60 साल के बुजुर्ग को कॉफी नहीं दे रहा था रेस्टोरेंट स्टॉफ, फिर एक मैसेज से हिल गया पूरा रेस्टोरेंट

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राम मेहता: एक सादगी भरा इंसान

गर्मी की हल्की धूप थी, दोपहर के लगभग 12 बज रहे थे। शहर की सबसे व्यस्त मार्केट गांधी चौक के कोने पर स्थित था ‘अर्बन कुज़ीन’, एक बड़ा और मॉडर्न रेस्टोरेंट। यहाँ रोजाना कई कॉर्पोरेट ऑफिस के मैनेजर्स, बिजनेसमैन और एग्जीक्यूटिव आते थे, जो यहाँ सिर्फ खाने के लिए नहीं बल्कि अपनी प्रतिष्ठा दिखाने के लिए भी आते थे।

आज भी वहाँ की चमक-धमक में एक सादगी भरा आदमी आया। उसकी उम्र लगभग 60 साल के आसपास थी। नाम था राम मेहता। उसने सफेद सूती कुर्ता और पजामा पहना था, जो थोड़ा पुराना जरूर था पर साफ-सुथरा और प्रेस किया हुआ। पैरों में पुरानी चमड़े की चप्पल, जो घिसी हुई थी लेकिन ब्राउन पॉलिश से चमक रही थी। कंधे पर एक पुराना झोला था, जिसमें से एक नीली डायरी बाहर झांक रही थी।

राम मेहता ने रेस्टोरेंट के शीशे के दरवाजे के पार अंदर का नजारा देखा। अंदर का माहौल बिल्कुल साफ था—इंपोर्टेड फर्नीचर, पीली रोशनी, धीमा इंग्लिश म्यूजिक और वेटर्स की स्मार्ट यूनिफॉर्म। सब कुछ बहुत व्यवस्थित और चमकदार था। राम मेहता ने एक गहरी सांस ली और अंदर कदम बढ़ाया।

दरवाजे पर खड़ा सिक्योरिटी गार्ड उनकी तरफ देखा और पूछा, “सर, आपका रिजर्वेशन है?”

राम मेहता ने शांत स्वर में कहा, “हाँ, राम मेहता नाम से।”

गार्ड ने रिसेप्शन पर कॉल किया। कुछ ही मिनटों में एक होस्टेस आई, जिसने राम मेहता को एक कोने वाली टेबल तक ले जाया। यह टेबल न तो बहुत खास थी, न ही रेस्टोरेंट के प्राइम स्पॉट पर। राम मेहता ने बिना किसी जल्दबाजी के कुर्सी खींची और बैठ गए। झोला टेबल के नीचे रखा और डायरी निकाली। फिर पेन लेकर लिखना शुरू किया।

60 साल के बुजुर्ग को कॉफी नहीं दे रहा था रेस्टोरेंट स्टॉफ, फिर एक मैसेज से  हिल गया पूरा रेस्टोरेंट

रेस्टोरेंट में बाकी लोग मोबाइल में व्यस्त थे, सेल्फी ले रहे थे या बातचीत में मग्न थे। वेटर आया और पूछा, “सर, क्या ऑर्डर देंगे?”

राम मेहता ने कहा, “एक फिल्टर कॉफी।”

वेटर ने हल्की हिचक के साथ जवाब दिया, “सर, यहाँ फिल्टर कॉफी नहीं होती, कैपचीनो, लाटे या अमेरिकानो होती है।”

राम मेहता ने मुस्कुराते हुए कहा, “ठीक है, एक कैपचीनो ला दीजिए।”

वेटर चला गया। राम मेहता ने फिर डायरी खोली लेकिन उनकी नजर सामने काउंटर पर खड़े मैनेजर पर गई। वह मैनेजर वेटर से कुछ कह रहा था। थोड़ी देर बाद वही वेटर मैनेजर के साथ वापस आया और बोला, “सर, यह टेबल कॉर्पोरेट क्लाइंट्स के लिए होती है। अगर आप चाहें तो अंदर की तरफ एक टेबल दे सकते हैं।”

मैनेजर ने भी कहा, “हमें माफ कीजिए, यह टेबल आपके लिए उपयुक्त नहीं है।”

राम मेहता ने बड़ी शांति से पूछा, “कॉर्पोरेट क्लाइंट्स मतलब यह टेबल मेरे लायक नहीं है?”

मैनेजर कुछ जवाब नहीं दे पाया। राम मेहता ने डायरी खोली और एक पन्ना पलटा, फिर मुस्कुराते हुए कहा, “मैं वो राम मेहता नहीं हूँ जिसके लिए यह टेबल रिजर्व की गई है।”

मैनेजर की नजरें झुकी हुई थीं। उसने फिर भी जोर देकर कहा, “सर, कृपया टेबल छोड़ दीजिए।”

राम मेहता ने अपनी जेब से नया iPhone निकाला, टेबल पर रखा और एक मैसेज भेजा। फिर मैनेजर की आंखों में देखकर कहा, “मैं अंदर जाऊंगा, पर 10 मिनट बाद। कोई मिलने आने वाला है।”

मैनेजर अंदर गया और रिसेप्शनिस्ट से कुछ कहा। वेटर भी टेबल से चला गया। बाकी कस्टमर राम मेहता को अजीब नजरों से देखने लगे। लेकिन कोई नहीं जानता था कि अगले 10 मिनट में क्या होने वाला है।

अचानक रेस्टोरेंट के स्टाफ के फोन बजने लगे। होस्टेस, रिसेप्शनिस्ट, वेटर, मैनेजर और गार्ड—सभी के चेहरे पर चिंता और हैरानी थी। मैनेजर के फोन पर किसी ने कहा, “मिस्टर राम मेहता को तुरंत सबसे अच्छी टेबल पर ले जाइए। उनसे पर्सनली माफी मांगिए।”

कुछ ही मिनटों में राम मेहता को रेस्टोरेंट की सबसे बेहतरीन टेबल पर ले जाया गया। वहां से पूरा रेस्टोरेंट दिखता था। बड़े बिजनेसमैन अक्सर वहीं बैठते थे। पूरा स्टाफ सिर झुकाकर खड़ा था।

राम मेहता ने डायरी खोली और फिर कहा, “मैं जानने आया था कि मैंने पैसा एक बिजनेस में लगाया है या एक सोच में। तुम लोगों ने बता दिया। यहाँ कपड़ों का रंग कस्टमर की इज्जत से बड़ा है।”

उन्होंने मैनेजर से कहा, “तुम प्रोफेशनल तभी कहलाओगे जब हर कस्टमर को एक जैसा समझोगे, चाहे उसके जूते नए हों या फटे।”

फिर वेटर को डायरी का एक पन्ना दिया और कहा, “यह पढ़ो। गलती सिर्फ सर्विस की नहीं होती, सोच की होती है। अगर सोच सही होगी तो सर्विस भी सही होगी।”

होस्टेस की तरफ देखते हुए बोले, “तुमने मेरी तरफ कभी सीधे देखा नहीं क्योंकि तुम देखने की जगह छांटना सीख चुके हो।”

पूरा रेस्टोरेंट सन्नाटा था। मोबाइल बंद कर दिए गए थे। सब लोग राम मेहता को जाते हुए देख रहे थे।

राम मेहता ने दरवाजे पर रुककर कहा, “मैं जा रहा हूँ, पर अगर कभी वह कॉफी याद आए जो मैंने नहीं तुमने ठुकराई थी, तो समझ लेना इज्जत मिलती नहीं, कमाई जाती है।”

गेट पर खड़ा गार्ड पहली बार उनके लिए सम्मान दिखा रहा था।

राम मेहता की यह सादगी और ईमानदारी पूरे रेस्टोरेंट के सिस्टम को झकझोर गई। बाद में कंपनी के सीईओ ने इस घटना को गंभीरता से लिया और पूरे स्टाफ के लिए ‘रिस्पेक्ट फर्स्ट’ नामक ट्रेनिंग प्रोग्राम शुरू किया।

कहानी से सीख

यह कहानी हमें सिखाती है कि असली इज्जत और सम्मान पैसों या दिखावे से नहीं, बल्कि इंसानियत और सोच से मिलता है। चाहे हम किसी भी पद या स्थिति में हों, हर इंसान को बराबरी और सम्मान देना चाहिए। राम मेहता की तरह सादगी और ईमानदारी से हम बड़े से बड़े सिस्टम में बदलाव ला सकते हैं।