6 साल के गरीब मासूम बच्चे ने || अनजान महिला से कहा माँ तुम कहां थी मैं भूखा हूं।
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माँ की ममता और एक नई शुरुआत
लखनऊ की व्यस्त सड़कों पर एक मल्टीनेशनल कंपनी का ऑफिस था, जहाँ सोनिया काम किया करती थी। वह एक साधारण लेकिन मेहनती महिला थी, जो अपने परिवार के लिए हर दिन संघर्ष करती थी। सोनिया के पति अमित भी उसी शहर में एक कंपनी में नौकरी करते थे। दोनों गाँव से आए थे, और शहर की जिंदगी में अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश कर रहे थे।
सोनिया और अमित की शादी को कई साल हो चुके थे, लेकिन उनकी खुशियों में एक कमी थी — उन्हें संतान नहीं हुई थी। इस वजह से गाँव में लोग बातें बनाते और कई बार सोनिया को ताने भी सुनने पड़ते। पर अमित और सोनिया ने कभी हार नहीं मानी। वे एक-दूसरे का सहारा बनकर आगे बढ़ते रहे।
एक दिन सोनिया ऑफिस जाते समय कंपनी के गेट से लगभग 50 मीटर दूर थी, तभी अचानक उसकी साड़ी के पल्लू को किसी ने पकड़ लिया। वह घबरा कर मुड़ी तो देखा एक लगभग छह साल का मासूम बच्चा खड़ा था। बच्चे की आंखों में बेचैनी और भूख के निशान साफ दिख रहे थे।
“माँ, तुम कहां थी? मैंने तुम्हें कितना नहीं ढूंढा, और मुझे बहुत भूख लगी है,” बच्चे ने मासूमियत से कहा।
सोनिया का दिल धक से रह गया। वह उस बच्चे को देखकर स्तब्ध रह गई। उस बच्चे की बातें सुनकर उसके अंदर की ममता जाग उठी। वह सोचने लगी, “क्योंकि हमारे यहाँ बच्चे नहीं हैं, शायद यही मेरा खोया हुआ बच्चा है।”
तभी कंपनी का गार्ड रमेश नाम का लड़का था, जो उस बच्चे को देखता ही था। वह जल्दी आया और बच्चे को डांटते हुए बोला, “रमेश, तुम्हें पहले भी कहा था, यहाँ मत घूमो। मैडम, आप आगे जाएँ, यह लड़का रोज़-रोज़ आता रहता है, इसकी बातों पर ध्यान मत दीजिए।”
गार्ड की बात सुनकर सोनिया अंदर चली गई, लेकिन उसका मन उस बच्चे की ओर ही था।
दिनभर काम के बीच भी सोनिया उस बच्चे के बारे में सोचती रही। लंच टाइम में जब उसने अपना टिफिन खोला तो बच्चे की भूख की बात उसके दिल को और भी ज़्यादा छू गई। शाम को जब अमित घर आए तो सोनिया ने उन्हें पूरी बात बताई।
अमित ने कहा, “ऐसे बच्चे भीख मांगते हैं, उनका एक गिरोह होता है। उनसे ज्यादा लगाव मत करो।”
पर सोनिया के दिल ने मना कर दिया। वह सोचती रही कि उस बच्चे की मदद करना उसका फर्ज है।
अगले दिन उसने गार्ड से उस बच्चे के बारे में और पूछा। गार्ड ने बताया कि रमेश की मां इसी कंपनी में काम करती थी, लेकिन वह बीमार होकर चल बसी। रमेश का पिता शराबी है, जो अपने बेटे की परवाह नहीं करता। वह मजदूरी करता है, लेकिन ज्यादातर पैसे शराब पर खर्च करता है। रमेश को पढ़ाई का मौका भी नहीं मिला।
सोनिया ने गार्ड से कहा, “क्या आप मुझे उसका घर दिखा सकते हैं?”
गार्ड ने हामी भर दी और दोनों उस गरीब बस्ती की ओर चल पड़े जहाँ रमेश रहता था। जब वे वहाँ पहुँचे, तो देखा कि घर बंद था। पड़ोसी ने बताया कि रमेश का पिता तीन दिन पहले बच्चे को पीट-पीट कर बेहोश कर गया और फिर घर छोड़कर भाग गया। रमेश बेहोश पड़ा था, जिसे लोगों ने अस्पताल में भर्ती कराया।
सोनिया का दिल टूट गया। वह अस्पताल पहुंची और बच्चे के सिर पर हाथ फेरते हुए बोली, “बेटा, मैं तेरी मां हूँ।”
रमेश की आंखों से आंसू टपक पड़े। सोनिया भी रो पड़ी और वहां से निकल आई।
घर लौटकर उसने अमित को सब कुछ बताया। अमित ने कहा, “हमारे पास अपना बच्चा नहीं है, तो क्यों न हम रमेश को गोद ले लें?”
सोनिया की आंखों में चमक आ गई। “हाँ, अमित, यही सही है। हम उसे अपना बच्चा बनाएंगे।”
अगले दिन से सोनिया और अमित ने बच्चे की देखभाल शुरू की। उन्होंने रमेश का इलाज करवाया, उसे प्यार दिया और स्कूल में दाखिला दिलाया। रमेश धीरे-धीरे खुश रहने लगा, उसका चेहरा खिल उठा।
समय बीता, और रमेश ने पढ़ाई में भी अच्छा प्रदर्शन किया। सोनिया और अमित ने गाँव जाकर लोगों को बताया कि यह उनका बच्चा है। लोग हैरान थे, पर उन्होंने दोनों की खुशी में शामिल होकर आशीर्वाद दिया।
सोनिया और अमित की जिंदगी में रमेश ने खुशियाँ भर दीं। वे तीनों एक परिवार की तरह जीने लगे।
कहानी का संदेश:
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि ममता और इंसानियत की कोई सीमाएं नहीं होतीं। जब हम दिल से किसी की मदद करते हैं, तो वह रिश्ता जीवन भर के लिए बन जाता है। एक बच्चे की जिंदगी बदलने के लिए एक छोटी सी पहल काफी होती है।
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