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धर्मेंद्र जी, भारतीय सिनेमा के दिग्गज अभिनेता, 24 नवंबर 2023 को इस दुनिया को छोड़कर चले गए। उनके निधन ने न केवल उनके परिवार को बल्कि उनके लाखों प्रशंसकों को भी गहरे शोक में डाल दिया। धर्मेंद्र जी के अंतिम समय में क्या हुआ, इस पर कई तरह की चर्चाएँ और अटकलें लगाई जा रही हैं। हाल ही में उनके नौकर ने कुछ ऐसे खुलासे किए हैं, जो इस पूरे घटनाक्रम को और भी दिलचस्प बना देते हैं।

धर्मेंद्र जी की तबीयत

धर्मेंद्र जी की तबीयत पिछले कुछ दिनों से नाजुक चल रही थी। उनके नौकर ने बताया कि वह ठीक से खाना-पीना नहीं कर पा रहे थे और उनकी हालत लगातार बिगड़ती जा रही थी। खासकर 24 तारीख की रात को उनकी स्थिति गंभीर हो गई थी। रात 3:00 बजे से ही उन्हें सांस लेने में दिक्कत होने लगी थी। इस दौरान बॉबी देओल ने घर में डॉक्टर को बुलाया। डॉक्टर ने आकर कहा कि उनकी लंग्स 90% फेल हो चुकी हैं और उन्हें बचाना बहुत मुश्किल होगा।

इस स्थिति में डॉक्टर ने परिवार को सलाह दी कि वे जिन-जिन को बुलाना चाहते हैं, उन्हें बुला लें ताकि वह धर्मेंद्र जी से मिल सकें। लेकिन इस मुश्किल घड़ी में सनी देओल ने केवल अपने भाई बॉबी को फोन किया, और किसी को नहीं बुलाया।

अंतिम क्षण

सुबह लगभग 6:00 बजे धर्मेंद्र जी ने अपनी अंतिम सांस ली। उनके अंतिम क्षणों में केवल परिवार के सदस्य मौजूद थे। लेकिन इस दौरान हेमा मालिनी का परिवार वहां नहीं था। यह एक ऐसा क्षण था जिसमें परिवार के सदस्यों का रो-रो कर बुरा हाल हो गया।

धर्मेंद्र जी के निधन के बाद, देओल परिवार ने आनन-फानन में उनका अंतिम संस्कार करने का निर्णय लिया। यह निर्णय अचानक लिया गया और इसके पीछे कई कारण थे।

राजकीय सम्मान का अभाव

धर्मेंद्र जी को भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। लेकिन उनके अंतिम संस्कार में राजकीय सम्मान नहीं दिया गया। परिवार ने यह तय किया कि यदि राजकीय सम्मान दिया जाता, तो इसमें हेमा मालिनी को भी शामिल किया जाना पड़ता। यह स्थिति प्रकाश कौर, धर्मेंद्र जी की पहली पत्नी, के लिए संवेदनशील होती।

परिवार ने यह महसूस किया कि यदि धर्मेंद्र जी की पार्थिव देह को घर पर रखा गया, तो मीडिया सवाल उठाएगा और यह स्थिति और भी जटिल हो जाएगी। इसलिए, उन्होंने जल्दी से अंतिम संस्कार करने का निर्णय लिया।

मीडिया की भूमिका

धर्मेंद्र जी के निधन के बाद मीडिया की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही। परिवार ने यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया कि मीडिया को कोई भी कवरेज करने का मौका न मिले। एंबुलेंस में धर्मेंद्र जी की पार्थिव देह के ऊपर कोई फूल या तस्वीर नहीं रखी गई, ताकि मीडिया को कोई भी तस्वीर लेने का मौका न मिले।

हालांकि, कई प्रशंसक घर के बाहर खड़े थे और रोते हुए नजर आए। वे धर्मेंद्र जी के अंतिम दर्शन करना चाहते थे, लेकिन उन्हें यह अवसर नहीं मिला।

परिवार की नाराजगी

इस पूरे घटनाक्रम में परिवार के भीतर की नाराजगी भी देखने को मिली। धर्मेंद्र जी के निधन के बाद, सनी और बॉबी ने अपने पिता के साथ मौजूद रहने का प्रयास किया, लेकिन हेमा मालिनी को इस मौके पर शामिल नहीं किया गया। यह स्थिति कहीं न कहीं पारिवारिक तनाव को दर्शाती है।

क्या परिवार ने सही किया?

इस पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या देओल परिवार ने सही निर्णय लिया? क्या इस नाजुक घड़ी में उन्हें हेमा मालिनी और उनकी बेटियों, ईशा और अहाना, को घर में नहीं बुलाना चाहिए था? क्या सालों पुरानी यह नाराजगी और दुश्मनी खत्म कर देनी नहीं चाहिए थी?

इन सवालों के जवाब देना आसान नहीं है। एक तरफ, परिवार की भावनाएँ हैं, और दूसरी तरफ, सामाजिक मान्यताएँ। यह एक जटिल स्थिति है जिसमें हर किसी की भावनाएँ शामिल हैं।

हेमा मालिनी का दृष्टिकोण

हेमा मालिनी ने अपने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। उन्होंने हमेशा धर्मेंद्र की इज्जत की है और कभी भी उन्हें छोड़ने की कोशिश नहीं की। उनका दृष्टिकोण इस रिश्ते को समझने में मदद करता है। उन्होंने कभी शिकायत नहीं की कि धर्मेंद्र रात को क्यों चले जाते हैं या उनके साथ क्यों नहीं रहते।

यह कहानी हमें यह सिखाती है कि प्यार का मतलब हमेशा हासिल करना नहीं होता। कभी-कभी प्यार का मतलब होता है समझौता। एक ऐसा समझौता, जिसमें दोनों पक्ष अपनी-अपनी कुछ खुशियों की कुर्बानी देते हैं ताकि रिश्ता जिंदा रहे।

प्रकाश कौर की सहनशक्ति

प्रकाश कौर की कहानी भी इस पूरे घटनाक्रम में महत्वपूर्ण है। एक पत्नी के तौर पर यह जानना कि आपका पति किसी और महिला से शादी कर चुका है और उसके साथ वक्त बिताता है, किसी कयामत से कम नहीं होता। लेकिन प्रकाश कौर ने कभी भी अपनी भावनाएँ सार्वजनिक नहीं कीं। उन्होंने अपने बेटों, सनी और बॉबी, को संभाला और धर्मेंद्र को उनके परिवार से जोड़े रखा।

निष्कर्ष

धर्मेंद्र जी का निधन एक युग का अंत है। उनके अंतिम समय में जो कुछ भी हुआ, उसने उनके परिवार और प्रशंसकों को गहरे सदमे में डाल दिया। यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि रिश्तों की जटिलताएँ और सामाजिक मान्यताएँ कैसे जीवन को प्रभावित कर सकती हैं।

क्या धर्मेंद्र जी का फैसला सही था? क्या दो परिवारों को इस तरह अधर में लटकाए रखना न्याय था? शायद नैतिक तौर पर हम इसे गलत कह सकते हैं। लेकिन जब आप हेमा मालिनी की आँखों में देखते हैं, तो वहां शिकायत नहीं बल्कि एक सुकून दिखता है।

यह कहानी हमें बताती है कि जिंदगी ब्लैक एंड व्हाइट नहीं होती, यह ग्रे होती है। कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जिन्हें कोई नाम नहीं दिया जा सकता। उन्हें सिर्फ महसूस किया जा सकता है। धर्मेंद्र और हेमा की यह दास्तान बॉलीवुड की सबसे बड़ी लव स्टोरी है या सबसे बड़ा समझौता, इसका फैसला तो देखने वालों को करना है।