Eid ke Din Jab Chachi Ne Yateem Bachon Ko Dhakke Maar Kar Nikaala | Allah Ka Insaaf Turant Nazil Hua
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अनाथ अहमद और गुड़िया की जिंदगी की जंग
राजस्थान के एक छोटे से गांव की सुबह थी। मिट्टी की दीवारों पर सूरज की पहली किरणें पड़ रही थीं। गांव की गलियों में पक्षियों की चहचहाहट गूंज रही थी। वहां आठ साल का एक लड़का अहमद, सर पर भारी पानी की बोतलें रखकर जानवरों के बाड़े की तरफ जा रहा था। उसके पीछे पांच साल की छोटी बहन गुड़िया चल रही थी, जो हाथ में लौटा और टूटे बर्तन लिए थी। दोनों की आंखों में थकावट और चेहरे पर मासूमियत थी।
दो साल पहले उनकी मां-बाप एक सड़क हादसे में चल बसे थे। तब से ये दोनों अनाथ बच्चे अपने चाचा-चाची के पास थे। लेकिन उनका साथ देने के बजाय चाची शबाना बेगम ने उन्हें दिन-रात काम पर लगाया, मार-पीट से उनका जीना दूभर कर दिया। अहमद को खेतों में पानी देना, जानवरों का गोबर उठाना, और गुड़िया को झाड़ू-पोछा, बर्तन धोने जैसे काम करने पड़ते थे। उनके सिर पर नंगे पैर चलते हुए कई बार कांटे और कीचड़ चुभते, पर वे कभी नहीं रुके।
चाची के बच्चे बाजार से नए कपड़े, चप्पलें, खिलौने लाते, और अहमद-गुड़िया को दूर से ही ताकते। गुड़िया की आंखों में धीरे-धीरे उम्मीद की लौ बुझने लगी थी। अहमद बहन की आंखों में रोशनी लौटाना चाहता था, पर उसके पास कुछ नहीं था।
एक दिन अहमद को गांव की दुकान से सामान लाने भेजा गया। रास्ते में उसकी तबियत खराब हो गई, वह एक पेड़ के नीचे बैठ गया। वहीं एक बुजुर्ग सामने कुरान मजीद पढ़ रहे थे। उनकी आवाज में एक सुकून था, जो अहमद के दिल को छू गया। बुजुर्ग ने उसे रोटी और गुड़ दिया और कहा, “बेटा, हमेशा सच बोलना और दिल से अल्लाह को याद रखना।”
अहमद ने बुजुर्ग से वादा किया और घर लौट आया। लेकिन घर पहुंचते ही चाची की चीखें सुनाई दीं। उसने अहमद पर चोरी का झूठा इल्जाम लगाया और उसे बेरहमी से पीटा। गुड़िया को भी मार-पीट सहनी पड़ती रही। एक दिन चाची ने अहमद को स्टोर रूम में बंद कर दिया। वहां से निकलकर अहमद ने बहन को जगाया और दोनों ने फैसला किया कि वे इस जुल्म की जिंदगी छोड़कर कहीं और जाएंगे।

ईद का दिन था। गांव में खुशियों का माहौल था, लेकिन अहमद और गुड़िया के लिए यह दिन दर्द और तन्हाई लेकर आया। चाची और चाचा ने उनकी तलाश की, लेकिन कहीं उनका पता नहीं चला। उसी दिन चाची की कीमती गायें मर गईं, खेत सूख गए और उनका कारोबार बर्बाद हो गया। यह सब उस जुल्म की सजा थी जो उन्होंने अहमद और गुड़िया को दिया था।
सालों बाद, अहमद और गुड़िया वापस अपने गांव आए। वे अब बड़े हो चुके थे, पढ़े-लिखे और मजबूत। उन्होंने अपने चाचा-चाची को माफ कर दिया और उन्हें इंसाफ की राह दिखाई। उन्होंने अपने परिवार को प्यार और सम्मान दिया, जो कभी उनके साथ नहीं हुआ था।
कहानी का संदेश
यह कहानी हमें सिखाती है कि जुल्म और अन्याय के बाद भी इंसानियत, माफी और बदलाव संभव है। अनाथ बच्चों को प्यार और सुरक्षा की जरूरत होती है, न कि जुल्म और तिरस्कार की। समाज को चाहिए कि वह ऐसे बच्चों के लिए एक सुरक्षित माहौल बनाए और उनकी मदद करे।
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