Dharmendra की डायरी का सच: Sunny Deol और Hema Malini की रात की बातचीत

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धर्मेंद्र की डायरी का सच: सनी देओल और हेमा मालिनी की रात की बातचीत

प्रस्तावना

24 नवंबर 2025 की रात बॉलीवुड के इतिहास में एक काला अध्याय बन गई। धर्मेंद्र, वह अभिनेता जिनकी मुस्कान और शायरी ने करोड़ों दिलों को छुआ, अब इस दुनिया में नहीं रहे। उनके जाने के बाद, परिवार में सन्नाटा था, लेकिन असली तूफान तब आया जब उनके पुराने बक्से से एक डायरी मिली। यह डायरी सिर्फ कागज का पुलिंदा नहीं थी—यह एक पिता की आत्मा थी, जिसमें 40 साल के दर्द, पछतावे और अधूरी इच्छाओं की कहानी छुपी थी।

पहला अध्याय: दो परिवारों की दास्तान

धर्मेंद्र का जीवन हमेशा दो हिस्सों में बँटा रहा। एक तरफ प्रकाश कौर—सीधी-सादी पंजाबी महिला, जिनसे धर्मेंद्र ने 1954 में शादी की थी। चार बच्चों—सनी, बॉबी, अजीता और विजेता—इनका बचपन प्रकाश की गोद में बीता। दूसरी तरफ 1980 में हेमा मालिनी का आगमन। ड्रीम गर्ल ने धर्मेंद्र के जीवन में प्यार का तूफान ला दिया। धर्मेंद्र ने प्रकाश कौर को तलाक दिए बिना हेमा से शादी की, और यहीं से शुरू हुआ दो परिवारों का सफर। दोनों परिवार एक साथ तो चल रहे थे, लेकिन कभी मिल नहीं सके।

हेमा मालिनी ने अपनी आत्मकथा में लिखा, “मैंने जानबूझकर खुद को धर्मेंद्र के पहले परिवार से दूर रखा ताकि किसी को तकलीफ न हो।” लेकिन इस दूरी ने सनी के मन में गहरी खाई पैदा कर दी। सनी ने अपनी माँ के आँसू, पिता की दूसरी शादी का दर्द और समाज की आलोचना सब देखा। यही वजह थी कि सनी और बॉबी ईशा देओल की शादी में नहीं गए।

दूसरा अध्याय: धर्मेंद्र की तन्हाई

धर्मेंद्र पर्दे पर बाहुबली थे, लेकिन रातों को जागकर शायरी लिखते थे। उनकी डायरी में वे सब दर्द थे जो उन्होंने कभी बच्चों या दुनिया से साझा नहीं किए। “मेरा शरीर एक जगह होता था, आत्मा दूसरी जगह,” उन्होंने लिखा। “मैं अपने बड़े बेटों को भी प्यार करता था और अपनी बेटियों ईशा और अहाना को भी। लेकिन समाज और हालात की दीवारों ने मुझे लाचार बना दिया।”

डायरी के एक पन्ने पर उन्होंने लिखा, “मैं अपनी जिंदगी में एक बहुत बड़ा गुनहगार हूँ। मैंने दो घर बनाए, लेकिन उन्हें एक घर नहीं बना पाया। मेरी रूह को सुकून तब तक नहीं मिलेगा जब तक मेरा पहला और दूसरा परिवार एक साथ नहीं बैठते।”

तीसरा अध्याय: डायरी का खुलासा

अंतिम संस्कार के तीन दिन बाद, नौकरों ने घर के पुराने कोने की सफाई के दौरान डायरी खोज निकाली। सनी देओल जब इसे पढ़ रहे थे, उनके हाथ काँप रहे थे। डायरी में लिखा था, “सनी, तुम मेरे सबसे बड़े हो। क्या तुम अपने पिता की इस अधूरी हसरत को पूरा कर सकोगे? क्या तुम अपनी माँ के सम्मान को ठेस पहुँचाए बिना हेमा और बच्चियों को सीने से लगा सकोगे?”

यह शब्द सनी के दिल में तीर की तरह चुभ गए। “मैं हिस्सों में बँट चुका था। लेकिन मैं चाहता हूँ कि मेरी मौत तुम्हें जोड़ दे।”

चौथा अध्याय: रात की कॉल

उस रात जूहू के बंगले में अजीब सी बेचैनी थी। सनी अपनी स्टडी में अकेले टहल रहे थे। उनके सामने 40 सालों का फ्लैशबैक था—बचपन की यादें, पिता से नाराजगी, माँ के आँसू और डायरी में लिखी पिता की आखिरी तड़प। एक तरफ माँ के प्रति वफादारी, दूसरी तरफ पिता की आत्मा की शांति।

आखिरकार दिल ने फैसला लिया। सवा 12 बजे, कांपते हाथों से सनी ने हेमा मालिनी का नंबर डायल किया। स्क्रीन पर नाम चमका—हेमा जी। फोन की घंटी बज रही थी। हर रिंग के साथ सनी की धड़कनें तेज हो रही थीं। क्या वह फोन उठाएंगी? दशकों की जमी बर्फ क्या एक फोन कॉल से पिघल पाएगी?

शहर के दूसरे कोने में हेमा मालिनी भी जाग रही थीं। धर्मेंद्र के जाने का गम उन्हें अंदर ही अंदर खाए जा रहा था। अचानक फोन की घंटी ने रात के सन्नाटे को तोड़ा। स्क्रीन पर सनी का नाम देखकर उनका दिल एक पल के लिए रुक सा गया।

उन्होंने फोन उठाया। कुछ पलों तक दोनों तरफ खामोशी रही। फिर सनी की भारी आवाज आई, “हेलो हेमा जी, मैं सनी। पापा की एक डायरी मिली है। उन्होंने लिखा है कि वह हमें एक साथ देखना चाहते थे। क्या आप कल घर आ सकती हैं? हम सब एक साथ पापा के लिए प्रार्थना करना चाहते हैं।”

हेमा मालिनी की आँखों से भी आँसू बह निकले। “हाँ बेटा, मैं आऊंगी।”

पाँचवाँ अध्याय: परिवार का मिलन

अगली सुबह जूहू के देओल हाउस के गेट खुले। सफेद गाड़ी से हेमा मालिनी, ईशा और अहाना उतरीं। उनके चेहरे पर दुख था, कदमों में हिचकिचाहट। क्या उन्हें वहाँ स्वीकार किया जाएगा? क्या प्रकाश कौर उन्हें अपनाएंगी?

ड्राइंग रूम में सनी ने पहली बार हेमा को बड़ी माँ जैसा सम्मान दिया। ईशा और अहाना, जो हमेशा अपने सौतेले भाइयों से दूर थीं, आज फूट-फूट कर रो रही थीं। सनी ने आगे बढ़कर ईशा के सिर पर हाथ रखा और उसे गले लगाया। अहाना को भी गले लगाकर रो पड़े। वर्षों की कड़वाहट, गलतफहमियाँ और सौतेले शब्द का जहर उस एक पल में खत्म हो गया।

यह मिलन सिर्फ दो परिवारों का नहीं था। यह धर्मेंद्र की अधूरी कहानी का पूरा होना था। मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि 27 नवंबर को दो अलग-अलग प्रार्थना सभाएँ हुईं—एक ताजलैंड्स में, एक हेमा मालिनी के घर पर। लेकिन अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, उस सुबह दोनों परिवार एक निजी पल के लिए मिले थे।

छठा अध्याय: धर्मेंद्र की आत्मा को शांति

दोपहर में पूरा परिवार—सनी, बॉबी, ईशा, अहाना—धर्मेंद्र की तस्वीर के सामने एक साथ बैठा। ऐसा लगा मानो तस्वीर में धर्मेंद्र मुस्कुरा रहे हों। वे जो जीते जी दोनों दुनियाओं को एक नहीं कर पाए, उनकी डायरी ने वह करिश्मा दिखा दिया।

नौकरों ने बताया, “उस दिन घर में पहली बार अजीब सा सुकून था। ऐसा लग रहा था कि धर्मेंद्र की आत्मा अब वाकई आजाद हो गई है।”

सनी ने समझ लिया था कि उनके पिता भी कितने मजबूर थे। प्यार और जिम्मेदारी के बीच पिसता हुआ एक आदमी, जो किसी को दुख नहीं देना चाहता था, लेकिन अंत में खुद सबसे ज्यादा दुखी रहा।

सातवाँ अध्याय: रिश्तों की डोर

इस पूरे घटनाक्रम में सबसे बड़ा सबक यह है कि इंसान चला जाता है, लेकिन उसके शब्द, उसकी भावनाएँ पीछे रह जाती हैं। धर्मेंद्र चले गए, लेकिन उन्होंने ऐसी विरासत छोड़ी जो सिर्फ फिल्मों तक सीमित नहीं है। उन्होंने सिखाया कि गलतियाँ इंसान से होती हैं, लेकिन उन्हें सुधारने का मौका कभी भी मिल सकता है—चाहे मौत के बाद ही क्यों न हो।

हम अक्सर छोटी-छोटी बातों पर रिश्ते तोड़ लेते हैं, अहंकार की दीवारें खड़ी कर लेते हैं। सोचिए अगर सनी ने उस रात डायरी न पढ़ी होती, या अगर उन्होंने अपने अहंकार को बीच में लाकर वह फोन न किया होता, तो क्या यह चमत्कार होता? शायद नहीं।

धर्मेंद्र सोशल मीडिया पर अपनी तन्हाई का इजहार करते रहे। उनकी कविता “पिंड अपने नु जावा” अब सिर्फ कविता नहीं, विदाई की ईंट बन गई है।

अंतिम अध्याय: प्यार को बांटो नहीं, समेटो

चाहे डायरी सच हो या अफवाह, इसने यह साबित कर दिया कि रिश्तों की डोर खून से भी ज्यादा भावनाओं से जुड़ी होती है। आज जब हम धर्मेंद्र को याद कर रहे हैं, तो उनकी आखिरी सीख को भी याद रखें—”प्यार को बांटो नहीं, उसे समेटो।”

सनी देओल ने उस रात एक बेटे का फर्ज निभाया—ना सिर्फ अंतिम संस्कार करके, बल्कि अपने पिता के बिखरे हुए परिवार को समेटकर। आज देओल परिवार एक है। अलग-अलग छतों के नीचे रहते हुए भी उनके दिल अब एक साथ धड़कते हैं। ईशा और अहाना को उनके बड़े भाई मिल गए, सनी-बॉबी को छोटी बहनें। और इस सबके केंद्र में कहीं ऊपर सितारों के बीच बैठे धर्मेंद्र अपनी ट्रेडमार्क मुस्कान के साथ कह रहे होंगे—

लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी।

समापन

यह थी वह अनकही दास्तान जो 24 नवंबर की उस मनहूस खबर के बाद शुरू हुई—एक डायरी, एक फोन कॉल और आंसुओं में धुली हुई एक सुबह। बॉलीवुड की चमक-दमक के पीछे कितने अंधेरे कोने होते हैं, यह कहानी इसका जीता-जागता सबूत है। अगर आपके मन में भी किसी के लिए गिले-शिकवे हैं, तो आज ही फोन उठाइए और उस दूरी को मिटा दीजिए। धर्मेंद्र तो चले गए, लेकिन उनका यह आखिरी किस्सा हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेगा।

अलविदा ही-मैन, आपका सफर अब उस दुनिया में जारी रहेगा जहाँ कोई सरहद नहीं, कोई दूरी नहीं।