DM मैडम दुल्हन बनकर आधी रात थाने में पहुंची तो दरोगा ने थाने में ही पकड़ कर किया कांड

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दिल्ली का वो थाना: इंसाफ, डर और बदलाव

दिल्ली, शहर जो कभी सोता नहीं। यहाँ की गलियों में रौशनी जितनी तेज़ है, उतने ही गहरे अंधेरे भी छुपे हैं। पटपटगंज का थाना—जहाँ औरतें इंसाफ की उम्मीद लेकर आती थीं, लेकिन अक्सर मायूस लौट जाती थीं। वजह थी दरोगा रमेश यादव, जिसकी वर्दी के पीछे छुपा था हवस और भ्रष्टाचार का अड्डा। रमेश की उम्र करीब चालीस साल थी, गठीला शरीर, चौड़ा माथा, और आँखों में शिकारियों सी चमक। बाहर से आदर्श अफ़सर, भीतर से गंदगी का पुतला।

हर दिन थाने की टूटी-फूटी कुर्सियों पर लोग बैठते—कोई बेटे की गिरफ्तारी छुड़वाने, कोई झगड़े की शिकायत लेकर, कोई एफआईआर की कॉपी लेने। लेकिन अगर कोई शादीशुदा महिला अकेली आती, रमेश की आँखें चमक उठतीं। वह मजबूरी का फायदा उठाकर धमकी देता—”केस दर्ज कराना है तो पहले मेरी बात मानो।” कई महिलाएँ रोते-रोते लौट जातीं, कुछ डर के मारे चुप रह जातीं।

एक दिन दोपहर में रीना नाम की महिला आई। सिर पर पल्लू कसकर, थकी और डरी हुई। “साहब, मेरे पति रोज शराब पीकर मारते हैं। रिपोर्ट लिखवा दीजिए।” रमेश ने ऊपर से नीचे तक घूरा, मुस्कुराया—”बहन जी, यह घर-गृहस्थी की बातें हैं। पुलिस में आने से बदनामी होगी। अगर चाहो तो अकेले में बात कर सकते हैं। तुम्हें भी थोड़ा मेरा साथ देना होगा।” रीना समझ गई, सफेद पड़ गई। काँपती आवाज़ में बोली, “साहब, मैं बस शिकायत लिखवाना चाहती हूँ।” रमेश ने स्वर बदल लिया—”बिना मेरी मदद के कुछ नहीं होगा। सोच लो, यहाँ सब मेरे इशारे पर चलता है।” रीना रोती हुई बाहर निकल गई।

ऐसी घटनाएँ आम थीं। दिल्ली की औरतें दोहरी कैद में थीं—एक तरफ पति या ससुराल का जुल्म, दूसरी तरफ थाने के दरोगा का डर। अगर आवाज़ उठातीं, मोहल्ले वाले ताने देते, “पुलिस में क्यों गई थी? अपनी इज्जत खुद मिटा ली।” अगर चुप रहतीं, जुल्म बढ़ता जाता। रमेश इस डर का फायदा उठाता, क्योंकि उसे पता था—औरतें बदनामी के डर से खुलकर शिकायत नहीं करेंगी।

रमेश के साथी भी सब जानते थे, लेकिन या तो डरते थे या खुद भी छोटे-छोटे फायदे ले लेते थे। भ्रष्टाचार की जड़ गहरी हो चुकी थी। लेकिन एक महिला की हिम्मत टूटने की बजाय और मजबूत हुई—सीमा वर्मा। पढ़ी-लिखी थी, प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती थी। उसका पति बेरोजगार और शराबी था, अक्सर सीमा पर हाथ उठाता।

एक दिन सीमा थाने पहुँची। रमेश ने वही पुराना खेल शुरू किया—”तुम चाहो तो मैं तुम्हारे पति को जेल भिजवा दूँ, लेकिन तुम्हें भी मुझे खुश करना होगा।” सीमा की आँखों में आँसू थे, लेकिन इस बार उसने कुछ अलग सोचा। वह चुपचाप घर लौटी और अगले ही दिन सीधे डीएम ऑफिस पहुँची।

दिल्ली जिले की डीएम थी आरती सिंह। तीस की उम्र में ही तेजतर्रार, आत्मविश्वासी और ईमानदार अफ़सर के रूप में पहचान बना चुकी थीं। उनकी डेस्क पर फाइलों का ढेर था, लेकिन जब सीमा रोते हुए सामने आई, आरती ने सब काम रोक दिया। “आराम से बताइए क्या हुआ?” सीमा ने हिचकिचाते हुए सब सच बता दिया। आरती ने ध्यान से सुना, फिर गहरी साँस लेकर बोली, “अगर यह सच है, तो एक दरोगा ने वर्दी की इज्जत मिटाई है।”

सीमा की आँखों में उम्मीद की चमक आई—”मैडम क्या मुझे इंसाफ मिलेगा?”
आरती ने दृढ़ता से कहा, “हाँ, जरूर मिलेगा। और सिर्फ तुम्हें ही नहीं, उन सबको जो अब तक चुप रहीं।”

आरती सिंह ने गुप्त रूप से जांच शुरू की। सीमा जैसी और भी महिलाओं से मिलकर सच्चाई इकट्ठा करनी थी। उन्होंने अपने भरोसेमंद स्टाफ—संदीप और ज्योति—को बुलाया।
“यह काम बहुत संवेदनशील है। हमें रमेश यादव को रंगे हाथ पकड़ना है।”

धीरे-धीरे कई औरतों के बयान मिले। सभी की कहानी लगभग एक जैसी थी, बस हालात अलग-अलग। कविता, दो बच्चों की मां, पति रिक्शा चलाता था। मोहल्ले में झगड़ा हुआ तो थाने पहुँची। रमेश ने कहा, “अगर केस वापस लेना चाहती हो तो अकेले मिलना होगा।” कविता रोते हुए बोली, “साहब, मेरी इज्जत ही सब कुछ है।” रमेश हँसते हुए बोला, “इज्जत की बात मत करो। अगर पुलिस मदद ना करे तो कोई तुम्हें बचा नहीं सकता।” कविता किसी तरह भाग निकली, लेकिन आज तक उसे अपने फैसले का अफ़सोस था—”काश उस दिन मैंने आवाज़ उठाई होती।”

नीलम का पति प्रॉपर्टी डीलर था। उस पर झूठा केस लग गया। पति को छुड़वाने गई तो रमेश ने साफ कहा—”अगर चाहती हो कि तुम्हारा आदमी जेल ना जाए तो मुझे खुश करो।” नीलम ने विरोध किया, तो रमेश ने धमकाया—”ठीक है, तुम्हारा आदमी 10 साल अंदर रहेगा।” नीलम का पति सचमुच जेल चला गया। आज तक वह रमेश के नाम से कांप उठती है।

जब आरती ने यह सब सुना, रात भर सो नहीं पाईं। उन्होंने डायरी में लिखा—”वर्दी का मतलब सुरक्षा है, डर नहीं। अगर पुलिस ही औरतों का शोषण करेगी तो समाज कैसे जिंदा रहेगा।”

आरती ने योजना बनाई—थाने के बाहर निगरानी, पीड़ित महिलाओं के बयान, सबूत इकट्ठा करना ताकि कोर्ट में टिक सके। संदीप ने कहा, “मैडम, यह आसान नहीं होगा। रमेश चतुर है, सबको खरीद लेता है।”
आरती बोली, “इस बार वह किसी को नहीं खरीद पाएगा। हम उसकी चाल से भी चालाक बनेंगे।”

कहानी सिर्फ थाने तक सीमित नहीं थी। दिल्ली की गलियों में औरतों का संघर्ष हर दिन चलता था—मेट्रो में सफर करती लड़कियाँ, फैक्ट्री में काम करने वाली मजदूर औरतें, स्कूल में पढ़ाती टीचर। हर जगह उन्हें डर झेलना पड़ता था। आरती चाहती थीं कि यह केस सिर्फ रमेश यादव का नहीं रहे बल्कि एक संदेश बने कि औरतें अब चुप नहीं रहेंगी।

एक शाम सीमा फिर से थाने गई। इस बार उसके पीछे गुप्त रूप से आरती की टीम थी। रमेश ने उसे देखते ही मुस्कुराया—”अरे तुम फिर आ गई। चलो अंदर चलकर बात करते हैं।” सीमा का गला सूख गया, लेकिन उसने हिम्मत जुटाई—”साहब, मुझे रिपोर्ट लिखवानी है।” रमेश ने फिर वही बात दोहराई—”अकेले में बात करेंगे तो सब ठीक हो जाएगा।” आरती की टीम ने बाहर से यह सब रिकॉर्ड कर लिया। अब उनके पास सबूत था दरोगा का असली चेहरा।

आरती ने सोचा, अब वक्त आ गया है। लेकिन पर्दाफाश ऐसा होना चाहिए कि पूरे दिल्ली में गूंजे। उन्होंने अपनी डायरी में लिखा, “मैं इस दरोगा का सच उसी के अड्डे पर उजागर करूंगी और वह भी ऐसे कि हर महिला देखे और सीखे कि डरना नहीं है।”

उनके दिमाग में एक अनोखी योजना बनने लगी—दुल्हन के जोड़े में जांच।
रात गहरी हो रही थी। दिल्ली की सड़कों पर गाड़ियाँ दौड़ रही थीं, लेकिन डीएम आरती सिंह की खिड़की की बत्ती अब भी जल रही थी। उन्होंने लाल रंग का दुपट्टा उठाया—शायद वही दुपट्टा जो उन्हें जल्द ही एक नई पहचान देने वाला था।

आरती ने खुद से कहा—”अब वर्दी की आड़ में शैतानियत का खेल खत्म होगा। औरतें अब डरेंगी नहीं।”

अगले कुछ दिनों तक टीम ने बारीकी से योजना बनाई। थाने के बाहर गुप्त कैमरे लगाए गए, कुछ सिपाहियों को विश्वास में लिया गया, सीमा और बाकी महिलाओं को सुरक्षित जगह पर रखा गया। आरती ने खुद दुल्हन का जोड़ा मंगवाया—लाल रंग की साड़ी, माथे पर बिंदी, गले में मंगलसूत्र। आईने के सामने खड़ी होकर उन्होंने खुद को देखा—सचमुच किसी नई नवेली दुल्हन जैसी लग रही थीं, लेकिन दिल में तूफान था।

गाड़ी धीरे-धीरे थाने के बाहर रुकी। आरती सिंह का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। हाथों से पल्लू खींच कर चेहरा ढक लिया। संदीप ने खिड़की से झांक कर कहा, “मैडम, हम बाहर ही रहेंगे। अंदर जाते ही आप अकेली होंगी, सावधान रहिएगा।”
आरती ने सिर हिलाया और गहरी साँस ली। थाने के दरवाजे से अंदर जाते ही वही पुरानी बदबू—पसीने, धुएं और बासी फाइलों की। सिपाही ने दुल्हन को देखकर चौंक कर पूछा, “अरे बहन जी, कोई केस है क्या?”
आरती ने धीमी आवाज़ में कहा, “हाँ, शिकायत लिखवानी है।”
सिपाही ने तुरंत दरोगा रमेश यादव के कमरे की ओर इशारा किया।

दरवाजे पर दस्तक हुई। “आओ।”
आरती धीरे से अंदर गई। रमेश ने लाल जोड़े वाली औरत को देखकर भौंहें उठाई। उसकी आँखों में शिकारी चमक आ गई।
रमेश कुर्सी पर पीछे झुकते हुए बोला, “अरे नई नवेली दुल्हन, बताइए कैसी शिकायत है?”
आरती ने सिर झुका कर धीमी आवाज़ में कहा, “साहब, ससुराल वाले परेशान करते हैं। पति भी मारते हैं। मदद चाहिए।”
रमेश कुर्सी से उठकर पास आया, दरवाजा धीरे से बंद कर दिया। “डरने की जरूरत नहीं है। मैं सब संभाल लूंगा, लेकिन तुम्हें भी मेरा साथ देना होगा। अकेले में बात करेंगे तो मसला हल हो जाएगा।”

आरती का खून खौल रहा था। लेकिन वह चाहती थी कि रमेश अपनी गंदी नियत पूरी तरह उजागर करे।
रमेश आगे बढ़ा—”इतनी सुंदर दुल्हन को देखकर तो कोई भी पिघल जाए। चलो अंदर बैठकर आराम से बात करते हैं।”
अचानक आरती ने पल्लू हटाया। चेहरे पर तेज़ चमक और आँखों में आग—”रुक जाओ दरोगा रमेश यादव!”

रमेश ठिठक गया। कुछ पल के लिए उसे कुछ समझ नहीं आया।
आरती ने जोर से कहा, “मैं दिल्ली जिले की डीएम आरती सिंह हूँ और आज मैंने तुम्हें रंगे हाथ पकड़ लिया है।”
रमेश का चेहरा सफेद पड़ गया, होंठ काँपने लगे। “मैडम, आप ये…”
आरती ने बीच में ही टोक दिया—”चुप! अब कोई बहाना नहीं चलेगा। तुम्हारी हरकतों की शिकायतें महीनों से मेरे पास आ रही थीं। आज तुम्हारा सच पूरी दिल्ली देखेगी।”

बाहर खड़े संदीप और ज्योति तुरंत कमरे में घुसे। कैमरे चालू थे, हर पल रिकॉर्ड हो रहा था।
आरती ने ऊंची आवाज़ में कहा—”लोगों को लगता है कि वर्दी सुरक्षा का प्रतीक है। लेकिन तुमने इसे औरतों के डर और मजबूरी का औजार बना दिया। अब तुम्हें इसका हिसाब देना होगा।”

थाने के बाकी सिपाही भी जमा हो गए। कुछ के चेहरे पर शर्म थी, कुछ के चेहरे पर राहत क्योंकि वे भी जानते थे कि रमेश की करतूतें सबको बदनाम कर रही थीं।
आरती ने आदेश दिया—”दरोगा रमेश यादव को तुरंत हिरासत में लो और निलंबन की कार्रवाई अभी से शुरू करो।”
सिपाहियों ने आगे बढ़कर रमेश के हाथ से बैज और रिवॉल्वर छीन लिए। उसकी आँखों में बेबसी थी।
रमेश गिड़गिड़ाते हुए बोला—”मैडम, मुझसे गलती हो गई। मुझे माफ कर दीजिए।”
आरती ने कड़क स्वर में कहा—”गलती नहीं, गुनाह है और इसकी सजा तुम्हें जरूर मिलेगी।”

कुछ ही घंटों में खबर पूरे इलाके में फैल गई। थाने के बाहर भीड़ जमा हो गई। सीमा, कविता, नीलम—वह सब औरतें भी आईं जिन्हें रमेश ने कभी डराया था। उनकी आँखों में पहली बार डर नहीं, बल्कि साहस था।
सीमा ने कहा—”मैडम, आपने हमें आवाज दी। आज लगता है कि औरतें सचमुच अकेली नहीं हैं।”
आरती मुस्कुराई—”यही तो संदेश देना था। डर खत्म होता है जब कोई आवाज़ उठाता है। अब आप सबको अपनी आवाज़ खुद बननी होगी।”

रात को टीवी चैनलों पर यही खबर चल रही थी—”दिल्ली की डीएम ने दुल्हन का रूप धारण कर किया दरोगा का पर्दाफाश। शादीशुदा महिलाओं का शोषण करने वाला दरोगा रमेश यादव सस्पेंड।”

आरती सिंह ऑफिस की खिड़की से बाहर देख रही थीं। दिल्ली की रोशनी में उन्हें एक नई उम्मीद दिखाई दे रही थी।
उन्होंने मन ही मन कहा—”यह तो बस शुरुआत है। असली लड़ाई अब शुरू होगी।”

दरोगा रमेश यादव को जब थाने से हथकड़ी लगाकर निकाला गया तो गली-मोहल्लों में खलबली मच गई। कभी वही लोग जो उसकी रौबदार चाल पर सिर झुका लेते थे, आज खुलेआम कह रहे थे—”देखा, आखिरकार इसकी करतूतें सामने आ ही गई। कितने सालों से औरतों का जीना हराम कर रखा था इसने।”

रमेश सिर झुकाए था। उसके चेहरे पर शर्म से ज्यादा डर था। वह बार-बार बुदबुदा रहा था—”मुझे फंसाया गया है। मैं निर्दोष हूँ।” लेकिन अब कोई सुनने वाला नहीं था।

कुछ ही हफ्तों में मामला कोर्ट पहुँच गया। सीमा, कविता, नीलम और कई और औरतें अदालत में गवाही देने आईं। शुरुआत में उनकी आवाज़ कांप रही थी, लेकिन जब उन्होंने आरती सिंह को सामने देखा तो उनमें हिम्मत आ गई।

सीमा ने गवाही देते हुए कहा—”माय लॉर्ड, यह वही दरोगा है जिसने मुझे धमकाया था। अगर मैं उसकी बात ना मानूं तो केस दबाने की धमकी दी थी।”
कविता ने आँसू पोछते हुए कहा—”इस आदमी ने वर्दी की आड़ में हमारी इज्जत को बार-बार चोट पहुँचाई। हम डरते रहे, लेकिन आज सच बोल रही हूँ।”

जज ने गंभीर स्वर में टिप्पणी की—”वर्दी समाज की रक्षा का प्रतीक है, ना कि डराने और शोषण करने का औजार। ऐसे अधिकारियों के लिए अदालत का रुख सख्त होगा।”

आरती कोर्ट के बाहर मीडिया से घिरी हुई थीं। पत्रकारों ने सवाल दागे—”मैडम, क्या यह एक अकेले दरोगा का मामला है या सिस्टम की नाकामी भी है?”
आरती ने दृढ़ता से कहा—”यह सिर्फ एक दरोगा की कहानी नहीं है। यह चेतावनी है कि अगर कोई भी अफसर सीमा पार करेगा तो उसके खिलाफ सख्त कदम उठाया जाएगा। अब औरतें चुप नहीं रहेंगी।”

उनके इस बयान ने पूरे दिल्ली में हलचल मचा दी। धीरे-धीरे कई महिलाएँ आगे आने लगीं—किसी ने घरेलू हिंसा की शिकायत की, किसी ने कार्यस्थल पर शोषण का मामला उठाया। अब वे अकेली नहीं थीं, क्योंकि उन्हें विश्वास था कि उनके पीछे डीएम आरती सिंह जैसी महिला खड़ी है।

दिल्ली के कॉलेजों, मोहल्लों और बाजारों में चर्चा होने लगी—”देखा, औरतें भी चाहे तो दरोगा जैसे ताकतवर को गिरा सकती हैं। अब वक्त आ गया है कि हम भी आवाज़ उठाएँ।”

आरती सिंह ने इस मौके को एक बड़े अभियान में बदल दिया। उन्होंने महिला संगठनों के साथ मिलकर “आवाज़ उठाओ” नाम का कार्यक्रम शुरू किया। हर थाना परिसर में महिला हेल्प डेस्क बनाई गई। शिकायत दर्ज करने के लिए महिलाओं को अलग सुरक्षित कमरा दिया गया। महिला पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़ाई गई। हर गली-मोहल्ले में जागरूकता कैंप लगाए गए।

आरती खुद कई जगह गईं और मंच से बोलीं—”बहनों, डरने का समय खत्म हुआ। अगर कोई भी आपका शोषण करने की कोशिश करे तो बिना डरे पुलिस, प्रशासन और अदालत का दरवाजा खटखटाइए। अब समाज बदलेगा क्योंकि आप बदल रही हैं।”

भीड़ से जोरदार तालियाँ गूंज उठीं।

कई महीनों की सुनवाई के बाद अदालत ने फैसला सुनाया—दरोगा रमेश यादव को सेवा से बर्खास्त किया जाता है। साथ ही महिला शोषण और पद के दुरुपयोग के अपराध में कठोर सजा दी जाती है। रमेश के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थीं। कभी जो खुद लोगों को हथकड़ी पहनाता था, आज वही कैदी बन गया।

रमेश यादव की गिरफ्तारी और सजा एक मिसाल बन गई। दिल्ली की गलियों में अब औरतें थोड़ी ज्यादा बेखौफ चलने लगीं। थानों में महिला हेल्प डेस्क पर रोज नई शिकायतें आने लगीं। सीमा ने स्कूल में लड़कियों से कहा—”बेटियों, हमेशा याद रखना चुप रहना सबसे बड़ा गुनाह है। आवाज़ उठाओ चाहे सामने कितना भी बड़ा आदमी क्यों ना हो।”
कविता ने मोहल्ले में अन्य महिलाओं के साथ महिला सुरक्षा समूह बनाया। नीलम ने जेल में बंद अपने पति को छुड़ाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी और जीत हासिल की।

एक शाम दिल्ली के इंडिया गेट पर महिला सुरक्षा रैली आयोजित हुई। हजारों महिलाएँ इकट्ठी थीं। बैनर पर लिखा था—”अब चुप्पी नहीं होगी, आवाज़ होगी।”
मंच पर आरती सिंह खड़ी थीं। उन्होंने भीड़ को संबोधित किया—”बहनों और भाइयों, यह लड़ाई सिर्फ महिलाओं की नहीं है। यह समाज की लड़ाई है। हमें ऐसा देश बनाना है जहाँ कोई भी औरत पुलिस, अदालत या समाज से डरकर चुप ना रहे।”

भीड़ से एक स्वर उठा—”हम डरे नहीं हैं।”
आरती की आँखों में चमक थी। उन्होंने आसमान की ओर देखा और मन ही मन कहा—”आज वर्दी का असली सम्मान लौट आया है।”