनकी मां, सुमित्रा देवी, एक गृहिणी थीं, जो घर का काम संभालते हुए परिवार का सहारा थीं। नेहा के दो छोटे भाई-बहन थे, जिनकी पढ़ाई और परवरिश की जिम्मेदारी भी नेहा के कंधों पर थी।

गांव में शिक्षा का स्तर बहुत खराब था। नेहा के स्कूल में न तो अच्छे शिक्षक थे और न ही पर्याप्त संसाधन। लेकिन नेहा के अंदर कुछ अलग करने का जुनून था। वह हमेशा किताबों में खोई रहती। उसे नई-नई चीजें सीखने का बहुत शौक था।

नेहा के पिता की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। कई बार फसल खराब होने पर उन्हें कर्ज लेना पड़ता था। इसके बावजूद उन्होंने अपनी बेटी की पढ़ाई में कोई कमी नहीं रखी। नेहा के पिता हमेशा कहते, “बेटी, पढ़ाई ही वह चाबी है जो तुम्हें इस गरीबी से बाहर निकाल सकती है।”

पहली चुनौती

नेहा ने 12वीं कक्षा में अपने जिले में टॉप किया। यह उसके परिवार के लिए गर्व का पल था। लेकिन इसके बाद सवाल आया कि आगे की पढ़ाई कैसे होगी। गांव में कॉलेज नहीं था और शहर जाकर पढ़ाई करने के लिए पैसे नहीं थे।

नेहा ने अपने पिता से कहा, “पापा, मैं पढ़ाई नहीं छोड़ सकती। मैं कुछ भी करूंगी, लेकिन मुझे आगे बढ़ने का मौका दीजिए।”

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उसके पिता ने अपनी थोड़ी-बहुत जमीन गिरवी रखकर नेहा को शहर के एक कॉलेज में दाखिला दिलाया। नेहा ने भी ठान लिया था कि वह अपने पिता की मेहनत को व्यर्थ नहीं जाने देगी।

शहर की जिंदगी और संघर्ष

शहर की जिंदगी नेहा के लिए बिल्कुल नई थी। वहां की चमक-दमक और तेज रफ्तार जिंदगी नेहा को कभी-कभी डरा देती थी। लेकिन उसने खुद को संभाला। कॉलेज में नेहा ने अपनी पढ़ाई के साथ-साथ पार्ट-टाइम नौकरी करनी शुरू की। वह दिन में कॉलेज जाती और शाम को एक कैफे में काम करती।

नेहा ने अपनी पढ़ाई में कभी कोई समझौता नहीं किया। वह पढ़ाई में इतनी अच्छी थी कि उसके प्रोफेसर भी उसकी तारीफ करते थे। लेकिन नेहा को कई बार अपने गांव की याद आती थी। उसे अपने माता-पिता और भाई-बहन की चिंता रहती थी।

सपनों की उड़ान

नेहा का सपना था कि वह एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर बने। लेकिन उसके पास न तो कंप्यूटर था और न ही कोई कोचिंग के लिए पैसे। उसने लाइब्रेरी में जाकर किताबें पढ़ना शुरू किया। उसने कॉलेज के कंप्यूटर लैब में ज्यादा से ज्यादा समय बिताया।

एक दिन कॉलेज में एक हैकाथॉन (प्रोग्रामिंग प्रतियोगिता) का आयोजन हुआ। नेहा ने उसमें भाग लिया। उसने दिन-रात मेहनत करके एक ऐसा ऐप बनाया, जो किसानों को उनकी फसल के लिए सही बाजार और दाम की जानकारी देता था।

उसकी मेहनत रंग लाई। नेहा ने वह प्रतियोगिता जीत ली और उसे एक बड़ी आईटी कंपनी में इंटर्नशिप का मौका मिला।

परिवार की उम्मीदें

नेहा की इस सफलता ने उसके परिवार को एक नई उम्मीद दी। उसके पिता ने गर्व से कहा, “मेरी बेटी ने साबित कर दिया कि अगर हौसले बुलंद हों, तो कोई भी मुश्किल आपको रोक नहीं सकती।”

लेकिन नेहा की राह अभी भी आसान नहीं थी। इंटर्नशिप के दौरान उसे कई बार लोगों के तानों का सामना करना पड़ा। लोग कहते थे, “गांव की लड़की क्या आईटी सेक्टर में काम करेगी?”

लेकिन नेहा ने इन बातों पर ध्यान नहीं दिया। उसने अपने काम में खुद को साबित किया।

नेहा का बड़ा मौका

इंटर्नशिप खत्म होने के बाद नेहा को उसी कंपनी में नौकरी का ऑफर मिला। यह उसके लिए एक बड़ा मौका था। उसने अपनी नौकरी से मिलने वाली पहली तनख्वाह अपने पिता का कर्ज चुकाने में लगाई।

नेहा ने अपने गांव के बच्चों के लिए एक छोटा सा लर्निंग सेंटर भी खोला, जहां वह उन्हें कंप्यूटर और अंग्रेजी सिखाती थी।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान

नेहा की मेहनत और लगन ने उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। उसने एक ऐसा सॉफ्टवेयर विकसित किया, जिसने किसानों की जिंदगी बदल दी। इस सॉफ्टवेयर ने किसानों को उनकी फसल के लिए सही बाजार और दाम दिलाने में मदद की।

नेहा को इसके लिए कई पुरस्कार मिले। उसे संयुक्त राष्ट्र (United Nations) में अपनी कहानी शेयर करने का मौका मिला। उसने वहां कहा, “मैंने अपनी जिंदगी में सीखा है कि सपनों को पूरा करने के लिए सिर्फ मेहनत और लगन की जरूरत होती है।”

नेहा की कहानी का संदेश

आज नेहा एक सफल सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। उसने अपने परिवार और गांव का नाम रोशन किया है। उसकी कहानी हमें सिखाती है कि अगर आपमें कुछ करने का जुनून और मेहनत करने की लगन हो, तो कोई भी मुश्किल आपको रोक नहीं सकती।

“सपने सच होते हैं, बस आपको उन्हें पूरा करने का हौसला रखना होगा।”