IPS ऑफिसर और इंस्पेक्टर की सड़क पर टक्कर | Golgappa Wala Ka Sach

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रविवार की सुबह थी। आसमान पर हल्की धूप फैली हुई थी और हवाओं में ठंडी ताजगी घुली थी। शहर का शोर अभी पूरी तरह से जागा नहीं था। सड़कों पर चहल-पहल तो थी मगर उतनी नहीं जितनी दोपहर या शाम को होती है। ऐसे ही सुकून भरे माहौल में जिले की जानी-मानी आईपीएस अधिकारी कीर्ति सिंह ने सोचा कि आज छुट्टी का दिन है तो थोड़ा साधारण अंदाज में घूमना-फिरना चाहिए। वह अपने पुलिस यूनिफार्म या ऑफिस के सख्त लहजे से बाहर निकलकर एक आम लड़की की तरह कपड़े पहनना चाहती थी। उन्होंने अलमारी से लाल रंग का साधारण सलवार सूट निकाला, दुपट्टा कंधे पर डाला और हल्की चप्पल पहनकर घर से बाहर निकल आई। उन्हें देखकर कोई सोच भी नहीं सकता था कि यही वही महिला है जिनका नाम सुनते ही जिले के अपराधियों की नींद उड़ जाती है।

बाजार की गलियों में लोग अपनी रोजमर्रा की चीजों में मशगूल थे। सब्जी वाले आवाज लगाते जा रहे थे, कुछ औरतें दाम पर बहस कर रही थीं, बच्चे इधर-उधर भाग रहे थे। कीर्ति भीड़ के बीच ऐसे चल रही थी जैसे कोई साधारण लड़की खरीदारी करने आई हो। तभी उनकी नजर एक कोने में लगे एक छोटे से ठेले पर पड़ी। वहां एक लगभग 50-60 साल के बुजुर्ग अंकल खड़े थे। उनकी आंखों में थकान झलक रही थी, लेकिन चेहरे पर ईमानदारी और मेहनतकश इंसान की साफ झलक थी। ठेले पर गोलगप्पे, जिन्हें कोई पानी पूरी कहता है, कोई गुपचुप, करीने से रखे हुए थे। बगल में आलू-मटर की भराई, इमली की चटनी और ठंडे पुदीने वाले पानी की मटकी रखी थी।

गोलगप्पे देखते ही कीर्ति के होठों पर मुस्कान तैर गई। बचपन से ही उन्हें इस स्ट्रीट फूड का शौक था। अपने ऑफिस की जिम्मेदारियों और व्यस्तताओं के चलते वह अक्सर इन छोटे-छोटे शौकों से दूर हो गई थी। लेकिन आज उन्हें कोई रोकने वाला नहीं था। वो ठेले के पास जाकर बोलीं, “अंकल, ₹20 की पानी पूरी बना दीजिए। बहुत दिनों बाद खाने का मन हुआ है।”

बुजुर्ग अंकल ने उन्हें देखा और मुस्कुरा दिए। शायद उन्हें अंदाजा भी नहीं था कि सामने खड़ी यह साधारण सी लड़की असल में जिले की आईपीएस है। उन्होंने फटाफट एक प्लेट बनाई और कीर्ति को पकड़ा दी। पहला गोलगप्पा जैसे ही मुंह में गया, कीर्ति को लगा जैसे पुरानी यादें ताजा हो गई हों। बचपन की सहेलियां, स्कूल के बाद ठेले पर लगी कतारें, सब कुछ एक पल में उनकी आंखों के सामने घूम गया। वह मन ही मन सोच रही थी, ‘कभी-कभी यह छोटी-छोटी खुशियां इंसान को कितनी राहत देती हैं।’

तभी अचानक एक मोटरसाइकिल की आवाज आई और पास में आकर रुकी। गाड़ी पर बैठा था रमेश सिन्हा, जो उसी जिले का एक थाना प्रभारी यानी इंस्पेक्टर था। वो कड़क वर्दी में नहीं बल्कि रोजाना के कपड़ों में था, लेकिन उसके चेहरे पर अकड़ साफ दिख रही थी। उसने बाइक साइड में खड़ी की और ठेले की तरफ बढ़ते हुए बोला, “ओ बुजुर्ग, जरा जल्दी कर, मुझे भी एक प्लेट बना दे।”

अंकल ने बिना कुछ कहे तुरंत प्लेट बढ़ा दी। रमेश ने गोलगप्पा उठाया और खाते-खाते कीर्ति की तरफ नजर डाल दी। “वाह, मजे से खा रही हो बिटिया। चलो एक काम करो, अगली पानी पूरी अपने हाथ से मुझे खिला दो। तुम्हारे हाथ का स्वाद अलग ही होगा।”

कीर्ति ने उसकी बात अनसुनी कर दी और चुपचाप अपना ध्यान खाने पर लगाए रखा। मगर इंस्पेक्टर तो मानो हठ पर उतर आया था। वो फिर बोला, “अरे, इतना नखरे क्यों कर रही हो? पैसे की चिंता मत करो, जितना चाहो उतना खा लेना। तुम्हारे जैसी खूबसूरत लड़की अगर हाथ से खिलाए तो मजा ही आ जाएगा।”

यह सुनकर कीर्ति के भीतर गुस्से की हल्की चिंगारी जरूर उठी, लेकिन उन्होंने तुरंत खुद को संभाल लिया। उनके लिए यह कोई नई बात नहीं थी, फर्क सिर्फ इतना था कि सामने वाला आदमी आम राहगीर नहीं बल्कि पुलिस का अफसर था, जिसे कानून की रक्षा करनी चाहिए थी। खैर, इंस्पेक्टर ने अपनी प्लेट खत्म की और जाते-जाते बोला, “अच्छा, एक पैक कर दो मेरी बीवी के लिए भी। वैसे उसे भी पानी पूरी बहुत पसंद है।”

अंकल ने पैक किया और जैसे ही प्लेट आगे बढ़ाई, इंस्पेक्टर ने बाइक स्टार्ट की और चलने लगा। बुजुर्ग अंकल ने हिम्मत जुटाकर कहा, “सर, पैसे तो दीजिए। सुबह की पहली कमाई है, कृपया पैसे दे दीजिए।”

IPS मैडम को पानीपुरी वाली समझ कर Inspector ने मारा थप्पड़ फिर जो हुआ

इतना सुनते ही रमेश सिन्हा का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। उसने गरजते हुए कहा, “अबे, तेरी हिम्मत कैसे हुई मुझसे पैसे मांगने की? भूल गया क्या कि मैं इंस्पेक्टर हूं? ज्यादा बकवास करेगा तो तेरा ठेला यहीं जब्त करवा दूंगा। कल तो तूने कुछ नहीं कहा था, आज जुबान चलाने लगा।”

अंकल सहम गए। चारों तरफ खड़े लोग खामोशी से यह सब देख रहे थे, मगर कोई कुछ कहने की हिम्मत नहीं कर रहा था। इंस्पेक्टर गुस्से में धमकियां देता हुआ बाइक स्टार्ट कर वहां से चला गया।

कीर्ति ने यह पूरा मंजर अपनी आंखों से देखा। उनके मन में आग सी भड़क उठी। सोचने लगीं, ‘यह आदमी गरीब की रोजी-रोटी छीन रहा है। कानून का रक्षक होकर कानून का सबसे बड़ा दुश्मन बन बैठा है। इसे सबक सिखाना होगा।’ उन्होंने धीरे से अंकल की ओर मुड़कर पूछा, “अंकल, क्या यह इंस्पेक्टर रोज ऐसे ही खाकर चला जाता है? कभी पैसे नहीं देता क्या?”

अंकल की आंखें भर आईं। उन्होंने कांपती आवाज में कहा, “हां बेटा, रोज यही होता है। कभी 20 का खाता है, कभी 40 का, लेकिन एक पैसा भी नहीं देता। अगर पैसे मांगूं तो धमकाता है, गाली देता है और ठेला उठवाने की बात करता है। हमारे घर का खर्चा इसी ठेले से चलता है। क्या करूं? मजबूरी में चुप रह जाता हूं।”

यह सुनकर कीर्ति का खून खौल उठा। उनका दिल किया कि उसी वक्त जाकर इंस्पेक्टर को सबक सिखाएं, मगर उन्होंने खुद को रोका और अंकल से दृढ़ स्वर में कहा, “अब बहुत हो गया अंकल। अब वह इंस्पेक्टर एक बार भी मुफ्त में नहीं खा पाएगा। मैं उसे उसकी औकात दिखाऊंगी। गरीबों को दबाना आसान है, लेकिन अब वह दिन गए।”

अंकल घबरा कर बोले, “नहीं बेटा, तुम मत उलझना उससे। वो थाने का इंस्पेक्टर है, जो चाहे कर सकता है। तुम बेवजह मुसीबत मत लो।”

कीर्ति ने गहरी सांस ली और बोलीं, “अंकल, मैं कोई आम लड़की नहीं हूं। मैं इस जिले की आईपीएस अधिकारी कीर्ति सिंह हूं और मैं अपने पद की शपथ लेकर कहती हूं कि अब से वह इंस्पेक्टर ना आपको सताएगा, ना किसी और गरीब को। आप चिंता मत कीजिए, अब कानून आपके साथ है।”

इतना कहकर कीर्ति ने पर्स से ₹500 निकाले और अंकल के हाथ में थमा दिए। “इन्हें रख लीजिए, काम आएंगे।” अंकल पहले झिझके, लेकिन कीर्ति ने उन्हें पैसे पकड़वा दिए। फिर वह मन ही मन एक योजना बनाने लगीं। इंस्पेक्टर रमेश सिन्हा को रंगे हाथों पकड़ना जरूरी था। और इसी सोच के साथ कहानी का असली मोड़ शुरू हुआ।

अगले दिन सुबह, सूरज अभी पूरी तरह निकला भी नहीं था कि कीर्ति सिंह अपने घर से बाहर निकल पड़ीं। मन ही मन वो कल की सारी बातें याद कर रही थीं। इंस्पेक्टर रमेश सिंह का चेहरा, उसका अहंकार, उसकी जुबान और उस गरीब अंकल की लाचारी, सब कुछ उनकी आंखों के सामने घूम रहा था। उन्हें मालूम था कि अब वक्त आ गया है इस भ्रष्ट इंस्पेक्टर की सच्चाई सबके सामने लाने का। उन्होंने लाल रंग का वही सलवार सूट पहन लिया था, साधारण सी वेशभूषा ताकि कोई पहचान ना सके। हाथ में एक बैग था जिसमें सिर्फ जरूरी सामान ही नहीं, बल्कि एक छोटा सा सीसीटीवी कैमरा भी था जिसे वह पहले ही अंकल के ठेले में लगवा चुकी थीं। योजना साफ थी: इंस्पेक्टर को रंगे हाथ पकड़ना है।

ठेले पर पहुंचकर उन्होंने अंकल को देखते ही मुस्कुराते हुए कहा, “अंकल, आज आप आराम कर लीजिए। ठेला मैं संभालूंगी। आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है।”

अंकल घबरा गए। “नहीं बेटा, यह सब मत करो। रमेश सिंह बहुत खतरनाक आदमी है। अगर उसे पता चल गया तो हम दोनों मुसीबत में पड़ जाएंगे।”

कीर्ति ने सख्ती से लेकिन प्यार भरे लहजे में जवाब दिया, “अंकल, अब डरने का वक्त नहीं है। आप घर जाइए। आज अगर हम उसे खुलकर सामने नहीं लाए तो वह आगे भी गरीबों का खून चूसता रहेगा। मैं यहां हूं, कुछ नहीं होगा।”

अंकल उनकी आंखों में झांकते रहे। वहां एक अजीब सी चमक थी: आत्मविश्वास, साहस और न्याय की लौ। अंततः उन्होंने सिर हिलाया और धीरे-धीरे ठेले से हट गए। कीर्ति ने अपने दोनों हाथ धोए, सब सामग्री करीने से रखी और खुद ठेले पर खड़ी हो गईं। उनकी नजर हर आने-जाने वाले पर थी, लेकिन दिमाग सिर्फ एक इंसान की प्रतीक्षा कर रहा था: इंस्पेक्टर रमेश सिंह।

घड़ी की सुइयां धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थीं। करीब दोपहर के 12:00 बजे, बाजार में चहल-पहल बढ़ने लगी। लोग इधर-उधर घूम रहे थे, बच्चे गोलगप्पे खाते हुए हंस रहे थे। तभी अचानक वही आवाज गूंजी, मोटरसाइकिल का शोर। रमेश सिंह अपने वही अकड़ भरे अंदाज में बाइक रोकता है और ठेले के सामने खड़ा हो जाता है। उसने चारों तरफ देखा, फिर थोड़ा हैरान होकर बोला, “अरे, वो बूढ़ा कहां गया? आज ठेले पर तुम खड़ी हो?”

कीर्ति ने शांति से जवाब दिया, “जी, वह मेरे पिताजी हैं। आज उनकी तबीयत ठीक नहीं थी इसलिए मैं आ गई।”

रमेश ने ठहाका लगाया। “ओह, तो तुम उनकी बेटी हो। अच्छा है, आज तुम्हारे हाथ से पानी पूरी खाकर देखेंगे। चलो, एक प्लेट बना दो।”

कीर्ति ने बिना कोई प्रतिक्रिया दिए चुपचाप प्लेट तैयार की और उसे पकड़ा दी। इंस्पेक्टर खाते-खाते हंसते हुए बोला, “वाह, मजा आ गया। वैसे तुम्हारी सूरत भी कमाल की है। मन करता है तुम्हें भी चख लिया जाए।”

कीर्ति ने उसकी बात अनसुनी कर दी। उनका ध्यान सिर्फ अपनी योजना पर था। जैसे ही रमेश ने प्लेट खत्म की और बाइक की तरफ बढ़ने लगा, कीर्ति ने आवाज लगाई, “सर, पैसे दीजिए।”

रमेश का चेहरा पल भर में बदल गया। वह रुक कर उनकी तरफ घूरते हुए बोला, “पैसे? कल तुम्हारे बाप से खाकर गया था, उसने तो नहीं मांगे। तुम इतनी अकड़ क्यों दिखा रही हो?”

कीर्ति ने दृढ़ आवाज में कहा, “सर, पानी पूरी मुफ्त में नहीं मिलती। हमें भी खर्च आता है और इसी ठेले से घर चलता है। इसलिए जो आपने खाया है, उसका पैसा दीजिए।”

रमेश की आंखों में गुस्से की लपटें साफ दिखने लगीं। उसने बाइक का स्टैंड मारा और ठेले के पास आकर गरजते हुए कहा, “अरे लड़की, ज्यादा जुबान मत चलाओ। जानती हो मैं कौन हूं? मैं इस इलाके का इंस्पेक्टर हूं। चाहूं तो अभी तुम्हारा ठेला जब्त करवा दूं, तुम्हारे बाप को जेल में डाल दूं।”

कीर्ति ने पलट कर उतने ही आत्मविश्वास से कहा, “मुझे फर्क नहीं पड़ता आप कौन हैं। इंस्पेक्टर हों या नेता, सबको मेहनत का पैसा देना चाहिए। आप बिना पैसे दिए कहीं नहीं जाएंगे।”

भीड़ धीरे-धीरे इकट्ठा होने लगी थी। लोग चुपचाप यह टकराव देख रहे थे। किसी के चेहरे पर डर था, किसी पर जिज्ञासा। रमेश ने अपनी पूरी ताकत से हाथ उठाया और कीर्ति के गाल पर एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। ठेला हिल गया, आसपास खड़े लोग सहम गए। हवा में जैसे सन्नाटा छा गया।

“बहुत बोलने लगी है तू,” रमेश गरजते हुए बोला। “तेरे बाप की तो हिम्मत नहीं थी मुझसे पैसे मांगने की और तू मुझे आंखें दिखा रही है। तुझे पता नहीं मैं कौन हूं? अभी चाहूं तो तुझे सलाखों के पीछे पहुंचा दूं।”

कीर्ति के चेहरे पर दर्द साफ दिख रहा था, लेकिन उनकी आंखों में आग जल उठी थी। वो कांपती आवाज में बोलीं, “आपने ना सिर्फ एक गरीब का हक छीना है, बल्कि उस पर हाथ भी उठाया है। और अब मुझ पर भी। मैं कसम खाती हूं, आपको इसकी सजा जरूर मिलेगी।”

रमेश और भड़क गया। उसने ठेले को लात मार दी। सारे गोलगप्पे बिखर गए, पानी बह गया और मसाले की कटोरियां उलट-पुलट हो गईं। वो ताना मारते हुए बोला, “ले, ले अपने पैसे! कल से अगर यहां ठेला लगाया तो अंजाम बुरा होगा। अपने बाप को कह देना यह जगह छोड़ दे।”

इतना कहकर उसने बाइक स्टार्ट की और गुस्से में वहां से निकल गया। कीर्ति कुछ देर तक वहीं खड़ी रहीं। गाल पर थप्पड़ की जलन थी, मगर उससे ज्यादा उनके मन में न्याय की ज्वाला थी। उन्होंने गिरे हुए ठेले को संभाला, बिखरे सामान को उठाया और अंकल को बुलवाया। अंकल दौड़े-दौड़े आए और यह सब देखकर उनकी आंखों में आंसू भर आए। “बिटिया, मैंने तुमसे कहा था ना, उससे मत उलझना। देखो, उसने तुम्हें भी मार दिया और मेरा ठेला भी तोड़ दिया।”

कीर्ति ने उनकी आंखों में आंखें डालकर कहा, “अंकल, अब बहुत हो गया। जो हुआ उसके लिए मैं माफी मांगती हूं। यह लो ₹2000, इससे नए सामान का इंतजाम कर लेना। लेकिन अब उसकी गुंडागर्दी नहीं चलेगी। कल अदालत में वह खुद अपनी औकात देखेगा। मैंने सबूत इकट्ठा कर लिए हैं। ठेले में लगाया गया कैमरा उसकी सारी करतूत रिकॉर्ड कर चुका है।”

अंकल हैरान रह गए। “सच बेटा? तो अब क्या करना होगा?”

कीर्ति ने दृढ़ स्वर में कहा, “कल आपको मेरे साथ गवाही देनी होगी। डरना मत, कानून हमारे साथ है।”

और फिर उसी रात कीर्ति ने अपनी अगली चाल की तैयारी शुरू कर दी। वह सीधे जिले के डीएम आशीष सिन्हा के पास पहुंचीं और पूरी घटना सुनाई। सीसीटीवी फुटेज दिखाते ही डीएम का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। उन्होंने कहा, “मैडम, अब वह बच नहीं पाएगा। तुरंत रिपोर्ट दर्ज कराइए। कल ही मामला कोर्ट पहुंचेगा और इंस्पेक्टर को सस्पेंड कर जेल भेजा जाएगा।” कीर्ति ने सारे सबूत इकट्ठे किए, रिपोर्ट तैयार की और अगले दिन का इंतजार करने लगीं। उन्हें पता था, अगला दिन सिर्फ एक इंस्पेक्टर का नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम का इम्तिहान होगा।

अगली सुबह शहर का नजारा बिल्कुल बदला हुआ था। कोर्ट के बाहर असामान्य भीड़ उमड़ आई थी। चारों तरफ गाड़ियां खड़ी थीं, मीडिया के कैमरे चमक रहे थे और पुलिस की गाड़ियों की कतारें लगी हुई थीं। खबर पूरे जिले में फैल चुकी थी कि एक इंस्पेक्टर पर गंभीर आरोप लगे हैं और आज उसका मुकदमा खुलेआम सुना जाएगा।

कोर्ट के अंदर माहौल और भी भारी था। सामने जज साहब अपनी कुर्सी पर बैठे थे। एक तरफ डीएम आशीष सिंह, आईपीएस कीर्ति सिंह और वह बुजुर्ग पानीपुरी वाले अंकल मौजूद थे। दूसरी तरफ आरोपी इंस्पेक्टर रमेश सिंह बैठा था। उसके चेहरे से अकड़ जैसे गायब हो चुकी थी। माथे पर पसीना, आंखों में डर और होठों पर सूखापन।

जज ने गहरी नजर डालते हुए कहा, “कार्यवाही शुरू की जाए। सबसे पहले गवाह को बुलाया जाए।”

पानीपुरी वाले अंकल कांपते हुए खड़े हुए, लेकिन जैसे ही उन्होंने कीर्ति की तरफ देखा, उनके भीतर हिम्मत भर गई। उन्होंने हाथ जोड़कर जज को सलाम किया और गवाही देना शुरू किया। “मिलॉर्ड, मैं एक गरीब ठेला चलाने वाला इंसान हूं। यह इंस्पेक्टर रोज मेरे ठेले से खाता था और कभी पैसे नहीं देता था। पैसे मांगने पर धमकाया गया, ठेला तोड़ने की धमकी दी गई। कल इसने हद पार कर दी, मेरा ठेला तोड़ दिया और जब मेरी मदद के लिए यह बिटिया खड़ी हुई तो इसने उन्हें थप्पड़ मार दिया। मिलॉर्ड, मुझे बस इंसाफ चाहिए।”

गवाही सुनते ही कोर्ट में खामोशी छा गई। अब बारी आई कीर्ति सिंह की। वो आत्मविश्वास से खड़ी हुईं। “मिलॉर्ड, मैं इस जिले की आईपीएस अधिकारी हूं। इस इंस्पेक्टर ने ना सिर्फ एक गरीब इंसान का हक छीना, बल्कि उसकी रोजी-रोटी पर लात मारी। उसने ठेले को तोड़ा, गालियां दीं और जब मैंने विरोध किया तो मेरे गाल पर थप्पड़ मारा। यह सिर्फ मेरे साथ नहीं, बल्कि कानून के साथ भी एक थप्पड़ था। और सबसे बड़ी बात, इसने सड़क पर मुझे आम लड़की समझकर छेड़ा भी।”

इतना कहकर कीर्ति ने पेनड्राइव कोर्ट के कर्मचारी को सौंप दी। “मिलॉर्ड, इसमें वह सीसीटीवी फुटेज है जिसमें इस इंस्पेक्टर की सारी हरकतें साफ दिखाई देती हैं।”

स्क्रीन पर वीडियो चलाया गया। फुटेज में साफ दिख रहा था: इंस्पेक्टर पानी पूरी खा रहा है, पैसे देने से मना कर रहा है, बुजुर्ग अंकल को धमका रहा है, ठेले पर लात मार रहा है और अंत में कीर्ति पर थप्पड़ मार रहा है। जैसे-जैसे वीडियो आगे बढ़ा, कोर्ट में बैठे लोग हैरानी से एक दूसरे को देखने लगे।

डीएम आशीष सिन्हा भी खड़े हुए और बोले, “मिलॉर्ड, यह इंस्पेक्टर जनता की सेवा करने के बजाय जनता को लूट रहा था। अगर ऐसे भ्रष्ट अफसर को सख्त सजा नहीं मिलेगी तो पूरा सिस्टम कमजोर पड़ जाएगा।”

जज ने ध्यान से सब सुना। रमेश सिन्हा का वकील खड़ा हुआ और इसे साजिश बताने की कोशिश की, लेकिन सबूत अकाट्य थे। कोर्ट में सन्नाटा छा गया। सबकी नजरें जज साहब पर टिकी थीं।

कोर्ट रूम में सन्नाटा पसरा हुआ था। हर कोई अपनी कुर्सी पर टकटकी लगाए बैठा था। जज साहब ने दस्तावेजों पर नजर डाली, फिर सामने खड़े इंस्पेक्टर रमेश सिंह की ओर देखा। उनकी आवाज भारी और ठंडी थी। “इंस्पेक्टर रमेश सिंह, तुम्हारे खिलाफ लगे सभी आरोप गवाहों और सबूतों से साबित होते हैं। तुमने ना सिर्फ गरीब से वसूली की, बल्कि कानून की रक्षा करने की जगह कानून को तोड़ा, जनता को डराया, धमकाया और अपने पद का गलत इस्तेमाल किया। और सबसे बड़ा अपराध, तुमने एक महिला अधिकारी पर हाथ उठाया। यह असहनीय है।”

कोर्ट में बैठे लोग सांस रोके सुन रहे थे। जज ने आगे कहा, “अदालत का आदेश है कि रमेश सिन्हा को तुरंत उसके पद से निलंबित किया जाए और आगे की जांच पूरी होने तक न्यायिक हिरासत में जेल भेजा जाए। साथ ही, उसके खिलाफ विभागीय और आपराधिक कार्रवाई शुरू की जाए।”

जैसे ही फैसला सुनाया गया, कोर्ट में तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी। जनता ने राहत की सांस ली। मीडिया के कैमरे चमक उठे। भ्रष्ट इंस्पेक्टर जेल भेजा गया। रमेश सिंह की हालत दयनीय हो गई थी। उसका सिर झुका हुआ था, पसीना माथे से बह रहा था और चेहरे पर शर्मिंदगी साफ झलक रही थी। यह वही इंस्पेक्टर था जो कल तक लोगों को डरा-धमका कर अपनी ताकत दिखाता था, आज वही आदमी हथकड़ी पहने पुलिस वालों के बीच खड़ा था।

पानीपुरी वाले अंकल की आंखों से खुशी के आंसू झरने लगे। उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर कीर्ति सिंह की तरफ देखा और कांपती आवाज में बोले, “बिटिया, अगर तुम ना होतीं तो शायद मुझे कभी इंसाफ नहीं मिलता। तुमने आज मेरी मेहनत की कीमत वापस दिलाई है।”

कीर्ति ने हल्की मुस्कान दी और अंकल का हाथ पकड़ कर कहा, “अंकल, अब किसी गरीब को डरने की जरूरत नहीं। कानून सबके लिए बराबर है। जो गलत करेगा, उसे सजा मिलेगी, चाहे वह आम आदमी हो या पुलिस का अफसर।”

डीएम आशीष सिंह ने भी आगे बढ़कर कीर्ति के कंधे पर हाथ रखा और बोले, “बहुत अच्छा काम किया आपने। यही असली पुलिस अधिकारी की पहचान है।”

कोर्ट से बाहर निकलते ही पत्रकारों ने उन्हें घेर लिया। “मैडम, आपने इतनी हिम्मत कैसे दिखाई? क्या आपको डर नहीं लगा?”

कीर्ति ने संयम से जवाब दिया, “डर और साहस के बीच बहुत छोटा सा फासला होता है। अगर हम डर कर चुप रह जाएं तो अन्याय और भी बढ़ता है, लेकिन अगर साहस से आवाज उठाएं तो न्याय जरूर जीतता है। मैंने वही किया जो मेरा कर्तव्य था।”

उनकी बातें सुनकर लोगों की आंखों में चमक आ गई। भीड़ की ओर से जोर-जोर से तालियां बजने लगीं, “न्याय की जीत हुई! कीर्ति सिंह जिंदाबाद!” यह नारे पूरे शहर में गूंजने लगे। उस दिन से हर गली, हर मोहल्ले में यही चर्चा थी कि अब कानून से ऊपर कोई नहीं। कीर्ति सिंह का नाम सम्मान और गर्व का प्रतीक बन गया था।

पानी पूरी वाला ठेला अब पहले से भी ज्यादा चलने लगा था। लोग दूर-दूर से वहां आते, ना सिर्फ स्वाद लेने के लिए, बल्कि उस जगह को देखने के लिए जहां से न्याय की एक बड़ी लड़ाई शुरू हुई थी। एक दिन जब कीर्ति वहां पहुंचीं तो अंकल ने हाथ जोड़कर कहा, “बिटिया, तुमने मेरी जिंदगी बदल दी।”

कीर्ति ने मुस्कुराकर जवाब दिया, “अंकल, आपने भी हिम्मत दिखाई। यह जीत हमारी साझी है।” इतना कहकर उन्होंने एक पानी पूरी उठाई और खाते हुए हंस दीं। आसपास खड़े लोग तालियां बजाने लगे। उस पल सबके दिल में यही एहसास था कि न्याय सिर्फ अदालत की चारदीवारी में नहीं, बल्कि हर उस इंसान के दिल में जिंदा है जो सच के लिए खड़ा होता है। आईपीएस कीर्ति सिंह की यह कहानी यहीं खत्म नहीं हुई थी। असल में, यह तो बस शुरुआत थी। अब लोग उन्हें सिर्फ एक अफसर नहीं, बल्कि न्याय की प्रतीक मानने लगे थे।