DM मैडम को आम लड़की समझ कर जब इंस्पेक्टर नें थप्पड़ मारा और फिर इंस्पेक्टर के साथ जों हुवा…

.
.

प्रस्तावना

गांव के बाहर एक छोटी सी सड़क पर एक पुरानी स्कूटी चलाते हुए आर्मी कैप्टन राधिका सिंह अपनी मां शांति देवी को लेकर जरूरी सामान लेने जा रही थी। उनके साथ उनकी बड़ी बहन अंजलि सिंह, जो शहर की डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट (डीएम) थी, परिवार की इकलौती ताकत थी। शांति देवी ने अपने दोनों बेटियों को अकेले पाल-पोसकर इस मुकाम तक पहुंचाया था, और उनकी आंखों में गर्व और खुशी दोनों झलक रहे थे।

पहला संघर्ष

जैसे ही वे शहर के बाहरी इलाके की तरफ बढ़ीं, रास्ते में एक पुलिस बैरियर लगा था। इंस्पेक्टर विक्रम राठौर जीप के बोनट पर पैर फैलाए बैठा था, जबकि दो हवलदार सुरेश और रमेश लाठी लेकर आने-जाने वालों से जबरदस्ती पैसे वसूल रहे थे। राधिका ने जैसे ही बैरियर पार करने की कोशिश की, विक्रम ने उन्हें रोक लिया।

“कागज दिखाओ,” उसने गरजते हुए कहा। राधिका ने बिना डरे अपने कागज पेश किए, लेकिन विक्रम ने उन्हें हवा में उछाल दिया और आरोप लगाए कि ये नकली हैं। राधिका ने विनम्रता से कहा, “सर, हमारे चालान काट लीजिए, लेकिन इस तरह बदतमीजी मत करें।”

इंस्पेक्टर विक्रम का गुस्सा बढ़ गया और उसने राधिका को थप्पड़ जड़ दिया। सड़क पर सन्नाटा छा गया। शांति देवी ने चीखते हुए पूछा, “मेरी बेटी को क्यों मारा?” लेकिन पुलिस वालों ने उन्हें भी धमकाया।

अपराध और बेबसी

राधिका, जो सीमा पर दुश्मनों से लड़ चुकी थी, आज अपने ही शहर में पुलिस की बर्बरता का शिकार हुई थी। वह जानती थी कि अगर उसने हाथ उठाया तो मामला और बिगड़ जाएगा, इसलिए चुप रही, लेकिन दिल में आग जल रही थी।

इंस्पेक्टर विक्रम ने मां और बेटी को जीप में जबरदस्ती ठूंस दिया और थाने ले गए। वहां वे बदसूरत कोठरी में बंद कर दिए गए, जहां सिसकियों की आवाजें दीवारों से टकरा रही थीं।

वीडियो वायरल

घटना का वीडियो एक नौजवान ने चुपचाप रिकॉर्ड किया था, जो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। लोगों में पुलिस की इस गुंडागर्दी के खिलाफ गुस्सा फैल गया। डीएम अंजलि सिंह को जब इस बात की जानकारी मिली, तो वह फौरन अपनी बहन और मां की मदद के लिए आगे बढ़ी।

थाने की हकीकत

थाने में स्थिति खराब थी। शराब के नशे में एक सब इंस्पेक्टर ने भी बदसलूकी की। शांति देवी की तबीयत बिगड़ने लगी, लेकिन पुलिस ने कोई मदद नहीं की। राधिका ने बार-बार डॉक्टर बुलाने की गुहार लगाई, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं था।

डीएम का संघर्ष

अंजलि सिंह ने प्रशासन में हड़कंप मचा दिया। उन्होंने पूरे जिले के थानों की शिकायतों की जांच शुरू करवाई। उन्होंने पुलिस कर्मियों को चेतावनी दी कि यदि किसी भी व्यक्ति के साथ दुर्व्यवहार हुआ तो कड़ी कार्रवाई होगी।

लेकिन विरोध भी हुआ। कुछ अफसर और नेता अंजलि के खिलाफ साजिशें रचने लगे। ट्रांसफर की धमकियां दी गईं, लेकिन अंजलि ने हार नहीं मानी।

अस्पताल और न्याय

शांति देवी को अस्पताल में भर्ती कराया गया। डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें गंभीर अस्थमा अटैक आया है। अंजलि और राधिका ने मां की देखभाल की और न्याय के लिए लड़ाई जारी रखी।

अंततः इंस्पेक्टर विक्रम और अन्य दोषियों को निलंबित कर दिया गया। अंजलि ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर पूरे सिस्टम की पोल खोल दी। उन्होंने घोषणा की कि जिले में मानवाधिकारों की रक्षा के लिए कड़े कदम उठाए जाएंगे।

समाज में बदलाव

लोगों ने अंजलि का समर्थन किया। सड़कें भर गईं लोगों के नारे से, “ट्रांसफर नहीं, सम्मान दो!” धीरे-धीरे जिले में पुलिस की छवि सुधरी। थानों में अब सम्मान और इंसानियत का माहौल बनने लगा।

निष्कर्ष

अंजलि और राधिका ने मिलकर न केवल अपने परिवार के अपमान का बदला लिया, बल्कि पूरे जिले में भ्रष्टाचार और अत्याचार के खिलाफ लड़ाई छेड़ी। उनकी कहानी यह सिखाती है कि एक व्यक्ति की हिम्मत पूरे सिस्टम को बदल सकती है।

.

.

 

सीख:
सच्चाई और न्याय के लिए लड़ाई कठिन होती है, लेकिन हार मानना विकल्प नहीं। परिवार और समाज की ताकत से हर अन्याय का मुकाबला किया जा सकता है।