“70 साल के बुजुर्ग को बैंक में भिखारी समझकर पीटा… फिर जो हुआ.. उसने सबको हिला दिया !!

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आनंद बाबू की कहानी: दिखावे से परे असली पहचान

सुबह के 10 बज रहे थे। शहर के सबसे बड़े बैंक में एक बुजुर्ग व्यक्ति प्रवेश कर रहा था। वह साधारण कपड़े पहने था, हाथ में एक पुराना लिफाफा और सहारा देने के लिए एक लाठी थी। उसका नाम आनंद बाबू था। जैसे ही वह बैंक के अंदर दाखिल हुआ, वहां मौजूद सभी लोग उसकी ओर अजीब निगाहों से देखने लगे। बैंक के ग्राहक और कर्मचारी दोनों ही उसकी साधारण सी शक्ल देखकर हैरान थे।

आनंद बाबू धीरे-धीरे काउंटर की ओर बढ़े, जहां एक युवक प्रशांत बैठा था। प्रशांत ने आनंद बाबू के कपड़ों को देखकर उन्हें हल्के में लिया और कहा, “बाबा, कहीं आप गलत बैंक में तो नहीं आ गए? मुझे नहीं लगता कि आपका खाता यहां है।” आनंद बाबू ने विनम्रता से कहा, “बेटा, तुम एक बार देख लो, शायद मेरा खाता इसी बैंक में हो।”

प्रशांत ने लिफाफा लिया और कहा, “देखने में थोड़ा समय लगेगा, आपको इंतजार करना होगा।” बैंक के अन्य लोग भी अपने काम में व्यस्त हो गए। आनंद बाबू वहीं खड़े इंतजार करने लगे। कुछ देर बाद उन्होंने कहा, “बेटा, अगर तुम व्यस्त हो तो मैनेजर को फोन कर दो, मेरा उनसे भी कुछ काम है।” प्रशांत ने फोन उठाया और मैनेजर वर्मा से बात की।

मैनेजर वर्मा ने दूर से आनंद बाबू को देखा। वह भी साधारण दिख रहे थे। उसने फोन पर कहा, “ऐसे लोगों के लिए मेरे पास समय नहीं है। तुम इन्हें बिठा दो, थोड़ी देर बैठेंगे और चले जाएंगे।” प्रशांत ने आनंद बाबू को प्रतीक्षा क्षेत्र में बिठा दिया।

वहां बैठे आनंद बाबू सबकी नजरों का केंद्र बने हुए थे। बैंक में आने वाले ज्यादातर ग्राहक सूट-बूट पहने हुए थे, जबकि आनंद बाबू के कपड़े साधारण थे। लोग उनके बारे में तरह-तरह की बातें कर रहे थे। कुछ उन्हें भिखारी कह रहे थे, तो कुछ कह रहे थे कि इस बैंक में उनका खाता नहीं होना चाहिए।

बैंक के एक कर्मचारी विनोद ने यह सब सुना। वह बाहर गया था और वापस आकर देखा कि आनंद बाबू प्रतीक्षा क्षेत्र में बैठे हैं। विनोद ने सम्मान से पूछा, “बाबा, आप यहां क्यों आए हैं? आपका क्या काम है?” आनंद बाबू ने कहा, “मुझे मैनेजर से मिलना है, मेरा उनसे कुछ काम है।” विनोद ने कहा, “ठीक है बाबा, आप थोड़ा इंतजार कीजिए, मैं मैनेजर से बात करता हूं।”

विनोद मैनेजर वर्मा के केबिन में गया और बुजुर्ग व्यक्ति की बात बताई। मैनेजर वर्मा ने कहा, “मैं जानता हूं, मैंने ही उन्हें बिठाया है। थोड़ी देर बैठेंगे और चले जाएंगे।” फिर मैनेजर ने विनोद को दूसरे काम में व्यस्त होने को कहा।

आनंद बाबू लगभग एक घंटा प्रतीक्षा क्षेत्र में बैठे रहे। धैर्य के साथ उन्होंने इंतजार किया, लेकिन एक घंटे के बाद वे और इंतजार नहीं कर सके। वे उठकर मैनेजर के केबिन की ओर बढ़े। मैनेजर वर्मा ने उन्हें आते देख तुरंत केबिन से बाहर निकला और उदंडता से पूछा, “हां बाबा, बोलिए आपका क्या काम है?”

आनंद बाबू ने लिफाफा बढ़ाते हुए कहा, “बाबा, यह देखो मेरे बैंक अकाउंट का विवरण है। मेरे अकाउंट से कोई लेन-देन नहीं हो रहा है। आप इसे देखकर बताओ कि क्या समस्या है?”

मैनेजर वर्मा ने थोड़ी देर सोचा और कहा, “बाबा, जब किसी अकाउंट में पैसा नहीं होता तो ऐसा होता है। मुझे लगता है आपने अपने अकाउंट में पैसा जमा नहीं कराया है, इसलिए लेन-देन बंद हो गए हैं।”

आनंद बाबू ने शांति से कहा, “बाबा, तुम एक बार अकाउंट चेक कर लो, फिर मुझे कुछ कहोगे। ऐसे कैसे कह सकते हो?” मैनेजर वर्मा हंसने लगे और बोले, “बाबा, यह मेरा बरसों का अनुभव है। मैं चेहरा देखकर पहचान सकता हूं कि कौन कैसा इंसान है, किसके अकाउंट में कितना पैसा है। आपके अकाउंट में तो कुछ भी नहीं दिख रहा है। मैं चाहता हूं कि आप यहां से चले जाएं। ग्राहक आपकी तरफ देख रहे हैं।”

आनंद बाबू ने लिफाफा उनकी मेज पर रखा और बोले, “ठीक है बाबा, मैं जा रहा हूं, लेकिन इस लिफाफे में जो विवरण है, उसे एक बार देख लेना।” वे बैंक से बाहर निकले और जाते-जाते कहा, “बाबा, यह सब करने के लिए तुम्हें बहुत बुरा नतीजा भुगतना पड़ेगा।”

मैनेजर वर्मा ने यह सुनकर थोड़ा चिंतित हुए, लेकिन बाद में सोचा कि यह तो बुढ़ापे में ऐसे ही बोल दिया होगा।

विनोद ने लिफाफा उठाया और कंप्यूटर पर उसमें दी गई जानकारी के अनुसार जांच शुरू की। पुराने रिकॉर्ड्स की जांच करने पर पता चला कि आनंद बाबू इस बैंक के 60% शेयरधारक थे, यानी वह इस बैंक के बड़े मालिक थे। यह सुनकर विनोद हैरान रह गया।

विनोद ने रिपोर्ट की एक कॉपी मैनेजर वर्मा के पास दी। मैनेजर वर्मा ने ग्राहक से बातचीत करते हुए विनोद को कहा, “ऐसे लोगों के लिए हमारे पास समय नहीं है।” विनोद ने विनम्रता से कहा, “सर, कृपया एक बार इसे देख लें।” लेकिन मैनेजर वर्मा ने रिपोर्ट को धकेल दिया और कहा, “मैं इसे देखना नहीं चाहता।”

उस दिन शाम तक बैंक में सब कुछ सामान्य हो गया। अगले दिन आनंद बाबू फिर उसी समय बैंक आए, लेकिन इस बार उनके साथ एक सूट-बूट पहने व्यक्ति भी था, जिसके हाथ में एक ब्रीफकेस था। वे सबका ध्यान आकर्षित कर रहे थे। मैनेजर वर्मा डरते-डरते केबिन से बाहर निकले और आनंद बाबू के सामने खड़े हो गए।

आनंद बाबू ने कहा, “मैनेजर साहब, मैंने आपको कहा था कि यह काम आपके लिए बहुत भारी पड़ेगा। आपने कल जो व्यवहार किया, वह सहन योग्य नहीं है। अब आप अपनी सजा भुगतने के लिए तैयार हो जाइए।”

मैनेजर वर्मा चौंक गए, लेकिन फिर बोले, “आप कौन होते हैं मुझे इस तरह हटाने वाले?” आनंद बाबू ने कहा, “मैं इस बैंक का मालिक हूं, क्योंकि मेरे पास इसके 60% शेयर हैं। मैं चाहूं तो आपको हटा सकता हूं।”

बैंक के कर्मचारी और ग्राहक हैरान होकर आनंद बाबू की ओर देखने लगे। आनंद बाबू के साथ आए व्यक्ति ने विनोद की पदोन्नति का पत्र दिखाया, जिसमें उसे बैंक मैनेजर बनाया गया था। मैनेजर वर्मा को फील्ड ड्यूटी पर भेजा गया।

मैनेजर वर्मा पसीने-पसीने हो गए और माफी मांगने लगे। आनंद बाबू ने कहा, “माफी क्यों मांग रहे हो? तुमने जो किया वह बैंक की नीतियों के खिलाफ था। इस बैंक में गरीब और अमीर में कोई भेदभाव नहीं होगा।”

उन्होंने बताया कि यह बैंक उन्होंने ही स्थापित किया था और पहले ही घोषणा कर दी थी कि यहां सभी के साथ समान व्यवहार होगा। किसी भी कर्मचारी द्वारा भेदभाव किया गया तो सख्त कार्रवाई होगी।

फिर आनंद बाबू ने प्रशांत को फटकार लगाई और कहा, “मैं तुम्हारी पहली गलती माफ कर रहा हूं, लेकिन अब से किसी को उसके कपड़ों से मत आंकना।”

प्रशांत ने हाथ जोड़कर माफी मांगी और वादा किया कि वह ऐसा फिर कभी नहीं करेगा।

आनंद बाबू और उनका साथी बैंक से बाहर चले गए। आनंद बाबू ने विनोद से कहा, “तुमसे बहुत कुछ सीखने को है, जितना हो सके सीखो। मैं बीच-बीच में किसी को भेजूंगा जो तुम्हारी गतिविधियों की रिपोर्ट मुझे देगा।”

दोस्तों, यह कहानी हमें सिखाती है कि किसी को उसके बाहरी रूप से आंकना गलत है। असली पहचान व्यक्ति के चरित्र और व्यवहार से होती है, न कि उसके कपड़ों या हैसियत से। आनंद बाबू ने अपने कर्म और नेतृत्व से बैंक के माहौल को बदला और सभी को एक अमूल्य शिक्षा दी।

आइए हम सब भी प्रतिज्ञा करें कि हम कभी किसी को उसके बाहरी दिखावे से नहीं आंकेंगे, बल्कि उसके भीतर छिपी असली कहानी को समझने की कोशिश करेंगे।