Dekho Ek Sher Ne Budhi Maa Ke Dudh Ka Karz Kaise Chukaya?

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एक मां की अनकही दास्तान

भाग 1: दर्द भरी शाम

शाम ढल रही थी। बेचारी हलीमा अम्मा घने पेड़ के साए में टेक लगाए बैठी थी। आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे और सीना हिचकियों से हिल रहा था। जख्मी हाथ पर पट्टी बंधी थी, जहां हड्डी टूट गई थी और दिल अपनी ही औलाद के जख्मों से चूर था। वही औलाद जिनके लिए उसने सालों तक दूसरों के घरों में झाड़ू पोछा किया, बर्तन धोए, मजदूरी करके उन्हें पाला-पोसा और आज वही औलाद उसे मारकर धक्के देकर घर से निकाल चुके थे। जुल्म इतना कि उनके हाथ की हड्डी तक तोड़ डाली। अम्मा दर्द से कराह रही थी, अकेली और बेबस उस पेड़ के नीचे बैठी थी।

भाग 2: एक नई शुरुआत

तभी अचानक झाड़ियों के पीछे से किसी जानवर की कराह सुनाई दी। अम्मा चौकन्नी हो गई। उसने कांपते हाथों से लाठी उठाई और सहमते कदमों से आगे बढ़ी। देखा तो एक शेरनी जख्मी हालत में पड़ी थी। जिस्म पर ताजा घाव और आंखों में बेबसी। उसने अभी-अभी एक नन्हे बच्चे को जन्म दिया था। तकलीफें इतनी थी कि चंद सांसों के बाद उसने दम तोड़ दिया। यह मंजर देखकर हलीमा का दिल पिघल गया। वह डरते-डरते आगे बढ़ी और उस मासूम शेर के बच्चे को गोद में उठा लिया।

भाग 3: मां का प्यार

सीने से लगाया और नम आंखों से बोली, “तुम भी मेरी तरह तन्हा हो गए हो। घबराओ मत, मैं तुम्हारा ख्याल रखूंगी।” लाठी के सहारे अम्मा नदी किनारे पहुंची। खुद पानी पिया और बच्चे को भी पिलाया। भूख की शिद्दत दोनों के चेहरे पर साफ झलक रही थी, मगर हौसला अब भी जिंदा था। चलते-चलते वह जंगल की गहराई में पहुंची तो कुछ देर बाद एक छोटी साधारण सी झोपड़ी नजर आई।

भाग 4: सहारा

जंगल के बीच यह झोपड़ी देखकर वह चौंक गई। धीरे से दरवाजे पर दस्तक दी। चंद लम्हों बाद एक बुजुर्ग बाहर आए। उनके चेहरे पर इबादत का नूर छलक रहा था। उन्होंने नरमी से पूछा, “कौन हो बीबी? क्या मदद चाहिए तुम्हें?” हलीमा ने थकी हुई आवाज में कहा, “मैं तन्हा हूं। मेरा कोई नहीं रहा।” यह शेर का बच्चा भी अकेला है। हमें पनाह चाहिए।

बुजुर्ग ने मुस्कुराकर कहा, “अल्लाह के घर में कोई तन्हा नहीं होता। अंदर आ जाओ।” झोपड़ी में दाखिल होकर अम्मा बैठ गई। कुछ देर बाद बुजुर्ग एक प्याला दूध लाए। हलीमा ने आधा दूध खुद पिया और आधा बच्चे को पिला दिया। आंखें बंद करके दिल से शुक्र अदा किया।

भाग 5: दर्द की दास्तान

बुजुर्ग पास बैठे और हमदर्दी से पूछने लगे, “बीबी, यह हाथ कैसे टूटा? तुम यहां जंगल में क्यों भटक रही हो?” इतना सुनते ही हलीमा की आंखों से आंसू बह निकले। वो बोली, “मेरे साथ जुल्म हुआ है और यह जुल्म किसी अजनबी ने नहीं, मेरी अपनी औलाद ने किया है।” बुजुर्ग का चेहरा सहानुभूति से भर गया। “बताओ बेबी, तुम्हारी कहानी क्या है?” उसने कहना शुरू किया।

भाग 6: अतीत की यादें

“मेरा नाम हलीमा है। शादी को 15 बरस हुए थे। मगर मेरी गोद खाली रही। मेरे शौहर ने मुझे बेहद प्यार किया। हमारी जिंदगी खुशहाल थी। मगर औलाद की कमी हमें हर पल चुभती रही। औलाद की तलाश में हमने हकीमों, दवाइयों से लेकर दुआओं तक सब कुछ आजमा लिया। लेकिन किस्मत खामोश रही। फिर एक दिन अचानक उसे दिल का दौरा पड़ा और वह मुझे अकेला छोड़कर चला गया। मेरी जिंदगी जैसे बिखर गई।”

“एक रोज मैं भैंसों के लिए घास काटने खेतों की तरफ गई। उस दिन मैं निस्बतन सुनसान जगह पर पहुंची थी कि अचानक झाड़ियों के पीछे से किसी बच्चे के रोने की आवाज आई। मैं चौंक कर आगे बढ़ी। झाड़ियों के बीच दो नन्हे मासूम बच्चे पड़े थे। एक लड़का और एक लड़की। दोनों जोर-जोर से रो रहे थे। यह मंजर देखकर मेरा दिल कांप गया। मैंने इधर-उधर देखा, आवाज लगाई, मगर पूरा खेत सुनसान था। कोई इंसान वहां नजर नहीं आया। मैंने दोनों बच्चों को गोद में उठा लिया। मेरे दिल में ममता की लहर दौड़ गई।”

भाग 7: नई जिम्मेदारी

“घर लौटकर मैंने भैंसों का दूध निकाला और दोनों को पिलाया। वह भूखे थे। दूध पीते ही चैन से खामोश हो गए और मेरी गोद में सो गए। मेरी आंखों से आंसू बह निकले। लगा जैसे अल्लाह ने मुझे एक नई उम्मीद बख्श दी हो। मैंने दोनों बच्चों को अपनी औलाद की तरह पालना शुरू किया। गांव वाले तरह-तरह के ताने कसते, कहते किसके बच्चे उठा लाई हो? लेकिन मैंने सबको साफ कह दिया, ‘यह मेरे ही बच्चे हैं।’ कोई यह ना कहे कि यह मुझे मिले थे। मैंने उनकी परवरिश में कभी कमी नहीं आने दी।”

भाग 8: संघर्ष और त्याग

“एक दिन मेरा बेटा, जो 5 साल का था, शदीद बीमार पड़ गया। मैंने हर मुमकिन इलाज कराया मगर वह ठीक ना हुआ। किसी ने मशवरा दिया कि शहर के बड़े हकीम के पास ले जाओ। लेकिन उसका इलाज बहुत महंगा था। बेटे की जान बचाने के लिए मैंने अपनी भैंस और आधी जमीन बेच दी। मैंने अपनी हर चीज दांव पर लगा दी। इलाज के बाद मैंने दोनों बच्चों का स्कूल में दाखिला कराया। वह पढ़ने जाते और मैं दिन रात उनकी तरक्की की दुआएं करती। मैंने उनके लिए अपनी हर खुशी कुर्बान कर दी।”

“जमीन बेचने के बाद आमदनी बहुत कम रह गई, तो मैंने गांव के घरों में काम करना शुरू कर दिया। मेहनत मजदूरी करके उनका पेट पालती और उनकी हर ख्वाहिश पूरी करने की कोशिश करती। वक्त गुजरता गया। दोनों बच्चे जवान हो गए और मैं बुढ़ापे की दहलीज पर पहुंच गई। मेरा बेटा डिग्री लेकर शहर में अच्छी नौकरी पा चुका था। जब वह छुट्टियों पर गांव आया तो मेरा दिल खुशी से भर गया। मेरी बेटी भी शहर के कॉलेज से पढ़कर लौटी। दोनों को अपने सामने देखकर लगा जैसे मेरी सारी कुर्बानियां रंग ले आईं।”

भाग 9: बदलते रिश्ते

“लेकिन धीरे-धीरे मैंने महसूस किया कि उनका रवैया बदल रहा है। दोनों ज्यादा वक्त मोबाइल फोन में गुजारते। मुझसे बातें भी कम करने लगे। मैं चाहती थी कि वह मेरे पास बैठे, हंसे, बोले, लेकिन खुद ही चुप हो जाती। सोचती शायद आजकल के बच्चे ऐसे ही होते हैं। एक दिन शहर से मेरी बेटी के लिए रिश्ता आया। वह लोग बार-बार दहेज और पैसों की बातें कर रहे थे। मुझे उनकी लालच पसंद ना आई। इसलिए मैंने रिश्ता ठुकरा दिया।”

“यह सुनते ही मेरी बेटी गुस्से से चीख पड़ी। ‘अम्मा, आपको कुछ समझ नहीं आती। यह कितना अच्छा रिश्ता था। मैं उस लड़के से मोहब्बत करती हूं और आपने इंकार कर दिया।’ मैंने समझाने की कोशिश की। ‘बेटी, वह लोग अच्छे नहीं थे। कल को तुम्हें सताएंगे तो क्या होगा और इतना दहेज मैं कहां से लाऊंगी?’ लेकिन मेरी बेटी ने एक ना सुनी और गुस्से में घर छोड़कर चली गई। उसके रवैया से मेरा दिल टूट गया।”

भाग 10: टूटते रिश्ते

“कुछ दिन बाद मेरा बेटा हिचकिचाते हुए बोला, ‘अम्मा, ऑफिस में एक लड़की आती है। मैं उससे मोहब्बत करता हूं और शादी करना चाहता हूं। मगर उनकी शर्त है कि मैं उनके घर ही रहूं। शायद मैं गांव वापस ना आ सकूं।’ मैंने नम आंखों से बेटे की तरफ देखा और कहा, ‘बेटा, ऐसा मत करो। मुझे छोड़कर मत जाओ। मैं यहां अकेली कैसे रहूंगी?’ उसने नजरें झुका ली और धीरे से बोला, ‘अम्मा, आपके पास निमरा तो है ना।’ मैंने थकी हुई आवाज में कहा, ‘निम्रा और मैं दोनों अकेली औरतें हैं। ऐसे में हमारा गुजारा कैसे होगा?’ मेरा बेटा चुप हो गया। टालता रहा और फिर शहर लौट गया।”

“कई महीने गुजर गए। जब वह लौटा तो उसके साथ उसकी बीवी भी थी। यह मंजर देखकर मेरा दिल जैसे टूट गया। मैंने बेटे की शादी के लिए कितने सपने संजोए थे। खैर, आते ही उसने सीधा कहा, ‘हमने शादी कर ली है।’ मैं सक्ते में आ गई। मुझे बताया तक नहीं। मेरे लब बंद हो गए। मैं बस खामोश रह गई। उसके बाद निम्रा का रवैया भी बदल गया। उस रिश्ते के इंकार के बाद वह मुझसे बेरुखी से पेश आने लगी और रही सही कसर मेरी बहू ने पूरी कर दी।”

भाग 11: जख्म और धक्के

“वह अमीर घराने से आई थी और मेरे वजूद को बोझ समझती थी। एक दिन मैं सिलाई के काम में मशगूल थी। तभी बहू मेरे पास आकर बैठ गई। बातचीत के दौरान मेरे मुंह से निकल गया कि निम्रा और शकील मेरी सगी औलाद नहीं हैं। मैंने सादा दिल से बताया कि किस तरह मैंने उन्हें पाया और पाला। बहू ने मुस्कुराते हुए मेरी बातें सुनी लेकिन मुझे अंदाजा नहीं था कि उसके दिल में क्या ख्याल पनप रहा है।”

“अगली सुबह जब मेरी आंख खुली तो दोनों बच्चे मेरे सामने खड़े थे। उनकी आंखों में नफरत की आग जल रही थी। शकील गुस्से से चीखा, ‘तुम धोखेबाज औरत हो। ऐसी मां हमने कभी नहीं देखी।’ निम्रा ने तल्खी से कहा, ‘अच्छा, इसी लिए तुमने मेरा रिश्ता ठुकरा दिया था क्योंकि हम तुम्हारी सगी औलाद नहीं हैं।’ मैं पत्थर सी जड़ होकर रह गई।”

भाग 12: घर से बेदखली

“एक रोज मैंने देखा कि बेटी फोन पर किसी लड़के से बात कर रही है। रात का समय था। पास जाकर देखा तो वह अपनी गंदी तस्वीरें उसे भेज रही थी। यह देखकर मेरा कलेजा फट गया। मैंने उसे रोका और गुस्से में उसके गाल पर एक थप्पड़ मार दिया। यही सिखाया था मैंने तुझे अल्लाह का खौफ कर। मैंने आंसुओं में डूबी आवाज में कहा। उसने गाल पर हाथ रखा और गुस्से से बोली, ‘मैं किसी से भी बात करूं? तुझे क्या? और तेरी हिम्मत कैसे हुई मुझे थप्पड़ मारने की?’ वह झट से उठी और मुझे जोर से धक्का दे दिया। मैं जमीन पर गिर पड़ी। फिर वह मुझे लातों से मारने लगी। इतने में बेटा घर आया। बहन ने भाई के कान भरे और अगले ही लम्हे दोनों ने मुझे डंडों और लातों से पीटना शुरू कर दिया। मेरी चीखें घर के आंगन में गूंज उठी। मैं रोते हुए हाथ जोड़ती रही। मेरा कसूर बताओ। आखिर मेरा कसूर क्या है?”

भाग 13: बेघर होने का दर्द

“लेकिन किसी ने मेरी बात नहीं सुनी। बहू एक तरफ खड़ी तमाशा देखती रही। फिर बेटी ने झर उगला। ‘तू हमारी सगी मां नहीं है। तू हमें कभी चैन से जीने नहीं देगी। तू इस घर में रहने के लायक ही नहीं है।’ इतना कहकर उन्होंने मुझे धक्के देकर घर से बाहर निकाल दिया। मैं निढाल और बेबस दरवाजे से बाहर जा गिरी। आंसू बहते रहे और मैं सोचती रही, जिन्हें मैंने अपनी जान से बढ़कर चाहा, जिनके लिए हर गम सहा, उन्होंने मुझे यही सिला दिया।”

भाग 14: नया जीवन

यह सब सुनाकर हलीमा बीवी फूट-फूट कर रोने लगी। अल्लाह वाले बुजुर्ग की आंखों में भी दर्द उतर आया। उन्होंने नरमी से कहा, “तसल्ली रखो। बीबी, अल्लाह इंसाफ करता है। सब ठीक हो जाएगा।” शेर का मासूम बच्चा खामोशी से हलीमा को देख रहा था। जैसे हर बात अपने नन्हे दिल में उतार रहा हो। बुजुर्ग ने स्नेह से कहा, “यह झोपड़ी तुम्हारी है। यह मेरी बकरी है। इससे दूध ले लिया करना। यहीं रहो और हिम्मत रखो। मैं अल्लाह की राह में सफर करता हूं। लेकिन कभी-कभी यहां आता रहूंगा।”

भाग 15: एक नई पहचान

हलीमा बीबी उस नन्हे शेर के बच्चे के साथ झोपड़ी में रहने लगी। वह अल्लाह की इबादत करती और ज्यादा वक्त उस मासूम के साथ गुजारती। उससे बातें करती, अपने दुख बांटती। वह बच्चा जैसे उसकी हर बात समझता, कभी सिर हिलाकर जवाब देता, कभी उसकी गोद में सिमट जाता। उधर शकील और निम्रा को यकीन था कि उन्होंने एक धोखेबाज औरत को सबक सिखा दिया है।

भाग 16: अतीत की यादें

शकील की बीवी उनके दिलों में और जहर घोलती रही। वह कहती, “तुम्हारी मां ने खुद कहा है कि तुम उसकी सगी औलाद नहीं। उसने तुम्हें कहीं से चुरा कर लाया था। असल में तुम बड़े खानदान से ताल्लुक रखते हो। चाहो तो गांव वालों से पूछ लो।” शकील बेचैन हो उठा और गांव के एक बुजुर्ग आदमी के पास पहुंचा। “अंकल, सच बताइए। क्या हम उस औरत की सगी औलाद हैं?” उसने बेचैनी से पूछा।

भाग 17: सच का सामना

आदमी ने आहिस्ता से कहा, “नहीं बेटे, असल बात तो यह है कि…” लेकिन शकील ने उसकी बात काट दी। “बस मुझे इतना ही सुनना था,” और बिना सच पूरा सुने वह गुस्से में घर लौट आया। निम्रा को भी अपने रिश्ते के इंकार का दुख चैन से बैठने नहीं देता था। अम्मा को घर से निकाल देने के बाद दोनों ने सोचा कि अब उनकी जिंदगी पुरसकून हो जाएगी।

भाग 18: घमंड का फल

लेकिन असलियत यह थी कि उनके दिल अब सच से खाली और घमंड से भरते जा रहे थे। शकील ने जल्द ही निम्रा की शादी एक पंचर बनाने वाले मजदूर से कर दी और उसे रुखसत कर दिया। अब घर में वह और उसकी बीवी शाजिया अकेले रहने लगे। खेतों की आमदनी कुछ बेहतर हो गई। शकील ने थोड़ी और जमीन भी खरीद ली। धीरे-धीरे उनका गुजारा बेहतर होने लगा।

भाग 19: खौफनाक ख्वाब

लेकिन शाजिया, जिसने एक मां के दिल को तोड़ा था और औलाद को उसकी ही हाथों से बेदखल करवाया था, यह नहीं जानती थी कि अल्लाह की पकड़ से कोई बच नहीं सकता। एक रात जब वह गहरी नींद में थी, उसने ख्वाब में हलीमा बीवी को देखा। उनके चेहरे पर आंसू थे। आवाज बेहद दर्दनाक थी। “शाजिया, याद रखना तुम्हारा अंजाम इबरतनाक होगा। तुम भी औलाद के दुख का दर्द सहोगी।”

भाग 20: नई उम्मीद

शाजिया हड़बड़ा कर जाग उठी। चेहरा पसीने से भीग गया। दिल तेजी से धड़क रहा था। वह बेहद सहमी हुई थी। लेकिन खुद को तसल्ली देने लगी कि यह सिर्फ एक ख्वाब है। 5 साल गुजर गए। लेकिन शकील और शाजिया की कोई औलाद ना हुई। शाजिया दिन रात तड़पती और रोकर कहती, “या अल्लाह, मुझे औलाद की नेमत अता कर।”

भाग 21: अल्लाह की रहमत

आखिरकार अल्लाह ने रहमत की और शाजिया उम्मीद से हो गई। यह खबर सुनकर दोनों की दुनिया बदल गई। मन्नतों और दुआओं के बाद मां बनने की खुशी ने उनके घर को रोशन कर दिया। वक्त गुजरा और अल्लाह ने उन्हें एक बेटे से नवाजा। शकील खुशी से झूम उठा। पूरे गांव में मिठाइयां बांटी गईं। शाजिया भी बेहद खुश थी। लेकिन उसके दिल के अंदर कहीं एक अजीब सा डर बैठ गया था।

भाग 22: खौफ का सामना

अक्सर रातों को वह डरावने ख्वाब देखती। हलीमा बीवी का रोता हुआ चेहरा उसके सामने आ जाता। वह सहमी हुई जाग जाती और अपने बच्चे को सीने से लगाकर कांपती रहती। उधर हलीमा बीबी झोपड़ी में बैठी कुरान-ए मजीद की तिलावत कर रही थी। उनका शेर बहुत देर से बाहर गया हुआ था। वह तिलावत करते-करते बार-बार दरवाजे की ओर देखती। दिल में हल्की सी बेचैनी थी।

भाग 23: इंतकाम का वक्त

अचानक झोपड़ी का दरवाजा जोर से खुला। शेर अंदर दाखिल हुआ। उसके मुंह में कंबल में लिपटा हुआ एक नन्हा सा बच्चा था। उसने बड़ी नरमी से वह बच्चा हलीमा बीवी की झोली में डाल दिया। हलीमा बीबी के हाथ कांप गए। “या अल्लाह, यह कहां से ले आए हो?” उन्होंने घबरा कर कहा। शेर ने अपनी आंखों से उनकी तरफ देखा और सिर झुका दिया। जैसे कह रहा हो, “अब तुम्हारा इंतकाम शुरू हो चुका है।”

भाग 24: एक दर्दनाक सच्चाई

हलीमा बीबी की आंखें भर आईं। वह पहचान गईं कि यह वही शेर है जिसे उन्होंने अपने हाथों से पाला था। उसकी आंखों में जैसे उनका पूरा दुख उतर आया था। उधर गांव में हंगामा मचा हुआ था। शकील और शाजिया पागलों की तरह इधर-उधर भाग रहे थे। उनका हाल बेहाल था। दरअसल, वह अपने बीमार बच्चे को हकीम के पास ले जा रहे थे कि अचानक जंगल के रास्ते में एक शेर ने हमला कर दिया।

भाग 25: मातम का माहौल

अगले ही पल शेर उनके बच्चे को उठाकर जंगल की तरफ दौड़ गया। खबर पूरे गांव में फैल गई। लोग जमा हो गए और अफसोस भरे लहजे में कहने लगे, “यह मां के साथ किए गए जुल्म की सजा मिली है।” शकील गुस्से और दर्द से चिल्लाया, “किस मां की बात कर रहे हो? वह औरत जिसने हमें अगवा किया था।” यह सुनकर गांव वाले सक्त में रह गए।

भाग 26: सच्चाई का सामना

तभी एक बुजुर्ग औरत आगे बढ़ी। “बेटे, वह औरत जिसने तुम्हें अपना खून पसीना बहाकर पाला, जवान किया। तुमने उसी मां को घर से निकाल दिया। हकीकत यह है कि तुम दोनों को किसी ने खेतों में मरने के लिए छोड़ दिया था। लेकिन हलीमा बीवी ने तुम्हें उठाकर अपने घर लाया और अपनी औलाद से भी ज्यादा मोहब्बत से पाला। और तुम जैसे नाशुरे बेटों के लिए यही सजा काबिल इबरत है।”

भाग 27: पछतावा और अफसोस

गांव की उस बुजुर्ग औरत की बात सुनकर शकील का चेहरा सफेद पड़ गया। उसका दिल जैसे बैठ गया। यादों के दरवाजे खुलने लगे। वो लम्हे जब हलीमा बीवी ने उसके लिए भैंस बेच दी थी। जब खुद भूखी रहकर भी उसे खाना खिलाया था। जब उसके हर दुख सुख में दीवार बनकर खड़ी रही थी। मगर अब बहुत देर हो चुकी थी।

भाग 28: खोजबीन का सिलसिला

शकील और शाजिया पागलों की तरह जंगल की तरफ भागे। जगह-जगह लोगों से पूछते, शेर के पैरों के निशान देखते, ऊंची आवाजों में पुकारते। शाजिया रोते-रोते बेहाल थी। “या अल्लाह, मेरा बच्चा वापस कर दे।” उधर झोपड़ी में हलीमा बीवी उस मासूम को सीने से लगाए बैठी थी। उनकी आंखों से आंसू गिर रहे थे। मगर चेहरा सुकून से भर गया था।

भाग 29: अल्लाह की राह

उन्होंने कांपते होठों से कहा, “या अल्लाह, तू गवाह है। मैंने इन बच्चों को औलाद समझकर पाला, मगर उन्होंने मुझे ठुकरा दिया। अब इस मासूम के मुकद्दर का फैसला तेरे हाथ में है।” शेर उनके पास बैठा था। उसकी आंखों में गुस्सा भी था और मोहब्बत भी। वह मानो उनकी चौकीदारी कर रहा हो।

भाग 30: सच्चाई का सामना

अगली सुबह गांव वाले जंगल की ओर जमा हुए। सबके दिलों में खौफ और हैरत थी। तभी दूर से शकील और शाजिया दिखाई दिए। उनके कपड़े फटे हुए थे। चेहरे पर धूल और आंखों में जागी हुई रातों की थकान साफ झलक रही थी। दोनों झोपड़ी तक पहुंचे। दरवाजे के सामने शेर खड़ा था। उसके पंजों से जमीन पर गहरी लकीरें बनी हुई थीं।

भाग 31: दरवाजे का सामना

शकील ने डरते-डरते पुकारा, “अम्मा, अम्मा, दरवाजा खोल दीजिए।” शेर ने जोर से दहाड़ लगाई जैसे कह रहा हो, “पास मत आना।” दोनों सहम कर पीछे हट गए। शकील ने कांपती आवाज में फिर कहा, “अम्मा, दरवाजा खोल दीजिए वरना यह शेर हमें मार डालेगा।” अंदर से हलीमा बीवी की थकी हुई मगर पुरसकून आवाज आई, “अम्मा नहीं, मुझे अम्मा कहने का हक तुम दोनों ने खो दिया।”

भाग 32: पछताने का समय

यह सुनकर शकील फूट-फूट कर रो पड़ा। “अम्मा, मुझे माफ कर दीजिए। मैंने आपकी मोहब्बत को धोखा समझा। आपकी कुर्बानियों को झूठ कहा। मुझे एक बार अपना बेटा मान लीजिए वरना मैं जीते जी मर जाऊंगा।” हलीमा बीवी का दिल कांप उठा। लेकिन अगले ही लम्हे उनकी आंखों के सामने वो मंजर घूम गया जब इन्हीं हाथों ने उन्हें धक्के देकर घर से निकाला था।

भाग 33: ममता का फैसला

उनकी आंखें भीग गईं। आखिरकार उन्होंने दरवाजा खोल दिया। शकील उनके कदमों में गिर पड़ा। शाजिया भी बच्चे के लिए हाथ फैलाकर गिड़गिड़ाने लगी। हलीमा बीवी ने बच्चे को धीरे से शाजिया की गोद में रखा। फिर शकील और निम्रा दोनों को सीने से लगा लिया। उनकी टूटी हुई मगर गहरी आवाज गूंजी, “याद रखो, मां कभी सगी या सौतेली नहीं होती। मां तो मां ही होती है। मैंने तुम्हें अपनी जान से बढ़कर चाहा है। औलाद का रिश्ता खून से नहीं, मोहब्बत से बनता है।”

भाग 34: एक नई शुरुआत

यह सुनकर वहां मौजूद हर आंख नम हो गई। हलीमा बीवी अपने बच्चों के साथ घर लौटी। शेर भी अब उनके साथ रहने लगा। गांव वाले उसका सम्मान करने लगे क्योंकि वह किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता था। शकील और निम्रा दिन रात अपनी मां की सेवा करते और शाजिया शर्मसार होकर उनकी खिदमत में लगी रहती।

भाग 35: अंतिम विदाई

हलीमा बीवी अपने पोते से बेहद मोहब्बत करती थी। लेकिन एक दिन वह खामोशी से बिना किसी शिकवे शिकायत के अपने खालिक के पास लौट गई। उनकी मौत की खबर ने पूरे गांव को गम में डुबो दिया। शकील, निम्रा और शाजिया बिलख-बिलख कर रोने लगे। हलीमा बीवी को सादगी से दफना दिया गया।

भाग 36: शेर की विदाई

लोग कब्र से लौट ही रहे थे कि अचानक वही वफादार शेर धीरे-धीरे कब्र की तरफ बढ़ा। उसने अपना सिर मिट्टी पर टिकाया और उसकी आंखों से आंसुओं की धार बह निकली। उसकी दहाड़ दर्द और वफा से लबरेज थी। गांव वाले सांस रोके यह मंजर देखते रहे। कुछ ही पलों बाद शेर ने वहीं कब्र के पास आंखें मूंद ली और खामोशी से दम तोड़ दिया।

भाग 37: गांव का सबक

गांव वाले फूट-फूट कर रो पड़े। उन्होंने शेर को भी हलीमा बीवी की कब्र के पास दफना दिया। उस दिन से गांव के लोग अक्सर कहते हैं, “मां को दुख देने वाला कभी चैन नहीं पाता और जो औलाद मां की मोहब्बत और दुआ से महरूम हो जाए, उसका अंजाम हमेशा इबरतनाक होता है।”

भाग 38: अंतिम संदेश

तो दोस्तों, यह कहानी हमें यह सिखाती है कि हमें हमेशा अपने माता-पिता की कद्र करनी चाहिए। उनकी मेहनत, त्याग और प्यार को कभी नहीं भूलना चाहिए। अगर हम अपने माता-पिता का सम्मान नहीं करेंगे, तो हमें जीवन में उनके बिना ही जीना पड़ेगा।

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