DM मैडम सड़क किनारे साधे कपड़ों मे गन्ने का जूस पी रही थी ; दरोगा ने हाथ पकड़ा , और थप्पड़ मारा …

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“न्याय की लौ: डीएम अनन्या सक्सेना की कहानी”

पहला अध्याय: संघर्ष की शुरुआत

अनन्या सक्सेना, जो एक तेज़-तर्रार और न्यायप्रिय जिलाधिकारी थीं, एक दिन दोपहर की चिलचिलाती धूप में गन्ने के जूस के ठेले पर रुक गईं। हल्के पीले सलवार-कमीज और क्रीम रंग के दुपट्टे में लिपटी, उनके चेहरे पर थकान के बावजूद एक हल्की मुस्कान थी। तभी दरोगा किशोर सिंह, जो 50 के करीब उम्र के और गर्मी से झुंझलाए हुए थे, वहां आए। उन्होंने अनन्या को सड़क किनारे साधारण कपड़ों में खड़ी देख संदिग्ध समझा और बिना पूछे जोरदार थप्पड़ जड़ दिया।

परंतु जब दरोगा ने अनन्या का सरकारी पहचान पत्र देखा, तो उनकी सारी हिम्मत जवाब दे गई। अनन्या ने दरोगा की गलती पर ध्यान दिए बिना कहा, “माफ करना मेरा काम नहीं, इंसाफ करना मेरा फर्ज है।”

दरोगा किशोर सिंह को निलंबित कर दिया गया, लेकिन यह घटना एक बड़ी साजिश की शुरुआत थी। अनन्या के खिलाफ धमकियां बढ़ने लगीं। एक रात उनके सरकारी आवास में अंधेरा छा गया, नेटवर्क बंद हो गया, और नकाबपोश हमलावरों ने घेर लिया। अनन्या ने अपने साहस और कुशलता से हमलावरों को मात दी और पुलिस की मदद से उन्हें गिरफ्तार कराया।

इस हमले के पीछे दरोगा किशोर सिंह के पुराने संपर्क थे, जो शहर के माफियाओं से जुड़े थे। अनन्या ने तुरंत एक गुप्त टीम बनाई, जिसमें अमित (इंटेलिजेंस ऑफिसर), सीमा (साइबर एक्सपर्ट), जयवीर (एनकाउंटर स्पेशलिस्ट) और रुचि (इन्वेस्टिगेशन अफसर) शामिल थे।

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टीम ने जांच शुरू की और पता चला कि विक्रम तोमर नामक एक रिटायर्ड पुलिस अफसर, जो अब प्राइवेट सिक्योरिटी कंपनी चलाता था, माफियाओं का संरक्षक था। विक्रम हर बुधवार को पुराने शहर के एक फार्म हाउस में हथियारों की डीलिंग करता था। अनन्या ने छापा मारा और विक्रम को गिरफ्तार कर लिया।

लेकिन विक्रम के गिरफ़्तार होने के बाद भी शहर में धमाके और धमकियां जारी रहीं। एक बार कोर्ट के बाहर धमाका हुआ, जिससे विक्रम को छुड़ाने की कोशिश की गई। इसी बीच एक वकील निधि शर्मा ने बताया कि असली मास्टरमाइंड का नाम “काल” है, जो एक बड़े नेटवर्क का नेतृत्व करता है।

काल एक ऐसा सिस्टम था जो शहर के हर हिस्से में फैला हुआ था। अनन्या की टीम ने नकली डील का प्लान बनाया, जिसमें करोड़ों की ब्लैक मनी ट्रांसफर दिखाई गई। इस जाल में एक सीनियर क्लर्क रमेश ठाकुर भी फंसा, जिसने खुद को खत्म करने की कोशिश की।

फिर पता चला कि सुरक्षा अधिकारी विवेक शर्मा ही काल का हिस्सा था। अनन्या ने विवेक को गिरफ्तार किया और राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत बंद करवाया।

अनन्या ने शहर में एक बड़ा संबोधन किया, जहां उन्होंने जनता को आश्वस्त किया कि वे इस लड़ाई को जीतेंगी। सभा के दौरान एक टाइम बम मिला जिसे जयवीर और अमित ने निष्क्रिय कर दिया। काल ने फोन कर धमकी दी कि अगला वार सीधे अनन्या के दिल पर होगा।

अंत में अनन्या और उनकी टीम काल के मुख्य अड्डे पर पहुंची। वहां एक विशाल अंडरग्राउंड नेटवर्क था, जिसमें हथियार, नकली आईडी, और बम बन रहे थे। सशस्त्र लड़ाई के बाद, अनन्या ने काल का नकाब हटाया। काल कोई और नहीं बल्कि शहर के बड़े उद्योगपति अर्पित वर्मा था।

अर्पित ने बटन दबाया जिससे अड्डा विस्फोट के कगार पर था, लेकिन अमित ने उसका कंट्रोल हैक कर लिया। पुलिस ने अर्पित और उसके सहयोगियों को गिरफ्तार कर लिया।

सूरज की पहली किरण के साथ शहर ने राहत की सांस ली। अनन्या सक्सेना का नाम पूरे देश में गूंजने लगा। परंतु अनन्या जानती थीं कि काल जैसी सोच को खत्म करना आसान नहीं। उन्होंने अपनी टीम को फिर से मजबूत किया और कहा, “जब तक सांस है, लड़ाई जारी रहेगी।”

शहर में तनाव था, लेकिन उम्मीद की किरणें भी चमक रही थीं। अनन्या ने तय किया कि वे पूरी व्यवस्था में फैले भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करेंगी।

समाप्ति

यह कहानी सिर्फ एक महिला अधिकारी की नहीं, बल्कि न्याय, साहस और उम्मीद की कहानी है। डीएम अनन्या सक्सेना ने दिखा दिया कि सही इरादे और अटूट हिम्मत से हर अंधकार को हराया जा सकता है।