8 साल की बच्ची ने करोड़पति से कहा अंकल, आपके ऑफिस में छुपा कैमरा है… फिर जो हुआ

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मुंबई की 38वीं मंजिल पर खड़े अर्जुन मल्होत्रा के पास सब कुछ था—नाम, दौलत, शोहरत। लेकिन उनकी आंखों में नींद नहीं थी। पांच साल पहले एक हादसे ने उनकी पूरी दुनिया बिखेर दी थी। उस हादसे ने उनके जीवन की खुशियों को छीन लिया था और उन्हें अकेलेपन और दर्द की गहराई में धकेल दिया था। फिर एक दिन, एक मासूम आठ साल की बच्ची ने ऐसा राज़ बताया, जिसने अर्जुन के पूरे साम्राज्य की नींव हिला दी।

अर्जुन मल्होत्रा एक सफल व्यवसायी थे। वे एक बड़ी कंस्ट्रक्शन कंपनी के मालिक थे, जिसका नाम मल्होत्रा कंस्ट्रक्शन था। उनकी कंपनी ने दिल्ली में विशाल सीयर टावर बनाए थे, बेंगलुरु में बड़े-बड़े कॉम्प्लेक्स तैयार किए थे और अब मुंबई के बारी इलाके में उनका सबसे बड़ा सपना था—सस्टेनेबल सिटी। यह सिर्फ इमारतों का एक प्रोजेक्ट नहीं था, बल्कि भविष्य का शहर था। हरे-भरे पार्क, सौर ऊर्जा से चलने वाले घर, पानी की रिसाइक्लिंग और पर्यावरण के अनुकूल टेक्नोलॉजी से लैस यह शहर भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए मिसाल बनना था। अर्जुन के सपने बड़े थे, लेकिन उनका बोझ भी भारी था। हर दिन वे काम के दबाव और जिम्मेदारियों के साथ जूझते थे।

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अर्जुन की जिंदगी में सबसे बड़ा सदमा तब लगा जब उनकी पत्नी प्रिया की मौत हो गई। वह हादसा पांच साल पहले हुआ था। एक तेज रफ्तार कार की टक्कर ने प्रिया की जिंदगी छीन ली। अस्पताल की ठंडी बेंच पर प्रिया का कमजोर हाथ उनके हाथ में था, और उसकी आखिरी सांसों के साथ निकले शब्द थे, “अर्जुन, खुश रहना।” उस दिन से अर्जुन की दुनिया वीरान हो गई। उन्होंने खुद को काम में डुबो दिया। दिन-रात मीटिंग्स, प्रोजेक्ट्स और टारगेट्स ही उनकी दुनिया बन गए। कंपनी उनका परिवार बन गई थी।

एक दिन अर्जुन अपनी ऑफिस की 38वीं मंजिल पर बने कांच के केबिन में टाई ठीक कर रहे थे। उनके चेहरे पर उम्र के निशान और दर्द की गहरी लकीरें साफ झलक रही थीं। उनके काले बालों में सफेदी झांक रही थी, आंखों में थकान थी और होठों पर खामोशी। वे खिड़की से बाहर समुद्र की लहरों को देख रहे थे, जो किनारे से टकरा रही थीं। सड़कों पर भीड़ थी, लेकिन उनके मन में एक खालीपन था।

अचानक, पीछे से उनकी असिस्टेंट विक्रम की आवाज आई, “सर, कल की मीटिंग्स कंफर्म हो चुकी हैं।” विक्रम तीन साल से अर्जुन के साथ था और उनका दाहिना हाथ माना जाता था। अर्जुन ने थके स्वर में कहा, “ठीक है, विक्रम, कल मिलते हैं।” विक्रम चला गया और ऑफिस में फिर सन्नाटा छा गया। अर्जुन को क्या पता था कि उनकी हर बात, हर शब्द किसी और तक पहुंच रहा था।

अगली सुबह, जब अर्जुन अपने डेस्क पर बैठे थे, तो कॉरिडोर से छोटे-छोटे कदमों की आहट आई। वह थी लाया, सिर्फ आठ साल की मासूम बच्ची। उसकी मां सोफिया इस बिल्डिंग की सफाई कर्मचारी थी। लाया बोली, “अंकल, यह रुमाल आप बाथरूम में भूल गए थे।” अर्जुन ने महीनों बाद पहली बार सच्ची मुस्कान के साथ कहा, “शुक्रिया बेटा, तुम तो सबका इतना ध्यान रखती हो।” लाया कमरे में इधर-उधर देखने लगी। अचानक उसकी नजर दीवार पर टंगी पुरानी घड़ी पर गई। उसने धीमे स्वर में कहा, “अंकल, उस घड़ी के पीछे एक नीली लाइट ब्लिंक कर रही है, जैसे कैमरा हो।”

अर्जुन का दिल धड़क उठा। उन्होंने मुस्कुराकर कहा, “शायद तुम्हारी नजर भरम गई है, बेटा। अब जाओ अपनी मां के पास।” लेकिन उनके मन में शंका घर कर चुकी थी। उस रात अर्जुन सो नहीं पाए। अगले दिन उन्होंने चुपके से सिक्योरिटी विशेषज्ञ रवि कुमार को बुलाया। रवि ने मेंटेनेंस टेक्नीशियन के भेष में पूरे ऑफिस की जांच की। घंटों बाद उसने गंभीर स्वर में कहा, “सर, यहां सिर्फ एक कैमरा नहीं, चार डिवाइस हैं। घड़ी के पीछे माइक्रो कैमरा, टेबल के नीचे रिकॉर्डिंग डिवाइस, फोन पर इंटरसेप्टर और आपके कंप्यूटर से डाटा चोरी करने का सिस्टम। और सबसे खतरनाक बात, बिल्डिंग का पूरा सिक्योरिटी सिस्टम हैक है। असली फुटेज की जगह नकली फुटेज चल रही है।”

अर्जुन के पैरों तले जमीन खिसक गई। यह सब कम से कम छह महीने से हो रहा था। जब डाटा ट्रैक किया गया, तो सामने आया कि उनके अपने कर्मचारी इस खेल में शामिल थे। विक्रम हर महीने पांच लाख रुपए ले रहा था। निखिल ने सस्टेनेबल सिटी का प्लान दुश्मन कंपनी कुमार एंड एसोसिएट्स को बेच दिया था। भोष कैमरे लगवाने में मददगार था। कुल मिलाकर 23 लोग दुश्मन कंपनी को सूचना पहुंचा रहे थे। अर्जुन की आंखें भर आईं। जिन पर उन्होंने अपनी जिंदगी का भरोसा किया था, वही गद्दार निकले।

सोमवार सुबह मल्होत्रा कंस्ट्रक्शन के ऑडिटोरियम में 200 से ज्यादा कर्मचारी मौजूद थे। माहौल तनावपूर्ण था। अर्जुन मंच पर पहुंचे। उनके शब्दों में गुस्सा और आंखों में आंसू थे। उन्होंने कहा, “आज सफाई का दिन है। पिछले महीनों से मेरी कंपनी पर हमला हो रहा था, और इसे उजागर किया है। एक आठ साल की बच्ची ने लाया फर्नांडिस ने यह सब सामने लाया है।” पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। फिर अर्जुन ने गद्दारों के नाम पढ़े—विक्रम, निखिल, भोष और बीस अन्य। विक्रम ने विरोध किया, लेकिन पुलिस पहले से मौजूद थी। एक-एक कर सबको गिरफ्तार कर लिया गया। ऑडिटोरियम में चीखें और आंसू गूंज उठे।

मीटिंग के बाद अर्जुन ने सोफिया को बुलाया। वह घबराई हुई उनके सामने खड़ी थी। अर्जुन बोले, “तुम्हारी बेटी ने मेरी कंपनी बचाई है। मैं चाहता हूं कि तुम अब मेरी एग्जीक्यूटिव असिस्टेंट बनो। तुम्हें सालाना आठ लाख की सैलरी मिलेगी, एक अपार्टमेंट मिलेगा और लाया की पढ़ाई की पूरी जिम्मेदारी मेरी होगी।” सोफिया की आंखें नम हो गईं। वह बोली, “सर, मैं इसके लायक नहीं हूं।” अर्जुन मुस्कुराए और कहा, “वफादारी की कोई कीमत नहीं होती। सोफिया, तुम सबसे अमीर हो।” सोफिया रो पड़ी और अर्जुन के पैरों में झुक गई।

दो साल में मल्होत्रा कंस्ट्रक्शन पूरी तरह बदल चुकी थी। अब यह सिर्फ एक कंपनी नहीं, बल्कि ईमानदारी और वफादारी का प्रतीक बन गई थी। दीवारों पर अवार्ड्स के साथ कर्मचारियों और उनके परिवारों की तस्वीरें टंगी थीं। लाया फर्नांडिस फाउंडेशन की शुरुआत हो चुकी थी, जो सैकड़ों बच्चों को पढ़ाई और स्कॉलरशिप दे रहा था। सोफिया अब आत्मविश्वासी एग्जीक्यूटिव बन चुकी थी। विदेशी निवेशकों के साथ बैठकों में उसकी आवाज में दम था और आंखों में गर्व था।

लाया अब दस साल की हो चुकी थी। गले में वही कैमरा लॉकेट पहनकर कहती थी, “अंकल, मैं बड़ी होकर सिक्योरिटी इंजीनियर बनूंगी।” अर्जुन मुस्कुराए और उसके सिर पर हाथ रखा, “तुम तो पहले से ही हमारी छोटी गार्डियन हो।”

एक शाम कंपनी के टेरेस पर अर्जुन, सोफिया और लाया खड़े थे। सामने समुद्र की लहरें और डूबता सूरज था। अर्जुन ने आसमान की ओर देखा और कहा, “लाया ने न सिर्फ मेरी कंपनी बचाई, बल्कि मुझे जिंदगी का असली मतलब सिखाया है।” लाया मासूमियत से मुस्कुराई। “तो अब मैं सचमुच गार्डियन हूं।” अर्जुन ने उसके सिर पर हाथ रखा, “हाँ बेटा, तुम हमेशा से हमारी छोटी गार्डियन हो।”

मुंबई का सूरज डूब चुका था, लेकिन उनकी रोशनी से भरी थी। यह कहानी हमें सिखाती है कि ईमानदारी और साहस हर दौलत से ऊपर है। कभी-कभी सबसे छोटी आवाज भी सबसे बड़ा बदलाव ला सकती है।