90 साल की औरत ने 25 साल के लड़के से शादी कर ली, फिर क्या हुआ?
माफ़ी की जीत: कबीर और सोनिया वर्मा की कहानी
कोई भी नहीं जानता था कि कबीर शर्मा की जिंदगी एक दिन यूं बदल जाएगी। 22 साल का ये नौजवान, अपने जीवन की सबसे कठिन घड़ी से गुजर रहा था। उसकी माँ की मौत के बाद पूरा घर, बूढ़े बीमार पिता और छोटी बहन अनुष्का की जिम्मेदारी उसी के कंधों पर आ पड़ी थी। कबीर की जिंदगी में खुशियाँ मानो वक्त से पहले ही खत्म हो गई थीं। चेहरे पर चिंता की लकीरें, आँखों के नीचे गहरे काले घेरे और मन में हर वक्त एक बोझ।
कबीर दिन में पढ़ाई करता, रात में छोटे-मोटे काम करके घर का खर्च चलाता। उसके पिता राजीव मल्होत्रा एक घातक बीमारी से जूझ रहे थे। इलाज पर जितना पैसा था, सब खत्म हो गया। बहन अनुष्का स्कूल में पढ़ती थी, उसकी किताबों और फीस के लिए पैसे जुटाना भी मुश्किल था। ऊपर से कर्जदारों की धमकियाँ आम हो गई थीं। कबीर के पास अब कोई रास्ता नहीं बचा था।
एक दिन, कबीर सस्ते नाश्ते की दुकान पर गया। जेब से पैसे निकालकर गिनने लगा, तभी उसकी नजर सामने खड़ी एक बुजुर्ग महिला पर पड़ी। वह उसे गौर से देख रही थी। उसकी आँखों में एक अजीब सी गहराई थी, जैसे वह कबीर की पूरी जिंदगी जानती हो। उसका नाम सोनिया वर्मा था – कारोबारी दुनिया की मशहूर शख्सियत। महंगी साड़ी, कीमती गहने, रौबदार अंदाज।
सोनिया वर्मा ने धीरे से पूछा, “क्या तुम ही कबीर शर्मा हो?” कबीर ने चौंक कर उसकी तरफ देखा, “हाँ, मैं ही कबीर शर्मा हूँ।” उसकी आवाज थकी हुई थी। सोनिया ने मुस्कुराकर कहा, “मुझे मालूम है कि इस वक्त तुम्हारी जिंदगी में क्या हो रहा है। तुम्हारे बूढ़े बाप की बीमारी, बहन की पढ़ाई और कर्ज… सब जानती हूँ। मेहनत करने के बावजूद भी कुछ नहीं बदल रहा।”
कबीर हैरान था – एक अजनबी महिला उसकी पूरी निजी जिंदगी कैसे जानती है? उसने झिझकते हुए पूछा, “आप कौन हैं और यह सब कैसे जानती हैं?” सोनिया ने मुस्कुराकर कहा, “अगर तुम चाहते हो कि तुम्हारी जिंदगी बदल जाए, तो मुझसे शादी कर लो।”
कबीर के रोंगटे खड़े हो गए। “यह आप कैसी बातें कर रही हैं?” सोनिया ने साफ शब्दों में कहा, “मैं तुमसे शादी करना चाहती हूँ। अगर तुम मेरी पेशकश कबूल कर लोगे, तो तुम्हारे बाप का इलाज मैं कराऊंगी, बहन को पढ़ाऊंगी और तुम्हारा सारा कर्ज उतार दूंगी।”
कबीर के दिमाग में कई सवाल घूमने लगे। उसने गहरी सांस ली, “इसके बदले में मुझे क्या करना होगा?” सोनिया बोली, “तुम्हें मुझसे कानूनी तौर पर शादी करनी होगी। शादी के बाद तुम अपनी मर्जी से जिंदगी गुजार सकते हो, मगर मेरी कुछ शर्तें माननी होंगी।”

कबीर यह सब सुनकर वहाँ से चला गया। मगर घर की बिगड़ती हालत और कर्जदारों के दबाव के सामने बेबस हो गया। उसने सोचा, अगर वह उस अमीर महिला का प्रस्ताव मान ले तो उसके बाप की जान बच सकती है, बहन की जिंदगी भी बेहतर हो सकती है। मजबूरी के आलम में वह सोनिया वर्मा के पास पहुँचा, उसकी तमाम शर्तों से सहमत हुआ और दोनों का निकाह हुआ। गवाहों की मौजूदगी में निकाहनामा पर दस्तख़त हुए, शादी सादगी से अंजाम पा गई।
कबीर ने पहली बार किसी शानदार हवेली में कदम रखा। दिल में घबराहट थी, यकीन करना मुश्किल था कि वह अब दुनिया की दौलतमंद तरीन महिला का शौहर है। हवेली किसी शाही महल से कम ना थी – संगमरमर के चमकते फर्श, ऊँची छतें, आलीशान फर्नीचर। यहाँ के मुलाजिम सोनिया के हर इशारे के इंतजार में रहते। बरसों से सेवा करने वाले भी उसके सामने सर झुका लेते। हवेली में कई हसीन औरतें काम करती थीं, मगर कबीर जब भी किसी से कुछ पूछता, वे छोटा सा जवाब देकर चुप हो जातीं।
रात की खामोशी में यूं लगता जैसे सब उसके हुक्म के इंतजार में हो, फिर भी एक अजीब घुटन उसे घेर लेती। हवेली के तीसरी मंजिल पर एक भारी और मजबूत दरवाजा था, जिस पर बड़ा सा ताला जड़ा रहता और कड़ी निगरानी होती। कबीर सोचता कि आखिर इस दरवाजे के पीछे क्या छुपा है? जब ताला है तो पहरे की जरूरत क्यों? यह ख्याल उसके शक को और बढ़ाता।
कबीर और सोनिया का रिश्ता बेजाहिर मोहब्बत भरा था, मगर कबीर ने आज तक उसके कमरे में रात नहीं बिताई थी। सोनिया चाहती थी कि वह अपनी खुशी से उसके पास आए, जबरदस्ती से नहीं। दोनों में खास कुर्बत नहीं थी। सोनिया दिल से कबीर को चाहती थी लेकिन कबीर उसकी तरफ देखना भी पसंद ना करता। बातचीत होती तो फौरन खत्म हो जाती। खाने की मेज पर दोनों साथ बैठते, मगर ना कोई बात होती और ना ही एक-दूसरे के खानदान के बारे में जानने की कोशिश।
एक रात, कबीर अपने कमरे की तरफ जा रहा था कि अचानक एक कोने में रोशनी नजर आई। वह ठिठक गया। रोशनी सोनिया के कमरे से आ रही थी, जो हवेली के बीच वाले हिस्से में था और जहाँ किसी को जाने की इजाजत ना थी। सोनिया चाहती थी कि कबीर वहाँ आए, मगर कबीर ने कभी कदम रखने की कोशिश नहीं की। लेकिन एक और कमरा था, जिस पर भारी ताला जड़ा था। कबीर जब भी उसके करीब पहुंचता कोई कहता, “बाबूजी, यहाँ जाना मना है।” वह हैरानी से पूछता, “क्यों?” मगर जवाब ना मिलता।
एक रात वह आहिस्ता-आहिस्ता उस दरवाजे के करीब पहुंचा। कान लगाकर सुना, तो सोनिया किसी से बात कर रही थी। उसका अंदाज सुनकर कबीर का दिल तेजी से धड़कने लगा। वह समझ नहीं पा रहा था कि यह कैसा भेद है जो सोनिया की जिंदगी में छुपा हुआ है। अब उसे यकीन हो गया था कि बहुत कुछ उससे पोशीदा रखा गया है।
कबीर ने ठान लिया कि इस हवेली के हर भेद को बेनकाब करेगा। यह सोचते हुए वह अपने कमरे में लौट आया और फैसला कर लिया कि चाहे कुछ भी हो, आज वह इस कमरे का राज खोलेगा। उसका शक अब जुनून में बदल चुका था। कबीर कई दिनों से सोचों के जाल में फंसा हुआ था। आखिर उस बंद कमरे तक पहुंचने का रास्ता क्या है?
सोनिया वर्मा जो हमेशा मुस्कुराहट के साथ उस पर नजरें डालती, गो कि 75 बरस की बुजुर्ग महिला थी, लेकिन हर मुलाकात में उसकी आँखों में एक नई उम्मीद झलकती। कबीर ने दिल में तय किया कि उससे बात करना ही एकमात्र रास्ता है। शायद वही उसे हकीकत तक ले जा सके।
हवेली के सन्नाटे में बस घड़ी की लगातार टिक-टिक सुनाई दे रही थी। रात का तीसरा पहर था और कबीर ने अपने कदम उस ममनुआ दिशा में बढ़ाने का फैसला कर लिया। रास्ता बनाने के लिए उसने सोनिया वर्मा की खास खादिमा से बात की – 18 साल की बेहद आकर्षक लड़की, जिसका नाम अनवी था। कबीर ने उससे नरमी से कहा, “मुझे सोनिया जी से मिलना है।”
अनवी इजाजत लेने फौरन सोनिया वर्मा के पास पहुंची। उसके सिवा कोई भी उनके कमरे तक नहीं जा सकता था। पैगाम सुनते ही सोनिया वर्मा के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। उसने अनवी का हाथ पकड़ कर कहा, “उसे फौरन मेरे पास ले आओ।” अनवी ने इशारा करके कबीर को अंदर जाने दिया।
कबीर दरवाजे तक पहुंचा और हल्की सी दस्तक दी। दरवाजा खुलते ही सोनिया वर्मा ने एक गर्मजोश मुस्कुराहट से उसका स्वागत किया। कमरे में गुलाबों की खुशबू थी और उनकी आँखों में अजीब सा प्यार झलक रहा था। कबीर ने आहिस्ता से कहा, “सोनिया जी, आप तो 25 साल की लगती हैं। यह राज क्या है?”
वह हंस पड़ी। चेहरे की लकीरों में रोशनी उतर आई। बोली, “मोहब्बत में वक्त का हिसाब नहीं रखा जाता। कबीर, सच्चा जज़्बा रूह को जवान रखता है। मैंने तुम्हें सिर्फ अपनी जमीन और जायदाद का नहीं, अपने दिल का भी वारिस बनाया है।”
महफिल का माहौल नरम और करीबी होता जा रहा था। कबीर बिस्तर के करीब बैठा और सोनिया वर्मा आहिस्तगी से उसके पहलू में आ बैठी। खामोशी थी, लेकिन वह खामोशी बोझिल नहीं, मीठी थी। सोनिया ने कहा, “कभी सोचा नहीं था कि इस उम्र में कोई यूं मेरी आँखों में देखेगा।”
कबीर ने जवाब दिया, “कभी सोचा नहीं था कि किसी की आँखों में इतनी गहराई मिलेगी कि सब सवाल भूल जाऊंगा।” सोनिया की आँखों में नमी थी और लबों पर सुकून भरी मुस्कुराहट। वह बोली, “मैंने मोहब्बत के इंतजार में बहुत कुछ गवा दिया, मगर दिल आज भी धड़कता है।” कबीर ने उनका हाथ थाम लिया और उनके लम्स में एक नई शुरुआत की गर्मी महसूस हुई।
कबीर बोला, “आज सब कुछ सच्चा लग रहा है।” सोनिया ने उसके कंधे पर सर रखते हुए कहा, “औरत जब अपने मर्द को अपना मान लेती है तो वह लम्हा उसकी जिंदगी का सबसे कीमती लम्हा होता है।” कबीर ने उनके माथे को चूमते हुए कहा, “आज मैं तुम्हारा हूँ बिना किसी शर्त के।”
बाहर बारिश की हल्की बूंदें गिरने लगीं। हवा में खुशबू फैल गई। वक्त जैसे रुक गया हो। सोनिया ने उसके सीने पर हाथ रखकर कहा, “यह धड़कन अब तुम्हारी है। जब तक यह चलती रहेगी, मेरा वजूद भी तुम्हारे साथ रहेगा।” वह करीब आई और धीरे से बोली, “मैंने जिंदगी में बस दो बार जी भर के सांस ली है। एक जब तुमने मुझे बीवी कहा और दूसरा जब तुमने मुझे अपना मान लिया।”
कबीर ने उनके बालों को सहलाया। सोनिया के होंठ कांपे, मगर सिर्फ एक जुमला निकला, “आज मेरा ख्वाब पूरा हो गया।” उस रात ना कोई वादा हुआ, ना कोई कसम। लेकिन आँखों ने सब कुछ कह दिया। कमरा अब एक आम कमरा नहीं रहा था, बल्कि मोहब्बत की कहानी का पहला गवाह बन चुका था।
कबीर समझ गया कि वह राज ढूंढने आया था, मगर यहाँ दिल का राज पा बैठा। सोनिया ने मुस्कुराकर उसके होठों पर उंगली रखी और कहा, “खामोश रहो और बस महसूस करो।” वह लम्हा उन दोनों के लिए हमेशा जिंदा रहने वाला था। जैसे बारिश की खुशबू जमीन में उतर कर कभी नहीं मिटती।
अगली सुबह, हवेली की नौकरानियाँ दबे लफ्जों में सरगोशियाँ करने लगीं। “आज तो मालकिन ने जवानी को भी पीछे छोड़ दिया है और कबीर साहब तो उनके प्यार के असीर हो गए हैं।” कबीर के जहन में बार-बार एक सवाल गूंजता – उस पुराने कमरे में ऐसा क्या छुपा है जिसका जिक्र सब दबे लफ्जों में करते हैं?
एक रोज, जब वह कमरे के करीब पहुंचा, तो देखा कि दरवाजा आधा खुला है। उसकी धड़कनें तेज हो गईं। उसने हिम्मत करके आहिस्ता से दरवाजा खोला और अंदर कदम रख दिया। कमरे की मध्यम रोशनी और पुरानी लकड़ी की खुशबू माहौल को परसरार बना रही थी। दीवारों के साथ रखा फर्नीचर बरसों पुराना था। एक कोने में बड़ी सागवान की अलमारी थी, जिसमें पुरानी फाइलें भरी हुई थीं।
मगर कबीर की नजर एक मेज पर जा टिकी। वहाँ एक छोटा सा संदूक रखा था, जिसकी धातु पर जंग लग चुका था। वह धीरे से उसके करीब गया। ढक्कन खोला तो अंदर एक जर्द किनारों वाला लिफाफा रखा था। कबीर ने एहतियात से लिफाफा निकाला और आहिस्ता से खोल दिया। अंदर से एक पुरानी तस्वीर निकली – जिसमें कबीर के वालिद राजीव मल्होत्रा और सोनिया वर्मा एक दूसरे के साथ खड़े थे। वालिद के होठों पर हल्की मुस्कुराहट थी। यह मंजर देखकर कबीर के कदम जैसे जमीन में गढ़ गए।
इतने में पीछे से एक मामूस आवाज सुनाई दी, “तो आखिर तुमने राज ढूंढ ही लिया।” कबीर ने पलट कर देखा – सोनिया वर्मा दरवाजे पर खड़ी थी। उसकी आँखों में ना खौफ था, ना हैरत – जैसे यह लम्हा वह पहले ही सोच चुकी हो।
कबीर ने घबराकर तस्वीर अपने पीछे छुपा ली और कहा, “यह शादी कोई मोहब्बत नहीं थी। यह तो एक इंतकाम था।” सोनिया वर्मा धीरे से मुस्कुराई, “कबीर, तुमने मेरी सोच से भी ज्यादा तेजी दिखाई।” कबीर ने गुस्से में कहा, “तुमने मेरी मजबूरी का फायदा उठाया। मेरे बाबू से बदला लेने के लिए मेरा इस्तेमाल किया।”
सोनिया वर्मा ने आहिस्ता आवाज में कहा, “जब सब जान ही चुके हो तो सुनो कबीर – मैं तुम्हारे वालिद से मोहब्बत करती थी। मैं 18 साल की थी जब मेरे शौहर दुनिया से चले गए। मैं अकेली थी और तुम्हारे वालिद ने सहारा दिया। मैंने उसे मोहब्बत समझा, लेकिन हकीकत में वह सिर्फ अपने मतलब के लिए मेरे करीब थे।”
कबीर की आँखों में सदमा भर गया। सोनिया वर्मा बोलती रही, “जब मैंने शादी की बात की तो उन्होंने मुंह फेर लिया। उस दिन मैंने कसम खाई कि अगर वह नहीं तो उनका खून ही सही। तुम्हें बचपन में देखा और फैसला कर लिया कि एक दिन तुमसे ही शादी करूंगी। हाँ कबीर, यह रिश्ता बदले की बुनियाद पर था। तुम्हें बांधने के लिए मैंने वह मुआहिदा करवाया ताकि तुम कभी ना जा सको।”
उसके लब थरथरा रहे थे, “लेकिन तुमने मेरी तवकको के बरख्स मेरा दिल जीत लिया। तुमने मेरी इज्जत की, मेरे जख्मों को समझा। तुम्हारी इंसानियत के आगे मेरा बदला हार गया। मैं तुम्हारी मोहब्बत में क़ैद हो गई।”
कबीर का गुस्सा धीरे-धीरे कम होने लगा। वह बोला, “तुमने मुझे कैद करना चाहा, लेकिन खुद मेरे प्यार की कैद में आ गई। अब तुम्हारी आँखों में नफरत नहीं, मोहब्बत है।” उसने आगे बढ़कर उसकी कांपती कलाई थामी और अपने सीने से लगाकर कहा, “मैं तुम्हें माफ करता हूँ।”
सोनिया वर्मा की आँखों से आँसू बह निकले। वह कबीर के सीने से लगकर बोली, “अब अगर मौत भी आ जाए, अफसोस ना होगा। तेरा प्यार पा लिया कबीर, तुझे पा लिया।”
वक्त गुजरा, कबीर इस हवेली में एक राजा की तरह रहने लगा। एक दिन सोनिया वर्मा बीमार पड़ी और कुछ ही हफ्तों में दुनिया से चली गई। आखिरी रसूमात पर कबीर ने बस इतना कहा, “मैं तुम्हें माफ करता हूँ, तुम भी मुझे माफ कर देना।”
कहानी यहीं खत्म ना हुई। सोनिया वर्मा की नौकरानी अनवी, जो 18 साल की थी और कबीर की सेवा में हमेशा पेशपेश रहती थी, अब उसके करीब आने लगी। रफ्ता-रफ्ता दोनों का रिश्ता सबके सामने आ गया। कबीर ने अनवी से शादी कर ली। अब हवेली उसकी थी, मगर तन्हाई नहीं थी। उसकी माँ और बहन भी वहीं रहती थीं।
कबीर और सोनिया वर्मा की कहानी यह सिखाती है कि नफरत के बीच भी मोहब्बत जन्म ले सकती है। बदले की आग कबीर के दिल को जला सकती थी, मगर उसने माफी देकर सोनिया वर्मा का दिल जीत लिया। याद रखो, माफ करने वाला हमेशा जीतता है।
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