IPS मैडम की उस रात ऑटो वाले ने मदद की थी…जब ऑटो वाले पर मुसीबत आई — IPS मैडम खुद थाने पहुँच गई!
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पुणे रेलवे स्टेशन पर रात के करीब 10:00 बज चुके थे। प्लेटफार्म नंबर तीन पर हलचल अब भी जारी थी। ऑटो स्टैंड पर लगभग 80-100 ऑटो वाले खड़े थे। कोई पान चबा रहा था, कोई मोबाइल में व्यस्त था, तो कोई खाली सवारी का इंतजार कर रहा था। उन्हीं में से एक था गोपाल। उम्र कोई 32 साल, साधारण कपड़े, हल्की सी दाढ़ी, थके हुए चेहरे पर भी आत्मसम्मान की चमक साफ झलक रही थी। गोपाल का दिन काफी लंबा रहा था लेकिन उसकी आंखों में नींद नहीं थी। वह परेशान था।
उसके पिता अस्पताल में भर्ती थे और इलाज के लिए हर दिन के कुछ रुपये बेहद कीमती थे। तभी एक महिला प्लेटफार्म से बाहर आई। कंधे पर बैग, हाथ में दो थैले और एक सूटकेस जिसे वह खींचती आ रही थी। चेहरे पर थकान थी लेकिन आंखों में आत्मविश्वास। उसने कुछ ऑटो वालों से पूछा लेकिन बाहरी सामान देख सभी ने मना कर दिया। गोपाल ने एक पल को देखा फिर बिना सोचे आगे बढ़ा। “मैडम, ऑटो चाहिए? कहां जाना है?” महिला ने गर्दन घुमा कर देखा। “कात्रज जाना है। बैग थोड़े ज्यादा हैं।” गोपाल मुस्कुराया। “मैडम, यह सामान आपका नहीं। अब मेरा जिम्मा है। बैठिए आराम से।” महिला थोड़ी चौकी। फिर हल्का मुस्कुराई। ऑटो चल पड़ा।
थोड़ी देर खामोशी रही। फिर गोपाल ने पूछा, “आप पुणे में नहीं हैं क्या मैडम?” महिला ने सिर हिलाया। “अभी पोस्टिंग आई है मेरी।” गोपाल ने फिर पूछा, “कौन सी पोस्टिंग है? अगर बुरा ना माने तो।” महिला बोली, “मैं आईपीएस हूं। ट्रेनिंग पूरी की है और पहली पोस्टिंग यही पुणे में मिली है।” गोपाल कुछ पल चुप रहा। फिर हल्के स्वर में बोला, “बहुत अच्छा लगा सुनकर। मेरा भी सपना था पढ़ने का। लेकिन बाबूजी बीमार हो गए थे। सब कुछ छोड़ना पड़ा।” महिला ने उसकी तरफ देखा। “आपका नाम?” “गोपाल यादव।” महिला ने जेब से मोबाइल निकाला और नंबर सेव किया। “कभी जरूरत हो तो बताइएगा। मैं यहीं शहर में हूं।” गोपाल मुस्कुरा कर बोला, “शुक्रिया मैडम। शायद किस्मत दोबारा मिलने दे।”

रात की हवा और सन्नाटा दोनों गवाह बने उस छोटी सी बातचीत के। 6 महीने बीत चुके थे। गोपाल की जिंदगी अब भी वैसे ही चल रही थी। मगर बाबूजी की बीमारी ने हालात और बदतर बना दिए थे। दवाइयों का खर्च, अस्पताल की फीस और दिन भर की कमाई, सब कुछ जैसे एक ताने-बाने में उलझ गया था। उस दिन भी गोपाल स्टेशन से दो सवारी छोड़कर लौट रहा था। तभी बीच रास्ते में दो हवलदारों ने उसे रोका। “अबे, बहुत तेज चला रहा था। कागज दिखा।” गोपाल ने विनम्रता से सारे कागजात दिखा दिए। लाइसेंस, आरसी, परमिट सब कुछ। फिर भी एक हवलदार गुर्राया, “हफ्ता नहीं दिया तूने दो हफ्तों से। भूल गया क्या नियम?” गोपाल ने हाथ जोड़ लिए। “सर, बाबूजी अस्पताल में हैं। पिछले हफ्ते बहुत खर्चा हो गया। इस बार पक्का दे दूंगा।”
दूसरा हवलदार बोला, “बहुत बोल रहा है यह। थप्पड़ पड़ेगा तभी समझेगा।” गोपाल कुछ कहता, इससे पहले ही एक जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर पड़ा। ऑटो जब्त कर लिया गया। भीड़ खड़ी थी। लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा। एक ईमानदार इंसान की गरिमा को यूं सरेआम रौंदा गया जैसे वह कोई गलती थी। शाम को गोपाल अपने घर नहीं गया। स्टेशन के पास एक चाय की दुकान है। रात हो चली है। पीछे एक टूटी सी बेंच पर गोपाल बैठा है। उसके कपड़े अस्त-व्यस्त हैं। चेहरा सूझा हुआ है। हाथ में एक चाय का गिलास है। लेकिन उसकी नजरें कहीं और खोई हुई हैं। वो बुदबुदाता है, “अब नहीं सहूंगा। यह रोज का अपमान अब और नहीं सहूंगा।”
धीरे से वह अपनी जेब से एक पुराना स्मार्टफोन निकालता है। स्क्रीन में दरारें हैं, लेकिन फोन अब भी काम कर रहा है। वो कांपती उंगलियों से स्क्रीन स्क्रॉल करता है। गैलरी खोलता है और एक पुराना नाम ढूंढता है। “आईपीएस मीरा देशमुख।” पुणे। कुछ देर तक वह बस उस नाम को देखता रहता है। फिर एक लंबी सांस लेता है और कॉल कर देता है। “ट्रिंग, ट्रिंग…” फोन उठाया जाता है। “हेलो, कौन?” वह हल्की सी हिचक के साथ जवाब देता है, “मैडम, गोपाल बोल रहा हूं। याद है आपको?” कुछ पल खामोशी रहती है। “गोपाल यादव? हां, बिल्कुल याद है। सब ठीक है?” वो आवाज में दर्द छुपाते हुए बोलता है, “नहीं मैडम, कुछ भी ठीक नहीं है। मेरा ऑटो, मेरा सब कुछ आज थाने ले गए।”
दूसरी तरफ की आवाज थोड़ी चौंक जाती है। लहजा सख्त होता चला जाता है। “क्यों? क्या हुआ?” गोपाल की आवाज भराई हुई है। लेकिन वह बताता है, “स्टेशन से लौट रहा था। दो हवलदारों ने बीच रास्ते में रोक लिया। बोले, ‘हफ्ता नहीं दिया तूने।’ मैंने कहा, ‘बाबूजी अस्पताल में हैं। पिछले हफ्ते बहुत खर्चा हो गया।’” मगर उसकी आवाज लड़खड़ाती है। जैसे गले में कुछ अटक गया हो। “क्या किया उन्होंने?” “थप्पड़ मारा मैडम। सरेआम। गाल अभी तक जल रहा है और ऑटो जब्त कर लिया।”
अब उधर की आवाज में ठंडक नहीं, सिर्फ एक सख्ती बची है। “तुम अभी कहां हो गोपाल?” “स्टेशन के पास चाय की दुकान के पीछे बैठा हूं।” “उसने सुना, तुम वहीं रहो। कोई कहीं नहीं जाएगा। अब जो होगा, वो मैं देखती हूं।” कॉल कट नहीं होती। लेकिन दोनों तरफ खामोशी छा जाती है। गोपाल की आंखों से दो आंसू गिरते हैं। हाथ अब भी फोन थामे हैं। होठों पर एक हल्की सी उम्मीद की लकीर उभर आती है।
दो घंटे बीत चुके थे। थाने की दीवारों पर नींद पसरी थी। मगर सन्नाटा ज्यादा भारी लग रहा था। तभी बाहर एक जीप आकर रुकती है। उसके पीछे एक स्कॉर्पियो और फिर एक सायरन की गूंज। थाने के गेट पर तीन गाड़ियां रुकती हैं। दो इंस्पेक्टर, एक एसीपी और उनके पीछे एक महिला आईपीएस अफसर, तेज चाल, सख्त नजर और चेहरे पर ऐसा तेज जैसे खुद इंसाफ उतर आया हो। गोपाल अब भी चाय की दुकान के पीछे टूटी बेंच पर बैठा था। लेकिन उसकी आंखें अब खाली नहीं थीं। वो अब भी कांप रहा था। मगर अब डर से नहीं, इंतजार से।
आईपीएस अफसर ने सीधे थाने में कदम रखा। वो रुकी नहीं। किसी से नहीं पूछा। बस एक वाक्य दागा, “यहां ऑटो वाले को थप्पड़ किसने मारा था?” थाने में बैठे सभी सन्न रह गए। किसी की हिम्मत नहीं हुई बोलने की। एक हवलदार ने सिर झुका लिया। फिर कांपती आवाज में बोला, “मैंने…” आईपीएस की आंखें तमतमा उठी। वो दो कदम आगे बढ़ी। सामने खड़े हवलदार के बिल्कुल करीब आकर बोली, “तुम्हें शर्म नहीं आती? एक मेहनत से दिन भर पेट पालने वाले इंसान को थप्पड़ मारते हो। तुम्हारी वर्दी तुम्हें इंसान समझने से रोकती है क्या? यह वर्दी जुल्म करने का लाइसेंस नहीं है। यह जनता की सेवा के लिए है। सर्विस के लिए है। लेकिन तुम लोगों ने इसे सर्वेंट सर्विस बना दिया है और खुद को मालिक समझ बैठे हो।”
सन्नाटा और गहराता है। हवलदार की आंखों से पसीना टपकता है। अब उसका घमंड नहीं, सिर्फ पछतावा नजर आ रहा है। आईपीएस अफसर ने जेब से एक नोटपैड निकाला। एसीपी की तरफ देखा और ठंडे लेकिन फौलादी स्वर में कहा, “कॉन्स्टेबल नरेश, तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाता है और इस पूरे थाने की कार्यशैली की आंतरिक जांच शुरू की जाती है। एक हफ्ते में रिपोर्ट चाहिए।” कागजात पर हस्ताक्षर होते हैं। माहौल बदल चुका है। फिर वह बाहर निकलती है। जहां गोपाल अब भी बैठा है।
आईपीएस अफसर उसके पास आती है। कुछ सेकंड उसे देखती है। फिर अपने हाथों से उसके कंधे पर हाथ रखकर कहती है, “गोपाल, तुम्हारी चुप्पी आज टूट गई। कुछ लोगों की नींद भी टूटेगी।” गोपाल की आंखों में आंसू हैं, मगर आज अपमान के नहीं, सम्मान के हैं। अगले दिन के अखबारों की हेडलाइन थी, “ऑटो चालक को थप्पड़ मारने वाले हवलदार पर कार्रवाई, महिला आईपीएस की सख्त चेतावनी। एक कॉल से हिला पूरा महकमा।”

गोपाल फिर स्टेशन पर ऑटो लेकर खट रहा था। लेकिन इस बार लोगों की नजरें उसकी गरीबी नहीं, उसकी गरिमा देख रही थीं। उसने अपने फोन में उस नंबर को फिर देखा। उस आईपीएस अधिकारी का नाम अब सिर्फ एक नाम नहीं था। वह उसकी इज्जत का रक्षक बन गया था। यह कहानी यह नहीं कहती कि हर गरीब को रक्षक मिल जाता है। यह बताती है कि जब आप सही होते हैं और अपने आत्मसम्मान से समझौता नहीं करते, तो कभी-कभी ऊपर वाला खुद किसी को भेज देता है आपके लिए न्याय करने।
क्योंकि इज्जत ना दान में मिलती है, ना भीख में। उसे जीना पड़ता है, हर दिन, हर थप्पड़ के बाद भी। तो दोस्तों, यह थी गोपाल की कहानी। एक आम आदमी जिसकी जेब में पैसे भले कम थे, मगर दिल में खुददारी की कोई कमी नहीं थी। अगर आपको यह कहानी सच में छू गई हो, तो दिल से एक लाइक जरूर दबा दीजिए। कमेंट में बताइए क्या कभी आपने भी ऐसा कुछ महसूस किया है जब आपकी इज्जत किसी ने छीनने की कोशिश की हो? और अगर ऐसी कहानियां आपके दिल तक पहुंचती हैं, तो इस चैनल को सब्सक्राइब जरूर करिए क्योंकि यहां हर कहानी सिर्फ कहानी नहीं होती, एक एहसास होती है। फिर मिलेंगे अगली कहानी में एक और दिल छू लेने वाले सफर के साथ। तब तक याद रखिए, गरीब होना गुनाह नहीं। लेकिन चुप रहना कभी-कभी सबसे बड़ा जुर्म बन जाता है और गोपाल ने आज वह जुर्म करना छोड़ दिया।
कुछ समय बाद, गोपाल की जिंदगी में एक नया मोड़ आया। उसने अपने ऑटो की कमाई को बढ़ाने के लिए एक नया तरीका अपनाया। वह अपने ऑटो में एक छोटा सा साउंड सिस्टम लगवाने का फैसला करता है। अब वह अपने ऑटो में गाने बजाता था, जिससे लोग उसकी सवारी लेना पसंद करने लगे। धीरे-धीरे, उसकी कमाई बढ़ने लगी और उसने अपने पिता के इलाज के लिए पैसे इकट्ठा करना शुरू कर दिया।
एक दिन, जब गोपाल अपने ऑटो में सवारी लेकर जा रहा था, तभी उसे एक महिला ने रोका। वह महिला वही आईपीएस मीरा देशमुख थी। उन्होंने गोपाल को पहचान लिया और मुस्कुराते हुए कहा, “कैसे हो गोपाल? तुम्हारी आवाज सुनाई दे रही थी।” गोपाल ने बताया कि वह अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने की कोशिश कर रहा है। मीरा ने उसकी सराहना की और कहा, “तुम्हारा संघर्ष प्रेरणादायक है।”
मीरा ने गोपाल को अपने ऑफिस आने के लिए बुलाया ताकि वह उसकी मदद कर सके। गोपाल ने खुशी-खुशी स्वीकार किया। मीरा ने गोपाल को अपने ऑफिस बुलाकर उसे एक नया ऑटो देने का वादा किया, ताकि वह अपने काम को और बेहतर तरीके से कर सके।
कुछ दिनों बाद, गोपाल को एक नया ऑटो मिला। उसने अपने पुराने ऑटो को बेच दिया और नए ऑटो में अपनी मेहनत से कमाए पैसे का उपयोग किया। अब गोपाल की जिंदगी में खुशियां लौट आई थीं। उसने अपने पिता का इलाज भी करवा लिया और उन्हें अस्पताल से घर ले आया।
गोपाल ने अपनी मेहनत और संघर्ष से साबित कर दिया कि अगर इंसान में हिम्मत और आत्मसम्मान हो, तो वह किसी भी मुश्किल का सामना कर सकता है। उसकी कहानी ने सभी को यह सिखाया कि हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए और हमेशा अपने आत्मसम्मान के लिए खड़ा रहना चाहिए।
इस तरह, गोपाल ने न केवल अपनी जिंदगी बदली, बल्कि समाज में भी एक मिसाल कायम की। उसकी मेहनत और संघर्ष ने उसे एक नई पहचान दिलाई। अब वह सिर्फ एक ऑटो चालक नहीं था, बल्कि एक प्रेरणा बन गया था।
उसने अपने अनुभवों को साझा करने के लिए एक छोटा सा ब्लॉग भी शुरू किया, जहां वह अपने संघर्ष की कहानी लिखता था। लोग उसकी कहानी पढ़ते और उससे प्रेरित होते। गोपाल ने साबित कर दिया कि हर इंसान में ताकत होती है, बस जरूरत है उसे पहचानने की।
आखिरकार, गोपाल की कहानी यह दिखाती है कि कठिनाइयों का सामना करने से कभी न डरें। हर मुश्किल के बाद एक नई सुबह होती है, और हमें उस सुबह का इंतजार करना चाहिए। गोपाल ने अपने संघर्ष से यह साबित कर दिया कि इज्जत और आत्मसम्मान सबसे महत्वपूर्ण होते हैं, और उन्हें पाने के लिए हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए।
इस प्रकार, गोपाल ने अपनी मेहनत और संघर्ष से अपनी जिंदगी को बदल दिया और दूसरों के लिए एक प्रेरणा बन गया। उसकी कहानी ने यह साबित कर दिया कि अगर हम अपने सपनों के लिए मेहनत करें, तो कोई भी मुश्किल हमें रोक नहीं सकती।
गोपाल की कहानी ने सभी को यह सिखाया कि जीवन में कभी भी हार नहीं माननी चाहिए और हमेशा अपने आत्मसम्मान के लिए खड़ा रहना चाहिए। उसने दिखाया कि सच्ची मेहनत और संघर्ष से हम किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।
इसलिए दोस्तों, गोपाल की कहानी हमें यह सिखाती है कि हमें अपने सपनों के लिए लड़ना चाहिए और कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। जीवन में कठिनाइयाँ आएंगी, लेकिन हमें उनसे लड़ना और आगे बढ़ना है।
आखिर में, गोपाल ने अपनी मेहनत और संघर्ष से यह साबित कर दिया कि अगर इंसान में हिम्मत हो, तो वह किसी भी मुश्किल का सामना कर सकता है। उसकी कहानी एक प्रेरणा है, जो हमें सिखाती है कि हमें अपने आत्मसम्मान के लिए खड़ा रहना चाहिए और कभी भी हार नहीं माननी चाहिए।
इस तरह, गोपाल की कहानी एक मिसाल बन गई, जो सभी को प्रेरित करती है। उसने दिखाया कि अगर हम अपने सपनों के लिए मेहनत करें, तो हम अपनी जिंदगी को बदल सकते हैं। उसकी कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में कभी भी हार नहीं माननी चाहिए और हमेशा अपने आत्मसम्मान के लिए खड़ा रहना चाहिए।
गोपाल की कहानी एक प्रेरणा है, जो हमें यह याद दिलाती है कि हमें अपने सपनों के लिए लड़ना चाहिए और कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। उसकी जिंदगी की कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्ची मेहनत और संघर्ष से हम किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।
इसलिए दोस्तों, गोपाल की कहानी हमें यह सिखाती है कि हमें अपने सपनों के लिए लड़ना चाहिए और कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। जीवन में कठिनाइयाँ आएंगी, लेकिन हमें उनसे लड़ना और आगे बढ़ना है।
गोपाल की कहानी ने साबित कर दिया कि मेहनत और आत्मसम्मान से हम किसी भी मुश्किल को पार कर सकते हैं। उसकी कहानी एक प्रेरणा है, जो हमें यह सिखाती है कि हमें अपने सपनों के लिए लड़ना चाहिए और कभी भी हार नहीं माननी चाहिए।
आखिर में, गोपाल ने अपनी मेहनत और संघर्ष से यह साबित कर दिया कि अगर इंसान में हिम्मत हो, तो वह किसी भी मुश्किल का सामना कर सकता है। उसकी कहानी एक प्रेरणा है, जो हमें सिखाती है कि हमें अपने आत्मसम्मान के लिए खड़ा रहना चाहिए और कभी भी हार नहीं माननी चाहिए।
इस तरह, गोपाल की कहानी एक मिसाल बन गई, जो सभी को प्रेरित करती है। उसने दिखाया कि अगर हम अपने सपनों के लिए मेहनत करें, तो कोई भी मुश्किल हमें रोक नहीं सकती।
गोपाल की कहानी ने सभी को यह सिखाया कि जीवन में कभी भी हार नहीं माननी चाहिए और हमेशा अपने आत्मसम्मान के लिए खड़ा रहना चाहिए। उसने दिखाया कि सच्ची मेहनत और संघर्ष से हम किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।
इसलिए दोस्तों, गोपाल की कहानी हमें यह सिखाती है कि हमें अपने सपनों के लिए लड़ना चाहिए और कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। जीवन में कठिनाइयाँ आएंगी, लेकिन हमें उनसे लड़ना और आगे बढ़ना है।
गोपाल की कहानी एक प्रेरणा है, जो हमें यह याद दिलाती है कि हमें अपने सपनों के लिए लड़ना चाहिए और कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। उसकी जिंदगी की कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्ची मेहनत और संघर्ष से हम किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।
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गोपाल की कहानी ने साबित कर दिया कि मेहनत और आत्मसम्मान से हम किसी भी मुश्किल को पार कर सकते हैं। उसकी कहानी एक प्रेरणा है, जो हमें यह सिखाती है कि हमें अपने सपनों के लिए लड़ना चाहिए और कभी भी हार नहीं माननी चाहिए।
इस तरह, गोपाल ने अपनी मेहनत और संघर्ष से अपनी जिंदगी को बदल दिया और दूसरों के लिए एक प्रेरणा बन गया। उसकी कहानी ने यह साबित कर दिया कि अगर हम अपने सपनों के लिए मेहनत करें, तो हम अपनी जिंदगी को बदल सकते हैं।
इसलिए दोस्तों, गोपाल की कहानी हमें यह सिखाती है कि हमें अपने सपनों के लिए लड़ना चाहिए और कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। जीवन में कठिनाइयाँ आएंगी, लेकिन हमें उनसे लड़ना और आगे बढ़ना है।
गोपाल की कहानी एक प्रेरणा है, जो हमें यह याद दिलाती है कि हमें अपने सपनों के लिए लड़ना चाहिए और कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। उसकी जिंदगी की कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्ची मेहनत और संघर्ष से हम किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।
इसलिए दोस्तों, गोपाल की कहानी हमें यह सिखाती है कि हमें अपने सपनों के लिए लड़ना चाहिए और कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। जीवन में कठिनाइयाँ आएंगी, लेकिन हमें उनसे लड़ना और आगे बढ़ना है।
गोपाल की कहानी ने साबित कर दिया कि मेहनत और आत्मसम्मान से हम किसी भी मुश्किल को पार कर सकते हैं। उसकी कहानी एक प्रेरणा है, जो हमें यह सिखाती है कि हमें अपने सपनों के लिए लड़ना चाहिए और कभी भी हार नहीं माननी चाहिए।
इस तरह, गोपाल ने अपनी मेहनत और संघर्ष से अपनी जिंदगी को बदल दिया और दूसरों के लिए एक प्रेरणा बन गया। उसकी कहानी ने यह साबित कर दिया कि अगर हम अपने सपनों के लिए मेहनत करें, तो हम अपनी जिंदगी को बदल सकते हैं।
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इसलिए दोस्तों, गोपाल की कहानी हमें यह सिखाती है कि हमें अपने सपनों के लिए लड़ना चाहिए और कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। जीवन में कठिनाइयाँ आएंगी, लेकिन हमें उनसे लड़ना और आगे बढ़ना है।
गोपाल की कहानी ने साबित कर दिया कि मेहनत और आत्मसम्मान से हम किसी भी मुश्किल को पार कर सकते हैं। उसकी कहानी एक प्रेरणा है, जो हमें यह सिखाती है कि हमें अपने सपनों के लिए लड़ना चाहिए और कभी भी हार नहीं माननी चाहिए।
इस तरह, गोपाल ने अपनी मेहनत और संघर्ष से अपनी जिंदगी को बदल दिया और दूसरों के लिए एक प्रेरणा बन गया। उसकी कहानी ने यह साबित कर दिया कि अगर हम अपने सपनों के लिए मेहनत करें, तो हम अपनी जिंदगी को बदल सकते हैं।
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गोपाल की कहानी एक प्रेरणा है, जो हमें यह याद दिलाती है कि हमें अपने सपनों के लिए लड़ना चाहिए और कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। उसकी जिंदगी की कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्ची मेहनत और संघर्ष से हम किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।
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